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अब ‘राम-परशुराम’, ब्राह्मणों को रिझाने के लिए अपनाया भगवा-BSP

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उत्तर प्रदेश में 2022 विधानसभा चुनाव में इस बार दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे अपनी राजनीति को बचाने की जुगत में लगी रही बहुजन समाज पार्टी ने अब राजनीति का नया रंग दिखाया है। कभी ब्राह्मणों के लिए जहर उगलने के बाद सफल यू-टर्न तो पार्टी 2007 के विधानसभा चुनाव में ही ले चुकी, लेकिन इस प्रबुद्ध वर्ग को रिझाने के लिए राम और परशुराम की चरणवंदना भी की जा रही है।

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राजनीति की माया यह भी है कि नीले खेमे ने अयोध्या से ब्राह्मणों को जोडऩे का अभियान शुरू किया तो अपने पोस्टर को भी भगवा रंग में रंग डाला। राम मंदिर आंदोलन के वक्त बसपा के राजनीति पूर्वजों के बोल कतई कसैले थे, जबकि 2007 में ब्राह्मणों के साथ सत्ता का स्वाद चख चुकीं बसपा प्रमुख मायावती मंदिर निर्माण शुरू होने के पहले तक इस मुद्दे पर कुछ कहने से बचते हुए सेक्युलर छवि बचाए रखने की चिंता में डूबी रहीं। इसके पीछे उनकी रणनीति दलित के साथ मुस्लिम को जोड़े रखने की थी। मगर, इधर स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि सूबे की राजनीति में अहम भूमिका निभा चुका राम मंदिर अब बन रहा है तो इसका श्रेय भाजपा और उसके विचार परिवार के खाते में ही जाएगा।

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आस्था की यह डोर निस्संदेह हिंदुओं को काफी हद तक एक पाले में बांधने का प्रयास कर सकती है। अब ऐसे में संभवत: बसपा के रणनीतिकारों ने महसूस किया है कि ब्राह्मणों को अपने पाले में खींचना है तो राम व परशुराम की ‘अग्रपूजा’ जरूरी है। यह प्रयास बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा के शुक्रवार को अयोध्या में प्रबुद्ध वर्ग गोष्ठी से पहले अधिकारिक ट्विटर हैंडल से पोस्ट कार्यक्रम के पोस्टर में नजर भी आया। पोस्टर में राम मंदिर का माडल, बैकग्राउंड में रामलला के साथ भगवान परशुराम का चित्र है। बसपा मुखिया मायावती का भी फोटो है।खास बात है कि यहां नीले रंग का इस्तेमाल जरूरत भर का है। बाकी पूरे पोस्टर पर भगवा रंग की अधिकता में नजर आ रहा है। इस कदम के लिए बसपा क्यों मजबूर हुई, इसका जवाब भी सतीशचंद मिश्रा के ट्वीट की यह लाइन देती है- ‘सत्ता की चाबी ब्राह्मण 13 फीसद व दलित 23 फीसद के हाथ में है।’ गौरतलब है कि राम की धरा से मुस्लिम मतों की भागीदारी का जिक्र करने से भी परहेज किया गया। अब राजनीति का यह दांव अंतत: क्या रंग दिखाता है, यह 2022 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के परिणाम ही बताएंगे। 

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