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Bollywood,Drugs और न्याय:Delhi High Court ने उठाए सवाल ‘The Bads Of Bollywood’ पर

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Delhi High Court hearing
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Delhi High Court ने आर्यन खान की वेब-सीरीज़ The Bads Of Bollywood में समीर वानखेड़े के खिलाफ पक्षपात का संकेत पाया। जानिए केस की अहम बातें, दलीलें एवं आगे का रास्ता।

जब एक वेब-सीरीज़ ने कानून का दरवाजा खटखटाया


वेब प्लेटफार्मों पर मनोरंजन का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। एक ऐसे परिवेश में, जहाँ धारदार व्यंग्य (satire) और तथ्य-प्रेरित कथानक दोनों का मिश्रण देखने को मिलता है, वहाँ अभिनेता-निर्देशक Aryan Khan की पहली वेब-सीरीज़ The Bads of Bollywood विवादों के घेरे में आ गई है। इस सीरीज़ पर आरोप है कि इसमें एक पात्र के माध्यम से पूर्व एनसीबी अधिकारी Sameer Wankhede का कभी वास्तविक, कभी आभासी रूप प्रस्तुत किया गया है, जिससे उनकी प्रतिष्ठा एवं सार्वजनिक धारणा प्रभावित हुई है।

जब उन्होंने न्यायालय में मानहानि का मुकदमा दायर किया, तो Delhi High Court ने सिर्फ दलीलों की सुनवाई नहीं की बल्कि यह भी पूछा कि क्या इस तरह की प्रस्तुति व्यंग्य कहलाती है — या उसमें पक्षपात मौजूद है?


विवाद की पृष्ठभूमि
विगत वर्षों में, Sameer Wankhede का नाम उस ड्रग मामले के संदर्भ में आया था जिसमें Aryan Khan को आरोपी बनाया गया था। हालांकि बाद में कई प्रक्रिया-पलट और कानूनी घटनाएँ हुईं, लेकिन सार्वजनिक दृष्टि में यह मामला लंबे समय तक बना रहा। अब, जब Aryan Khan ने The Bads of Bollywood नामक वेब-सीरीज़ बनाई, तो लोगों ने देखा कि उसमें एक पात्र था जो “नशे के खिलाफ सख्त अधिकारी” जैसा दिखता था, फिल्म-पार्टी कोड, गिरफ्तारी की स्थिति आदि संदर्भ में, ऐसे दृश्य-क्रम जिसमें resemblance महसूस किया गया।

Sameer Wankhede ने दावा किया कि इस पात्र के माध्यम से उनका चित्रण “उचित जांच-प्रक्रिया वाला अधिकारी” नहीं बल्कि एक “कॉर्पोरेट-शोकोप” अधिकारी के रूप में हुआ, जिससे सार्वजनिक धारणा पर प्रतिकूल असर पड़ा। उन्होंने विकली शिकायत दर्ज करवाई कि यह सीरीज़ गलती-वश नहीं, जानबूझकर उनकी प्रतिष्ठा को प्रभावित करने के उद्देश्य से बनाई गई है।


न्यायालय ने क्या कहा?
दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह बात स्वीकार की कि हाँ, यह एक व्यंग्य-शैली की प्रस्तुति हो सकती है, लेकिन उन्होंने यह भी जोर दिया कि व्यंग्य में पक्षपात नहीं होना चाहिए। न्यायालय ने उद्धृत किया कि प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट R. K. Laxman की कलाकृति भी सामाजिक-विरोधी मुखर होती थी, लेकिन उसमें व्यक्तिगत बायस नहीं दिखता था। इसके विपरीत, The Bads of Bollywood में न्यायालय ने “पिछले इतिहास” और “प्रत्यक्ष विवाद” को देखते हुए बायस का संकेत पाया।

न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि निर्माताओं का तर्क है कि यह purely काल्पनिक है, तो उन्हें स्पष्ट करना होगा कि किस व्यक्ति या घटना से प्रेरणा ली गई है। क्योंकि वास्तविक-प्रेरणा वाले पात्र में और व्यक्तिगत अनुभव वाले अधिकारी में अंतर नजर आता है।


प्रमुख दलीलें: दोनों पक्षों का मत

Sameer Wankhede का पक्ष:

  • उन्होंने कहा कि सीरीज़ में एक पात्र बिल्कुल उनकी तरह है — पोशाक, बोलचाल, भूमिका और संदर्भ-स्थिति मिलती है।
  • कहा गया कि इस तरह के चित्रण से “चोर” जैसे शब्द जुड़ गए हैं, जैसे-“… लोगों को यह भरोसा हो गया कि मैं बिना इमानदारी का अधिकारी हूँ।”
  • उनका दावा है कि यह चित्रण उसकी जारी कानूनी प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है — सार्वजनिक धारणा और सोशल मीडिया-टोल की वजह से परिवार एवं प्रतिष्ठा दोनों को नुकसान हो रहा है।

निर्माताओं/निर्देशक का पक्ष:

  • अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत तर्क है कि यह एक सामाजिक व्यंग्य (satire) है, जिसे निर्देशकीय स्वतंत्रता के तहत बनाया गया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि निर्माता पात्र से प्रेरणा ले सकते हैं, और पिछले दृश्य-न्तर किसी भी जान-पहचान वाले व्यक्ति को सामने नहीं रखा गया।
  • उनका कहना है कि यदि हर व्यक्तिगत प्रतिनिधित्व पर अदालत दखल दे, तो अन्य निर्माता भी दायित्व में आ जाएंगे।

क्या यह मामला सिर्फ मनोरंजन-विवाद है — या बड़ा सामाजिक-कानूनी मुद्दा?
यह मामला सिर्फ एक वेब-सीरीज़ के विवाद तक सीमित नहीं है। इसके पीछे कुछ बड़े सामाजिक-कानूनी प्रश्न हैं:

  • मानहानि बनाम अभिव्यक्ति-स्वतंत्रता : मनोरंजन कंटेंट में कितनी आज़ादी है, और जब वास्तविक जीवन-पात्रों के साथ समानताएँ दिखाई दें, तब दायित्व कहाँ तक बनता है?
  • व्यंग्य और बायस का अंतर : व्यंग्य अन्याय या असमानता पर सीधा हमला कर सकता है, लेकिन यदि उस व्यंग्य में व्यक्तिगत जीवित व्यक्तियों के विरुद्ध पक्षपात दिखाई दे, तो वह न्याय-चर्चा योग्य बन जाता है।
  • सार्वजनिक व्यक्ति एवं प्रतिष्ठा : अधिकारी-पद पर कर्ता व्यक्ति सार्वजनिक दृष्टि से अधिक संवेदनशील होते हैं। जब उनकी छवि-निर्माण इस तरह प्रभावित हो, तो कानून-व्यस्था को भी प्रश्नों का सामना करना पड़ता है।
  • वेब-सीरीज़-एरा में जिम्मेदारी : OTT प्लेटफॉर्म और डिजिटल कंटेंट निर्माता आज पारंपरिक फिल्मों जितने ही प्रभाव वाले हो चुके हैं। इसलिए उनकी जिम्मेदारी भी बढ़ गई है कि वास्तविक-जीवन प्रभाव को समझें।

इस मुकदमे का आगे का रास्ता
दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में आगे सुनवाई के लिए तारीख रखी है। न्यायालय ने यह कहा है कि निर्माताओं को स्पष्ट करना होगा कि क्या यह purely काल्पनिक है या किसी वास्तविक व्यक्ति-घटना से प्रेरित। यदि पक्षपात साबित हुआ, तो निर्माता पर जहां ताज्जुब होगा वहीं कानूनी परिणाम भी सामने आ सकते हैं।

Sameer Wankhede ने इस मुकदमे में मुआवजे की माँग भी रखी है, साथ ही उस दृश्य को शो से हटाने की याचिका भी डाली है, जिसे उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा के लिए खतरा बताया है।


बॉलिवुड, ड्रग्स, एनसीबी, क्रूज़ पार्टी से जुड़े विवादों का आलम्बन इस सीरीज़ ने किया है। लेकिन इस विवाद का मूल यह है — जब एक व्यंग्य रूप प्रस्तुत किया जाए, तब कितनी निष्पक्षता होनी चाहिए? दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा उठाए गए सवाल बताते हैं कि सिर्फ कला-स्वतंत्रता ही काफी नहीं; जिम्मेदारी भी उतनी ही अहम है।

यह मामला मनोरंजन-उद्योग, न्याय-प्रक्रिया और सार्वजनिक प्रतिष्ठा के बीच की जटिल कड़ी को सामने ला रहा है। आइए देखें कि आगे न्यायालय क्या दिशा देता है — लेकिन एक बात स्पष्ट है: डिजिटल-युग में कंटेंट न सिर्फ तय-शेड्यूल पर असर डालता है, बल्कि जीवन-प्रतिष्ठा पर भी प्रभाव डाल सकता है।

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