लद्दाख के प्रतिनिधि दिल्ली में गृह मंत्रालय की उपसमिति से मुलाकात करेंगे। वार्ता में राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची और जनजातीय अधिकारों पर चर्चा होगी।
लद्दाख प्रतिनिधियों की गृह मंत्रालय से अहम बैठक: राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची पर बड़ी चर्चा
लद्दाख, जो कभी जम्मू-कश्मीर का हिस्सा था, 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद एक अलग केंद्रशासित प्रदेश बना। उस समय इसे “नए अवसरों की भूमि” कहा गया था, लेकिन पाँच साल बाद स्थानीय समुदायों की आवाज़ अब “राज्य के दर्जे” और “छठी अनुसूची” के संरक्षण की मांग में तब्दील हो चुकी है।
22 अक्टूबर 2025 को लद्दाख के दो प्रमुख प्रतिनिधिमंडल — Leh Apex Body (LAB) और Kargil Democratic Alliance (KDA) — दिल्ली में गृह मंत्रालय की उपसमिति से मुलाकात करने वाले हैं। इस वार्ता से यह उम्मीदें जुड़ी हैं कि केंद्र सरकार लद्दाख के संवैधानिक भविष्य पर कोई ठोस संकेत दे सकती है।
लद्दाख की वर्तमान स्थिति
- 2019 में परिवर्तन: अनुच्छेद 370 और 35A हटाए जाने के बाद लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा मिला।
- बिना विधानसभा: जम्मू-कश्मीर की तरह लद्दाख में कोई विधानमंडल नहीं है। सारा प्रशासनिक नियंत्रण केंद्र सरकार के अधीन LG के माध्यम से होता है।
- स्थानीय असंतोष: जनजातीय समूहों का कहना है कि इससे उनका स्थानीय प्रतिनिधित्व और सांस्कृतिक पहचान कमज़ोर हुई है।
मुख्य मांगें: राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची
1. राज्य का दर्जा
लद्दाख के नेताओं का कहना है कि उन्हें केंद्रशासित प्रदेश की तुलना में राज्य का दर्जा मिलना चाहिए ताकि क्षेत्रीय निर्णय स्थानीय रूप से लिए जा सकें।
Leh Apex Body के प्रवक्ता ने कहा —
“हमारा उद्देश्य सिर्फ़ राजनीतिक सत्ता नहीं, बल्कि प्रशासनिक स्वायत्तता और सांस्कृतिक संरक्षण भी है।”
2. छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग
भारत के संविधान की छठी अनुसूची पूर्वोत्तर राज्यों को विशेष स्वशासन देती है। लद्दाख के सामाजिक संगठनों का तर्क है कि उनके यहाँ भी 97% आबादी जनजातीय है, इसलिए वही संरक्षण मिलना चाहिए।
छठी अनुसूची में आने से —
- स्थानीय परिषदों को भूमि, परंपरा और संसाधनों पर नियंत्रण मिलेगा।
- बाहरी आबादी के अनियंत्रित बसाव से सुरक्षा मिलेगी।
- सांस्कृतिक और पर्यावरणीय संरक्षण में आसानी होगी।
वार्ता का संदर्भ
22 अक्टूबर 2025 को होने वाली यह बैठक गृह मंत्रालय की उस उपसमिति के साथ होगी, जो लद्दाख की मांगों का अध्ययन कर रही है।
इस समिति में गृह सचिव, पर्यावरण मंत्रालय और जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अधिकारी शामिल हैं।
Leh Apex Body और Kargil Democratic Alliance — दोनों ही संगठन पिछले कई महीनों से धरना और रैलियों के ज़रिए केंद्र से संवाद की मांग कर रहे थे। सितंबर 2025 में लद्दाख में हुए कुछ प्रदर्शनों में हिंसा के बाद यह वार्ता और अधिक अहम हो गई है।
राजनीतिक दृष्टिकोण
केंद्र सरकार का रुख
गृह मंत्रालय ने पहले संकेत दिया था कि वह “लद्दाख के विकास के लिए प्रतिबद्ध” है, परंतु संविधान में संशोधन की आवश्यकता वाले मुद्दों पर “सावधानीपूर्वक अध्ययन” आवश्यक है।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, “लद्दाख को विशेष दर्जा देने से अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के लिए मिसाल बन सकती है।”
स्थानीय राजनीति
Leh और Kargil की राजनीति भले ही अलग-अलग धार्मिक पृष्ठभूमि से आती हो, परंतु इस बार दोनों समुदाय एकजुट हैं। यह एक unified Ladakh voice का उदाहरण है।
सामाजिक और आर्थिक पक्ष
लद्दाख के लोग अपने क्षेत्र को सिर्फ़ पर्यटन या सामरिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण मानते हैं।
- सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले बौद्ध और शिया मुस्लिम समुदायों की आबादी केंद्र पर निर्भर है।
- युवाओं के बीच बेरोज़गारी, शिक्षा और पर्यावरण से जुड़ी चिंताएँ बढ़ी हैं।
नीचे दी गई टेबल लद्दाख के प्रमुख मुद्दों का सार प्रस्तुत करती है:
मुद्दा | विवरण | वर्तमान स्थिति |
---|---|---|
राज्य का दर्जा | अलग विधानसभा व राजनीतिक प्रतिनिधित्व | वार्ता में प्रमुख मुद्दा |
छठी अनुसूची | जनजातीय स्वशासन व भूमि संरक्षण | संसद की अनुमति आवश्यक |
बेरोज़गारी | पर्यटन निर्भर अर्थव्यवस्था में सीमित अवसर | युवाओं में असंतोष |
पर्यावरण | ग्लेशियर पिघलने से संकट | नीतिगत ध्यान की कमी |
सामरिक महत्व | चीन और पाकिस्तान सीमा से सटा क्षेत्र | रक्षा मंत्रालय प्राथमिकता में |
विशेषज्ञ विश्लेषण
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, लद्दाख में राज्य का दर्जा देना केंद्र के लिए एक कूटनीतिक और संवैधानिक चुनौती है।
- एक ओर, इससे स्थानीय असंतोष शांत हो सकता है।
- दूसरी ओर, इससे अन्य UTs (जैसे अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप) भी समान मांगें उठा सकते हैं।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के राजनीतिक विशेषज्ञ प्रो. आर. मनीष का कहना है —
“लद्दाख में लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व का अभाव, जनता के मनोबल को प्रभावित कर रहा है। अगर केंद्र ने इसे नज़रअंदाज़ किया तो यह क्षेत्रीय असंतोष राष्ट्रीय बहस में बदल सकता है।”
संभावित परिणाम
- वार्ता में सहमति बने तो:
- एक विशेष “Ladakh Autonomy Council” या “Legislative Framework” बनाया जा सकता है।
- अगर वार्ता विफल रहती है तो:
- लद्दाख में राजनीतिक असंतोष बढ़ सकता है।
- केंद्र पर “विकास बनाम लोकतंत्र” की बहस तेज़ होगी।
लद्दाख की यह वार्ता सिर्फ़ एक क्षेत्रीय संवाद नहीं, बल्कि भारत की संघीय संरचना और जनजातीय लोकतंत्र की परीक्षा भी है।
अगर केंद्र सरकार संतुलन बनाती है — विकास और स्थानीय स्वायत्तता के बीच — तो यह एक नए मॉडल ऑफ़ गवर्नेंस का उदाहरण बन सकता है।
लेकिन अगर संवाद ठहर गया, तो हिमालय की यह भूमि आने वाले वर्षों में भारत की सबसे चुनौतीपूर्ण राजनीतिक सीमाओं में से एक बन सकती है।
FAQs
1. लद्दाख को राज्य का दर्जा कब और कैसे मिल सकता है?
इसके लिए संसद में संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी। गृह मंत्रालय इस पर अध्ययन कर रहा है।
2. छठी अनुसूची में शामिल करने का क्या अर्थ है?
इससे जनजातीय परिषदों को स्थानीय शासन का अधिकार मिलेगा, जैसा पूर्वोत्तर राज्यों में है।
3. क्या लद्दाख में विधानसभा नहीं है?
नहीं, लद्दाख एक केंद्रशासित प्रदेश है जिसमें विधानसभा नहीं है; प्रशासक के रूप में LG कार्य करते हैं।
4. क्या यह वार्ता अंतिम निर्णय तय करेगी?
यह प्रारंभिक दौर की वार्ता है; केंद्र ने अभी कोई ठोस घोषणा नहीं की है।
5. लद्दाख की मांगों का देश की राजनीति पर क्या असर होगा?
यह मुद्दा 2025-26 के आम चुनावों में “स्थानीय स्वायत्तता बनाम राष्ट्रीय नियंत्रण” की बहस को प्रभावित कर सकता है।
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