थाईलैंड–कंबोडिया सीमा पर जारी संघर्ष में अब तक कम से कम 34 लोगों की मौत और करीब 8 लाख लोग बेघर हो चुके हैं। थाईलैंड कह रहा है कि आक्रामक पक्ष कंबोडिया है, इसलिए युद्धविराम की घोषणा पहले वही करे। लड़ाई मंदिरों और औपनिवेशिक सीमा विवाद से जुड़ी है और ASEAN आपात बैठक बुलाने की कोशिश में है।
सीमा पर गोलाबारी, 34 मौतें और 8 लाख लोग बेघर: थाईलैंड–कंबोडिया संघर्ष क्यों थम नहीं रहा?
थाईलैंड का संदेश: पहले युद्धविराम की घोषणा कंबोडिया करे
थाई सरकार ने साफ कहा है कि सीमा पर चल रही गोलाबारी रोकने के लिए पहला कदम कंबोडिया को उठाना चाहिए। बैंकॉक में विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मराती नलीता अंडामो ने कहा, “क्योंकि थाई क्षेत्र में घुसकर हमला करने वाला पक्ष कंबोडिया है, इसलिए युद्धविराम की घोषणा भी वही पहले करे।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि कंबोडिया को सीमा पर बिछाई गई बारूदी सुरंगों (माइन्स) को हटाने में “ईमानदारी से” सहयोग करना होगा।
थाईलैंड का कहना है कि वह शांति का विरोधी नहीं, लेकिन किसी भी युद्धविराम के साथ उसकी संप्रभुता और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित होना जरूरी है। इस बयान के साथ बैंकॉक ने यह इशारा भी किया कि वह ASEAN की विशेष विदेश मंत्रियों की बैठक में (जो मलेशिया में प्रस्तावित है) अपना पक्ष विस्तार से रखेगा और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत उठाए गए कदमों की व्याख्या करेगा।
अब तक कितना नुकसान: मौतें और विस्थापन
सीमा पर ताजा हिंसा दिसंबर की शुरुआत से लगातार जारी है और यह संघर्ष अब दोनों देशों के सात–सात प्रांतों तक फैल चुका है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, हालिया दौर में अब तक कम से कम 34 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें सैनिक और नागरिक दोनों शामिल हैं।
कुल मिलाकर करीब 5 से 8 लाख लोगों को अपने घर छोड़कर सुरक्षित इलाकों में शरण लेनी पड़ी है। कुछ अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और मीडिया रिपोर्टों में जुलाई और दिसंबर की लड़ाई को जोड़कर 5 लाख से अधिक विस्थापितों और 40 से ऊपर मौतों का आंकड़ा बताया गया है, जो दोनों देशों के लिए मानवीय संकट की घंटी है।
थाई अधिकारियों के अनुसार ताज़ा लड़ाई में 16 थाई सैनिकों और एक थाई नागरिक की मौत हुई है, जबकि कंबोडिया ने 17 नागरिकों के मारे जाने की पुष्टि की है। कंबोडियाई पक्ष ने अभी तक अपने सैन्य हताहतों की आधिकारिक संख्या सार्वजनिक नहीं की है, जिससे कुल सैन्य मौतों का सही आंकड़ा अस्पष्ट है।
ट्रंप की ‘सीज़फायर’ घोषणा और विवाद
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस साल पहले भी थाईलैंड–कंबोडिया सीमा संघर्ष में मध्यस्थ की भूमिका निभा चुके हैं। जुलाई में हुई पांच दिन की भीषण लड़ाई के बाद मलेशिया, अमेरिका और चीन की मध्यस्थता से एक युद्धविराम हुआ था, जिसमें ट्रंप ने खुद को प्रमुख शांति–स्थापक के तौर पर पेश किया था; बाद में अक्टूबर में कुआलालंपुर में दोनों देशों ने उनके सामने एक विस्तृत सीज़फायर समझौते पर दस्तखत किए।
ताज़ा दौर में ट्रंप ने पिछले हफ्ते दावा किया कि दोनों देशों ने शनिवार रात से युद्धविराम लागू करने पर सहमति दे दी है, लेकिन बैंकॉक ने इसे तत्काल खारिज कर दिया। थाई सरकार का कहना है कि किसी औपचारिक, लागू होने वाले नए युद्धविराम पर सहमति नहीं बनी और जमीन पर लड़ाई लगातार चलती रही, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि ट्रंप की सार्वजनिक घोषणा के बावजूद वास्तविक सीज़फायर नहीं हो सका।
कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेत ने मलेशिया (जो इस समय ASEAN चेयर है) की पहल और वॉशिंगटन की भागीदारी वाले युद्धविराम प्रस्ताव का समर्थन जताया है। हालांकि, लगातार जारी गोलाबारी और दोनों पक्षों की एक–दूसरे पर आरोप–प्रत्यारोप की वजह से ये कूटनीतिक प्रयास अब तक जमीन पर शांति में नहीं बदल पाए हैं।
कंबोडिया के आरोप: “थाई हमला हमारे अंदर तक”
कंबोडिया का आरोप है कि थाई सेना ने हमले का दायरा बढ़ाकर “उसके इलाक़े के भीतर गहराई तक” बमबारी की है। फ्नोम पेन्ह का कहना है कि थाई एयर फोर्स ने पहली बार सिएम रीप प्रांत पर भी हमला किया, जो विश्व प्रसिद्ध अंगकोर मंदिरों का घर है और कंबोडिया का सबसे बड़ा पर्यटन आकर्षण माना जाता है।
कंबोडिया के गृह मंत्रालय ने दावा किया है कि थाई फोर्सेस की बमबारी और आर्टिलरी फायर में 17 नागरिकों की मौत हुई, जबकि कई गांवों के घर और बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा है। थाईलैंड की ओर से कहा गया है कि उसने केवल सैन्य ठिकानों और आर्टिलरी पोजीशनों को निशाना बनाया और किसी भी नागरिक क्षेत्र पर जानबूझकर हमला नहीं किया, लेकिन जमीनी हकीकत में दोनों देशों के सीमावर्ती गांव क्रॉस–फायर की चपेट में हैं।
Poipet में फंसे हज़ारों थाई नागरिक
कंबोडिया ने बढ़ती हिंसा के बीच अपने कुछ जमीनी बॉर्डर क्रॉसिंग बंद कर दिए, जिनमें पोइपेट का अहम क्रॉसिंग पॉइंट भी शामिल है। इसके बाद 5,000–6,000 के बीच थाई नागरिक, ज्यादातर मज़दूर और छोटे व्यापारी, पोइपेट कस्बे में फंस गए हैं और उन्हें वापस लाने के लिए थाई सरकार विकल्प तलाश रही है।
कंबोडिया के गृह मंत्रालय का कहना है कि सीमा बंद करना नागरिकों की सुरक्षा के लिए “ज़रूरी कदम” था, ताकि फायरिंग और बमबारी के दौरान आम लोग घायल न हों। उसने यह भी स्पष्ट किया कि सभी क्रॉसिंग बंद नहीं हैं और जहां लड़ाई नहीं चल रही, वहां जमीनी रास्ते खुले हैं; साथ ही एयर ट्रैवल के जरिए आवाजाही अभी भी संभव है।
विवाद की जड़: औपनिवेशिक सीमा रेखा और प्राचीन मंदिर
थाईलैंड–कंबोडिया का यह टकराव नया नहीं, बल्कि दशकों पुराने सीमा विवाद की ताज़ा कड़ी है। दोनों देशों की लगभग 800 किलोमीटर लंबी सीमा का एक हिस्सा औपनिवेशिक दौर में बने नक्शों और समझौतों पर आधारित है, जिनकी व्याख्या को लेकर लगातार मतभेद रहे हैं।
विवाद खास तौर पर उन इलाक़ों पर केंद्रित है, जहां प्राचीन मंदिरों और खंडहरों के समूह हैं – जैसे कि प्रेह विहेयर और अन्य छोटे–बड़े मंदिर, जो सीमा के ठीक आसपास या उस पर स्थित हैं। दोनों देश इन मंदिरों और आसपास की ज़मीन पर ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अधिकार जताते हैं, जिसके चलते सीमा निर्धारण सिर्फ भू–राजनीतिक नहीं, बल्कि धार्मिक–सांस्कृतिक प्रतिष्ठा का भी सवाल बन जाता है।
2025 की शुरुआत में भी इसी तरह के विवाद ने जुलाई में पांच दिन की हिंसक झड़पों को जन्म दिया था, जिसमें दर्जनों लोग मारे गए और तीन लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए। उस समय अमेरिका, चीन और मलेशिया की मध्यस्थता से हुए युद्धविराम को थाईलैंड–कंबोडिया ने कुआलालंपुर में एक समझौते के रूप में औपचारिक रूप दिया, लेकिन कुछ ही महीनों बाद नवंबर–दिसंबर में झड़पें फिर से भड़क उठीं।
बारूदी सुरंगों और माइंस पर नई बहस
थाईलैंड ने हाल ही में कंबोडिया पर आरोप लगाया कि उसके सैनिकों की पेट्रोलिंग के दौरान सीमा पर लगे लैंडमाइंस से कुछ सैनिक घायल हुए हैं और ये “नई” माइंस हैं, जो कथित तौर पर कंबोडिया ने हाल दिनों में बिछाई हैं। बैंकॉक ने इस आधार पर पूर्व समझौते को निलंबित कर दिया और माइंस हटाने के लिए “ईमानदारीपूर्ण सहयोग” की मांग की।
कंबोडिया इन आरोपों से इनकार कर रहा है और कहता है कि उसने नए माइंस नहीं लगाए, बल्कि संघर्ष क्षेत्र में पहले से मौजूद माइंस, तोपख़ाने और हवाई हमलों के बीच फट रहे हैं। माइंस हटाने की अंतरराष्ट्रीय संधियों और मानवीय कानूनों के संदर्भ में यह मुद्दा अब शांति वार्ताओं का संवेदनशील हिस्सा बन चुका है, क्योंकि सीमा के दोनों ओर गांवों और खेतों में रहने वाले आम लोग भी इन छिपी सुरंगों का शिकार बन सकते हैं।
ASEAN की आपात बैठक और क्षेत्रीय कूटनीति
दक्षिण–पूर्व एशियाई संगठन ASEAN, जिसका इस समय अध्यक्ष मलेशिया है, ने थाईलैंड–कंबोडिया तनाव को देखते हुए विदेश मंत्रियों की विशेष बैठक बुलाने का फैसला किया है। यह बैठक शुरू में 16 दिसंबर को होनी थी, लेकिन अब इसे 22 दिसंबर तक के लिए टाल दिया गया है, ताकि दोनों देशों को तैयारी और अपना पक्ष रखने का समय मिल सके।
मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने सार्वजनिक रूप से दोनों देशों से अपील की है कि वे सभी तरह की लड़ाई तुरंत रोकें, किसी नए सैन्य कदम से बचें और सीमा पर ASEAN की मॉनिटरिंग टीम तैनात करने के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करें। हालांकि, थाईलैंड और कंबोडिया अभी भी युद्धविराम की शर्तों और ‘पहले कौन रुके’ के सवाल पर आमने–सामने खड़े हैं।
मानवीय संकट और आगे का रास्ता
लगातार तोपखाने, रॉकेट फायर, टैंकों और थाई जेट्स (जैसे F-16 और Gripen) की बमबारी ने सीमा के दोनों ओर मौजूद गांवों को युद्ध–क्षेत्र में बदल दिया है। हजारों परिवार अस्थायी शिविरों, स्कूलों और रिश्तेदारों के घरों में शरण लिए हुए हैं, जहां साफ पानी, खाना, स्वास्थ्य सेवाएं और सुरक्षा सबसे बड़ी चिंताएं बन गई हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ASEAN और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद युद्धविराम जल्दी नहीं होता, तो यह संघर्ष एक बड़े क्षेत्रीय संकट में बदल सकता है – न सिर्फ मानवीय स्तर पर, बल्कि व्यापार, पर्यटन और राजनीतिक स्थिरता पर भी गहरा असर डालते हुए। फिलहाल पूरा क्षेत्र 22 दिसंबर की ASEAN बैठक और दोनों देशों की संभावित नई घोषणाओं की तरफ देख रहा है, लेकिन तब तक सीमा पर गोलाबारी थमने के संकेत बहुत सीमित दिख रहे हैं।
5 अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
- सवाल: थाईलैंड क्यों कह रहा है कि युद्धविराम पहले कंबोडिया को घोषित करना चाहिए?
जवाब: थाई विदेश मंत्रालय का दावा है कि संघर्ष की शुरुआत कंबोडिया ने थाई क्षेत्र में घुसकर की, इसलिए “आक्रामक पक्ष” होने के नाते युद्धविराम की घोषणा भी पहले कंबोडिया को करनी चाहिए और माइंस हटाने में ईमानदारी से सहयोग करना चाहिए। - सवाल: अब तक कितने लोग मारे गए और कितने विस्थापित हुए हैं?
जवाब: ताज़ा दौर में दोनों देशों के अधिकारियों के मुताबिक कम से कम 34 लोगों की मौत हुई है, जिनमें 16 थाई सैनिक, 1 थाई नागरिक और 17 कंबोडियाई नागरिक शामिल हैं; कुल मिलाकर 5–8 लाख के बीच लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं। - सवाल: ट्रंप ने जो युद्धविराम की बात कही थी, क्या वह लागू हुआ?
जवाब: अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने दावा किया था कि दोनों देशों ने एक नए सीज़फायर पर सहमति दी, लेकिन थाईलैंड ने इसे औपचारिक रूप से खारिज कर दिया और जमीन पर लड़ाई जारी रही, जिससे साफ है कि कोई प्रभावी नया युद्धविराम लागू नहीं हो सका। - सवाल: सीमा विवाद की जड़ क्या है?
जवाब: दोनों देशों के बीच लगभग 800 किमी लंबी सीमा के कुछ हिस्से औपनिवेशिक काल के नक्शों पर आधारित हैं, जिनकी व्याख्या पर विवाद है; खासतौर पर प्राचीन मंदिरों और खंडहरों वाले क्षेत्र (जैसे प्रेह विहेयर व अन्य मंदिर) दोनों देश अपनी–अपनी ऐतिहासिक–सांस्कृतिक विरासत बताते हैं। - सवाल: Poipet में फंसे लोगों के साथ क्या हो रहा है?
जवाब: कंबोडिया द्वारा कुछ जमीनी बॉर्डर क्रॉसिंग बंद करने के बाद Poipet कस्बे में 5,000–6,000 के बीच थाई नागरिक फंस गए हैं; कंबोडिया का कहना है कि यह कदम नागरिकों को लड़ाई से बचाने के लिए ज़रूरी था, जबकि थाई सरकार उन्हें सुरक्षित वापस लाने के विकल्प तलाश रही है।
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