सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गवाहों को झूठा बयान देने के लिए धमकाना संज्ञानात्मक अपराध है और पुलिस को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।
झूठी गवाही के लिए धमकाना संवेदनीय अपराध, सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बढ़ी कानूनी कारवाई
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को झूठा बयान देने के लिए धमकाना एक संज्ञानात्मक अपराध (Cognisable Offence) है। इससे पहले इस मामले को लेकर विभिन्न उच्च न्यायालयों में भिन्न-भिन्न व्याख्याएँ मिली थीं, लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर स्पष्टता प्रदान कर दी है।
कानून की व्याख्या
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 195A को 2006 में जोड़ा गया था, जो गवाहों या अन्य व्यक्तियों को झूठा साक्ष्य देने के लिए धमकाने को अपराध मानती है।
- अदालत ने बताया कि यह अपराध धारा 193 से 196 के तहत आने वाले दूसरे अपराधों से अलग और उससे अधिक गंभीर है क्योंकि इसे संज्ञानात्मक अपराध के रूप में देखा गया है।
- इसका मतलब है कि पुलिस इस अपराध पर बिना किसी शिकायत के भी एफआईआर दर्ज कर सकती है और कार्रवाई कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
- न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आलोक अराधे की बेंच ने कहा कि पहले के कुछ हाई कोर्ट के आदेश जो इस अपराध को गैर-संज्ञानात्मक मानते थे, वे गलत थे।
- कोर्ट ने कहा कि धमकी देने के मामले में पीड़ित व्यक्ति तुरंत पुलिस या मजिस्ट्रेट के पास जा सकता है जिससे कानूनी प्रक्रिया आरंभ हो सके।
- कोर्ट ने बताया कि यह कानून गवाहों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है ताकि वे बेखौफ होकर न्याय प्रक्रिया में भाग ले सकें।
महत्व और प्रभाव
- इस फैसले से भारत में गवाह संरक्षण का पक्ष मजबूत होगा और झूठी गवाही को रोकने में मदद मिलेगी।
- यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बनाने की दिशा में भी अहम कदम है।
- भविष्य में आरोपी और उनके समर्थक गवाहों को धमकाने में कम होंगे और कानूनी प्रक्रिया पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
आईपीसी की धारा 193 से 196 और 195A की तुलना
| धारा | अपराध | शिकायत की प्रकृति | संज्ञानात्मक अपराध |
|---|---|---|---|
| 193-196 | झूठा साक्ष्य देना/फर्जी बयान बनाना | केवल संबंधित व्यक्ति द्वारा शिकायत | नहीं |
| 195A | झूठा बयान देने के लिए धमकी देना या डराना | किसी भी व्यक्ति द्वारा शिकायत | हाँ |
FAQs
- धारा 195A का क्या मतलब है?
— गवाहों या किसी को झूठा बयान देने के लिए धमकाना एक संज्ञानात्मक अपराध है। - इससे पहले गवाह धमकाने को कैसे माना जाता था?
— उच्च न्यायालयों ने इसे गैर-संज्ञानात्मक या मामूली अपराध माना था। - संज्ञानात्मक अपराध का क्या मतलब है?
— बिना शिकायत के पुलिस एफआईआर दर्ज कर सकती है और तुरंत जांच कर सकती है। - यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
— इससे गवाहों को संरक्षण मिलेगा और न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी। - गवाह रक्षा के लिए और क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
— कानून सख्त करना, सुरक्षा प्रदान करना, और जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है।
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