Dev Deepawali और त्रिपुरारी पूर्णिमा 2025 में 4 नवंबर को है। जानें इस पर्व का धार्मिक महत्व, भगवान शिव के त्रिपुरासुर वध की कथा, वाराणसी में मनाने का तरीका और पूजा विधि।
Dev Deepawali 2025: देवताओं का महापर्व, जानें त्रिपुरारी पूर्णिमा की तिथि, महत्व और वाराणसी की भव्यता
यदि आपने सोचा है कि दिवाली के बाद रोशनी का त्योहार खत्म हो गया, तो आप बिल्कुल गलत हैं। दिवाली के ठीक 15 दिन बाद, कार्तिक मास की पूर्णिमा को एक और अद्भुत दीप पर्व मनाया जाता है, जिसे ‘देव दीपावली’ या ‘देव-दीवाली’ कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन स्वर्ग के देवता धरती पर अवतरित होते हैं और गंगा स्नान करते हैं। इसीलिए इस रात पृथ्वी पर गंगा घाटों को दीयों की रोशनी से इस तरह सजाया जाता है कि स्वर्ग लोक भी धरती की इस चमक के आगे फीका नजर आए।
यह पर्व ‘त्रिपुरारी पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक दैत्य का वध किया था। इस लेख में, हम 2025 में देव दीपावली की सही तिथि, इसके पौराणिक और धार्मिक महत्व, वाराणसी में इसकी भव्यता और संपूर्ण पूजन विधि के बारे में विस्तार से जानेंगे।
देव दीपावली 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, देव दीपावली और त्रिपुरारी पूर्णिमा का पर्व नवंबर 2025 में मनाया जाएगा।
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 3 नवंबर 2025, सोमवार को दोपहर 02:55 बजे से
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 4 नवंबर 2025, मंगलवार को दोपहर 12:47 बजे तक
व्रत और उत्सव किस दिन मनाना है?
चूंकि पूर्णिमा तिथि 3 नवंबर को दोपहर में शुरू हो रही है और अगले दिन दोपहर तक रहेगी, लेकिन स्नान, दान और दीपदान का महत्व पूर्णिमा तिथि के सूर्योदय काल में ही माना जाता है। इसलिए, मुख्य उत्सव, स्नान और दान 4 नवंबर, मंगलवार के दिन किया जाएगा। हालाँकि, वाराणसी जैसे स्थानों पर उत्सव की तैयारियाँ 3 नवंबर की शाम से ही शुरू हो जाएँगी और 4 नवंबर की रात को घाटों पर दीपदान का मुख्य आयोजन होगा।
शुभ स्नान का समय:
4 नवंबर को सूर्योदय से पहले का समय, विशेष रूप से ब्रह्म मुहूर्त, स्नान के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
देव दीपावली क्यों मनाई जाती है? पौराणिक महत्व
इस पर्व के पीछे दो प्रमुख पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं:
1. त्रिपुरासुर वध और त्रिपुरारी पूर्णिमा:
त्रिपुरासुर नामक तीन अत्यंत शक्तिशाली दैत्यों (जो तीन पुरों – स्वर्ण, रजत और लौह के नगरों में रहते थे) ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया और देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया। देवताओं ने भगवान शिव की शरण ली। भगवान शिव ने एक विशाल रथ तैयार करवाया, जिसमें पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के चक्र लगे थे। उन्होंने एक अद्भुत अस्त्र बनाया और कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही उस अस्त्र से तीनों पुरों को भस्म कर दिया और त्रिपुरासुर का वध किया। इस जीत के उपलक्ष्य में देवताओं ने आनंदोत्सव मनाया और दीप जलाए। चूंकि भगवान शिव ने त्रिपुर का वध किया था, इसलिए उनका एक नाम ‘त्रिपुरारी’ पड़ गया और यह दिन ‘त्रिपुरारी पूर्णिमा’ कहलाया।
2. देवताओं की दीवाली:
एक अन्य मान्यता के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही देवता दिवाली मनाते हैं। दिवाली पर हम धरतीवासी लक्ष्मी जी का पूजन करते हैं, लेकिन देव दीपावली के दिन देवगण गंगा में स्नान करते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हैं। इसलिए, उनके स्वागत में हम गंगा घाटों को दीयों से सजा देते हैं, मानो कह रहे हों – “हे देवगण, आपका धरती पर स्वागत है!”
देव दीपावली कैसे मनाएं? पूजन विधि और रीति-रिवाज
1. स्नान और दान:
- सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नदी, सरोवर या घर पर ही पवित्र जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
- स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें।
- इस दिन गरीबों और ब्राह्मणों को दान देने का विशेष महत्व है। अनाज, वस्त्र, फल और दीपक दान करना शुभ माना जाता है।
2. पूजन:
- भगवान शिव (त्रिपुरारी के रूप में), विष्णु जी और माता लक्ष्मी की पूजा करें।
- शाम के समय तुलसी के पास और घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाएँ।
- गंगा घाट पर जाकर दीपदान करना सबसे शुभ और पुण्यदायी माना जाता है।
3. वाराणसी में देव दीपावली का अद्भुत नजारा:
वाराणसी (बनारस) में देव दीपावली का त्योहार अपने चरम पर देखने को मिलता है।
- दीपदान: सैकड़ों हज़ारों की संख्या में लोग गंगा घाटों पर पहुँचते हैं और गंगा मैया को दीपक अर्पित करते हैं।
- घाटों की सजावट: पूरे घाट दीयों की रोशनी से जगमगा उठते हैं। दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट और मणिकर्णिका घाट पर विशेष सजावट होती है।
- गंगा आरती: इस दिन की शाम होने वाली गंगा आरती का दृश्य अविस्मरणीय होता है। आरती के दौरान सैकड़ों दीपक एक साथ जलाए जाते हैं, घंटियाँ बजती हैं और मंत्रों का उच्चारण होता है।
- आतिशबाजी: आकाश रंग-बिरंगी आतिशबाजी से भर जाता है, जो गंगा के जल में अपना प्रतिबिंब दिखाकर एक जादुई माहौल बना देता है।
वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व
- आध्यात्मिक शुद्धि: कार्तिक मास में स्नान और दीपदान से मन और आत्मा की शुद्धि होती है।
- पर्यावरण संरक्षण: नदियों की शुद्धता का संदेश देता है। दीये जलाने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- मौसम परिवर्तन: यह पर्व हेमंत ऋतु (सर्दियों) के आगमन का संकेत देता है।
प्रकाश का संदेश
देव दीपावली का पर्व हमें सिखाता है कि बुराई (त्रिपुरासुर) पर अच्छाई (भगवान शिव) की हमेशा जीत होती है। यह त्योहार केवल दीये जलाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे अंदर के अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान के प्रकाश को जलाने का संकल्प है। चाहे आप वाराणसी के घाटों पर हों या अपने घर की छत पर, इस दिन एक दीया जलाकर आप इस महापर्व का हिस्सा बन सकते हैं और अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत कर सकते हैं।
FAQs
1. क्या देव दीपावली और त्रिपुरारी पूर्णिमा एक ही दिन मनाई जाती है?
हाँ, देव दीपावली और त्रिपुरारी पूर्णिमा दोनों एक ही दिन, यानी कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती हैं। त्रिपुरारी पूर्णिमा इसका धार्मिक नाम है, जबकि देव दीपावली इसके उत्सव का नाम है।
2. अगर मैं वाराणसी नहीं जा सकता तो देव दीपावली कैसे मनाऊं?
आप अपने नजदीकी किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर दीपदान कर सकते हैं। अगर वह भी संभव न हो, तो घर पर ही गंगाजल से स्नान करें, भगवान शिव और विष्णु की पूजा करें और अपने घर के आंगन, छत या बालकनी में दीये जलाएं। तुलसी के पास दीपक जलाना विशेष फलदायी माना जाता है।
3. देव दीपावली के दिन क्या खाना चाहिए और क्या नहीं?
इस दिन सात्विक और शाकाहारी भोजन ग्रहण करना चाहिए। मांसाहार, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि तामसिक चीजों से परहेज करना चाहिए। कई लोग इस दिन फलाहार या एक समय का भोजन करते हैं।
4. देव दीपावली के दिन कौन सा दान विशेष फलदायी है?
इस दिन दीपक, घी, तिल, कंबल, अनाज और वस्त्र दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। गरीबों को भोजन कराना भी बहुत पुण्य का कार्य माना गया है।
5. क्या देव दीपावली के दिन व्रत रखना जरूरी है?
व्रत रखना अनिवार्य नहीं है, लेकिन इसे रखना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। यदि आप पूरा व्रत नहीं रख सकते, तो एक समय फलाहार कर सकते हैं या सात्विक भोजन ग्रहण कर सकते हैं। स्नान, दान और पूजन का इस दिन विशेष महत्व है।
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