शेख हसीना के भारत में ठहरने पर एस जयशंकर बोले – यह उनकी निजी पसंद है, फैसला उन्हें करना है। बांग्लादेश में फेयर इलेक्शन और स्थिर लोकतंत्र पर भारत की साफ नीति, पूरे संदर्भ के साथ विश्लेषण।
भारत में शरण, ढाका में डेथ सज़ा: शेख हसीना पर जयशंकर की साफ लाइन क्या कहती है?
शेख हसीना की भारत में मौजूदगी
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना अगस्त 2024 में बांग्लादेश में छात्र-नेतृत्व वाले व्यापक विरोध प्रदर्शनों और हिंसा के बीच अचानक भारत आईं और तब से यहीं रह रही हैं। इन प्रदर्शनों और सरकारी कार्रवाई में सैकड़ों लोगों की मौत और हजारों के घायल होने की रिपोर्ट है, जिसके बाद उनकी 15 साल की सत्ता समाप्त हो गई। हाल ही में ढाका की एक विशेष अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने उन्हें कथित “क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी” के मामलों में अनुपस्थिति में मौत की सज़ा सुनाई, जो उन्हीं विरोध प्रदर्शनों पर हुई कार्रवाई से जुड़ी है।
शेख हसीना अपनी बहन के साथ 5 अगस्त को भारत आई थीं, और अब बांग्लादेश की नई सत्ता संरचना और न्यायालय दोनों उनकी वापसी और मुकदमे का दबाव बना रहे हैं। ढाका की ओर से औपचारिक रूप से दिल्ली से उनके प्रत्यर्पण या “रिपैट्रिएशन” की मांग भी की जा चुकी है, जिससे मामला और संवेदनशील हो गया है।
जयशंकर ने क्या कहा: ‘उन्हें खुद फैसला करना होगा’
HT लीडरशिप समिट में NDTV के एक सवाल पर जयशंकर से पूछा गया कि क्या भारत शेख हसीना को “जितने दिन चाहें” रहने देगा। उन्होंने जवाब में सीधा हां या ना कहने के बजाय कहा कि यह “थोड़ा अलग मुद्दा” है और यह उसी परिस्थिति से जुड़ा है जिसमें वे भारत आईं। उनके शब्दों में, वे एक खास हालात में यहां आईं और वही स्थितियां आगे उनके भविष्य को तय करने में अहम फैक्टर रहेंगी, लेकिन आख़िरकार “उन्हें खुद अपना मन बनाना है” कि आगे क्या करना है।
इस लाइन से दो बातें साफ दिखती हैं – पहली, भारत उनकी मौजूदगी को शरण या स्थायी राजनीतिक आश्रय की तरह खुले रूप में लेबल करने से बच रहा है; दूसरी, सार्वजनिक रूप से गेंद शेख हसीना के पाले में रखी जा रही है, ताकि दिल्ली पर सीधी “शेल्टर दे रही है या प्रत्यर्पण रोक रही है” जैसी राजनीति का दबाव न बने।
बांग्लादेश की स्थिति: मौत की सज़ा, विरोध और लोकतांत्रिक संकट
शेख हसीना को जिस केस में मौत की सज़ा मिली, वह छात्र-नेतृत्व वाले उस विद्रोह से जुड़ा है, जिसमें सरकारी नौकरियों में कोटा, कथित फर्जी चुनाव और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन हुआ था। आरोप है कि उनकी सरकार के दौर में सुरक्षा बलों और समर्थक समूहों ने दर्जनों जिलों में प्रदर्शनकारियों पर हेलिकॉप्टर, ड्रोन और घातक हथियारों से फायरिंग की, जिससे सैकड़ों की मौत और हजारों घायल हुए।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस सज़ा पर गंभीर सवाल उठे हैं – कई मानवाधिकार समूह इसे राजनीतिक रंग वाला ट्रायल मान रहे हैं, जबकि ढाका की नई सत्ता इसे “न्याय” के रूप में पेश कर रही है। इसी पृष्ठभूमि में भारत पर यह दबाव और बढ़ जाता है कि क्या वह एक ऐसे नेता को सुरक्षित रहने देगा, जिसे पड़ोसी अदालत ने मौत की सज़ा दी है, या फिर प्रत्यर्पण जैसे कठिन रास्ते पर सोचेगा।
भारत की लाइन: ‘क्रेडिबल डेमोक्रेटिक प्रोसेस’ और स्थिरता
जयशंकर ने अपने जवाब में सिर्फ हसीना के व्यक्तिगत भविष्य की बात नहीं की, बल्कि व्यापक भारत–बांग्लादेश रिश्तों पर भी जोर दिया। उनका स्पष्ट कहना था कि भारत अपने पड़ोसी में “क्रेडिबल डेमोक्रेटिक प्रोसेस” देखना चाहता है – यानी ऐसी राजनीतिक व्यवस्था जिसमें लोगों की इच्छाशक्ति साफ और निष्पक्ष चुनावों के ज़रिए प्रकट हो। उन्होंने याद दिलाया कि जो लोग आज ढाका में सत्ता में हैं, वे खुद पहले चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठा चुके हैं, इसलिए अगर मुद्दा चुनाव था तो सबसे पहला काम निष्पक्ष चुनाव कराना होना चाहिए।
जयशंकर ने भरोसा जताया कि जो भी भविष्य में बांग्लादेश की राजनीति में उभरेगा, वह भारत के साथ संबंधों पर “बैलेन्स्ड और मैच्योर व्यू” रखेगा और रिश्ते बेहतर होने की उम्मीद है। यह संकेत है कि दिल्ली किसी खास व्यक्ति के बजाय सिस्टम और प्रक्रिया पर दांव लगा रही है, ताकि लंबे समय की स्थिरता और सहयोग सुनिश्चित हो सके।
शेख हसीना के लिए आगे के विकल्प: शरण, वापसी या तीसरा रास्ता?
जो तस्वीर बनती है, उसमें शेख हसीना के सामने तीन बड़े विकल्प दिखते हैं, हालांकि हर रास्ता जोखिमों से भरा है।
- भारत में रहना जारी रखना: फिलहाल भारत ने उन्हें निकाला नहीं है और जयशंकर के शब्दों से लगता है कि उनकी मौजूदगी पर तुरंत कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा रहा, लेकिन इसे औपचारिक “अनलिमिटेड पॉलिटिकल असाइलम” की तरह पब्लिकली घोषित भी नहीं किया गया।
- बांग्लादेश लौटकर ट्रायल फेस करना: मौत की सज़ा और राजनीतिक माहौल को देखते हुए यह विकल्प फिलहाल बेहद ख़तरनाक दिखता है, भले ही उनके समर्थक इसे “मोरल स्टैंड” मानें।
- किसी तीसरे देश में जाना: अगर भविष्य में इंटरनेशनल मेडिएशन या अन्य देश शरण ऑफर करें, तो भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए यह एक “चेहरा बचाने वाला” रास्ता हो सकता है।
जयशंकर के “उन्हें अपना फैसला खुद करना है” वाले बयान से यह स्पष्ट है कि दिल्ली सार्वजनिक रूप से किसी एक विकल्प को आगे नहीं बढ़ा रही, बल्कि हालात और दोनों देशों की राजनीति के अनुसार स्पेस बचाए रख रही है।
भारत–बांग्लादेश रिश्तों पर असर
भारत और बांग्लादेश के रिश्ते पिछले डेढ़ दशक में व्यापार, कनेक्टिविटी, सुरक्षा सहयोग और सीमा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में काफ़ी गहरे हुए हैं। हसीना शासन के दौरान सीमापार आतंकवाद और उग्रवाद पर नियंत्रण, पूर्वोत्तर भारत के लिए बेहतर कनेक्टिविटी और आर्थिक प्रोजेक्ट्स में सहयोग जैसे अनेक कदम उठे। अब नई राजनीतिक स्थिति में भारत की कोशिश यह लगती है कि जो भी सरकार ढाका में उभरे, वह इन रणनीतिक हितों और आपसी भरोसे को आगे बढ़ाने की इच्छुक हो।
जयशंकर का जोर “स्टेबिलिटी” और “डेमोक्रेटिक लेजिटिमेसी” पर है, ताकि भारत को एक ऐसे पड़ोसी के साथ काम न करना पड़े जो भीतर से अस्थिर और गहरे ध्रुवीकृत समाज का प्रतिनिधित्व करता हो। शेख हसीना का सवाल इसी बड़े समीकरण का संवेदनशील लेकिन एक हिस्सा मात्र है, जिस पर फिलहाल भारत खुलकर कोई अंतिम रेखा नहीं खींच रहा।
5 FAQs
- शेख हसीना भारत कब और क्यों आईं?
वह 5 अगस्त 2024 को छात्र-नेतृत्व वाले व्यापक विरोध और हिंसा के बीच ढाका छोड़कर भारत आईं, जब उनकी 15 साल की सत्ता अचानक खत्म हो गई और उन्हें सुरक्षा का खतरा महसूस हुआ। - उन्हें किस मामले में मौत की सज़ा दी गई है?
ढाका के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने उन्हें 2025 में अनुपस्थिति में “क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी” के आरोपों पर दोषी ठहराते हुए मौत की सज़ा सुनाई, जो छात्रों के आंदोलन पर हुई घातक कार्रवाई से जुड़े हैं। - जयशंकर ने उनकी भारत में मौजूदगी पर क्या कहा?
उन्होंने कहा कि भारत में उनका रहना उन परिस्थितियों से जुड़ा एक मामला है जिसमें वे आईं, और आगे क्या करना है इसका फैसला “उन्हें खुद अपना मन बनाकर” करना होगा, यानी इसे उनकी व्यक्तिगत पसंद बताया। - क्या भारत ने साफ कहा कि वो जितने दिन चाहें रह सकती हैं?
सवाल सीधा था लेकिन जवाब कूटनीतिक रहा; जयशंकर ने “जितने दिन चाहें” जैसे शब्दों की पुष्टि से बचते हुए मामला परिस्थितियों और उनके निजी निर्णय पर छोड़ दिया। - बांग्लादेश के लिए भारत की आधिकारिक लाइन क्या है?
भारत खुलकर कह रहा है कि उसे पड़ोसी देश में “क्रेडिबल डेमोक्रेटिक प्रोसेस”, निष्पक्ष चुनाव और स्थिर, लोकतांत्रिक सरकार देखनी है, ताकि द्विपक्षीय रिश्ते संतुलित और परिपक्व तरीके से आगे बढ़ें।
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