Bhutan ब्रिटिश काल से पश्चिम बंगाल के कालीघाट Mandir का बिजली बिल भुगतान कर रहा है। जानें इस अनोखी परंपरा की पूरी कहानी, ऐतिहासिक कारण और कैसे आज भी जारी है यह सद्भावना का प्रतीक।
Bhutan और भारत के बीच सदियों पुराना अनोखा समझौता
Bhutan ब्रिटिश काल से भुगतान कर रहा है पश्चिम बंगाल के इस काली मंदिर का बिजली बिल, जानें क्या है वजह
भारत और भुटान के बीच के रिश्तों की एक ऐसी ही अनोखी और दिलचस्प कहानी कोलकाता के प्रसिद्ध कालीघाट मंदिर से जुड़ी है। हैरान कर देने वाली बात यह है कि भुटान सरकार ब्रिटिश काल से लेकर आज तक इस मंदिर का बिजली बिल भुगतान करती आ रही है। यह कोई मिथक या कल्पना नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक सच्चाई है जो दोनों देशों के बीच गहरे सांस्कृतिक और धार्मिक रिश्तों को दर्शाती है।
यह अनोखी परंपरा न सिर्फ भारत-भुटान मैत्री का प्रतीक है बल्कि यह साबित करती है कि सच्ची श्रद्धा और सद्भावना की कोई सीमाएं नहीं होती। आइए जानते हैं इस रोचक传统 के पीछे की पूरी कहानी और कैसे आज भी यह परंपरा जीवित है।
कालीघाट मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
कोलकाता का कालीघाट मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध और पवित्र शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मान्यता के अनुसार यह वह स्थान है जहां देवी सती की दाहिनी पैर की चार उंगलियां गिरी थीं। इस मंदिर का इतिहास करीब 200 साल पुराना है और यह बंगाल की संस्कृति और आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।
मंदिर की मुख्य देवी काली हैं जिन्हें दुनिया भर में शक्ति और सृजन की देवी के रूप में पूजा जाता है। भुटान में भी मां काली की पूजा का विशेष महत्व है और यही कारण है कि भुटान के लोगों का इस मंदिर के प्रति गहरा आकर्षण रहा है।
ब्रिटिश काल में कैसे शुरू हुई यह परंपरा
यह अनोखी परंपरा ब्रिटिश शासन काल के दौरान शुरू हुई। उस समय भुटान के राजा जब कोलकाता आते थे तो वे कालीघाट मंदिर में दर्शन करने जरूर जाते थे। कहा जाता है कि एक बार भुटान के राजा ने मंदिर में बिजली कनेक्शन लगवाने की इच्छा जताई थी।
उस समय बिजली एक नई और आधुनिक सुविधा थी। भुटान के राजा ने मंदिर को इस आधुनिक सुविधा से जोड़ने का निर्णय लिया और यह भी वादा किया कि भुटान सरकार मंदिर का बिजली बिल हमेशा भरती रहेगी। तब से लेकर आज तक यह परंपरा निरंतर चली आ रही है।
क्या है इस परंपरा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
इस परंपरा का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है। भुटान एक बौद्ध बहुल देश है लेकिन वहां हिंदू धर्म के प्रति भी गहरा सम्मान है। भुटान के लोग मां काली को महत्वपूर्ण देवी मानते हैं और उनकी शक्ति में अटूट विश्वास रखते हैं।
सांस्कृतिक रूप से यह परंपरा भारत और भुटान के बीच की गहरी मित्रता को दर्शाती है। यह साबित करती है कि धार्मिक भिन्नताएं देशों के बीच के रिश्तों में बाधा नहीं बन सकतीं। इससे यह भी पता चलता है कि भुटान की संस्कृति में दान और परोपकार का कितना महत्व है।
बिजली बिल भुगतान की वर्तमान प्रक्रिया
आज भी यह परंपरा उसी तरह जारी है जैसे ब्रिटिश काल में थी। भुटान सरकार हर महीने मंदिर का बिजली बिल का भुगतान करती है। बिल की राशि सीधे भुटान सरकार द्वारा संबंधित विद्युत विभाग को भेजी जाती है।
मंदिर प्रशासन को इस बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ती। बिजली विभाग को सीधे भुटान सरकार से भुगतान मिल जाता है। यह प्रक्रिया इतनी सहज और निर्बाध है कि आज तक कभी कोई व्यवधान नहीं आया।
भारत-भुटान संबंधों में इस परंपरा का योगदान
यह अनोखी परंपरा भारत और भुटान के बीच के सौहार्दपूर्ण संबंधों को और मजबूत बनाती है। यह साबित करती है कि दो देशों के बीच के रिश्ते सिर्फ राजनीतिक या आर्थिक हितों तक सीमित नहीं होते बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक सद्भावना भी इन रिश्तों的重要 आधार होती है।
भुटान द्वारा कालीघाट मंदिर के बिजली बिल का भुगतान एक तरफ जहां धार्मिक सहिष्णुता का उदाहरण है वहीं दूसरी तरफ यह भुटान के उदार चरित्र को भी दर्शाता है। भारत सरकार भी इस परंपरा का बहुत सम्मान करती है और इसे दोनों देशों के बीच मैत्री का living symbol मानती है।
स्थानीय लोगों और भक्तों की प्रतिक्रिया
स्थानीय लोग और मंदिर के भक्त इस परंपरा को बहुत महत्व देते हैं। उनका मानना है कि यह मां काली की महिमा का प्रमाण है कि दूसरे देश का शासक भी उनकी शक्ति से इतना प्रभावित है कि वह सदियों से मंदिर की सेवा कर रहा है।
मंदिर के एक पुजारी ने बताया, “यह हमारे लिए गर्व की बात है कि भुटान जैसा पड़ोसी देश हमारे मंदिर के प्रति इतनी श्रद्धा रखता है। यह परंपरा न सिर्फ धार्मिक एकता बल्कि मानवीय एकता का भी उदाहरण है।”
क्या भविष्य में जारी रहेगी यह परंपरा?
हाल के वर्षों में कई बार यह सवाल उठा है कि क्या यह परंपरा भविष्य में भी जारी रहेगी। अच्छी बात यह है कि भुटान सरकार ने कई बार स्पष्ट किया है कि वह इस पवित्र परंपरा को जारी रखना चाहती है।
भुटान सरकार इसे अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक जिम्मेदारी मानती है और इसे भारत के साथ अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों का हिस्सा समझती है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि यह beautiful tradition आने वाली कई पीढ़ियों तक जारी रहेगी।
अन्य समान परंपराएं और उदाहरण
भारत में कालीघाट मंदिर के अलावा भी कई ऐसे उदाहरण हैं जहां विदेशी शासकों या समुदायों ने मंदिरों को दान दिया है। जैसे:
- नेपाल के राजा द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर को दान
- थाईलैंड के राजा द्वारा बोधगया के मंदिर को सहायता
- श्रीलंका के बौद्ध भिक्षुओं द्वारा भारत के बौद्ध स्तूपों का रखरखाव
लेकिन कालीघाट मंदिर का उदाहरण इस मायने में unique है क्योंकि यह एक specific utility bill का नियमित भुगतान है जो एक सदी से भी ज्यादा समय से चला आ रहा है।
सद्भावना की जीवंत मिसाल
भुटान द्वारा कालीघाट मंदिर के बिजली बिल का भुगतान सिर्फ एक वित्तीय व्यवस्था नहीं बल्कि मानवीय संबंधों, धार्मिक सहिष्णुता और अंतर्राष्ट्रीय मैत्री का एक जीवंत उदाहरण है। यह परंपरा हमें सिखाती है कि सच्ची श्रद्धा और सद्भावना किसी भौगोलिक सीमा में बंधी नहीं होती।
आज जब दुनिया में धार्मिक कट्टरता और संकीर्ण मानसिकता बढ़ रही है, ऐसे में यह परंपरा एक आशा की किरण की तरह है। यह साबित करती है कि अलग-अलग धर्म और संस्कृतियों के लोग आपसी सम्मान और सहयोग के साथ रह सकते हैं।
भुटान और भारत के बीच की यह अनोखी परंपरा न सिर्फ दोनों देशों के लिए गर्व का विषय है बल्कि पूरी मानवता के लिए एक प्रेरणा है। यह हमें याद दिलाती है कि देना सबसे बड़ा धर्म है और सेवा सबसे बड़ी पूजा।
FAQs
1. Bhutan किस Mandir का बिजली बिल भुगतान करता है?
भुटान कोलकाता के प्रसिद्ध कालीघाट काली मंदिर का बिजली बिल भुगतान करता है।
2. यह परंपरा कब से चली आ रही है?
यह परंपरा ब्रिटिश शासन काल से चली आ रही है और करीब एक सदी से भी अधिक पुरानी है।
3. भुटान ऐसा क्यों करता है?
भुटान के लोग मां काली में गहरी आस्था रखते हैं और यह उनकी श्रद्धा और भारत के साथ मैत्री का प्रतीक है।
4. क्या आज भी यह परंपरा जारी है?
जी हां, यह परंपरा आज भी उसी तरह जारी है और भुटान सरकार हर महीने मंदिर का बिजली बिल भुगतान करती है।
5. बिजली बिल की राशि कितनी होती है?
बिल की राशि अलग-अलग महीनों में अलग-अलग हो सकती है, लेकिन भुटान सरकार पूरी राशि का भुगतान करती है।
6. क्या भारत सरकार भुटान को इसके लिए कोई compensation देती है?
नहीं, यह एक शुद्ध रूप से भुटान सरकार की ओर से दान है और भारत सरकार इसके लिए कोई compensation नहीं देती। यह दोनों देशों के बीच सद्भावना का प्रतीक है।
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