Visa Slowdown होने के कारण भारतीयों को UK और न्यूजीलैंड में कड़ी पाबंदियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे यात्रा योजनाओं पर असर पड़ा है।
Visa Slowdown: ब्रिटेन और न्यूजीलैंड में भारतीयों के लिए कड़ी पाबंदियाँ बढ़ीं
हाल के महीनों में भारतीय नागरिकों के लिए कुछ प्रमुख देशों, विशेष रूप से ब्रिटेन और न्यूजीलैंड, में वीजा प्रक्रिया में धीमी गति और सख्त प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। यह बदलाव भारतीय प्रवासियों और छात्रों की विदेश यात्रा योजनाओं में बाधा बन गए हैं।
Visa Slowdown के कारण
- अधिक कड़े सत्यापन और सिक्योरिटी प्रोटोकॉल लागू किए गए हैं।
- कोविड-19 महामारी के बाद बनी वैश्विक यात्रा सीमाओं ने प्रक्रिया को जटिल बनाया।
- ब्रिटेन में वीजा अधिकारी आवेदनों की संख्या बढ़ने के कारण बैक्लॉग से जूझ रहे हैं।
- न्यूजीलैंड में भी अभिवासन नीति और वीजा नियमों में परिवर्तन हुआ है।
ब्रिटेन और न्यूजीलैंड की नीतियाँ
- ब्रिटेन में कुछ श्रेणी के वीजा आवेदनों के लिए अतिरिक्त आवश्यकताएं लगाई गई हैं।
- न्यूजीलैंड ने बाढ़, जलवायु और सामाजिक सुरक्षा के कारण वीजा नियमों को कठिन बनाया है।
- दोनों ही देशों ने नए नियमों के तहत आवेदन प्रक्रिया को अधिक समय लेने वाला बनाया है।
भारतीय प्रभावित वर्ग
- छात्रों, प्रशिक्षुओं, और वर्क वीजा धारकों को सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है।
- उम्मीदवारों को वीजा मिलने में महीनों का विलम्ब हो रहा है।
- कुछ मामलों में पुनः आवेदन और अतिरिक्त परीक्षण भी जरूरी हो गया है।
विदेशी देशों में वीजा प्रक्रिया की मंद गति और कड़ी पाबंदियाँ भारतीय नागरिकों के लिए चुनौतियों का कारण हैं। इससे निपटने के लिए भारतीय प्रशासन को भी अपने काउंसुलेट सेवा को मजबूत करना होगा और आवेदकों को जागरूक करना होगा।
(FAQs)
- ब्रिटेन और न्यूजीलैंड में वीजा प्रक्रिया क्यों धीमी हुई?
- कड़े सुरक्षा प्रोटोकॉल और कोविड-19 के प्रभाव के कारण।
- भारतीयों को कौन-कौन सी समस्याएँ हो रही हैं?
- वीजा प्राप्ति में विलम्ब, अतिरिक्त दस्तावेजी आवश्यकताएं।
- कौन से वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हैं?
- छात्र, प्रशिक्षु, कार्यवासी।
- क्या वीजा आवेदन के लिए अतिरिक्त शुल्क लगेगा?
- वर्तमान में नीति में बदलाव के अनुसार कुछ श्रेणियों में संभव है।
- भारतीय प्रशासन इस समस्या से कैसे निपट रहा है?
- काउंसुलेट सेवा सुधार, आवेदकों को सहायता और सलाह।
- वीजा प्रक्रिया में सुधार कब तक संभव है?
- यह वैश्विक और द्विपक्षीय व्यवस्थाओं पर निर्भर है।
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