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भारत-इंग्लैंड Women’s World Cup मुकाबले में DRS को लेकर बवाल

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DRS graphic on the big screen
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भारत और इंग्लैंड के बीच Women’s World Cup मुकाबले में DRS को लेकर विवाद हुआ। स्मृति मंधाना का रिव्यू उम्पायर ने रिजेक्ट कर दिया। जानें क्यों हुआ ऐसा, क्या कहते हैं नियम और क्या रही टीम इंडिया की प्रतिक्रिया।

DRS विवाद: Smriti Mandhana का रिव्यू Reject,भारत-इंग्लैंड Match में उठे सवाल

क्रिकेट में Decision Review System (DRS) को मैच के नतीजे को निष्पक्ष बनाने और उम्पायरिंग की गलतियों को सुधारने के लिए लाया गया था। लेकिन हाल ही में भारत और इंग्लैंड के बीच खेले गए महिला विश्व कप के एक महत्वपूर्ण मुकाबले में, यही DRS खुद विवाद के केंद्र में आ गया। भारतीय टीम की कप्तान और स्टार बल्लेबाज स्मृति मंधाना को उम्पायरों द्वारा DRS रिव्यू लेने से इनकार कर दिया गया, जिसने मैच के दौरान एक बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया।

यह घटना न सिर्फ मैच का टर्निंग पॉइंट साबित हुई, बल्कि इसने DRS के नियमों और उनके अनुपालन को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। आइए, विस्तार से जानते हैं कि आखिर मैदान पर हुआ क्या, नियम क्या कहते हैं और इस पूरे मामले में किसकी कितनी गलती थी।

मैदान पर क्या हुआ? पूरी घटना क्रमवार

मैच का दबाव बहुत ज्यादा था और भारत को जीत के लिए रन चाहिए थे। ऐसे नाजुक मोड़ पर जब स्मृति मंधाना क्रीज पर थीं, तब यह विवाद पैदा हुआ।

  • गेंद: इंग्लैंड की गेंदबाज ने एक गेंद डाली जो मंधाना के पैड से लगती हुई नजर आई। इंग्लैंड की टीम ने जोरदार अपील की।
  • उम्पायर का फैसला: ऑन-फील्ड उम्पायर ने बल्लेबाज को नॉट आउट (Not Out) का फैसला सुनाया।
  • मंधाना की प्रतिक्रिया: स्मृति मंधाना को लगा कि गेंद उनके बल्ले से लगी हो सकती है। उन्होंने तुरंत अपना बल्ला घुमाकर देखा और फिर तेजी से अपने साथी बल्लेबाज की ओर देखा, जैसे कि DRS लेने पर विचार कर रही हों।
  • विवाद का जन्म: इसी बीच, 15 सेकंड की डीआरएस समय सीमा समाप्त हो गई। उम्पायरों ने मंधाना द्वारा रिव्यू के लिए कोई स्पष्ट और सीधा संकेत (जैसे ‘T’ साइन बनाना) नहीं मिलने का हवाला देते हुए उनकी अपील को रिजेक्ट कर दिया। टीम इंडिया के कोच और खिलाड़ी इस फैसले से स्तब्ध रह गए।

क्या कहते हैं DRS के नियम?

इस पूरे विवाद की जड़ DRS के नियमों की व्याख्या में छुपी है। ICC के नियमों के अनुसार:

  • समय सीमा: एक ऑन-फील्ड फैसले के बाद, बल्लेबाजी या गेंदबाजी टीम के पास रिव्यू मांगने के लिए केवल 15 सेकंड का समय होता है।
  • संकेत: रिव्यू मांगने का संकेत स्पष्ट और सीधा (clear and immediate) होना चाहिए। आमतौर पर बल्लेबाज ‘T’ साइन बनाते हैं या सीधे उम्पायर से मुखातिब होकर रिव्यू की इच्छा जताते हैं।

विवाद के मुख्य बिंदु: किसकी कितनी गलती?

इस घटना पर दोनों तरफ के तर्क सामने आए हैं।

  • उम्पायर का पक्ष: उम्पायरों का मानना है कि मंधाना ने 15 सेकंड के अंदर कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया। उन्होंने बल्ले को देखा और अपने साथी से आंखों ही आंखों में बात की, जो एक आधिकारिक संकेत नहीं माना जा सकता। नियम के मुताबिक, उम्पायरों ने सही फैसला लिया।
  • भारतीय टीम का पक्ष: भारतीय टीम का कहना है कि मंधाना ने समय सीमा के अंदर ही रिव्यू लेने का इरादा जता दिया था। उनके हाव-भाव और एक्शन से साफ जाहिर था कि वह रिव्यू लेना चाहती हैं। उम्पायरों को थोड़ी उदारता दिखाते हुए संकेत को स्वीकार करना चाहिए था, खासकर एक इतने महत्वपूर्ण मैच में।

क्या होता अगर मंधाना रिव्यू ले पातीं?

बाद में हॉकआई (HawkEye) और स्निकोमीटर (Snickometer) जैसी तकनीक से टेलीविजन replays में देखा गया कि गेंद मंधाना के बल्ले से साफ स्पर्श करती हुई गुजरी थी। अगर मंधाना रिव्यू ले पातीं, तो उम्पायर का नॉट आउट का फैसला पलट जाता और उन्हें आउट दिया जाता। इस तरह, एक गलत फैसले के कारण भारत की एक महत्वपूर्ण विकेट बच गई।

हालांकि, यह बात भी सामने आई कि अगर रिव्यू मिल जाता और वह खराब निकलता, तो भारत एक कीमती रिव्यू खो देता, जो मैच के अंतिम ओवरों में उनके लिए बहुत काम आ सकता था।

नियम की जड़ता बनाम खेल की भावना

यह घटना एक बार फिर उस पुरानी बहस को जन्म देती है कि क्या नियमों का शाब्दिक पालन हमेशा ही सही होता है, या फिर उम्पायरों को खेल की स्थिति और संदर्भ को समझते हुए थोड़ी विवेकशीलता दिखानी चाहिए?

एक तरफ, नियम स्पष्ट हैं और उनका पालन करना जरूरी है ताकि कोई भ्रम न रहे। दूसरी तरफ, क्रिकेट एक मानवीय खेल है और इसमें हाव-भाव और इशारों का भी अपना महत्व है।

इस विवाद से दो सबक मिलते हैं:

  1. खिलाड़ियों के लिए: उन्हें DRS रिव्यू मांगने के तरीके को लेकर बिल्कुल स्पष्ट और त्वरित रहना चाहिए। संदेह की स्थिति में, तुरंत ‘T’ साइन बनाना सबसे सुरक्षित तरीका है।
  2. उम्पायरों के लिए: उन्हें न केवल नियम का पालन करना चाहिए, बल्कि खेल की नाजुक स्थिति में थोड़ी सहज बुद्धि (common sense) का भी इस्तेमाल करना चाहिए।

अंततः, यह घटना DRS के महत्व को तो रेखांकित करती ही है, साथ ही यह भी याद दिलाती है कि तकनीक चाहे कितनी भी उन्नत क्यों न हो जाए, मानवीय तत्व और उससे जुड़ी गलतियां हमेशा खेल का हिस्सा बनी रहेंगी।


FAQs

1. क्या उम्पायरों ने सही फैसला लिया?
नियमों के strict interpretation के आधार पर, हां। चूंकि स्मृति मंधाना ने 15 सेकंड के अंदर कोई स्पष्ट और official ‘T’ साइन नहीं बनाया, इसलिए उम्पायरों के पास रिव्यू रिजेक्ट करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

2. अगर बल्लेबाज सिर्फ हाथ उठा दे तो क्या वह रिव्यू माना जाएगा?
जरूरी नहीं। रिव्यू का संकेत स्पष्ट और असंदिग्ध होना चाहिए। सिर्फ हाथ उठाना या बल्ले को देखना पर्याप्त नहीं है। ‘T’ साइन बनाना सबसे सर्वमान्य और सुरक्षित तरीका है।

3. क्या टीम इंडिया इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकती है?
नहीं, ऑन-फील्ड उम्पायर के DRS रिव्यू को स्वीकार या अस्वीकार करने के फैसले के खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती। यह फैसला अंतिम होता है।

4. क्या DRS की 15 सेकंड की समय सीमा बहुत कम है?
यह बहस का विषय है। कुछ लोग मानते हैं कि high-pressure situations में 15 सेकंड कम होते हैं, जबकि दूसरों का कहना है कि यह समयसीमा मैच के flow को बनाए रखने और अनावश्यक देरी से बचाने के लिए जरूरी है।

5. क्या इस घटना का मैच के परिणाम पर कोई असर पड़ा?
घटना का मैच के नतीजे पर direct तो असर नहीं पड़ा, क्योंकि मंधाना आउट नहीं हुईं, लेकिन इसने भारतीय टीम के रिव्यू का इस्तेमाल करने के तरीके पर असर जरूर डाला। अगर वह रिव्यू लेतीं और वह खराब जाता, तो भारत बाद में एक जरूरी रिव्यू से हाथ धो बैठता।

6. क्या ICC को यह नियम बदलना चाहिए?
ICC लगातार नियमों की समीक्षा करता रहता है। ऐसी घटनाओं के बाद, यह संभव है कि वह उम्पायरों को थोड़ी अधिक छूट देने या संकेतों की परिभाषा को और स्पष्ट करने पर विचार करे।

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