ब्रिटेन में चर्च ऑफ इंग्लैंड के 500 साल के इतिहास में पहली बार एक महिला, Dr. Samantha Mullally, को आर्कबिशप के पद पर नियुक्त किया गया है। वह यॉर्क के आर्कबिशप के रूप में कार्यभार संभालेंगी। यह एक ऐतिहासिक फैसला है जो चर्च में लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
यूके में इतिहास रचा: चर्च ऑफ इंग्लैंड के 500 साल के इतिहास में पहली महिला आर्कबिशप बनी Dr. Samantha Mullally
ब्रिटेन के इतिहास में पहली बार महिला बनीं आर्कबिशप, Dr. Samantha Mullally को मिला ऐतिहासिक पद
ब्रिटेन के धार्मिक इतिहास में आज एक नया और ऐतिहासिक अध्याय जुड़ गया है। चर्च ऑफ इंग्लैंड ने पहली बार किसी महिला को आर्कबिशप के पद पर नियुक्त किया है। यह ऐतिहासिक सम्मान डॉ. सामंथा मुलाली (Dr. Samantha “Sam” Mullally) को दिया गया है, जिन्हें यॉर्क के आर्कबिशप (Archbishop of York) के रूप में नियुक्त किया गया है।
चर्च ऑफ इंग्लैंड, जिसकी स्थापना 16वीं शताब्दी में हेनरी अष्टम के शासनकाल में हुई थी, ने अपने 500 साल के इतिहास में यह पहला मौका देखा है जब किसी महिला को इस उच्चतम पद के लिए चुना गया है। यह निर्णय न सिर्फ ब्रिटेन, बल्कि दुनिया भर के ऐंग्लिकन कम्युनियन के लिए एक बड़ी सांकेतिक घटना है।
यह नियुक्ति चर्च में लैंगिक समानता की दिशा में एक लंबे और कभी-कभी विवादास्पद सफर का परिणाम है। इस लेख में, हम डॉ. मुलाली के सफर, इस नियुक्ति के महत्व और चर्च ऑफ इंग्लैंड के भविष्य पर इसके प्रभाव पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
कौन हैं डॉ. सामंथा मुलाली? एक नजर उनके सफर पर
डॉ. मुलाली कोई एकाएक उभरा हुआ चेहरा नहीं हैं। वह चर्च की व्यवस्था में कदम-दर-कदम चलकर इस मुकाम तक पहुंची हैं।
- नर्सिंग से शुरुआत: उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक नर्स के रूप में की थी और लंदन के अस्पतालों में काम किया था।
- धर्म के प्रति झुकाव: नर्सिंग के दौरान ही उन्होंने महसूस किया कि उन्हें धार्मिक सेवा के लिए बुलाया जा रहा है। इसके बाद उन्होंने थियोलॉजी (धर्मशास्त्र) की पढ़ाई की।
- पुजारी बनना: उन्हें 1998 में पुजारी (priest) ordained किया गया। यह वह दौर था जब चर्च ऑफ इंग्लैंड में महिलाओं को पुजारी बनने की अनुमति मिली ही थी।
- बिशप का पद: 2015 में, वह लंदन की बिशप (Bishop of London) नियुक्त होने वाली पहली महिला बनीं। लंदन का बिशप पद चर्च ऑफ इंग्लैंड में सबसे वरिष्ठ और प्रभावशाली पदों में से एक है।
- व्यक्तिगत जीवन: वह शादीशुदा हैं और उनके छह बच्चे हैं। एक पारिवारिक महिला का यह सफर उनकी समर्पण और लगन को दर्शाता है।
नियुक्ति का ऐतिहासिक महत्व: सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ना
यह नियुक्ति कई कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण है:
- 500 साल में पहली बार: चर्च ऑफ इंग्लैंड की स्थापना के बाद से यह पहला मौका है जब किसी महिला को आर्कबिशप के पद पर नियुक्त किया गया है। यह एक सदियों पुरानी ‘ग्लास सीलिंग’ को तोड़ने जैसा है।
- यॉर्क के आर्कबिशप का पद: यह पद चर्च ऑफ इंग्लैंड में दूसरा सबसे वरिष्ठ पद है। आर्कबिशप ऑफ यॉर्क, कैंटरबरी के आर्कबिशप (वर्तमान में जस्टिन वेल्बी) के बाद चर्च के प्रमुख पदानुक्रम में दूसरे नंबर पर होते हैं।
- लैंगिक समानता का प्रतीक: यह निर्णय चर्च के भीतर लैंगिक समानता और विविधता को बढ़ावा देने की दिशा में एक स्पष्ट संदेश है। यह युवा लड़कियों और महिलाओं के लिए एक शक्तिशाली प्रेरणा है कि चर्च में भी उनके लिए सर्वोच्च पद प्राप्त करने का रास्ता खुला है।
- एक आधुनिक चर्च की छवि: यह कदम चर्च ऑफ इंग्लैंड को एक अधिक समावेशी और आधुनिक संस्था के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा, खासकर उस समय जब पश्चिमी देशों में चर्च की सदस्यता और उपस्थिति में गिरावट देखी जा रही है।
प्रतिक्रियाएं और भविष्य की चुनौतियाँ
- कैंटरबरी के आर्कबिशप की प्रतिक्रिया: आर्कबिशप जस्टिन वेल्बी ने इस नियुक्ति का स्वागत किया है और डॉ. मुलाली को उनकी “ऐतिहासिक नियुक्ति” पर बधाई दी है।
- चर्च के भीतर रूढ़िवादी विचार: हालाँकि यह एक ऐतिहासिक कदम है, लेकिन चर्च के भीतर कुछ रूढ़िवादी समूह अब भी महिलाओं के उच्च पदों पर नियुक्ति का विरोध करते हैं। डॉ. मुलाली को इन मतभेदों को प्रबंधित करते हुए चर्च की एकता बनाए रखने की चुनौती का सामना करना होगा।
- एक बदलते समाज में चर्च की भूमिका: उनकी सबसे बड़ी चुनौती एक ऐसे समाज में चर्च की प्रासंगिकता बनाए रखना होगी जो तेजी से धर्मनिरपेक्ष (secular) होता जा रहा है। उनका अनुभव और नर्सिंग पृष्ठभूमि उन्हें आम लोगों से जुड़ने में मदद कर सकती है।
डॉ. सामंथा मुलाली की नियुक्ति केवल एक व्यक्ति की उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह एक संस्थागत परिवर्तन का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि कोई भी संस्था, चाहे वह कितनी भी पुरानी और परंपरावादी क्यों न हो, समय के साथ बदल सकती है। यह निर्णय न केवल ब्रिटेन के लिए, बल्कि दुनिया भर में धार्मिक संस्थाओं में महिलाओं की भूमिका को लेकर चल रही बहस के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करता है। डॉ. मुलाली का कार्यकाल निस्संदेह चर्च ऑफ इंग्लैंड के भविष्य की दिशा तय करेगा।
(FAQs)
1. क्या डॉ. मुलाली अब चर्च ऑफ इंग्लैंड की प्रमुख हैं?
नहीं। चर्च ऑफ इंग्लैंड के सर्वोच्च प्रमुख ब्रिटेन की महारानी (King Charles III) हैं। आध्यात्मिक प्रमुख कैंटरबरी के आर्कबिशप (Archbishop of Canterbury) होते हैं। डॉ. मुलाली यॉर्क के आर्कबिशप के रूप में कैंटरबरी के आर्कबिशप के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ पद पर हैं।
2. क्या दुनिया में अन्य जगहों पर महिला आर्कबिशप हैं?
हाँ, ऐंग्लिकन कम्युनियन के अन्य सदस्य देशों में महिला आर्कबिशप रही हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका (द एपिस्कोपल चर्च) और न्यूजीलैंड में पहले से ही महिला आर्कबिशप की नियुक्ति हो चुकी है। हालाँकि, चर्च ऑफ इंग्लैंड में यह पहला मामला है।
3. चर्च ऑफ इंग्लैंड में महिलाओं को पुजारी बनने की अनुमति कब मिली?
चर्च ऑफ इंग्लैंड ने साल 1992 में महिलाओं को पुजारी (priest) ordained करने का फैसला किया था और पहली महिला पुजारी 1994 में बनीं थीं।
4. क्या महिलाएं बिशप बन सकती थीं?
हाँ, चर्च ऑफ इंग्लैंड ने साल 2014 में महिलाओं को बिशप बनाने के पक्ष में मतदान किया था। डॉ. मुलाली स्वयं 2015 में लंदन की बिशप बनने वाली पहली महिला बनीं।
5. क्या सभी इस नियुक्ति से खुश हैं?
नहीं, चर्च के भीतर कुछ रूढ़िवादी समूह, जो मानते हैं कि बिशप का पद केवल पुरुषों के लिए होना चाहिए, इस नियुक्ति से नाखुश हैं। हालाँकि, चर्च ने इसके लिए सुरक्षा उपाय (provisions) बनाए हैं ताकि ऐसे समूहों को महिला बिशप्स के अधिकार क्षेत्र से छूट दी जा सके।
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