Aajibaichi Shala महाराष्ट्र का अनोखा स्कूल है जहां 60 से 90 साल की बुजुर्ग महिलाएं पढ़ना-लिखना सीख रही हैं। जानें इस स्कूल की प्रेरणादायक कहानी, संस्थापक और कैसे यह स्कूल शिक्षा की परिभाषा बदल रहा है।
शिक्षा की कोई उम्र नहीं:Aajibaichi Shala की प्रेरणादायक कहानी
Aajibaichi Shala: भारत का अनोखा स्कूल जहां 60, 70 और 80 साल के विद्यार्थी पढ़ते हैं
हम अक्सर सोचते हैं कि शिक्षा की उम्र सीमा होती है, लेकिन महाराष्ट्र के ठाणे जिले के फंगने गांव में एक ऐसा अनोखा स्कूल है जो इस सोच को पूरी तरह से बदल देता है। इस स्कूल का नाम है ‘आजीबाईची शाला’ यानी ‘दादीयों का स्कूल’। यह भारत का शायद पहला ऐसा स्कूल है जहां विद्यार्थियों की उम्र 60 साल से 90 साल के बीच है और सभी विद्यार्थी महिलाएं हैं।
इस स्कूल की कहानी न सिर्फ दिल को छू लेने वाली है बल्कि यह साबित करती है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। जिन बुजुर्ग महिलाओं के बचपन में शिक्षा का सपना अधूरा रह गया था, आज वे अपनी उम्र के इस पड़ाव पर स्लेट और किताबें लेकर कक्षा में बैठती हैं और पढ़ना-लिखना सीख रही हैं। यह स्कूल न सिर्फ शिक्षा का केंद्र है बल्कि यह सामाजिक बदलाव की एक मिसाल भी है।
Aajibaichi Shala की शुरुआत और इसके संस्थापक
आजीबाईची शाला की स्थापना 2016 में योगेंद्र बंगार ने की थी। योगेंद्र बंगार फंगने गांव के ही एक स्कूल में शिक्षक हैं। उन्होंने देखा कि गांव की कई बुजुर्ग महिलाएं अशिक्षित हैं और उन्हें पढ़ने-लिखने का मौका कभी नहीं मिला। इन महिलाओं में उनकी अपनी दादी भी शामिल थीं।
योगेंद्र जी ने महसूस किया कि उम्र के इस पड़ाव पर भी इन महिलाओं में सीखने की ललक है। उन्होंने इन बुजुर्ग महिलाओं को पढ़ाने का फैसला किया और इस तरह आजीबाईची शाला की नींव पड़ी। शुरुआत में सिर्फ 20-25 महिलाएं थीं, लेकिन आज इस स्कूल में 60 साल से अधिक उम्र की दर्जनों महिलाएं शिक्षा हासिल कर रही हैं।
School का अनोखा माहौल और दिनचर्या
इस स्कूल का माहौल बेहद ही खास और प्रेरणादायक है। सुबह होते ही ये बुजुर्ग महिलाएं अपनी पारंपरिक साड़ी पहनकर, हाथ में स्लेट और चॉक लेकर स्कूल के लिए निकल पड़ती हैं। कक्षा में बैठकर वे बच्चों की तरह पढ़ती हैं, लिखती हैं और गिनती सीखती हैं।
स्कूल की टाइमिंग भी बुजुर्ग महिलाओं की सुविधा के अनुसार रखी गई है। कक्षाएं दोपहर 2 से 4 बजे तक चलती हैं ताकि महिलाओं को घर के काम निपटाने के बाद आने में कोई दिक्कत न हो। स्कूल में इन महिलाओं को मराठी भाषा की वर्णमाला, अक्षर ज्ञान, गिनती और बुनियादी गणित सिखाया जाता है।
विद्यार्थियों की प्रेरणादायक कहानियां
इस स्कूल की हर विद्यार्थी की अपनी एक अनोखी कहानी है। कई महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने जीवन में पहली बार कलम पकड़ी है। कई ऐसी हैं जो अब तक अपना नाम तक नहीं लिख पाती थीं, लेकिन आज वे छोटे-छोटे वाक्य लिखना सीख गई हैं।
एक विद्यार्थी कमल बताती हैं, “बचपन में मैंने स्कूल का मुंह नहीं देखा था। घर की माली हालत ठीक नहीं थी और लड़कियों की पढ़ाई पर जोर नहीं दिया जाता था। आज जब मैं स्कूल आती हूं तो लगता है जैसे मेरा बचपन वापस आ गया हो।”
एक अन्य विद्यार्थी सुमन कहती हैं, “अब मैं बस का बोर्ड पढ़ सकती हूं, अपने पत्रकारों के खत खुद पढ़ सकती हूं। यह feeling बहुत ही अच्छी लगती है।”
स्कूल से जुड़ी खास बातें और उपलब्धियां
आजीबाईची शाला सिर्फ एक स्कूल नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक आंदोलन बन गया है। इस स्कूल की कई खास बातें हैं जो इसे औरों से अलग बनाती हैं:
- सभी विद्यार्थियों को स्कूल यूनिफॉर्म के तौर पर गुलाबी रंग की साड़ी दी जाती है
- स्कूल में annual day और अन्य उत्सव भी धूमधाम से मनाए जाते हैं
- विद्यार्थियों को स्लेट, चॉक और किताबें मुफ्त में दी जाती हैं
- पढ़ाई के साथ-साथ यहां महिलाओं के लिए सामाजिक गतिविधियां भी आयोजित की जाती हैं
- कई विद्यार्थियों ने अब तक अपना नाम लिखना, गिनती और बुनियादी पढ़ाई सीख ली है
समाज पर प्रभाव और बदलाव
आजीबाईची शाला ने न सिर्फ इन बुजुर्ग महिलाओं के जीवन में बदलाव लाया है बल्कि पूरे समाज की सोच पर भी सकारात्मक प्रभाव डाला है। इस स्कूल ने साबित किया है कि शिक्षा किसी भी उम्र में जीवन बदल सकती है।
गांव के युवाओं और बच्चों के लिए ये महिलाएं प्रेरणा का स्रोत बन गई हैं। जब बच्चे अपनी दादी-नानी को पढ़ते-लिखते देखते हैं तो उनमें शिक्षा के प्रति और भी उत्साह पैदा होता है। इस स्कूल ने गांव में महिला सशक्तिकरण को भी बढ़ावा दिया है।
चुनौतियां और भविष्य की योजनाएं
हालांकि यह स्कूल एक सफल initiative साबित हुआ है, लेकिन इसके सामने कुछ चुनौतियां भी हैं। कई बुजुर्ग महिलाओं की सेहत ठीक नहीं रहती, जिसकी वजह से वे नियमित रूप से स्कूल नहीं आ पातीं। कुछ महिलाएं घर के काम और परिवार की जिम्मेदारियों के चलते कक्षाओं में attend नहीं कर पातीं।
लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद आजीबाईची शाला का सफर जारी है। भविष्य में इस तरह के और स्कूलों को बढ़ावा देने की योजना है ताकि ज्यादा से ज्यादा बुजुर्ग महिलाएं शिक्षा का लाभ उठा सकें।
शिक्षा की अनंत यात्रा
Aajibaichi Shala की कहानी हमें यह सिखाती है कि सीखने की प्रक्रिया जीवन भर चलती रहती है। उम्र just a number है और अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है। ये बुजुर्ग महिलाएं न सिर्फ पढ़ना-लिखना सीख रही हैं बल्कि वे समाज को यह संदेश दे रही हैं कि कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।
यह स्कूल शिक्षा के प्रति हमारे नजरिए को बदलने का काम कर रहा है। यह साबित करता है कि शिक्षा सिर्फ नौकरी पाने का जरिया नहीं है बल्कि यह आत्मविश्वास, स्वावलंबन और आत्मसम्मान हासिल करने का साधन है। आजीबाईची शाला की ये विद्यार्थी दादियां वाक में हमारे समाज की असली हीरो हैं जो हमें हमेशा प्रेरित करती रहेंगी।
FAQs
1. Aajibaichi Shala कहां स्थित है?
आजीबाईची शाला महाराष्ट्र के ठाणे जिले के फंगने गांव में स्थित है।
2. इस स्कूल की स्थापना किसने और कब की?
इस स्कूल की स्थापना 2016 में योगेंद्र बंगार ने की थी जो खुद एक शिक्षक हैं।
3. स्कूल में किस उम्र की महिलाएं पढ़ती हैं?
स्कूल में 60 साल से 90 साल तक की बुजुर्ग महिलाएं पढ़ने आती हैं।
4. स्कूल में क्या पढ़ाया जाता है?
स्कूल में मराठी भाषा की वर्णमाला, अक्षर ज्ञान, गिनती और बुनियादी गणित सिखाया जाता है।
5. क्या स्कूल की कोई यूनिफॉर्म है?
जी हां, सभी विद्यार्थियों को गुलाबी रंग की साड़ी यूनिफॉर्म के तौर पर दी जाती है।
6. क्या इस तरह के और स्कूल भारत में हैं?
आजीबाईची शाला भारत का पहला ऐसा स्कूल है जो विशेष रूप से बुजुर्ग महिलाओं के लिए बनाया गया है। इसकी सफलता के बाद अन्य जगहों पर भी ऐसे स्कूल शुरू करने की योजना है।
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