Home ऐतिहासिक जब पहली बार आज़ाद हिंदुस्तान में पूर्व राजा-महाराजाओं को मिलने वाले वित्तीय लाभ,1971 में संविधान में संशोधन करके इसे बंद करवा दिया गया था.कांग्रेस के दो-फाड़ के बाद इंदिरा सर्वेसर्वा हो गयीं
ऐतिहासिकराज्य

जब पहली बार आज़ाद हिंदुस्तान में पूर्व राजा-महाराजाओं को मिलने वाले वित्तीय लाभ,1971 में संविधान में संशोधन करके इसे बंद करवा दिया गया था.कांग्रेस के दो-फाड़ के बाद इंदिरा सर्वेसर्वा हो गयीं

Share
Share
जन्मदिवस पर विशेष
जब राजाओं का प्रिवी पर्स बंद करके इंदिरा गांधी ने प्रजा को अपनी तरफ कर लिया था. 1970 में इंदिरा गांधी की समाजवादी सोच से उपजे इस फैसले ने राजा और प्रजा के बीच अंतर कम कर दिया था. आज हम ज़िक्र कर रहे हैं साल 1970 का. वह साल जब पहली बार आज़ाद हिंदुस्तान में पूर्व राजा-महाराजाओं को मिलने वाले वित्तीय लाभ, जिन्हें अंग्रेजी में ‘प्रिवी पर्सेस’ कहते हैं, पर संसद में बहस हुई थी और अंततः 1971 में संविधान में संशोधन करके इसे बंद करवा दिया गया था. आजादी के पहले हिंदुस्तान में लगभग 500 से ऊपर छोटी बड़ी रियासतें थीं. ये सभी संधि द्वारा ब्रिटिश हिंदुस्तान की सरकार के अधीन थीं. इन रियासतों के रक्षा और विदेश मामले ब्रिटिश सरकार देखती थी. इन रियासतों में पड़ने वाला कुल इलाका भारतीय उपमहाद्वीप के क्षेत्रफ़ल का तिहाई था. देश की 28 फीसदी आबादी इनमें रहती थी. इनके शासकों को क्षेत्रीय-स्वायत्तता प्राप्त थी. जिसकी जितनी हैसियत, उसको उतना भत्ता ब्रिटिश सरकार देती थी. यानी, ये नाममात्र के राजा थे, इनके राज्यों की सत्ता अंग्रेज सरकार के अाधीन थी, इनको बस बंधी-बंधाई रकम मिल जाती थी.
[ads1]
आगे, इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट, 1935 के तहत जब देश आज़ाद हुआ तो लार्ड माउंटबेटन ने इन रियासतों का हिंदुस्तान या पाकिस्तान में विलय करने का सुझाव दिया, जिसे अधिकतर राजाओं ने कुछ शर्तों के साथ स्वीकार कर लिया. बाद में सरकार ने उन तमाम शर्तों को ख़ारिज कर दिया, बस ‘प्रिवी पर्स’ को जारी रखा. इसके तहत उनका ख़ज़ाना, महल और किले उनके ही अधिकार में रह गए थे. यही नहीं, उन्हें केंद्रीय कर और आयात शुल्क भी नहीं देना पड़ता था. यानी, अब ये कर (टैक्स) ले तो नहीं पाते थे पर न देने की छूट भी मिली हुई थी. कुल मिलाकर, इनकी शान-ओ-शौक़त बरकरार थी. इंदिरा गांधी समाजवाद की तरफ़ झुक गई थीं. इसमें कुछ तो उनके सलाहकारों की भूमिका थी और कुछ उनकी अपनी सोच की. इंदिरा के सलाहकार पीएन हक्सर का मानना था कि जिस देश में इतनी ग़रीबी हो वहां राजाओं को मिलने वाली ये सुविधाएं तर्कसंगत नहीं लगतीं. लोगों को उनके विचार सही लगे. लगने भी थे क्योंकि जनता को कभी राजशाही मंजूर नहीं थी.
[ads2]
‘प्रिवी पर्स’ को बंद करने की शुरुआत 1967 में हो गयी थी. तब गृह मंत्री वाईबी चव्हाण को पूर्व राजाओं से इस विषय में बातचीत कर आम राय बनाने का ज़िम्मा दिया गया था. ध्रांगधरा के पूर्व महाराजा सर मयूरध्वजसिंह जी मेघराज जी (तीसरे) बाकी राजाओं की तरफ से बातचीत कर रहे थे. दोनों के बीच कई बैठकें हुईं पर कोई नतीजा नहीं निकला. आख़िर इतनी आसानी मानने वाला था? कहां जाता है कि तब इंदिरा गांधी पार्टी के भीतर अपने वर्चस्व की लडाई लड़ रही थीं, इसलिए उन्होंने इस मुद्दे पर कोई तुरंत कार्रवाई नहीं की. ज़ाहिर है एक साथ सारे मोर्चों पर लड़ना समझदारी नहीं होती. कांग्रेस के दो-फाड़ के बाद इंदिरा सर्वेसर्वा हो गयीं. उनके पास पार्टी का आंख मूंद समर्थन था. वीवी गिरी उनकी कृपा से राष्ट्रपति बन चुके थे. उन्होंने इस लड़ाई का मोर्चा खोल दिया. सरकार और राजाओं के बीच भयंकर तनातनी हो गयी. कोई नतीजा निकलता न देख, जामनगर (गुजरात) के राजा ने एक नया प्रस्ताव दे दिया.
[ads3]
जामनगर के राजा को जनता आज भी ‘जामसाहेब’ कहकर बुलाती है. उन्होंने, दिल्ली सरकार को पत्र लिखकर दोनों पक्षों की जिद पर अड़े रहने की आलोचना की और लिखा कि सरकार अगर ‘प्रिवी पर्स’ बंद करना चाहती है, तो बेशक करे. इसके बदले सभी राजाओं को एकमुश्त 25 साल के ‘प्रिवी पर्स’ बराबर तय राशि दे दी जाए. इसमें 25 फीसदी अभी नकद मिले और 25 फीसदी सरकारी प्रतिभूतियों (बांड्स) की शक्ल में जिन्हें 25 साल बाद नकद में बदला जा सके, और बचा 50 फीसदी पैसा तो उसे राजाओं द्वारा संचालित पब्लिक चैरिटी ट्रस्टों में दे दिया जाए. शर्त यह रहे कि वे सभी ट्रस्ट, इस राशि का इस्तेमाल राज्यों में खेल, पिछड़ी जातियों में शिक्षा के प्रसार और ख़त्म होते वन्य जीवन के संरक्षण में करें. कॉरपोरेट जगत में इसे ‘गोल्डन शेकहैंड’ कहते हैं.
जब यह चिट्ठी इंदिरा गांधी को मिली, तो उन्होंने वाईबी चव्हाण को इस पर ‘रचनात्मक कार्यों में छिपी असली मंशा’ नोट लिखकर भेज दिया. लिहाज़ा, चव्हाण ने कोई कदम नहीं उठाया. बात जस की तस रही और उन्होंने संसद में ‘प्रिवी पर्स’ ख़त्म करने के बाबत संवैधानिक संशोधन करने के लिए बिल पेश कर दिया.
[ads3]
लोक सभा में तो इसे बहुमत से पारित कर दिया गया पर राज्यसभा में यह बिल एक वोट से गिर गया. इसके बाद राष्ट्रपति वीवी गिरी सरकार की सहायता को आगे आये और उनके आदेशानुसार सभी राजाओं और महाराजों की मान्यता रद्द कर दी गयी. राजा और प्रजा का अंतर कम हो गया. सब के सब राजा-महाराजा कोर्ट पहुंच गए. सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के आदेश पर रोक लगा दी. यह इंदिरा गांधी की सत्ता को दूसरी चुनौती थी. इसके पहले बैंकों के राष्ट्रीयकरण पर भी कोर्ट और सरकार आमने-सामने हो गए थे.
जनता की भावना इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ थी. हवा इंदिरा गांधी के अनुकूल थी. उन्होंने सरकार भंग करके चुनावों की घोषणा कर दी. इंदिरा भारी बहुमत से चुनाव जीतकर सत्ता में लौटीं और फिर संविधान में 26 वां संशोधन करके ‘प्रिवी पर्स’ को हमेशा के लिए बंद कर दिया.https://www.facebook.com/photo?fbid=289849183150664&set=pcb.289849246483991
[ads4]
Share

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

अहमदाबाद विमान दुर्घटना में मृतकों के लिए BFTAA द्वारा श्रद्धांजलि सभा

मुंगेर (बिहार) : अहमदाबाद विमान दुर्घटना में मृतकों को बिहार फ़िल्म एंड...

झारखंड : मौसम विभाग द्वारा रेड अलर्ट के मद्देनजर आपातकालीन तैयारियों को लेकर निर्देश

मौसम विभाग द्वारा रेड अलर्ट के मद्देनजर आपातकालीन तैयारियों को लेकर निर्देश...

बाघमारा और गोविंदपुर एनआरएलएम टीमों द्वारा एक्सपोजर विजिट का आयोजन

वित्तीय समावेशन (एफआई) के क्षेत्र में महत्वपूर्ण पहल और सर्वोत्तम प्रथाओं को...