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26/11 हमले की सबसे कम उम्र की बचे हुए-Devika Rotawan से जुड़ी हर अहम बात

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2611 survivor Devika
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26/11 हमले की सबसे कम उम्र की जीवित बचे — 9 साल की बच्ची Devika Rotawan, जिसने पहचाना कसाब, और अब उसकी नई जिंदगी व लड़ाई।

26/11 की नन्ही गवाह: दर्द को ताकत बनाकर आगे बढ़ने वाली एक असाधारण लड़की की कहानी

26 नवंबर 2008। मुंबई पर हुआ आतंकी हमला सिर्फ शहर की सुरक्षा को नहीं बल्कि आम लोगों की जिंदगी को गहरे तक हिला गया था। गोलियों, विस्फोटों और चीख-पुकार के बीच एक नौ साल की बच्ची भी उस भयावह रात का हिस्सा बनी। वह एक मासूम बच्ची थी, जो अपने पिता और भाई के साथ रेलवे स्टेशन पर थी। कुछ ही मिनटों में गोलियों की बारिश होने लगी और उस बच्ची के पैर में गोली लग गई। उसी बच्ची का नाम है—देविका।

उस दिन की घटना ने उसका जीवन बदल दिया। लेकिन जिस बात ने दुनिया को चौंकाया, वह यह थी कि इतनी कम उम्र में भी उसने अदालत में जाकर हमले में शामिल आतंकी की पहचान की। यह केवल एक गवाही नहीं थी, बल्कि साहस, मानसिक दृढ़ता और न्याय के लिए एक बच्चे का संकल्प था।

यह लेख उसी साहसी बच्ची की कहानी है—उसका दर्द, संघर्ष, साहस, सामाजिक चुनौतियाँ, न्याय की यात्रा और आज उसका भविष्य।


हमले की रात: भय, अराजकता और एक मासूम का घायल होना

देविका अपने परिवार के साथ रेलवे स्टेशन पर थी, जब अचानक गोलियों की आवाज आने लगी। लोग चीखते हुए दौड़ रहे थे। भगदड़ में कोई समझ नहीं पा रहा था कि क्या हो रहा है। इस अफरातफरी के बीच एक गोली सीधे उसकी टांग में लगी। दर्द असहनीय था, लेकिन स्थिति इतनी खतरनाक थी कि परिवार को उसे उठाकर किसी सुरक्षित जगह ले जाना पड़ा।

घटना के बाद उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने कई घंटों तक ऑपरेशन किया। चोट इतनी गंभीर थी कि उसे कई दिनों तक चलना भी मुश्किल रहा। यह केवल शारीरिक दर्द नहीं था—यह एक गहरी मानसिक चोट थी, जो किसी भी छोटे बच्चे को अंदर तक हिला दे।


इलाज की लंबी प्रक्रिया: सर्जरी, डर और धीरे-धीरे उबरना

एक बच्चे के लिए अस्पताल का माहौल ही डरावना होता है। लेकिन उसके लिए स्थिति बिल्कुल अलग थी—घाव गहरा था, पैर कमजोर हो चुका था और कई सर्जरी की जरूरत थी। वह कई महीनों तक इलाज के दौर से गुजरती रही। इंजेक्शन, दवाइयाँ, दर्द और चलने-फिरने की सीमाएँ—ये सब उस उम्र में किसी भी बच्चे के लिए कठिन होते हैं।

फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी। धीरे-धीरे उसने चलना सीखा, दर्द सहन किया और खुद को फिर से सामान्य जीवन में ढालने की कोशिश की।


अदालत में गवाही: जहाँ एक बच्ची ने सबका साहस बढ़ाया

इलाज के बाद सबसे कठिन हिस्सा था अदालत में जाना और हमले में शामिल व्यक्ति की पहचान करना। यह सिर्फ एक औपचारिक कार्यवाही नहीं थी—यह एक बच्चे के अंदर के डर के खिलाफ लड़ाई भी थी।

अदालत में जाते समय उसका आत्मविश्वास टूट सकता था, लेकिन उसने बहादुरी दिखाई। उसने हमलावर को पहचाना। उसकी आवाज़ में किसी तरह का डर नहीं था। एक छोटी बच्ची द्वारा इतने बड़े मामले में गवाही देना एक ऐतिहासिक क्षण था। इस गवाही ने न्याय की प्रक्रिया को मजबूती दी और वह कई लोगों के लिए प्रेरणा बन गई।


हमले का मानसिक प्रभाव: एक बच्चा किन अदृश्य घावों से गुजरता है

शारीरिक चोट तो समय से ठीक हो जाती है, लेकिन मानसिक घाव बहुत गहरे होते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि इस तरह का ट्रॉमा बच्चों पर कई वर्षों तक असर डालता है।

उसे लोगों की भीड़ से डर लगता था, तेज आवाज़ों से घबराहट होती थी, रात में बुरे सपने आते थे और हमले के दृश्य बार-बार याद आते थे। ऐसे ट्रॉमा से उबरना आसान नहीं होता। इसके लिए काउंसलिंग, परिवार का समर्थन और समय की जरूरत होती है।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि एक बच्चे के लिए ऐसा अनुभव जीवनभर की यादें छोड़ सकता है।


आर्थिक संघर्ष: किराए का घर मिलना भी बड़ी चुनौती बन गया

हमले से बचने के बाद भी देविका और उसके परिवार का संघर्ष खत्म नहीं हुआ। कई मकान मालिकों ने उन्हें घर देने से मना कर दिया। कई बार कहा गया कि वे “समस्या” बन सकते हैं या बिजली, भीड़, सुरक्षा जैसी बातें बहाना बना दी जाती थीं।

परिवार को बार-बार घर बदलना पड़ा और आर्थिक तंगी ने स्थिति को और कठिन बना दिया। पढ़ाई भी प्रभावित हुई। ऐसी परिस्थितियाँ किसी भी परिवार को मानसिक रूप से कमजोर कर सकती हैं।


सरकार और सहायता: वर्षों तक किया गया इंतजार

हमले के बाद कई घोषणाएँ की गईं—पुनर्वास, आर्थिक सहायता, घर, शिक्षा आदि। लेकिन इन वादों को पूरा होने में वर्षों लग गए। परिवार को अपनी आवाज़ बार-बार उठानी पड़ी। यह यात्रा इस बात का उदाहरण है कि पीड़ितों को केवल सांत्वना नहीं, बल्कि वास्तविक सहायता की आवश्यकता होती है।


आखिर मिला स्थायी घर: स्थिरता का पहला कदम

लंबे संघर्ष और निरंतर प्रयासों के बाद परिवार को अंततः एक घर मिला। यह केवल एक घर नहीं था—यह सुरक्षा, स्थिरता और सम्मान का प्रतीक था। इससे परिवार को राहत मिली और जीवन पटरी पर लौटने लगा।


आज की देविका: साहस की मिसाल और देश सेवा का सपना

अब वह बड़ी हो चुकी है। चोट के निशान आज भी हैं, लेकिन उसके भीतर नए सपने जन्म ले चुके हैं। उसका लक्ष्य है—देश की सेवा करना, न्याय व्यवस्था को मजबूत बनाना और आतंक के खिलाफ लड़ना। वह वर्दी पहनकर जिम्मेदारी उठाना चाहती है।

उसके सपनों में उस रात का दर्द नहीं, बल्कि उस रात से मिली सीख और मजबूती झलकती है।


देविका की कहानी क्यों महत्वपूर्ण है?

यह कहानी केवल एक बच्ची की कहानी नहीं है। यह हमें कई महत्वपूर्ण संदेश देती है:

• आतंक का प्रभाव सिर्फ घटना तक सीमित नहीं रहता
• एक बच्चा भी न्याय और साहस की आवाज़ बन सकता है
• पुनर्वास और सामाजिक समर्थन लंबी प्रक्रिया है
• मानसिक स्वास्थ्य किसी भी आपदा के बाद सबसे बड़ी चुनौती होता है
• समाज को पीड़ितों का साथ देना और उन्हें सम्मान देना आवश्यक है


दर्द से आगे बढ़ने का विज्ञान: कैसे बच्चे ट्रॉमा से उबरते हैं

बाल मनोविज्ञान के अनुसार, बच्चे वयस्कों की तुलना में तेजी से मानसिक चोट से उबर सकते हैं, यदि उन्हें सही वातावरण मिले।
इसके लिए जरूरी है:

• सुरक्षित माहौल
• परिवार का समर्थन
• मानसिक स्वास्थ्य काउंसलिंग
• स्कूल में सकारात्मक वातावरण
• आत्मसम्मान बढ़ाने वाली गतिविधियाँ

देविका की कहानी इस वैज्ञानिक तथ्य का प्रमाण है कि सही सहायता बच्चे को मजबूत इंसान बना सकती है।


समाज की भूमिका: संवेदनाएँ सिर्फ शब्दों तक सीमित न रहें

जब कोई बच्चा आतंक या हिंसा का शिकार होता है, तो केवल सरकारी सहायता या वित्तीय मदद काफी नहीं होती। समाज को भी साथ देना पड़ता है।
हमें पीड़ितों को कलंक का पात्र नहीं बनाना चाहिए, बल्कि सहानुभूति, समझ और सम्मान के साथ उनको स्वीकार करना चाहिए।


भविष्य की ओर: एक नई शुरुआत

आज वह शिक्षा और करियर पर ध्यान दे रही है। वह चाहती है कि उसका जीवन सिर्फ 26/11 तक सीमित न रहे। वह चाहती है कि उसकी पहचान संघर्ष से आगे बढ़कर सफलता और सेवा से बने।

32 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में, उसकी आवाज़ यह संदेश देती है—कि टूटा हुआ मन भी मजबूत भविष्य गढ़ सकता है।


FAQs

1. 26/11 हमले में देविका के साथ क्या हुआ था?
उन्हें रेलवे स्टेशन पर गोली लगी थी, जिससे उनकी टांग घायल हुई और कई सर्जरी करनी पड़ीं।

2. इतनी कम उम्र में उन्होंने अदालत में गवाही कैसे दी?
बहुत साहस के साथ उन्होंने हमले में शामिल व्यक्ति को अदालत में पहचान कर गवाही दी, जो न्याय प्रक्रिया में महत्वपूर्ण साबित हुई।

3. क्या उन्हें हमले के बाद सरकारी सहायता मिली थी?
सहायता के वादे किए गए थे, लेकिन उन्हें पूरा होने में वर्षों लग गए। अंततः उन्हें एक स्थायी घर मिला।

4. हमले का मानसिक प्रभाव कितना गहरा था?
उन्हें ट्रॉमा, डर और तनाव का सामना करना पड़ा, जिसके लिए लंबे समय तक काउंसलिंग और परिवार के सहयोग की आवश्यकता पड़ी।

5. आज उनकी आकांक्षा क्या है?
वह भविष्य में वर्दी सेवा में जाकर देश की रक्षा और सेवा करना चाहती हैं।

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