Eye Care for Children उनके स्वास्थ्य व विकास के लिए बेहद जरूरी है। समय पर पहचान से बचपन की बीमारियां और नजर कमजोर होना रोका जा सकता है।
क्यों जरूरी है प्रारंभिक स्क्रीनिंग:Eye Care for Children
बच्चों की अच्छी दृष्टि स्वास्थ्य, आत्मविश्वास और शिक्षा के लिए सबसे अहम है। एक नवजात शिशु की आंखों की बनावट जन्म के समय पूरी तरह विकसित नहीं होती; इसलिए बच्चों में आंखों की जांच जीवन के पहले 5 वर्षों में बेहद जरूरी है.
आंखों की बीमारियां जैसे मायोपिया (करीब की नजर का कमज़ोर होना), हाइपरमेट्रोपिया (दूर की नजर की समस्या), ऐस्टीगमेटिज़्म, अंब्लायोपिया (‘लेज़ी आई’), और स्ट्रैबिस्मस (‘स्क्विंट’) – ये अगर समय पर पहचानी जाएं तो आसानी से इलाज संभव है। इन समस्याओं को समय पर न पहचाना जाए तो पढ़ाई, आत्म-सम्मान और जीवन की गुणवत्ता पर गहरा असर पड़ सकता है.
प्रारंभिक जांच क्यों जरूरी है?
- मस्तिष्क और संज्ञानात्मक विकास में सुधार: बच्चों का सीखना और विकास मुख्य रूप से दृष्टि पर निर्भर करता है। सही समय पर आंखों की जांच से दिमागी क्षमता और विकास बेहतर होता है.
- बीमारियों की तत्काल पहचान: अनेक बार बच्चों को खुद अपनी नजर कमजोर होने का पता नहीं होता। नियमित जांच से रोग जल्दी पकड़ में आते हैं.
- समय पर इलाज और बेहतर परिणाम: स्कूल शुरू होने से पहले या जल्द उम्र में जांच करवाने से अधिकांश बीमारियों का इलाज कोई जटिलता नहीं आती.
आंखों की जांच का सही समय
- नवजात: जन्म के तुरंत बाद विशेष रूप से समय से पहले पैदा हुए, परिवार में आंखों की बीमारी के इतिहास वाले या आंख पर कोई स्पष्ट समस्या दिखने वाले बच्चों की जांच अनिवार्य है.
- प्रीस्कूल (3-5 वर्ष): नजर के संरेखण, मूवमेंट और रिफ्रैक्टिव एरर्स के लिए स्क्रीनिंग। स्ट्रैबिस्मस, अंब्लायोपिया, मायोपिया, हाइपरमेट्रोपिया या ऐस्टीगमेटिज़्म जैसी समस्या दिखे तो तुरंत विशेषज्ञ को दिखाएं.
- स्कूल जाने वाले बच्चे (5 वर्ष से अधिक): हर साल नजर की तीक्ष्णता व संरेखण की जांच विषय विशेषज्ञ के पास होनी चाहिए.
वर्तमान भारतीय स्थिति और आवश्यकताएँ
एक अध्ययन के अनुसार दक्षिण भारत में प्रीस्कूल बच्चों में नजर संबंधी बीमारियों की दर 5.2% है और इनमें से अधिकतर मायोपिया है, जो सही समय पर नजर जांच से ठीक की जा सकती है. महानगरों में स्क्रीन टाइम के बढ़ने के कारण मायोपिया की समस्या तेजी से बढ़ रही है. भारत सरकार की ‘राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम’ (RBSK) के तहत स्कूलों में स्क्रीनिंग होती है लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार प्रीस्कूल बच्चों की भी नियमित दृष्टि जांच अनिवार्य होनी चाहिए.
आम लक्षण, जिन पर ध्यान दें
- बच्चों का लगातार आंखें मसलना या बार-बार झपकना
- आंखों से अन्य वस्तुओं को देख पाने में परेशानी
- एक सिरे से दूसरे सिरे पर नजर पहुंचाने में देरी
- स्कूल या डॉक्टर की नजर जांच में फेल होना
समय पर स्क्रीनिंग के फायदे
- स्थायी दृष्टि नुकसान से बचाव
- बच्चे का आत्मविश्वास, पढ़ाई व समग्र विकास बेहतर
- इलाज का खर्च और कठिनाई कम होती है
बच्चों की उम्र अनुसार नजर जांच
उम्र | जांच का तरीका | बीमारी की संभावना |
---|---|---|
नवजात | पूर्ण नेत्र जांच, परिवार का इतिहास | जन्मजात कैटरैक्ट, ग्लॉकोमा |
3-5 वर्ष | नेत्र संरेखण, मूवमेंट, रिफ्रैक्शन जाँच | स्ट्रैबिस्मस, अंब्लायोपिया, मायोपिया |
5 वर्ष+ | तीक्ष्णता, संरेखण जाँच, वार्षिक नेत्र जांच | मायोपिया, हाइपरमेट्रोपिया, ऐस्टीगमेटिज़्म |
आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण
समय पर जांच न होने से स्थायी दृष्टि नुकसान, शिक्षा में बाधा और सामाजिक समस्या बढ़ सकती है। WHO व ICMR के अनुसार, 6 वर्ष से कम बच्चों में नजर की बीमारियों की समय पर पहचान और इलाज से भविष्य में दृष्टि हानि के 98% मामलों को रोका जा सकता है.
FAQs
- बच्चों की आंखों की पहली जांच कब होनी चाहिए?
- बच्चों में सामान्य नजर की समस्या क्या है?
- Eye Care for Children कितनी बार करवानी चाहिए?
- कौनसे लक्षण नजर समस्या के संकेत हो सकते हैं?
- समय पर जांच से क्या फायदे हैं?
- स्क्रीन टाइम का बच्चों की नजर पर क्या असर है?
- ज्यादा स्क्रीन टाइम से मायोपिया, आंखों में थकान व विकास में कमी हो सकती है.
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