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भारत की ‘चिकन नेक’ से ‘हाथी की गर्दन’ तक: सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर सद्गुरु की कड़ी चेतावनी

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Sadhguru Wants India to Reinvent the Siliguri Corridor
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बांग्लादेश की अंतरिम लीडरशिप के बयानों और सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर उठे खतरे के बीच सद्गुरु ने ‘चिकन नेक’ को ‘हाथी की गर्दन’ बनाने की बात कही। सिलीगुड़ी गलियारा, यूनुस का ‘लैंडलॉक्ड नॉर्थईस्ट’ बयान और भारत की सुरक्षा–रणनीति पर विस्तृत विश्लेषण

‘चिकन की गर्दन को हाथी बनाओ’: सिलीगुड़ी गलियारे को लेकर सद्गुरु का संदेश और भू-राजनीतिक मायने

सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर नया भू–राजनीतिक तूफान: ‘चिकन नेक को हाथी की गर्दन बनाओ’ – सद्गुरु

भारत के उत्तर–पूर्वी राज्यों को मुख्यभूमि से जोड़ने वाले बेहद संकरे सिलीगुड़ी कॉरिडोर को लेकर बीते महीनों में राजनीतिक और कूटनीतिक हलचल तेज हो गई है। बांग्लादेश की अंतरिम लीडरशिप और कुछ नेताओं के बयानों के बाद, इस “चिकन नेक” पर खुले तौर पर “काट देने” जैसी धमकियों की चर्चा ने सुरक्षा हलकों में चिंता बढ़ा दी। इसी पर प्रतिक्रिया देते हुए आध्यात्मिक नेता सद्गुरु ने कहा कि भारत को इस चिकन की गर्दन को “हाथी की गर्दन” में बदलना होगा – यानी इसे इतना मजबूत और चौड़ा बनाना होगा कि कोई इसे रणनीतिक कमजोरी की तरह इस्तेमाल न कर सके।

सद्गुरु ने बेंगलुरु में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर “भारत के बंटवारे से पैदा हुई 78 साल पुरानी विसंगति” है, जिसे 1971 के युद्ध के बाद ठीक किया जा सकता था लेकिन नहीं किया गया। उनके मुताबिक, आज जब भारत की संप्रभुता पर सीधी धमकियों की बात हो रही है, तो वक्त आ गया है कि “चिकन की गर्दन को पोषित करके उसे हाथी बना दिया जाए।” इसका मतलब है कि इस क्षेत्र में सुरक्षा, बुनियादी ढांचा और रणनीतिक गहराई इतनी बढ़ाई जाए कि कोई इसे कमजोर कड़ी न समझ सके।

मुहम्मद यूनुस का “लैंडलॉक्ड नॉर्थईस्ट” बयान और विवाद

इस पूरे विवाद की सीधी पृष्ठभूमि बांग्लादेश के अंतरिम प्रमुख सलाहकार प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस का वह बयान है, जो उन्होंने इस साल अप्रैल में चीन के दौरे पर दिया। यूनुस ने चीनी निवेशकों से कहा कि भारत के सात पूर्वोत्तर राज्य – असम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और मेघालय – “लैंडलॉक्ड” हैं और समुद्र तक पहुंचने के लिए पूरी तरह बांग्लादेश पर निर्भर हैं। उन्होंने कहा, “हम इस पूरे क्षेत्र के लिए सागर के अकेले संरक्षक हैं, यह चीन की अर्थव्यवस्था के विस्तार का बड़ा अवसर हो सकता है।”

यूनुस के इस बयान को भारत में कई रणनीतिक विशेषज्ञों और राजनयिकों ने चिंताजनक माना, क्योंकि इसमें बांग्लादेश को “गेटवे” और भारत को निर्भर खिलाड़ी के तौर पर पेश किया गया। भारतीय पक्ष ने कूटनीतिक और आर्थिक चैनलों के माध्यम से अपनी आपत्ति दर्ज की, और यह संदेश दिया कि भारत का उत्तर–पूर्व केवल बांग्लादेश ट्रांजिट पर निर्भर नहीं है, बल्कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर सहित अन्य कनेक्टिविटी विकल्पों पर भी काम चल रहा है।

सिलीगुड़ी कॉरिडोर या ‘चिकन नेक’ क्या है?

सिलीगुड़ी कॉरिडोर पश्चिम बंगाल के उत्तर में स्थित 20–22 किलोमीटर चौड़ी एक संकरी पट्टी है, जिसे अनौपचारिक रूप से “चिकन नेक” कहा जाता है। इसके उत्तर में नेपाल और भूटान हैं, दक्षिण में बांग्लादेश, और कुछ सौ किलोमीटर दूर चीन की सीमा। यही पट्टी मुख्यभूमि भारत और उत्तर–पूर्वी राज्यों के बीच एकमात्र स्थलीय लिंक है।

इस कॉरिडोर से होकर राष्ट्रीय राजमार्ग, रेलवे लाइनें, पाइपलाइन और सामरिक सप्लाई रूट गुजरते हैं। 1962 के चीन–भारत युद्ध के दौरान इसकी कमजोरी साफ दिखाई दी थी। किसी भी सैन्य या राजनीतिक संकट में यहां अवरोध पैदा होना सीधे–सीधे असम, अरुणाचल, नगालैंड जैसे राज्यों के साथ भौतिक संपर्क को प्रभावित कर सकता है। इसी वजह से इसे भारत की “स्ट्रैटेजिक लाइफलाइन” भी कहा जाता है।

सद्गुरु का तर्क: ‘अनॉमली’ और 1971 का मौका

सद्गुरु का कहना है कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर का इतना संकरा होना 1947 के विभाजन की भू–राजनीतिक “अनॉमली” है – यानी ऐसी गड़बड़ी जिसे लंबे समय तक नजरअंदाज किया गया। 1971 में जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध जीतकर बांग्लादेश की मुक्ति में भूमिका निभाई, तब सैद्धांतिक रूप से यह संभव था कि भारत अपने लिए अधिक सुरक्षित जमीनी लिंक की व्यवस्था करवाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

उनके शब्दों में, “सिलीगुड़ी कॉरिडोर 78 साल पुरानी विसंगति है, जिसे 1971 में सुधारा जाना चाहिए था। अब जब खुले तौर पर संप्रभुता पर खतरा बताया जा रहा है, हमें इस चिकन को पोषित कर हाथी में बदल देना चाहिए।” यह बात उन्होंने उस संदर्भ में कही जब कुछ बांग्लादेशी नेताओं और टीवी डिबेट्स में “चिकन नेक काटने” जैसी बातें उछलीं, जिन पर भारत में कड़ी प्रतिक्रिया आई।

ढाका की राजनीति और शेख हसीना की प्रतिक्रिया

पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने ऐसे बयानों को “खतरनाक और गैर–जिम्मेदार” करार दिया। उन्होंने कहा कि कोई भी गंभीर नेता उस पड़ोसी देश को धमकाने की बात नहीं करेगा जिस पर बांग्लादेश खुद व्यापार, ट्रांजिट और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए निर्भर है। हसीना का कहना है कि इस तरह के लोग “बांग्लादेशी जनता की आवाज नहीं हैं” और जब देश में लोकतंत्र और जिम्मेदार शासन पूरी तरह बहाल होगा, तो ऐसी “लापरवाह बातों” का अंत होगा।

उन्होंने पाकिस्तान–बांग्लादेश की निकटता के संकेतों पर भी टिप्पणी की और कहा कि उनका सिद्धांत “सभी से दोस्ती, किसी से बैर नहीं” (friendship to all, malice toward none) रहा है, लेकिन यूनुस का “इस्लामाबाद के साथ बेवजह तेजी से नजदीकी बढ़ाना” चिंता का विषय है। यह बात साफ करती है कि बांग्लादेश के भीतर भी इस तरह के बयानों को लेकर गहरी राजनीतिक खींचतान और मतभेद हैं।

भारत की कानूनी और राजनीतिक पृष्ठभूमि: असम समझौता और नागरिकता

सिलीगुड़ी कॉरिडोर और बांग्लादेश से जुड़ी सुरक्षा बहस केवल सैन्य नहीं, जनसांख्यिकीय और कानूनी भी है। असम समझौता और नागरिकता कानून के प्रावधानों के अनुसार, जो लोग 24 मार्च 1971 से पहले असम में बांग्लादेश से आकर बस गए, उन्हें भारतीय नागरिक माना जाता है, जबकि इसके बाद आने वाले प्रवासी भारतीय कानून के तहत अवैध आप्रवासी माने जाते हैं।

यह कट–ऑफ डेट भारत–बांग्लादेश संबंध, सीमा प्रबंधन और राष्ट्रीय पंजीकरण जैसे मुद्दों में केंद्रीय भूमिका निभाती है। उत्तर–पूर्व में लंबे समय से यह आशंका रही है कि अनियंत्रित प्रवासन स्थानीय जनसांख्यिकी, भाषा और संसाधनों पर दबाव बढ़ाता है। इसी संदर्भ में सिलीगुड़ी कॉरिडोर को “जनसांख्यिकीय और रणनीतिक बफर” के तौर पर भी देखा जाता है।

सिलीगुड़ी कॉरिडोर की रणनीतिक अहमियत: तथ्य और आंकड़े

  1. भूगोल और चौड़ाई
    – कॉरिडोर की चौड़ाई सबसे संकरे हिस्से में लगभग 20–22 किमी है।
    – उत्तर में नेपाल–भूटान, दक्षिण में बांग्लादेश, उत्तर–पूर्व में कुछ ही दूरी पर चीन की सीमा है।
  2. कनेक्टिविटी
    – यह कॉरिडोर राष्ट्रीय राजमार्ग–10, 27 सहित कई हाईवे का केंद्र है।
    – ब्रॉड–गेज रेलवे लाइनें और सिविल–मिलिट्री एयर–लॉजिस्टिक्स का मुख्य हब सिलीगुड़ी–बागडोगरा क्षेत्र है।
    – यहां से पूरा लॉजिस्टिक नेटवर्क असम, अरुणाचल, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और मेघालय तक जाता है।
  3. सुरक्षा और जोखिम
    – किसी संकट में यह “बॉटल–नेक” बन सकता है, जिसे रोककर पूरे उत्तर–पूर्व को जमीन से काटने की थ्योरी सुरक्षा विमर्श में बार–बार उठती है।
    – यह ड्रग्स, हथियारों और मानव–तस्करी के लिए भी संवेदनशील बेल्ट है, जिस पर कई रिपोर्टें ध्यान दिलाती रही हैं।
पहलूवर्तमान स्थिति (चिकन नेक)अपेक्षित दिशा (हाथी की गर्दन)
चौड़ाई और इंफ्रा20–22 किमी, सीमित हाईवे–रेलमल्टी–लेन हाईवे, दोहरी रेल, लॉजिस्टिक हब
सुरक्षा व्यवस्थासंवेदनशील, हाई–रिस्क कॉरिडोरमजबूत सैन्य–लॉजिस्टिक बेस, वैकल्पिक रूट
भू–राजनीतिक संदेशकमजोर कड़ी, दबाव योग्य क्षेत्रआत्मनिर्भर, कमज़ोर नहीं, निर्णायक स्ट्रेटेजिक ज़ोन

‘चिकन’ से ‘हाथी’ तक: सद्गुरु की बात का व्यावहारिक अर्थ क्या है?

सद्गुरु का रूपक केवल भावनात्मक अपील नहीं, बल्कि भारत की सुरक्षा–रणनीति में कुछ ठोस बदलावों की ओर इशारा माना जा सकता है।
– भौतिक चौड़ाई और इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाना: सिलीगुड़ी क्षेत्र में मल्टी–लेन हाईवे, अतिरिक्त रेल लिंक, टनल और फ्लाईओवर से लॉजिस्टिक क्षमता बढ़ाना।
– वैकल्पिक रूट्स विकसित करना: मिजोरम–म्यांमार, त्रिपुरा–चिटगांव पोर्ट जैसे मार्गों, और इनर–लाइन रास्तों को मजबूत बनाना ताकि एक ही कॉरिडोर पर निर्भरता घटे।
– मिलिट्री और टेक्नोलॉजी: अधिक स्थायी सैन्य बेस, एयर–डिफेंस, ड्रोन्स, स्मार्ट सर्विलांस, बायोमेट्रिक–आधारित मूवमेंट मॉनिटरिंग जैसी व्यवस्था।

ये सभी कदम भारत के अंदर ही संभव हैं और किसी पड़ोसी देश की संप्रभुता का उल्लंघन किए बिना भी सिलीगुड़ी कॉरिडोर को “चिकन नेक” से कहीं अधिक मजबूत बना सकते हैं।

भारत–बांग्लादेश–चीन त्रिकोण: बदलती भू–राजनीति

यूनुस का “चीन की अर्थव्यवस्था के विस्तार” वाला बयान केवल अर्थशास्त्र नहीं, भू–राजनीति का संकेत है। इसकी व्याख्या इस रूप में की जा रही है कि बांग्लादेश अपनी भौगोलिक स्थिति का इस्तेमाल चीन के साथ और गहरी कनेक्टिविटी के लिए करना चाहता है, जो लंबे समय में भारत की सुरक्षा–चुनौतियों को बढ़ा सकता है।

भारत पहले से ही “एक्ट ईस्ट” पॉलिसी, BIMSTEC और BBIN (बांग्लादेश–भूटान–भारत–नेपाल) जैसे फ्रेमवर्क के जरिए उत्तर–पूर्व की कनेक्टिविटी और क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन सिलीगुड़ी कॉरिडोर की कमजोरी को लेकर संवेदनशीलता बनी रहेगी, जब तक इसे व्यावहारिक रूप से मजबूत, चौड़ा और बहु–स्तरीय न बनाया जाए।

जनमत, भावनाएं और जिम्मेदार बयानबाजी

शेख हसीना का “यह खतरनाक और गैर–जिम्मेदार भाषा है” वाला बयान एक महत्वपूर्ण तथ्य पर रोशनी डालता है – पड़ोसी देशों के बीच सार्वजनिक बयानबाजी भी सुरक्षा का मुद्दा बन सकती है। भारत में सोशल मीडिया पर “चिकन नेक काटने” जैसी बातें स्वाभाविक रूप से गुस्सा पैदा करती हैं, जबकि बांग्लादेश के भीतर भी कई लोग इसे अपने राष्ट्रीय हितों के खिलाफ मानते हैं।

ऐसे माहौल में आध्यात्मिक या सार्वजनिक व्यक्तित्वों की भूमिका दोहरी होती है – वे एक तरफ लोगों की भावनाओं को आवाज देते हैं, दूसरी तरफ उन्हें शांत और व्यावहारिक समाधान की ओर भी मोड़ सकते हैं। सद्गुरु का “हाथी की गर्दन” वाला रूपक भावनात्मक भी है और व्यावहारिक भी, लेकिन यह तभी सार्थक होगा जब इसे ठोस नीति, इंफ्रा और कूटनीति में बदला जाए।

5 FAQs

  1. सिलीगुड़ी कॉरिडोर को ‘चिकन नेक’ क्यों कहा जाता है?
    यह उत्तर बंगाल की बेहद संकरी 20–22 किमी चौड़ी पट्टी है, जो नक्शे पर मुर्गे की पतली गर्दन की तरह दिखाई देती है और यही मुख्यभूमि भारत को उत्तर–पूर्व से जोड़ती है।
  2. सद्गुरु ने ‘चिकन नेक को हाथी की गर्दन’ बनाने से क्या मतलब बताया?
    उनका आशय है कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर को भू–राजनीतिक कमजोरी नहीं, बल्कि मजबूत, चौड़ा और बहु–स्तरीय रणनीतिक–आर्थिक गलियारा बनाना चाहिए, ताकि कोई इसे काटने या दबाव के औजार की तरह न देख सके।
  3. मुहम्मद यूनुस ने ऐसा क्या कहा जिससे विवाद बढ़ा?
    चीन दौरे पर यूनुस ने भारत के उत्तर–पूर्व को “लैंडलॉक्ड” बताया और कहा कि बांग्लादेश ही इस क्षेत्र के लिए सागर का “अकेला संरक्षक” है, जिससे यह इशारा मिला कि भारत की पहुंच उनके ट्रांजिट पर निर्भर है।
  4. शेख हसीना ने इन बयानों पर क्या प्रतिक्रिया दी?
    उन्होंने ऐसे शब्दों को “खतरनाक और गैर–जिम्मेदार” कहा और साफ किया कि ये बांग्लादेशी जनता की प्रतिनिधि आवाज नहीं हैं, बल्कि जिम्मेदार शासन लौटने पर ऐसे बोल बंद होने चाहिए।
  5. असम समझौते और नागरिकता कानून का इस बहस से क्या संबंध है?
    असम समझौते के अनुसार, 24 मार्च 1971 से पहले बांग्लादेश से आए लोग भारतीय नागरिक माने जाते हैं, जबकि इसके बाद आए लोग अवैध आप्रवासी हैं; यह प्रावधान सीमा, प्रवासन और सिलीगुड़ी जैसे कॉरिडोरों के सुरक्षा–चर्चा में अहम भूमिका निभाता है।

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