Chhath Puja 2025 में क्यों करते हैं छठी मैया की उपासना? जानें इस महापर्व का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व। नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य की पूरी विधि। छठ व्रत कथा और संतान सुख व समृद्धि पाने के मंत्र।
Chhath Puja 2025: छठी मैया की उपासना का महत्व,क्यों मांगते हैं संतान और समृद्धि का आशीर्वाद?
भारत के सबसे कठिन और पवित्र व्रतों में से एक, छठ महापर्व, सूर्य देवता और छठी मैया की अटूट आस्था का प्रतीक है। यह पर्व सिर्फ एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति की पूजा, शरीर की शुद्धि और आत्मा की शक्ति का एक अनोखा संगम है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाए जाने वाले इस पर्व की महिमा अब पूरे देश में फैल चुकी है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर क्यों लाखों लोग इस कठिन व्रत को इतनी श्रद्धा से रखते हैं? क्यों छठी मैया को संतान की रक्षा और हर मनोकामना पूरी करने वाली देवी माना जाता है? और कैसे यह पर्व विज्ञान और आस्था के बीच एक सुंदर सेतु बनाता है?
आज के इस विस्तृत लेख में, हम छठ पूजा 2025 के महत्व, इसके पीछे की पौराणिक कथाओं, वैज्ञानिक तर्कों और पूजन विधि को गहराई से समझेंगे। साथ ही, जानेंगे कि कैसे यह पर्व भक्तों के जीवन में संतान सुख, समृद्धि और आरोग्य का आशीर्वाद लेकर आता है।
छठी मैया कौन हैं? भगवान सूर्य की बहन का रहस्य
छठ पूजा मुख्य रूप से भगवान सूर्य और उनकी बहन छठी मैया को समर्पित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया को भगवान सूर्य की बहन माना जाता है। वहीं, एक अन्य मान्यता के अनुसार, वह षष्ठी देवी हैं, जो संतान की रक्षा करने वाली देवी हैं। इन्हें ‘छठ माता’ या ‘छठी मैया’ के नाम से पूजा जाता है।
छठी मैया को बच्चों की रक्षा करने वाली और उन्हें दीर्घायु प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। मान्यता है कि जो माता-पिता छठी मैया की श्रद्धा से व्रत रखते हैं, उनकी संतान पर देवी की विशेष कृपा बनी रहती है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
Chhath Puja 2025: तिथियां और महत्वपूर्ण दिन
(नोट: यह तिथियां 2025 के लिए अनुमानित हैं। सटीक तिथि स्थानीय पंचांग के अनुसार तय होती है।)
- नहाय-खाय (28 अक्टूबर 2025, मंगलवार): छठ व्रत का पहला दिन। इस दिन व्रती स्नान करके शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं।
- खरना (29 अक्टूबर 2025, बुधवार): दूसरा दिन। इस दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखने के बाद शाम को गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
- संध्या अर्घ्य (30 अक्टूबर 2025, गुरुवार): तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण दिन। इस दिन शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य (छठ प्रसाद) दिया जाता है।
- उषा अर्घ्य (31 अक्टूबर 2025, शुक्रवार): चौथा और अंतिम दिन। इस दिन सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और व्रत का समापन किया जाता है।
छठ पूजा का धार्मिक और पौराणिक महत्व
कई पौराणिक कथाएं छठ पूजा की उत्पत्ति से जुड़ी हुई हैं:
- रामायण से संबंध: मान्यता है कि जब भगवान राम और माता सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो उन्होंने राजसूय यज्ञ करवाया। इस यज्ञ में ऋषि-मुनियों के कहने पर माता सीता ने छठी मैया की पूजा की और संतान सुख की कामना की। इसके बाद ही उन्हें लव और कुश के रूप में संतान सुख की प्राप्ति हुई।
- महाभारत से संबंध: एक अन्य कथा के अनुसार, जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत के प्रभाव से उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाट वापस मिल गया।
- कर्ण से संबंध: माना जाता है कि महाभारत के महान योद्धा कर्ण, जो सूर्य देव के पुत्र थे, वे नियमित रूप से सूर्य देव की उपासना किया करते थे और जल में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य दिया करते थे। यह परंपरा आगे चलकर छठ पूजा का रूप ले लिया।
Chhath Puja का वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी महत्व
छठ पूजा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जो शरीर और मन को डिटॉक्स करने में मदद करती है।
- सूर्य के प्रकाश का लाभ: सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणों में पराबैंगनी (Ultraviolet) किरणों की मात्रा न्यूनतम होती है, जबकि इन्फ्रारेड (Infrared) किरणों का प्रभाव अधिक होता है। यह किरणें त्वचा और शरीर के लिए बेहद फायदेमंद मानी जाती हैं। इस समय सूर्य को अर्घ्य देने से शरीर को विटामिन डी की प्राप्ति होती है, जो हड्डियों और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जरूरी है।
- शरीर की डिटॉक्सिफिकेशन: 36 घंटे के लंबे उपवास से शरीर का पाचन तंत्र आराम करता है और शरीर में जमा विषैले पदार्थ बाहर निकलते हैं।
- मन की शुद्धि: नदी या तालाब के किनारे खड़े होकर, पानी में उतरकर की जाने वाली पूजा मन को शांति और एकाग्रता प्रदान करती है। प्रकृति के सान्निध्य में आने से मानसिक तनाव कम होता है।
छठ पूजा की विस्तृत विधि: चार दिनों का पवित्र सफर
दिन 1: नहाय-खाय
- इस दिन व्रती सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं।
- घर की सफाई करके पवित्र होते हैं।
- इस दिन चने की दाल, लौकी की सब्जी और चावल बनाए जाते हैं।
- इस भोजन को ग्रहण करने के बाद अगले 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है।
दिन 2: खरना
- इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं।
- शाम को गुड़ की खीर (रसियाव) और चावल की पूरी बनाई जाती है।
- इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद अगले 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है।
दिन 3: संध्या अर्घ्य
- यह सबसे महत्वपूर्ण दिन है। पूरा दिन प्रसाद तैयार करने में बीतता है।
- प्रसाद में ठेकुआ, फल, नारियल, गन्ना, सुथनी और सभी मौसमी फल शामिल होते हैं।
- शाम के समय पूरा परिवार नदी या तालाब के किनारे जाता है।
- डूबते हुए सूर्य को ‘सूप’ में रखा प्रसाद और जल अर्पित किया जाता है।
- छठी मैया की पूजा की जाती है और छठ गीत गाए जाते हैं।
दिन 4: उषा अर्घ्य
- यह अंतिम दिन है। व्रती सुबह बहुत जल्दी उठकर फिर से नदी किनारे पहुंचते हैं।
- उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
- इसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करके अपने व्रत का पारण (समापन) करते हैं।
- प्रसाद को सभी रिश्तेदारों और पड़ोसियों में बांटा जाता है।
आस्था, विज्ञान और संस्कृति का अनूठा पर्व
छठ पूजा सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की जीवंत झलक है। यह पर्व हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर जीना सिखाता है। यह हमारे अंदर अनुशासन, सहनशीलता और दृढ़ संकल्प की भावना पैदा करता है। छठी मैया में अटूट आस्था रखने वाले भक्तों का मानना है कि इस व्रत से मिलने वाला आशीर्वाद न सिर्फ संतान को स्वस्थ और दीर्घायु बनाता है, बल्कि पूरे परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का संचार करता है।
सभी पाठकों को छठ महापर्व 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं! छठी मैया आप सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें और आपके घर में सुख-समृद्धि और संतान सुख की वर्षा हो!
FAQs
1. क्या पुरुष भी Chhath Puja रख सकते हैं?
जी हां, छठ व्रत सिर्फ महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुष भी रख सकते हैं। संतान की कामना या किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए पति-पत्नी दोनों मिलकर यह व्रत रखते हैं।
2. छठ पूजा में ठेकुआ क्यों बनाया जाता है?
ठेकुआ (जिसे कुछ regions में ‘ठेकवा’ या ‘रिकुआ’ भी कहते हैं) गेहूं के आटे और गुड़ से बनाया जाता है। यह एक शुद्ध और सात्विक प्रसाद है। मान्यता है कि इसकी सुगंध छठी मैया को बेहद प्रिय है और इसे बनाने में किसी भी तरह की शॉर्टकट या अशुद्धता की इजाजत नहीं है।
3. क्या छठ पूजा में नमक का प्रयोग वर्जित है?
हां, छठ पूजा के मुख्य प्रसाद (जैसे ठेकुआ, खीर, रसियाव) में नमक का प्रयोग वर्जित है। सभी प्रसाद बिना नमक के ही तैयार किए जाते हैं, जो इस व्रत की कठोरता और शुद्धता को दर्शाता है।
4. Chhath Puja में गन्ने का क्या महत्व है?
गन्ना प्रकृति की शुद्धता का प्रतीक है। इसे छठ पूजा में एक महत्वपूर्ण सामग्री के रूप में शामिल किया जाता है। गन्ने से बनी बांस की टोकरी (दउरा) में ही प्रसाद रखा जाता है। गन्ना जीवन के मधुर रस और विकास का भी प्रतीक है।
5. क्या पहली बार छठ व्रत रखने वालों के लिए कोई विशेष नियम है?
पहली बार व्रत रखने वाली महिलाओं या पुरुषों को ‘नवायते’ कहा जाता है। उनके लिए कुछ विशेष नियम हो सकते हैं, जैसे पूरे चार दिनों तक घर पर ही रहना, जमीन पर सोना आदि। यह नियम परिवार और क्षेत्र की परंपरा पर निर्भर करते हैं।
6. अगर कोई महिला गर्भवती है, तो क्या वह छठ व्रत रख सकती है?
कई महिलाएं गर्भावस्था में संतान की सुरक्षा और स्वास्थ्य की कामना से छठ व्रत रखती हैं। हालांकि, यह उनके स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। गर्भवती महिलाओं को व्रत रखने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए और व्रत के दौरान अपनी सेहत का खास ख्याल रखना चाहिए।
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