Homi J. Bhabha के कोट “सिर्फ अच्छा होना काफी नहीं, हमें सबसे बेहतरीन बनना चाहिए” से सीखें कैसे एक्सीलेंस को आदत बनाकर पढ़ाई, करियर और रिश्तों में ग्रो करें।
Homi J. Bhabha-सिर्फ अच्छा या वाकई बेहतरीन?
ज़्यादातर लोग अपनी लाइफ में “ठीक‑ठाक” या “अच्छा” बनने पर ही रुक जाते हैं। ऑफिस में काम टाइम पर हो जाए, एग्ज़ाम पास हो जाए, घर चल जाए – बस इतने से ही समझौता हो जाता है। होमी जे. भाभा का यह विचार कि “अच्छा होना काफी नहीं, हमें सबसे बेहतरीन बनना चाहिए” यह कम्फर्ट ज़ोन तोड़ने वाला संदेश है। यह सोच सिर्फ साइंस या न्यूक्लियर प्रोग्राम तक सीमित नहीं है, बल्कि हर उस इंसान के लिए है जो चाहता है कि उसकी ज़िंदगी सिर्फ रूटीन न रहे, बल्कि वाकई मायने रखे।
होमी जे. भाभा कौन थे और उनकी बात क्यों खास है?
होमी जे. भाभा को भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम का जनक माना जाता है, यानी उन्होंने ऐसे क्षेत्र में काम किया जहां छोटी सी गलती भी बड़ी कीमत वसूल सकती थी। इस वजह से उनकी लाइफ में प्रिसीजन, इमैजिनेशन और अनुशासन – ये तीनों चीजें बेहद ज़रूरी थीं, और वही उनकी “एक्सीलेंस” की परिभाषा भी बन गईं।
“अच्छा” बनाम “सबसे बेहतरीन” – फर्क कहाँ है?
अच्छा होना अक्सर कम्फर्ट देता है – काम चल जाता है, कोई शिकायत नहीं होती, और हमें लगता है कि बस इतना ही काफी है। लेकिन बेहतरीन बनने के लिए इंसान को अपने ही स्टैंडर्ड्स को रोज़ थोड़ा ऊपर उठाना पड़ता है – मतलब वही काम थोड़ी और ध्यान से, थोड़ी और ईमानदारी से और थोड़ी और क्वालिटी के साथ करना।
एक्सीलेंस: दूसरों से नहीं, खुद से मुकाबला
बहुत से लोग “बेस्ट” शब्द सुनते ही सोचते हैं कि उन्हें दुनिया से, अपने साथियों से या सोशल मीडिया पर दिख रहे लोगों से बेहतर होना है। भाभा की सोच इसके उलट है – असली एक्सीलेंस तब शुरू होती है जब इंसान अपने कल वाले वर्ज़न से बेहतर बनने की कोशिश करता है। इस तरह आप अपनी तुलना किसी और से नहीं, बस अपने पिछले लेवल से करते हैं, जिससे स्ट्रेस कम और फोकस ज़्यादा रहता है।
क्यों ‘गुड इनफ’ लाइफ को रोक देता है
जब हम “इतना काफी है” वाला रवैया अपना लेते हैं, तो नई स्किल सीखने, रिस्क लेने या कुछ अलग करने की इच्छा धीरे‑धीरे खत्म हो जाती है। इसका नतीजा यह होता है कि सालों बाद भी हम लगभग उसी जगह खड़े रहते हैं जहां से चले थे, बस उम्र बढ़ गई होती है, लेकिन ग्रोथ नहीं।
एक्सीलेंस को समझने का आसान मॉडल
इसे ऐसे समझ सकते हैं:
- “अच्छा”: काम खत्म, बॉस या टीचर ने कुछ नहीं कहा, फीडबैक न के बराबर।
- “बेहतरीन”: काम ऐसा कि खुद को भी गर्व महसूस हो, दूसरों को भी फर्क साफ़ दिखे, और अगली बार उससे भी बेहतर करने का प्लान दिमाग में हो।
इस मॉडल में एक्सीलेंस किसी एक बार का “पीक परफॉर्मेंस” नहीं है, बल्कि रोज़ थोड़ा‑थोड़ा बेहतर करने की आदत है।
स्टूडेंट्स के लिए: भाभा की सोच को पढ़ाई में कैसे लागू करें
अगर आप स्टूडेंट हैं, तो “पास हो जाना” आपका लक्ष्य हो सकता है, लेकिन एक्सीलेंस कहती है – “कितना अच्छी तरह सीखा?”
- सिर्फ रटने के बजाय कॉन्सेप्ट को समझने की कोशिश करें।
- होमवर्क “खत्म करने” के बजाय, इस नजर से देखें कि आपने आज कौन‑सी नई चीज़ सच में समझी।
- रिज़ल्ट का इंतज़ार करने के बजाय, डेली स्टडी टाइम, रिविज़न और प्रैक्टिस पेपर जैसी छोटी‑छोटी आदतों पर फोकस रखें।
इस तरह आपका फोकस सिर्फ मार्क्स से हटकर “ग्रोथ” पर आ जाता है, जो एक्सीलेंस की असली जड़ है।
वर्किंग प्रोफेशनल्स के लिए: नौकरी से आगे, काम में कारीगरी
ऑफिस में भी दो तरह के लोग दिखते हैं – एक वो जो बस डेडलाइन पूरी करते हैं, और दूसरे वो जो प्रॉब्लम सॉल्विंग माइंडसेट के साथ काम करते हैं। एक्सीलेंस यह कहती है कि:
- प्रोजेक्ट को सिर्फ “टास्क” के रूप में नहीं, बल्कि अपने सिग्नेचर वर्क के रूप में देखें।
- छोटी जिम्मेदारियां भी इस नज़र से करें कि कल को यही आपकी प्रोफेशनल पहचान बनने वाली हैं।
- फीडबैक से डरने के बजाय, उसे अपनी क्वालिटी सुधारने का टूल मानें।
यही सोच धीरे‑धीरे आपको “रिप्लेसएबल एम्प्लॉयी” से “की प्लेयर” के लेवल तक ले जाती है।
क्राफ्ट, आर्ट और छोटे कामों में भी एक्सीलेंस कैसे दिखती है
भाभा की बात सिर्फ बड़े प्रोजेक्ट्स या साइंस लैब तक सीमित नहीं है, बल्कि कारपेंटर, शेफ, डिज़ाइनर, मेकअप आर्टिस्ट – हर किसी पर लागू होती है।
- अगर आप लकड़ी से कुछ बनाते हैं, तो फिनिशिंग पर थोड़ा ज़्यादा समय देना भी एक्सीलेंस है।
- अगर आप खाना बनाते हैं, तो स्वाद के साथ‑साथ साफ‑सफाई, प्रेज़ेंटेशन और हेल्थ फैक्टर पर ध्यान देना भी एक्सीलेंस है।
छोटे कामों में भी क्वालिटी पर ध्यान देना आपके कैरेक्टर को मज़बूत करता है।
एक्सीलेंस और नेशन बिल्डिंग – भाभा की बड़ी दृष्टि
भाभा मानते थे कि कोई भी देश तब आगे बढ़ता है जब उसके लोग क्वालिटी को शॉर्टकट और “चलो जैसा चल रहा है” वाले रवैये से ऊपर रखें। जब हर लेवल पर – इंजीनियर, टीचर, डॉक्टर, ड्राइवर, सेल्सपर्सन – सब अपने काम को ईमानदारी से और बेहतर ढंग से करना शुरू करते हैं, तो उसका असर पूरे सिस्टम पर दिखाई देता है।
एक्सीलेंस की आदत कैसे बनती है?
एक्सीलेंस कोई अचानक मिल जाने वाली चीज़ नहीं, बल्कि रोज़‑रोज़ की छोटी‑छोटी आदतों से बनती है।
- समय पर उठना और दिन की प्लानिंग करना
- काम शुरू करने से पहले क्लियर फोकस सेट करना
- डिस्ट्रैक्शन (सोशल मीडिया, बेवजह मोबाइल) को सीमित करना
- रोज़ थोड़ा सीखना – एक पेज बुक का, एक नया कॉन्सेप्ट, या एक नया स्किल
इन आदतों को लगातार निभाने से एक्सीलेंस धीरे‑धीरे आपकी पहचान बन जाती है।
कंसिस्टेंसी बनाम अचानक जोश
कई लोग किसी मोटिवेशनल वीडियो या कोट के बाद अचानक बहुत जोश में आ जाते हैं, लेकिन दो–तीन दिन बाद सब नॉर्मल हो जाता है। भाभा की फिलॉसफी इस जोश से ज़्यादा “लगातार मेहनत” को तवज्जो देती है।
- छोटे‑छोटे लेकिन डेली स्टेप्स – जैसे रोज़ 30 मिनट पढ़ना, रोज़ 20 मिनट स्किल प्रैक्टिस – लंबे समय में बड़ा फर्क लाते हैं।
- अचानक एक दिन 5 घंटे मेहनत कर लेना और फिर 10 दिन कुछ न करना, एक्सीलेंस का रास्ता नहीं है।
फोकस, डीटेल और धैर्य – एक्सीलेंस के तीन स्तंभ
जब आप किसी काम को एक्सीलेंस के साथ करते हैं, तो तीन चीजें ज़रूर दिखती हैं:
- फोकस: काम करते समय आपका ध्यान उसी पर टिका रहता है, आप मल्टीटास्किंग में खुद को नहीं उलझाते।
- डीटेल: आप छोटी‑छोटी बातों पर भी ध्यान देते हैं, जो अक्सर “अच्छा” करने वाले लोग छोड़ देते हैं।
- धैर्य: आप जल्दबाज़ी में शॉर्टकट नहीं लेते, बल्कि सही तरीके से, सही समय देकर काम पूरा करते हैं।
आत्मसम्मान और एक्सीलेंस का रिश्ता
जब आप अपने काम को बेहतरीन बनाने के लिए एक्स्ट्रा मेहनत करते हैं, तो धीरे‑धीरे अंदर एक गहरा आत्मसम्मान बनता है।
- आप खुद को सिर्फ रिज़ल्ट से नहीं, बल्कि अपनी मेहनत की क्वालिटी से जज करने लगते हैं।
- आपको दूसरों से लगातार मान्यता की ज़रूरत कम पड़ती है, क्योंकि आपको पता होता है कि आप अपना बेस्ट दे रहे हैं।
यह आंतरिक सम्मान आपको मुश्किल समय में भी टूटने नहीं देता।
कम्फर्ट जोन से बाहर निकलने का साहस
भाभा का कोट हमें यह सवाल पूछने पर मजबूर करता है – “अगर मैं सच में एक्सेप्शनल बनने की कोशिश करूं, तो क्या हो सकता है?”
- शायद शुरुआती दिनों में ज्यादा मेहनत लगेगी, लोग समझेंगे भी नहीं कि आप इतना प्रयास क्यों कर रहे हैं।
- लेकिन समय के साथ यही अतिरिक्त मेहनत आपको भीड़ से अलग करती है और आपके काम को एक अलग पहचान देती है।
डेली लाइफ में एक्सीलेंस के 10 आसान प्रैक्टिकल स्टेप्स
- सुबह का पहला घंटा मोबाइल से दूर रहकर प्लानिंग और पढ़ने को दें।
- किसी भी टास्क को शुरू करते समय मन में साफ रखें – “मैं इसे सिर्फ खत्म नहीं, अच्छे से खत्म करूंगा।”
- दिन के अंत में 5 मिनट सेल्फ‑रिव्यू करें – आज क्या बेहतर कर सकता था?
- बड़ी आदतों के बजाय छोटी‑छोटी अच्छी आदतें चुनें, जिन्हें आप रोज़ निभा सकें।
- “चलो जैसा चल रहा है वैसा रहने दो” वाले विचार को पहचानें और उसे चुनौती दें।
- हफ्ते में एक बार कोई नया स्किल या नॉलेज एरिया सीखने की आदत डालें।
- फीडबैक मिलने पर डिफेंसिव होने के बजाय, उसे नोट करें और एक–दो सुधार तुरंत लागू करें।
- मल्टीटास्किंग कम करके, एक समय में एक काम पर फोकस करने की प्रैक्टिस करें।
- काम खत्म होने से पहले खुद से पूछें – “क्या मैं इस काम पर अपना नाम लिखकर गर्व महसूस करूंगा?”
- सोशल मीडिया पर तुलना कम करके, अपनी खुद की प्रोग्रेस जर्नल में लिखें।
रिलेशनशिप और पर्सनल लाइफ में भी एक्सीलेंस
यह सोच सिर्फ प्रोफेशनल या पढ़ाई तक सीमित नहीं है, रिश्तों पर भी लागू होती है।
- पार्टनर, पैरेंट्स, बच्चों या दोस्तों के साथ बातचीत में सचमुच सुनना, समय निकालना और ईमानदारी रखना भी एक्सीलेंस है।
- यहां “बेस्ट” का मतलब परफेक्ट होना नहीं, बल्कि रिश्ते में सचेत, संवेदनशील और लगातार बेहतर बनने की कोशिश करना है।
ग्रेटनेस धीरे‑धीरे बनती है, अचानक नहीं
भाभा की सोच यह भी याद दिलाती है कि कोई भी महान उपलब्धि रातों‑रात नहीं होती, वह सालों की तैयारी, अनुशासन और क्वालिटी पर फोकस का नतीजा होती है।
जब आप लंबे समय तक लगातार अच्छा काम करते रहते हैं, तो एक दिन वही काम दूसरों को “असाधारण” लगता है, जबकि आपके लिए वह नई नॉर्मल क्वालिटी बन जाती है।
अपनी खुद की परिभाषा तय करें – आप कौन बनना चाहते हैं?
आख़िरकार, एक्सीलेंस एक पर्सनल चॉइस है – कोई भी आपको मजबूर नहीं कर सकता कि आप अपना बेस्ट दें। यह अंदर से लिया गया फैसला होता है कि “मैं कैसे इंसान बनना चाहता/चाहती हूं – बस काम चला लेने वाला, या अपने काम के ज़रिए खुद की पहचान बनाने वाला?”
होमी जे. भाभा के संदेश से आज की पीढ़ी क्या सीख सकती है
आज के समय में जहां शॉर्टकट, वायरल कंटेंट और जल्दी fame पाने की होड़ है, भाभा का यह संदेश और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
- वह हमें याद दिलाता है कि असली वैल्यू उस काम की क्वालिटी में है जो हम रोज़ करते हैं, न कि सिर्फ बाहरी शोहरत में।
- जब हम हर छोटे काम में भी एक्सीलेंस का माइंडसेट अपनाते हैं, तो धीरे‑धीरे हमारी पूरी लाइफ की दिशा बदल जाती है।
आपके लिए छोटा‑सा होमवर्क
आज से अगले सात दिन के लिए सिर्फ एक नियम अपनाएं –
“जो भी काम हाथ में लूं, उसे थोड़ा और बेहतर करूं, जितना मैं आम तौर पर करता/करती हूं।”
यह छोटा‑सा एक्सपेरिमेंट आपको खुद दिखाएगा कि एक्सीलेंस कोई भारी दर्शन नहीं, बल्कि रोज़ के छोटे बेहतर फैसलों का नाम है।
FAQs
1. क्या एक्सीलेंस का मतलब हमेशा नंबर 1 बनना है?
नहीं, एक्सीलेंस का मतलब किसी और से आगे निकलना नहीं, बल्कि अपने खुद के पिछले लेवल से बेहतर बनना है। यह एक इंटरनल स्टैंडर्ड है, जहां आपकी तुलना सिर्फ आपसे होती है।
2. अगर मेरे पास ज्यादा रिसोर्स या समय नहीं है, तो भी क्या मैं एक्सीलेंस हासिल कर सकता/सकती हूं?
हां, एक्सीलेंस का सबसे बड़ा हिस्सा “रवैया” और “आदतें” हैं, न कि महंगे रिसोर्स। आप छोटे कामों में भी ध्यान, ईमानदारी और लगातार मेहनत से क्वालिटी ला सकते हैं।
3. क्या हर काम में एक्सीलेंस जरूरी है या सिर्फ करियर में?
एक्सीलेंस जितना करियर के लिए ज़रूरी है, उतना ही रिश्तों, हेल्थ, फाइनेंस और पर्सनल ग्रोथ में भी। जब आप हर क्षेत्र में थोड़ा‑थोड़ा बेहतर बनने की कोशिश करते हैं, तो लाइफ बैलेंस्ड और संतुष्ट महसूस होती है।
4. अगर मैं बार‑बार फेल हो रहा/रही हूं, तो एक्सीलेंस कैसे बनाए रखूं?
फेल होने के बाद भी सीखते रहना और कोशिश जारी रखना ही एक्सीलेंस का हिस्सा है। आप हर असफलता को फीडबैक की तरह लें, कारण समझें और अगली कोशिश में एक‑दो चीजें सुधार दें – यही ग्रोथ माइंडसेट है।
5. इस कोट को रोज़ की लाइफ में याद रखने का आसान तरीका क्या है?
आप चाहें तो इसे कहीं लिखकर लगा सकते हैं – स्टडी टेबल, लैपटॉप वॉलपेपर या मोबाइल स्क्रीन पर। दिन में एक बार खुद से पूछें: “आज कौन‑सा काम मैंने सिर्फ अच्छा नहीं, बल्कि थोड़ा बेहतरीन किया?” यही सवाल धीरे‑धीरे आपकी सोच बदल देगा।
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