कांवड़ यात्रियों ने यात्रा के दौरान गौ माता की सेवा और सम्मान का संदेश दिया
कावड़ यात्रा का उद्देश्य गौ माता को राष्ट्र माता का दर्जा मिलना चाहिए
शिवपुरी (मप्र) । शिवपुरी जिले के करेरा तहसील के अंतर्गत आने वाले कस्वे दिनारा के 40 से अधिक कावड़ यात्री ओरछा नदी बेतवा से जल भरकर 60 किलोमीटर पैदल चलकर सोमवार को दिनारा स्थित अशोक होटल तिराहा पहुंचे एवं शिव मंदिर पर जल से भगवान शिव का जल अभिषेक किया।सभी कावड़ यात्रियों ने रास्ते भर गौ सेवा को लेकर गौ की रक्षा एवं सम्मान को लेकर संदेश देने का काम किया।मंदिर के पुजारी एवं गौ सेवक कल्लू महाराज ने जानकारी देते हुए बताया कि कावड़ यात्रा का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। यह एक वार्षिक तीर्थयात्रा है, जिसमें श्रावण महीने में भक्त गंगा नदी सोरो से जल लेकर भगवान शिव के मंदिरों में जलाभिषेक करते हैं।यह यात्रा भगवान शिव के प्रति समर्पण और भक्ति का प्रतीक है। कावड़ यात्रा के दौरान, भक्त कावड़ में गंगाजल भरकर लाते हैं और शिवलिंग का अभिषेक करते हैं, जिससे उन्हें पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कावड़ यात्रा का निम्न महत्व हैं,जो इस प्रकार हैं –
धार्मिक महत्व :
कावड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति गहरी श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। माना जाता है कि इस यात्रा से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
पापों का नाश :
ऐसी मान्यता है कि कावड़ यात्रा करने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सुख-शांति :
कावड़ यात्रा करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है.
सामूहिक एकता :
कावड़ यात्रा एक सामूहिक आयोजन है, जिसमें भक्त एक साथ मिलकर भगवान शिव की आराधना करते हैं, जिससे उनमें एकता और भाईचारे की भावना मजबूत होती है।
स्वास्थ्य लाभ :
कावड़ यात्रा में भक्त नंगे पैर चलकर, भगवा वस्त्र पहनकर और सात्विक भोजन करके शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।

कावड़ यात्रा के दौरान कुछ नियम :
कावड़ को जमीन पर नहीं रखना चाहिए।
मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।
शिव मंत्रों का जाप करना चाहिए।
भगवा वस्त्र धारण करने चाहिए।
नशे से दूर रहना चाहिए।
कावड़ यात्रा से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएं :
समुद्र मंथन :
एक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव ने पिया था, जिससे उनके गले में जलन होने लगी थी। तब रावण ने कावड़ में जल भरकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया था, जिससे उनकी जलन शांत हुई थी।
श्रवण कुमार :
एक अन्य कथा के अनुसार, श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता-पिता को कावड़ में बिठाकर तीर्थयात्रा करवाई थी, जिसके बाद से कावड़ यात्रा की परंपरा शुरू हुई।
कावड़ यात्रा एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, जो भक्तों को भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।
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