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Govatsa Dwadashi and Vasu Baras व्रत का महत्व?

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Govatsa DwadashiVasu Baras puja ceremony
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Govatsa Dwadashi 2025: जानें Vasu Baras की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि। नंदिनी व्रत का धार्मिक महत्व और व्रत कथा। दिवाली से पहले गाय और बछड़े की पूजा क्यों की जाती है? संपूर्ण जानकारी यहां पढ़ें।

Govatsa Dwadashi पर कैसे करें गाय की पूजा?

Govatsa Dwadashi 2025: Vasu Baras और नंदिनी व्रत का विशेष महत्व

हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है और Govatsa Dwadashi इसी श्रद्धा का प्रतीक है। यह पर्व दिवाली उत्सव की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। गोवत्स द्वादशी, जिसे वसु बारस या नंदिनी व्रत के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसा पावन अवसर है जब गाय और उसके बछड़े की विशेष पूजा की जाती है। यह व्रत संतान की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना के लिए रखा जाता है।

आज के इस लेख में, हम आपको गोवत्स द्वादशी 2025 की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और इसके धार्मिक महत्व के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे।

Govatsa Dwadashi 2025: तिथि और मुहूर्त

साल 2025 में गोवत्स द्वादशी 19 अक्टूबर, रविवार को मनाई जाएगी।

मुख्य मुहूर्त:

  • द्वादशी तिथि प्रारंभ: 18 अक्टूबर 2025 को रात 09:45 बजे
  • द्वादशी तिथि समाप्त: 19 अक्टूबर 2025 को रात 08:13 बजे
  • पूजा का शुभ मुहूर्त: सुबह 06:30 बजे से 08:30 बजे तक
  • अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:45 बजे से 12:30 बजे तक

गोवत्स द्वादशी क्या है? धार्मिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य

गोवत्स द्वादशी हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है। यह दिवाली से दो दिन पहले आती है और मुख्यतः महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और तमिलनाडु में बड़े उत्साह से मनाई जाती है। इस दिन गाय (गो) और उसके बछड़े (वत्स) की पूजा की जाती है, इसीलिए इसे गोवत्स द्वादशी कहते हैं।

गोवत्स द्वादशी के अन्य नाम

  • वसु बारस (महाराष्ट्र में)
  • नंदिनी व्रत
  • सप्तमी व्रत
  • गोवत्स द्वादशी व्रत

गोवत्स द्वादशी पूजा विधि

गोवत्स द्वादशी के दिन निम्नलिखित विधि से पूजा करनी चाहिए:

  1. सुबह जल्दी उठकर स्नान: प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. व्रत का संकल्प: पूजा से पहले व्रत का संकल्प लें – “मैं संतान की खुशहाली और दीर्घायु के लिए यह व्रत रख रहा/रही हूं।”
  3. गाय और बछड़े की पूजा:
    • गाय और बछड़े को स्नान कराएं
    • उन्हें सजाएं – फूलों की माला पहनाएं
    • उनके माथे पर कुमकुम और चंदन का तिलक लगाएं
    • उन्हें मीठा चारा खिलाएं
    • उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें
  4. नंदिनी देवी की पूजा: कुछ क्षेत्रों में नंदिनी देवी की कलश स्थापना करके पूजा की जाती है।
  5. व्रत कथा का पाठ: गोवत्स द्वादशी की व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।
  6. आरती और प्रसाद: पूजा के बाद आरती करें और प्रसाद वितरित करें।

गोवत्स द्वादशी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक गरीब ब्राह्मण दंपत्ति थे जिनके कोई संतान नहीं थी। एक दिन उन्होंने गोवत्स द्वादशी का व्रत रखा और विधि-विधान से गाय और बछड़े की पूजा की। उनकी श्रद्धा और भक्ति से प्रसन्न होकर नंदिनी देवी (दिव्य गाय) ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। ब्राह्मण दंपत्ति ने संतान का वरदान मांगा। नंदिनी देवी ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया और कहा कि जो भी इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करेगा, उसे संतान सुख की प्राप्ति होगी।

गोवत्स द्वादशी का धार्मिक महत्व

  1. संतान की कल्याण कामना: यह व्रत मुख्य रूप से संतान की दीर्घायु और खुशहाल जीवन के लिए रखा जाता है।
  2. गौ माता का सम्मान: इस दिन गाय को माता का दर्जा देकर उसकी पूजा की जाती है, जो हिंदू संस्कृति में गौ सेवा के महत्व को दर्शाता है।
  3. दिवाली उत्सव की शुरुआत: गोवत्स द्वादशी दिवाली उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है।
  4. कृषि से जुड़ाव: भारतीय संस्कृति में गाय का कृषि और अर्थव्यवस्था से गहरा संबंध है।

विशेष पूजा सामग्री

गोवत्स द्वादशी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री:

  • नए वस्त्र (गाय और बछड़े के लिए)
  • फूल और फूलों की माला
  • कुमकुम, हल्दी, चंदन
  • अक्षत (चावल)
  • दीपक
  • घी
  • मीठा चारा (गुड़, चना, हरा चारा)
  • नारियल
  • फल

व्रत के नियम और विधान

  1. उपवास: पूरे दिन व्रत रखें, कुछ लोग फलाहार करते हैं।
  2. सात्विक आहार: यदि व्रत नहीं रख रहे हैं तो सात्विक भोजन करें।
  3. गौ सेवा: गायों की सेवा करें और उन्हें अच्छा चारा खिलाएं।
  4. दान-पुण्य: गौशाला को दान दें या गौ सेवा से जुड़े कार्यों में योगदान दें।

क्षेत्रीय विविधताएं और परंपराएं

महाराष्ट्र में परंपरा: यहां इसे वसु बारस के नाम से जाना जाता है और इस दिन गाय के दूध से बनी मिठाइयां बनाई जाती हैं।

गुजरात में उत्सव: गुजरात में इस दिन गौमाता की विशेष पूजा की जाती है और गायों को रंग-बिरंगे कपड़ों से सजाया जाता है।

दक्षिण भारत में महत्व: तमिलनाडु और कर्नाटक में इसे नंदिनी व्रत के नाम से मनाया जाता है।

आधुनिक संदर्भ में महत्व

आज के समय में जब गौ संरक्षण एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, गोवत्स द्वादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह पर्व हमें गाय के पर्यावरणीय, आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व की याद दिलाता है।

FAQs

1. Govatsa Dwadashi 2025 में कब है?
Govatsa Dwadashi 2025 में 19 अक्टूबर, रविवार को मनाई जाएगी।

2. गोवत्स द्वादशी और वसु बारस में क्या अंतर है?
दोनों एक ही पर्व हैं, केवल नाम अलग-अलग हैं। गोवत्स द्वादशी संस्कृत नाम है जबकि वसु बारस मराठी में प्रचलित नाम है।

3. क्या गोवत्स द्वादशी का व्रत केवल महिलाएं ही रख सकती हैं?
नहीं, यह व्रत पुरुष और महिलाएं दोनों रख सकते हैं जो संतान सुख चाहते हैं।

4. अगर घर में गाय नहीं है तो पूजा कैसे करें?
घर में गाय नहीं है तो आप गौशाला जाकर पूजा कर सकते हैं या गाय और बछड़े की मूर्ति/चित्र की पूजा कर सकते हैं।

5. गोवत्स द्वादशी के दिन क्या दान देना चाहिए?
गाय का चारा, अनाज, वस्त्र या गौशाला को आर्थिक सहायता दान में दी जा सकती है।

6. क्या गोवत्स द्वादशी के व्रत में अन्न खा सकते हैं?
व्रत के नियमों के अनुसार, कुछ लोग निराहार रहते हैं, कुछ फलाहार करते हैं। यह आपकी श्रद्धा और क्षमता पर निर्भर करता है।

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