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पृथ्वी के अंदर छिपे Mantle Currents कैसे बनाते हैं ज्वालामुखी द्वीप?

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mantle currents feeding volcanic islands
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वैज्ञानिकों ने खुलासा किया कि पृथ्वी के अंदर बहने वाले मेंटल करंट्स दूरस्थ ज्वालामुखीय द्वीपों को कैसे ऊर्जा और लावा पहुंचाते हैं।

वैज्ञानिकों ने बताया – कैसे Mantle Currents दूरस्थ ज्वालामुखीय द्वीपों को ऊर्जा देते हैं

पृथ्वी की गहराई में छिपा रहस्य

धरती का भीतरी ढांचा कई परतों से मिलकर बना है – क्रस्ट (ऊपरी सतह), मेंटल (मध्य भाग) और कोर (गर्भ)। अब वैज्ञानिकों ने यह खुलासा किया है कि पृथ्वी के मेंटल में बहने वाले करंट्स यानी “mantle currents” न केवल नजदीकी क्षेत्रों को बल्कि हजारों किलोमीटर दूर बसे ज्वालामुखीय द्वीपों को भी लावा और ऊर्जा पहुंचाते हैं।

Mantle Currents क्या हैं?

मेंटल करंट्स दरअसल पृथ्वी के अंदर गरम चट्टानों के धीमे प्रवाह को कहते हैं। ये करंट्स गर्मी के अंतर और दबाव के कारण गहराई से ऊपर की ओर उठते हैं। इन्हें ही “mantle convection currents” कहा जाता है।
इन्हीं प्रवाहों की वजह से प्लेट टेक्टॉनिक्स, भूकंप, और ज्वालामुखी क्रियाएँ होती हैं।

नए अध्ययन का निष्कर्ष

हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक विस्तृत भूभौतिकीय अध्ययन किया, जिसमें उन्होंने पाया कि ये मेंटल करंट्स महासागरों के नीचे हजारों किलोमीटर तक बह सकते हैं और दूर-दूर तक फैले ज्वालामुखीय द्वीपों को लावा की आपूर्ति करते हैं।

इसका अर्थ है कि हवाई द्वीपों या प्रशांत महासागर में स्थित अन्य ज्वालामुखीय द्वीप केवल स्थानीय मेंटल प्लूम से नहीं बल्कि गहरे मेंटल करंट्स के नेटवर्क से पोषित हो सकते हैं।


मेंटल प्लूम और ज्वालामुखीय द्वीपों का संबंध

मेंटल प्लूम क्या होते हैं?
मेंटल प्लूम पृथ्वी के मेंटल से ऊपर की ओर उठने वाले गर्म पिघले हुए पदार्थ के स्तंभ होते हैं। ये तब सतह तक पहुँचते हैं जब उनकी गर्मी चट्टानों को पिघला देती है, जिससे ज्वालामुखीय विस्फोट और नए द्वीपों का निर्माण होता है।

दूरस्थ द्वीपों तक ऊर्जा का प्रवाह कैसे संभव है?
अब तक वैज्ञानिक मानते थे कि मेंटल प्लूम स्थानीय होते हैं, यानी जहां प्लूम होता है, वहीं ज्वालामुखी बनता है। लेकिन नए साक्ष्यों से पता चला है कि मेंटल के भीतर प्रवाह (currents) इतने विस्तृत हैं कि वे सैकड़ों किलोमीटर दूर तक लावा की आपूर्ति कर सकते हैं।


वैज्ञानिक अध्ययन की प्रमुख बातें

  1. अध्ययन में पृथ्वी के भीतर 3D सिस्मिक इमेजिंग तकनीक का प्रयोग किया गया।
  2. शोधकर्ताओं ने पाया कि कुछ मेंटल करंट्स 500 से 1000 किलोमीटर तक फैल सकते हैं।
  3. यह करंट्स हॉटस्पॉट ज्वालामुखियों (जैसे हवाई, आइसलैंड) को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
  4. अध्ययन ने पारंपरिक सिद्धांतों को चुनौती दी है जो केवल स्थायी प्लूम्स पर आधारित थे।
  5. इससे यह भी संकेत मिला कि पृथ्वी के मेंटल में ऊर्जा वितरण का नेटवर्क बहुत जटिल और गतिशील है।

मेंटल करंट्स की गति और दिशा

मेंटल करंट्स की गति बेहद धीमी होती है – लगभग कुछ सेंटीमीटर प्रति वर्ष
लेकिन उनका तापमान अत्यधिक होता है, जो 1200°C से 1500°C तक जा सकता है।
इनकी दिशा कई कारकों पर निर्भर करती है जैसे –

  • मेंटल का तापमान अंतर
  • पृथ्वी का घूर्णन
  • प्लेटों का टकराव या अलगाव

यह धीमा लेकिन निरंतर प्रवाह लाखों वर्षों में पृथ्वी की सतह को आकार देता है।


ज्वालामुखीय द्वीपों की उत्पत्ति की नई परिभाषा

पहले वैज्ञानिक यह मानते थे कि प्रत्येक ज्वालामुखीय द्वीप का एक अलग मेंटल स्रोत होता है।
लेकिन अब यह स्पष्ट हो रहा है कि मेंटल करंट्स एक साझा ऊर्जा तंत्र की तरह काम करते हैं, जो एक साथ कई द्वीपों को लावा पहुंचा सकते हैं।
इसका मतलब यह है कि पृथ्वी के भीतर “लावा वितरण प्रणाली” बहुत व्यापक और गहराई से जुड़ी हुई है।


प्लेट टेक्टॉनिक्स और Mantle Currents का संबंध

मेंटल करंट्स प्लेट टेक्टॉनिक्स की मूल प्रेरक शक्ति हैं।
जब मेंटल की गर्मी सतह की प्लेटों को ऊपर की ओर धकेलती है, तो कुछ जगहों पर प्लेटें अलग होती हैं और ज्वालामुखीय गतिविधि शुरू होती है।
कई जगह, प्लेटों के नीचे मेंटल करंट्स के प्रवाह से “hotspots” बनते हैं, जो लाखों वर्षों में द्वीप श्रृंखलाएँ बनाते हैं – जैसे हवाई द्वीप समूह।


पृथ्वी के जलवायु और पारिस्थितिकी पर प्रभाव

मेंटल करंट्स के कारण उत्पन्न ज्वालामुखीय गतिविधियाँ पृथ्वी के वायुमंडलीय तापमान और कार्बन चक्र को भी प्रभावित करती हैं।
ज्वालामुखियों से निकलने वाली गैसें — जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, और जलवाष्प — वातावरण में लंबे समय तक मौजूद रहती हैं और जलवायु पर असर डालती हैं।

इससे यह स्पष्ट होता है कि मेंटल करंट्स केवल भूगर्भीय नहीं बल्कि जलवायु नियामक तत्व भी हैं।


आधुनिक अनुसंधान तकनीकें

मेंटल करंट्स को समझने के लिए वैज्ञानिक निम्नलिखित तकनीकों का प्रयोग करते हैं:

  • Seismic tomography: पृथ्वी के अंदरूनी हिस्सों की 3D इमेज बनाना
  • Geodynamic modeling: मेंटल प्रवाह का कंप्यूटर आधारित मॉडल तैयार करना
  • Heat flow mapping: सतह पर निकलने वाली ऊष्मा का अध्ययन
  • Isotopic analysis: ज्वालामुखीय चट्टानों की रासायनिक संरचना का विश्लेषण

इन सभी तरीकों से वैज्ञानिक यह जान पा रहे हैं कि मेंटल करंट्स पृथ्वी की सतह को कैसे आकार देते हैं।


भविष्य के लिए संभावित प्रभाव

इस खोज से आने वाले दशकों में भूकंप पूर्वानुमान, ज्वालामुखी निगरानी और महासागरीय द्वीपों के विकास की नई समझ विकसित होगी।
यदि हम यह जान लें कि मेंटल करंट्स किस दिशा में बह रहे हैं, तो हम संभावित ज्वालामुखीय क्षेत्रों की पहचान पहले से कर सकते हैं।
यह तकनीकी और मानवीय दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण प्रगति है।


पृथ्वी के भीतर का जीवन अदृश्य है, परंतु उसका प्रभाव सतह पर गहराई से महसूस किया जा सकता है।
मेंटल करंट्स का यह अध्ययन हमें यह सिखाता है कि धरती का हर हिस्सा किसी न किसी तरह से जुड़ा हुआ है।
समुद्र के नीचे या द्वीपों पर हो रही गतिविधियाँ केवल सतही नहीं, बल्कि पृथ्वी की भीतरी धड़कन का परिणाम हैं।


FAQs

1. Mantle Currents क्या हैं?
मेंटल करंट्स पृथ्वी के अंदर गरम चट्टानों के प्रवाह को कहा जाता है, जो ऊर्जा और लावा को सतह तक पहुंचाते हैं।

2. ज्वालामुखीय द्वीप कैसे बनते हैं?
जब मेंटल करंट्स के कारण सतह की चट्टानें पिघलती हैं, तो लावा निकलता है और धीरे-धीरे ठंडा होकर द्वीप बनाता है।

3. क्या सभी ज्वालामुखीय द्वीपों का स्रोत एक ही होता है?
नहीं, लेकिन कई द्वीप एक ही बड़े मेंटल करंट नेटवर्क से प्रभावित हो सकते हैं।

4. क्या मेंटल करंट्स जलवायु को प्रभावित करते हैं?
हाँ, ज्वालामुखीय गैसें वातावरण में जाकर तापमान और वर्षा पैटर्न को प्रभावित करती हैं।

5. क्या यह अध्ययन भूकंप की भविष्यवाणी में मदद करेगा?
हाँ, मेंटल करंट्स की दिशा और तीव्रता को समझने से भूकंपीय गतिविधियों का पूर्वानुमान बेहतर हो सकता है।

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