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अयोध्या में बनने वाली मस्जिद में नमाज पढ़ना हराम है- असद्दीन ओवैसी, इस्लामिक उलेमाओं ने बताया हराम

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नई दिल्ली। अपने विवादों के चलते चर्चा का विषय बने रहने वाले AIMIM के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने अयोध्या में बनने वाली मस्जिद पर बड़ा बयान देते हुए कहा कि अयोध्या की मस्जिद ‘मस्जिद-ए-जारीर’ है और उसमें नमाज पढ़ना हराम है।

ओवैसी के इस बयान पर सुन्नी वक्फ़ बोर्ड द्वारा गठित न्यास, इंडो इस्लामिक कल्चरल फ़ाउंडेशन (IICF) के सचिव अतहर हुसैन ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि ओवैसी का बयान उनके राजनीतिक एजेंडे से प्रेरित है।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए अतहर हुसैन ने कहा, “उस ज़मीन का कोई भी टुकड़ा ‘हराम’ नहीं हो सकता है, जिस पर नमाज़ पढ़ी जाती है। ओवैसी एक हैदराबादी राजनेता हैं और उनका बयान राजनीतिक एजेंडे से प्रेरित है। ओवैसी एक ऐसे इलाके से आते हैं, जिन्होंने न तो आज़ादी की पहली लड़ाई का संघर्ष झेला और न ही उसकी विडंबना महसूस की।”

अतहर हुसैन ने अपनी बात रखते हुए आगे कहा कि ऐसा हो सकता है कि ओवैसी के पूर्वजों ने अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 की लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया हो। लेकिन अपनी बात करते हुए वो बताते हैं कि वो अवध क्षेत्र से आते हैं, जिस क्षेत्र के लोगों ने उस लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी।

उन्होंने कहा, “हम अयोध्या में स्थित IICF केंद्र को महानतम स्वतंत्र सेनानियों में एक अहमदुल्लाह शाह के लिए समर्पित कर रहे हैं। क्या शहीद अहमदुल्लाह की स्मृति में IICF केंद्र का नामकरण करना भी ‘हराम’ है?”

अतहर हुसैन के मुताबिक़ ऐसी जगह जहां ‘सजदा’ किया जाता है, वह हराम नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा कि वहीं पर शुरू किया जाने वाला चैरिटी अस्पताल, जो सैकड़ों-हज़ारों लोगों का मुफ़्त इलाज करेगा, वह ‘हराम’ नहीं हो सकता है।

ओवैसी पर निशाना साधते हुए अतहर हुसैन ने कहा कि उन्हें अपने बयान पर दोबारा सोचने की ज़रूरत है। लेकिन ऐसा करने के लिए उन्हें अपना संकुचित राजनीतिक एजेंडा एक तरफ रखना होगा। आखिर एक राजनेता इंसानियत के लिए होने वाले इतने बड़े प्रयास को हराम कैसे कह सकता है।

दरअसल हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बीदर की एक जनसभा में कहा था, “यह मस्जिद मुनाफ़िकों की मस्जिद है। इस मस्जिद में न केवल चंदा देना बल्कि नमाज़ पढ़ना भी हराम है। इस्लाम के सभी फ़िरकों के उलेमाओं ने इस मस्जिद में नमाज़ पढ़ने को हराम क़रार दिया है।”

एआईएमआईएम द्वारा किए गए ट्वीट में लिखा था, “मुनाफ़िकों की जमात जो बाबरी मस्जिद के बदले 5 एकड़ ज़मीन पर मस्जिद बनवा रहे हैं, हकीक़त में वह मस्जिद नहीं बल्कि ‘मस्जिद-ए-ज़ीरार’ है। मुहम्मदुर रसूलुल्लाह के ज़माने में मुनाफ़िकों ने मुसलमान की मदद करने के नाम पर एक मस्जिद बनवाई थी। हकीकत में उसका मकसद उस मस्जिद में नबी का खात्मा और इस्लाम को नुकसान पहुँचाना था (कुरान में उसे मस्जिद-ए-ज़ीरार कहा गया है)। ऐसी में मस्जिद में नमाज़ पढ़ना या चंदा देना हराम है।”

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