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Dry Ice से कैसे बनते हैं मंगल पर बालू के टीले?

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Martian sand dunes
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मंगल ग्रह पर हर बसंत में रेत के टीलों के आकार में बदलाव क्यों होता है? वैज्ञानिकों ने प्रयोगों के जरिए पता लगाया है कि शुष्क बर्फ (Dry Ice) के सीधे गैस में बदलने (Sublimation) की प्रक्रिया से विस्फोट होते हैं और यही टीलों को नया आकार देते हैं। जानें पूरा विज्ञान।

मंगल ग्रह पर शुष्क बर्फ (Dry Ice) का जादू

वैज्ञानिकों ने खोजा कैसे बनते हैं रहस्यमयी बालू के टीले

मंगल ग्रह, जिसे हम ‘लाल ग्रह’ के नाम से जानते हैं, सदियों से इंसानों के लिए एक रहस्य बना हुआ है। इसकी सतह पर हर साल बसंत के मौसम में एक अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है – रेत के विशालकाय टीलों (Sand Dunes) पर काले और काले-भूरे रंग की रहस्यमयी आकृतियाँ और धारियाँ (Dark Streaks) उभर आती हैं। दशकों तक वैज्ञानिक हैरान थे कि आखिर ये पैटर्न बिना हवा चले या पानी के कैसे बन जाते हैं।

अब, पृथ्वी पर किए गए नए प्रयोगों ने इस पुराने रहस्य को सुलझा दिया है। जवाब है – शुष्क बर्फ यानी ‘ड्राई आइस’ (Dry Ice)। वैज्ञानिकों ने पाया है कि मंगल ग्रह पर हर बसंत ऋतु में, जमी हुई कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) यानी ड्राई आइस के विस्फोटक तरीके से गैस में बदलने की प्रक्रिया ही इन टीलों को नया आकार देती है और उन पर ये अद्भुत निशान छोड़ती है।

इस लेख में, हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर मंगल जैसी स्थितियाँ बनाकर इस प्रक्रिया को दोहराया और कैसे यह खोज हमारे लाल पड़ोसी ग्रह को समझने में एक बड़ी कड़ी साबित हो रही है।

मंगल ग्रह का मौसम: जहाँ बर्फ नहीं, ड्राई आइस जमती है

मंगल ग्रह का वायुमंडल पृथ्वी की तुलना में बहुत पतला है और ज्यादातर कार्बन डाइऑक्साइड (95%) से बना है। वहाँ का तापमान इतना कम होता है कि सर्दियों में, वायुमंडल की CO2 सीधे ठोस अवस्था में जम जाती है और सतह पर एक सफेद चादर की तरह बिछ जाती है। यह ठोस CO2 ही ड्राई आइस है। यह प्रक्रिया पृथ्वी पर बर्फबारी जैसी ही है, लेकिन बर्फ की जगह ड्राई आइस की।

बसंत ऋतु में क्या होता है? सब्लिमेशन का विस्फोट

जब मंगल पर बसंत आती है और सूरज की किरणें तेज होने लगती हैं, तो जादू शुरू होता है। यहाँ की कहानी तीन चरणों में unfold होती है:

चरण 1: सूरज की गर्मी से जाल बनना
सूरज की किरणें पारदर्शी ड्राई आइस की परत को पार करके नीचे की काली रेत को गर्म करने लगती हैं। यह रेत बाद में खुद एक हीट सोर्स की तरह काम करती है और ऊपर पड़ी ड्राई आइस की परत को नीचे से गर्म करने लगती है।

चरण 2: गैस का दबाव और दरारें
जैसे ही ड्राई आइस गर्म होती है, यह सीधे ठोस अवस्था से गैसीय अवस्था में बदलने लगती है। इस प्रक्रिया को ‘सब्लिमेशन’ (Sublimation) कहते हैं। यह गैस फंस जाती है और ऊपर की बर्फ की परत के नीचे दबाव बनाने लगती है। यह दबाव इतना ज्यादा होता है कि ड्राई आइस की परत में दरारें पड़ जाती हैं।

चरण 3: विस्फोट और ‘रेत का झरना’
अब, यह फंसी हुई गैस इन दरारों से अचानक बाहर निकलती है। यह एक मिनी विस्फोट जैसा होता है। यह विस्फोट इतना शक्तिशाली होता है कि नीचे की रेत को ऊपर उछाल देता है। यह रेत काले रंग की होती है, जो सफेद ड्राई आइस के ऊपर गिरकर काले धब्बे और लंबी धारियाँ बना देती है। कई बार यह गैस रेत के साथ मिलकर ठीक वैसे ही फव्वारे (Geysers) बनाती है जैसे पृथ्वी पर गर्म पानी के।

पृथ्वी पर कैसे किया गया प्रयोग?

वैज्ञानिकों ने इस थ्योरी को टेस्ट करने के लिए पृथ्वी पर एक विशेष ‘मार्स सिम्युलेशन चैंबर’ बनाया। इस चैंबर में मंगल ग्रह जैसा वायुमंडलीय दबाव और तापमान बनाया गया। फिर उन्होंने:

  1. बालू (रेत) से भरी एक ट्रे ली।
  2. उस पर Dry Ice की पतली परत बिछाई।
  3. इसे एक ऐसे लैंप के नीचे रखा जो मंगल के सूरज की नकल करता था।

जैसे ही लैंप जला और ‘रेत’ गर्म हुई, ड्राई आइस के नीचे गैस बननी शुरू हो गई। कुछ ही देर बाद, ड्राई आइस की सतह पर दरारें दिखाई दीं और फिर छोटे-छोटे विस्फोटों के साथ रेत के कण ऊपर उछलने लगे, जो नीचे गिरकर वैसे ही काले पैटर्न बना रहे थे जैसे मंगल ग्रह के टीलों पर देखे जाते हैं। इस प्रयोग ने साबित कर दिया कि मंगल पर होने वाली प्रक्रिया की यही सही व्याख्या है।

इस खोज के क्या मायने हैं?

यह खोज सिर्फ एक रहस्य सुलझाने तक सीमित नहीं है, इसके कई महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं:

  1. मंगल की भू-विज्ञान की बेहतर समझ: यह हमें बताता है कि मंगल की सतह सिर्फ हवा से ही नहीं, बल्कि इस अनोखी ‘बर्फ-विस्फोट’ प्रक्रिया से भी लगातार बदल रही है। इससे हमें मंगल के भू-भाग (Topography) के विकास को समझने में मदद मिलेगी।
  2. मंगल मिशन के लिए सुरक्षा: अगर भविष्य में मानव मंगल पर उतरते हैं, तो उन्हें इस बात का ध्यान रखना होगा कि बसंत के मौसम में ये छोटे विस्फोट हो सकते हैं। हालांकि ये बहुत बड़े नहीं होते, लेकिन फिर भी एक संभावित खतरा हो सकते हैं।
  3. जीवन की संभावना को समझना: ऐसी सक्रिय भू-वैज्ञानिक प्रक्रियाएं मंगल की अंडरग्राउंड परिस्थितियों को प्रभावित कर सकती हैं, जो वहाँ जीवन की संभावनाओं से सीधे जुड़ा हुआ है।
  4. पृथ्वी से इतर प्रक्रियाओं की जानकारी: यह हमें यह दिखाता है कि हमारे सौर मंडल में पृथ्वी जैसी प्रक्रियाएं (जैसे हवा और पानी का कटाव) ही एकमात्र तरीका नहीं हैं जिससे ग्रहों की सतह बदलती है। CO2 जैसी गैसें भी एक प्रमुख भूमिका निभा सकती हैं।

एक सक्रिय और गतिशील ग्रह

यह शोध मंगल ग्रह की हमारी छवि को एक स्थिर, धूल भरी मुर्ती से बदलकर एक सक्रिय और गतिशील दुनिया बना देता है। मंगल पर हर साल बसंत आती है और एक अदृश्य कारीगर – ड्राई आइस – अपना जादू चलाकर रेत के टीलों पर नए-नए नक़्शे बना देता है। यह खोज न केवल वैज्ञानिक जिज्ञासा को शांत करती है, बल्कि भविष्य की मंगल यात्राओं के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक भी साबित होगी। यह हमें याद दिलाती है कि ब्रह्मांड की हर दुनिया के अपने अनूठे नियम और अपना अनोखा सौंदर्य है।


FAQs

1. क्या मंगल ग्रह पर पानी की बर्फ भी है?
हां, मंगल ग्रह के ध्रुवों पर पानी की बर्फ की मोटी चादरें हैं। लेकिन सर्दियों में, इनके ऊपर और आसपास के इलाकों में CO2 की बर्फ (ड्राई आइस) की एक और परत जम जाती है, जो गर्मियों में उड़ जाती है।

2. क्या पृथ्वी पर भी Dry Ice से ऐसी आकृतियाँ बनती हैं?
नहीं, पृथ्वी के वायुमंडल में दबाव और तापमान ऐसा नहीं होता कि ड्राई आइस की इतनी बड़ी परतें प्राकृतिक रूप से जम सकें और फिर इस तरह से विस्फोट कर सकें। यह प्रक्रिया मंगल जैसे विशेष वातावरण में ही संभव है।

3. क्या यह प्रक्रिया मंगल के सभी हिस्सों में होती है?
यह प्रक्रिया विशेष रूप से मंगल के मध्य-अक्षांश (Mid-latitudes) और ध्रुवीय इलाकों के टीलों पर देखी गई है, जहाँ सर्दियों में पर्याप्त मात्रा में ड्राई आइस जमती है।

4. क्या ये काले धब्बे स्थायी होते हैं?
नहीं, ये धब्बे स्थायी नहीं होते। जैसे-जैसे बसंत और गर्मी बढ़ती है, पूरी ड्राई आइस की परत गैस में बदलकर उड़ जाती है और हवाएं रेत के इन काले पैटर्न को धीरे-धीरे मिटा देती हैं। अगले सर्दियों में फिर से नए पैटर्न बनते हैं।

5. क्या मंगल पर चलने वाले रोवर्स ने इस घटना को देखा है?
हालांकि रोवर्स ने सीधे तौर पर इन विस्फोटों को रिकॉर्ड नहीं किया है, लेकिन उन्होंने टीलों पर इन काले धारियों और धब्बों की हाई-रिज़ॉल्यूशन तस्वीरें ली हैं। ये तस्वीरें ही इस रहस्य को सुलझाने में सबसे महत्वपूर्ण सबूत थीं।

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