RSS प्रमुख मोहन भागवत ने भारतीय विज्ञान सम्मेलन में कहा कि विज्ञान और धर्म में कोई विरोध नहीं, दोनों सत्य तक पहुंचते हैं। धर्म सृष्टि का नियम है। भारत विश्व गुरु बने, मातृभाषा में शिक्षा, पर्यावरण समस्याओं का धार्मिक-वैज्ञानिक समाधान!
धर्म विज्ञान नहीं, सृष्टि का नियम: मोहन भागवत बोले आंतरिक-अन्य अनुभव से एक ही लक्ष्य!
विज्ञान और धर्म में कोई विरोध नहीं: RSS प्रमुख मोहन भागवत का ऐतिहासिक बयान
26 दिसंबर 2025 को भारतीय विज्ञान सम्मेलन (भारतीय विज्ञान सम्मेलन) को संबोधित करते हुए RSS प्रमुख मोहन भागवत ने एक महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने स्पष्ट कहा कि विज्ञान और धर्म के बीच कोई टकराव नहीं है। दोनों अलग-अलग रास्तों से एक ही सत्य तक पहुंचते हैं। भागवत ने धर्म को गलतफहमी से जोड़ते हुए कहा कि धर्म कोई religion नहीं, बल्कि सृष्टि के संचालन का नियम (law) है। चाहे कोई माने या न माने, कोई भी इसके बाहर काम नहीं कर सकता। धर्म के असंतुलन से विनाश होता है।
भागवत ने बताया कि विज्ञान ने ऐतिहासिक रूप से धर्म से दूरी रखी क्योंकि मान लिया गया कि वैज्ञानिक जांच में इसका स्थान नहीं। लेकिन ये मौलिक रूप से गलत है। विज्ञान और आध्यात्मिकता (spirituality) में एकमात्र अंतर पद्धति (methodology) का है। विज्ञान बाहरी अवलोकन, प्रयोग और दोहराने योग्य अनुभव पर निर्भर करता है। आध्यात्मिकता भी आंतरिक अनुभव पर आधारित है और कहती है कि जो अनुभव हो उसे हर कोई प्राप्त कर सकता है।
RSS प्रमुख ने कहा कि आधुनिक विज्ञान अब चेतना (consciousness) को स्थानीय नहीं बल्कि सार्वभौमिक मानने लगा है। ये प्राचीन भारतीय दर्शन से मेल खाता है जैसे ‘सर्वं खल्विदं ब्रह्म’ और ‘प्रज्ञानं ब्रह्म’। विज्ञान बाहरी पदार्थ को संशोधित करता है जबकि आध्यात्मिकता सूक्ष्म आंतरिक क्षेत्र में अनुशासित प्रयोग से काम करती है। दोनों का अंतिम लक्ष्य सत्य को जानना ही है।
भागवत ने भाषा के महत्व पर जोर दिया। कहा कि भारतीय भाषाओं में धर्म की गहराई व्यक्त करने वाले शब्द हैं जो अन्य भाषाओं में नहीं। मातृभाषा में वैज्ञानिक ज्ञान आम लोगों तक पहुंचाना चाहिए। फिनलैंड का उदाहरण दिया जहां आठवीं कक्षा तक विभिन्न देशों के छात्र अपनी मातृभाषा में पढ़ते हैं। मातृभाषा बौद्धिक विकास तेज करती और ज्ञान ग्रहण की क्षमता बढ़ाती है।
विश्व गुरु भारत: सुपरपावर से ऊपर
भागवत ने वैश्विक चुनौतियों जैसे पर्यावरण संकट पर कहा कि भारत को वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोण देना चाहिए। भारत को आर्थिक-रणनीतिक रूप से मजबूत तो बनना ही है लेकिन महाशक्ति (superpower) बनने से ऊपर उठकर विश्व गुरु बनना चाहिए। शक्ति आत्मरक्षा के लिए जरूरी लेकिन विश्व गुरु बनकर दुनिया की समस्याओं का समाधान देना हमारा लक्ष्य। भौतिक प्रगति को धर्म दृष्टि से जोड़कर भारत मानवता को नया विजन और ताकत दे सकता है।
विज्ञान vs आध्यात्मिकता: तुलना तालिका
| विशेषता | विज्ञान | आध्यात्मिकता/धर्म |
|---|---|---|
| पद्धति | बाहरी अवलोकन, प्रयोग | आंतरिक अनुभव, अनुशासन |
| फोकस | पदार्थ संशोधन | सूक्ष्म आंतरिक क्षेत्र |
| प्रमाण | दोहराने योग्य अनुभव | प्रत्यक्ष अनुभव, सभी को उपलब्ध |
| लक्ष्य | सत्य ज्ञान | सत्य ज्ञान (एक ही) |
| आधुनिक समानता | सार्वभौमिक चेतना | सर्वं खल्विदं ब्रह्म |
भाषा और शिक्षा पर जोर
भागवत ने कहा कि ज्ञान उसी भाषा में देना चाहिए जो व्यक्ति समझे। मातृभाषा में अवधारणाएं बेहतर समझ आती हैं। भारतीय भाषाओं में धर्म व्यक्त करने की अनूठी क्षमता। वैज्ञानिक-आध्यात्मिक ज्ञान मातृभाषा में पहुंचे।
वैश्विक संदर्भ: पर्यावरण और सहयोग
पर्यावरण चुनौतियों पर भारत वैज्ञानिक-धार्मिक समाधान दे। सृष्टि के रक्षक बनकर राष्ट्र सहयोग से आगे बढ़ें। भारत का योगदान मानवता के लिए नया विजन।
भारतीय विज्ञान सम्मेलन का महत्व
ये सम्मेलन विज्ञान को भारतीयता से जोड़ने का मंच। चंद्रबाबू नायडू ने भी जनसंख्या स्थिरता पर बात की। भागवत का संदेश विज्ञान-धर्म एकीकरण।
5 FAQs
- भागवत ने विज्ञान-धर्म संबंध पर क्या कहा?
कोई टकराव नहीं, दोनों अलग पद्धति से एक ही सत्य तक पहुंचते हैं। - धर्म को उन्होंने क्या बताया?
सृष्टि के संचालन का नियम, religion नहीं। - विज्ञान और आध्यात्मिकता में अंतर क्या?
पद्धति: बाहरी अवलोकन vs आंतरिक अनुभव। - भारत का वैश्विक लक्ष्य क्या?
विश्व गुरु बने, सुपरपावर से ऊपर। - भाषा पर क्या जोर?
मातृभाषा में विज्ञान-धर्म शिक्षा, फिनलैंड मॉडल।
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