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AI और Deepfake के जमाने में Kumar Sanu के Case ने बढ़ाई कलाकारों की सुरक्षा

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दिल्ली हाई कोर्ट ने प्लेबैक सिंगर Kumar Sanu के व्यक्तित्व अधिकारों को मान्यता दी है। जानें इस ऐतिहासिक फैसले की details, इसका आम लोगों और कलाकारों पर क्या असर पड़ेगा और Personality Rights क्या होते हैं।

Kumar Sanu का व्यक्तित्व अधिकार: High Court के फैसले ने कलाकारों को दिया एक नया हथियार

अगर कोई आपकी तस्वीर लेकर बिना पूछे उसका इस्तेमाल किसी उत्पाद को बेचने के लिए करे, या आपकी आवाज़ की नकल करके कोई विज्ञापन बनाए, तो आपको कैसा लगेगा? बुरा लगेगा ना। अब सोचिए जब यही चीज एक मशहूर सेलेब्रिटी के साथ हो, जिसकी पहचान और आवाज़ करोड़ों लोग पहचानते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ बॉलीवुड के मशहूर प्लेबैक सिंगर कुमार सानू के साथ। लेकिन अब दिल्ली की हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाकर न सिर्फ कुमार सानू, बल्कि भारत के हर कलाकार, खिलाड़ी और सार्वजनिक हस्ती की पहचान को कानूनी सुरक्षा कवच दे दिया है।

यह सिर्फ एक सेलेब्रिटी का केस नहीं है, बल्कि यह हर उस व्यक्ति के अधिकारों की बात करता है जिसकी एक सार्वजनिक पहचान है। आज के डिजिटल और AI के दौर में जहां किसी की आवाज़ और चेहरे को आसानी से कॉपी किया जा सकता है, यह फैसला और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। तो चलिए, आज हम आपको विस्तार से समझाते हैं कि आखिर यह ‘व्यक्तित्व अधिकार’ या ‘पर्सनैलिटी राइट्स’ है क्या, कुमार सानू का मामला क्या था, कोर्ट ने क्या फैसला दिया, और इसका आप पर और पूरे मनोरंजन उद्योग पर क्या असर पड़ने वाला है।

व्यक्तित्व अधिकार क्या हैं? आपकी पहचान आपकी संपत्ति है

सीधे शब्दों में कहें तो, ‘व्यक्तित्व अधिकार’ यानी ‘पर्सनैलिटी राइट्स’ का मतलब है कि किसी भी व्यक्ति के पास अपनी पहचान – यानी अपना नाम, अपनी तस्वीर, अपनी आवाज़, और अपनी छवि – पर पूरा नियंत्रण और अधिकार होता है। कोई दूसरा व्यक्ति या कंपनी बिना उसकी अनुमति के उस पहचान का इस्तेमाल व्यावसायिक फायदे के लिए नहीं कर सकती।

इसे ऐसे समझिए: जैसे आपकी ज़मीन या आपकी कार आपकी संपत्ति है, वैसे ही आपकी पहचान भी आपकी एक अलग तरह की संपत्ति है। इसे दो मुख्य हिस्सों में बांटा जा सकता है:

  • प्राइवेसी का अधिकार (Right to Privacy): यह अधिकार आपको यह सुनिश्चित करता है कि आपकी निजी ज़िंदगी में कोई दखल न दे और आपकी पहचान का गलत इस्तेमाल न हो।
  • पब्लिसिटी का अधिकार (Right to Publicity): यह अधिकार आपको यह तय करने की ताकत देता है कि आप अपनी पहचान (नाम, photo, voice) से व्यावसायिक लाभ कैसे कमाएंगे और किसे इसके लिए इजाजत देंगे।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में ‘जीवन जीने के अधिकार’ की व्याख्या करते हुए इसे ‘गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार’ माना गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में कहा है कि किसी की प्राइवेसी और उसकी पहचान पर उसका अधिकार, उसकी गरिमा का ही एक हिस्सा है।

कुमार सानू का मामला: आवाज़ और नाम के गलत इस्तेमाल के खिलाफ लड़ाई

आवाज़ के बादशाह कहे जाने वाले कुमार सानू ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। उनका आरोप था कि कुछ कंपनियां और मोबाइल ऐप बिना उनकी अनुमति के उनके नाम और उनकी मशहूर आवाज़ का इस्तेमाल व्यावसायिक लाभ कमाने के लिए कर रही हैं। इसमें शामिल थे:

  • रिंगटोन और कॉलर ट्यून वाले ऐप: जहां उनके गानों को बिना अनुमति के रिंगटन के तौर पर पेश किया जा रहा था।
  • AI का गलत इस्तेमाल: जहां उनकी आवाज़ की नकल करके या AI टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके नए ऑडियो कंटेंट बनाए जा रहे थे।
  • बिना अनुमति के विज्ञापन: कुछ ब्रांड्स उनकी तस्वीर या नाम का इस्तेमाल ऐसे प्रमोशन में कर रहे थे, जिसकी उन्होंने मंजूरी नहीं दी थी।

कुमार सानू ने कोर्ट से गुहार लगाई कि उनकी पहचान, जिसे उन्होंने सालों की मेहनत से बनाया है, का गलत तरीके से व्यावसायिक इस्तेमाल उनके अधिकारों का उल्लंघन है।

दिल्ली हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: एक मिसाल कायम हुई

दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने इस मामले में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और दूरगामी फैसला सुनाया। कोर्ट ने कुमार सानू के पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि एक सेलेब्रिटी का उसके “व्यक्तित्व अधिकार” में उसका नाम, उसकी छवि, उसकी आवाज़, और उसके गाने तक शामिल हैं।

कोर्ट के आदेश की कुछ मुख्य बातें यह रहीं:

  1. स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction): कोर्ट ने दुनिया भर में किसी भी व्यक्ति, कंपनी या संस्था को यह आदेश दिया है कि वे बिना कुमार सानू की लिखित अनुमति के उनके नाम, छवि, आवाज़, या किसी भी तरह की पहचान का इस्तेमाल किसी भी उत्पाद, सेवा, या विज्ञापन में नहीं कर सकते।
  2. डोमेन नाम ट्रांसफर: अगर कोई कुमार सानू के नाम वाला कोई डोमेन (जैसे kumarsanu.com) रजिस्टर करके बैठा है, तो उसे भी उन्हें ट्रांसफर करना होगा।
  3. AI और डीपफेक पर रोक: यह फैसला AI टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके उनकी आवाज़ की नकल करने वालों पर भी सीधे तौर पर लागू होगा। यानी, अब कोई भी AI टूल इस्तेमाल करके उनकी आवाज़ में नया गाना नहीं बना सकता।
  4. एक ‘मिसाल’ या प्रीसीडेंट: कोर्ट ने खुद कहा कि यह फैसला एक “मजबूत मिसाल” कायम करता है, जो हर कलाकार की पहचान को सुरक्षित रखने में मदद करेगा।

कुमार सानू के केस का दूसरे सेलेब्रिटीज़ पर क्या असर पड़ेगा?

यह फैसला सिर्फ कुमार सानू तक सीमित नहीं है। यह भारत में सेलेब्रिटी अधिकारों के लिए एक नई नींव रखता है। इसके बाद अब कोई भी कलाकार, खिलाड़ी, या सार्वजनिक हस्ती अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है अगर उसकी पहचान का गलत इस्तेमाल हो रहा है।

इससे पहले भी ऐसे मामले सामने आए हैं, जैसे कि:

  • अमिताभ बच्चन ने अपने नाम ‘बिग बी’ और अपनी आवाज़ के गलत इस्तेमाल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की थी।
  • अनिल कपूर ने अपनी मशहूर लाइन “जाने क्या बात है” और अपनी छवि के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कोर्ट का सहारा लिया था।

लेकिन कुमार सानू का केस इसलिए खास है क्योंकि इसमें आवाज़ को स्पष्ट रूप से व्यक्तित्व अधिकार का एक अहम हिस्सा माना गया है और AI जैसी नई टेक्नोलॉजी से होने वाले नुकसान को भी कवर किया गया है।

आम आदमी के लिए इस फैसले का क्या मतलब है?

आप सोच रहे होंगे कि यह तो सेलेब्रिटीज़ की बात है, इसका हमसे क्या वास्ता? आपकी अपनी एक पहचान है, चाहे वह आपके सोशल मीडिया प्रोफाइल के तौर पर हो या आपके व्यवसाय के तौर पर।

  • छोटे negosheय और influencers के लिए: अगर आप एक लोकल इन्फ्लुएंसर हैं या अपना छोटा business चला रहे हैं, तो आपकी फोटो और नाम का गलत इस्तेमाल आपको नुकसान पहुंचा सकता है। यह फैसला आपको यह समझने में मदद करता है कि आपके पास भी अपनी पहचान को बचाने के कानूनी अधिकार हैं।
  • सोशल मीडिया यूजर्स के लिए: अगर कोई आपकी फोटो बिना पूछे इस्तेमाल कर रहा है या आपके नाम से फेक प्रोफाइल बना रहा है, तो आप कानूनी कार्रवाई के बारे में सोच सकते हैं।

AI और डीपफेक के जमाने में यह फैसला क्यों है ज़रूरी?

आज टेक्नोलॉजी इतनी आगे बढ़ गई है कि किसी की आवाज़ को उतारना और किसी के चेहरे को वीडियो में चस्पा कर देना बहुत आसान हो गया है। इसे डीपफेक टेक्नोलॉजी कहते हैं। ऐसे में, किसी सेलेब्रिटी की आवाज़ में फर्जी गाने बनाना या उनके चेहरे को ऐसे विज्ञापनों में इस्तेमाल करना जिनसे वे जुड़े ही नहीं हैं, बहुत बड़ा धोखा है।

कुमार सानू के केस में कोर्ट ने साफ कर दिया है कि AI टूल्स का इस्तेमाल करके भी किसी की पहचान का गलत इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। यह फैसला भविष्य में आने वाले ऐसे हज़ारों मामलों के लिए एक रास्ता तैयार करता है।

क्या है चुनौतियां और आगे का रास्ता?

हालांकि यह फैसला बहुत सराहनीय है, लेकिन इसके सामने कुछ चुनौतियां भी हैं:

  • इंटरनेट की दुनिया: इंटरनेट पर अनगिनत वेबसाइट्स और ऐप्स हैं। हर एक पर नज़र रखना और हर गलत इस्तेमाल को रोकना बहुत मुश्किल काम है।
  • जागरूकता की कमी: बहुत सारे छोटे business और लोग यह नहीं जानते कि सेलेब्रिटी की तस्वीर या नाम का इस्तेमाल करने से पहले उनकी अनुमति लेना ज़रूरी है।

आगे का रास्ता यही है कि:

  • कानून को और मजबूत करना: भारत में व्यक्तित्व अधिकारों को एक स्पष्ट और अलग कानून के तौर पर लाने की ज़रूरत है।
  • जागरूकता फैलाना: लोगों को यह समझाना कि सेलेब्रिटी की पहचान भी उनकी Intellectual Property है, जैसे कि कोई पेटेंट या कॉपीराइट।

एक नए युग की शुरुआत

दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला सिर्फ एक कोर्ट का आदेश नहीं है, बल्कि भारत में कलाकारों के अधिकारों के इतिहास में एक मील का पत्थर है। इसने यह साबित कर दिया है कि कानून टेक्नोलॉजी के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकता है। कुमार सानू ने जो “थैंक यू नोट” शेयर किया, वह सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे कलाकार समुदाय के लिए एक जीत का एलान था।

अब हर वो शख्स जिसने अपनी मेहनत से एक पहचान बनाई है, उसे यह जानकर सुरक्षा का अहसास होगा कि कानून उसके साथ है। यह फैसला हमें यह याद दिलाता है कि चाहे टेक्नोलॉजी कितनी भी आगे क्यों न बढ़ जाए, इंसान की पहचान और उसकी गरिमा सबसे कीमती चीज है, और उसे बचाना हम सबकी ज़िम्मेदारी है।


FAQs

1. क्या यह फैसला सिर्फ कुमार सानू पर ही लागू होता है?
नहीं, जबकि यह फैसला Kumar Sanu के केस में आया है, यह एक कानूनी प्रीसीडेंट या मिसाल बन गया है। इसका मतलब है कि अब कोई भी भारतीय सेलेब्रिटी या सार्वजनिक हस्ती इस फैसले का हवाला देकर अपने व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा के लिए अदालत जा सकती है।

2. क्या कोई आम आदमी भी ‘व्यक्तित्व अधिकार’ का दावा कर सकता है?
हां, बिल्कुल। व्यक्तित्व अधिकार हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। अगर किसी आम आदमी की फोटो, नाम या पहचान का बिना अनुमति के व्यावसायिक इस्तेमाल हो रहा है (जैसे किसी local business ने उसकी तस्वीर विज्ञापन में लगा दी), तो वह भी कानूनी कार्रवाई कर सकता है।

3. क्या कोई ब्रांड किसी सेलेब्रिटी की तस्वीर समाचार या समीक्षा के लिए इस्तेमाल कर सकता है?
हां, अगर इस्तेमाल “समाचार की रिपोर्टिंग”, “शैक्षिक उद्देश्य” या “किसी घटना की ईमानदार समीक्षा” के लिए हो रहा है, तो यह अक्सर ‘फेयर यूज’ (निष्पक्ष उपयोग) के दायरे में आता है। लेकिन अगर उस इस्तेमाल का मकसद सीधे तौर पर पैसा कमाना है, तो सेलेब्रिटी की अनुमति लेना ज़रूरी हो जाता है।

4. AI के ज़रिए बनी आवाज़ या वीडियो के गलत इस्तेमाल से कैसे बचा जा सकता है?
कुमार सानू का यह फैसला AI के खिलाफ एक बड़ा हथियार देता है। सेलेब्रिटीज़ अब कोर्ट से ऐसा आदेश ले सकते हैं जो स्पष्ट रूप से AI टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके उनकी नकल करने पर रोक लगाता हो। आम लोगों के लिए, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर शिकायत दर्ज कराना और साइबर सेल से संपर्क करना उपाय हो सकता है।

5. अगर कोई कंपनी किसी सेलेब्रिटी की आवाज़ की नकल करके विज्ञापन बनाए, तो क्या वह गलत है?
बिल्कुल गलत है। कुमार सानू के फैसले के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि किसी की पहचाननीय आवाज़ भी उसके व्यक्तित्व अधिकार का हिस्सा है। बिना अनुमति के उसकी नकल करके विज्ञापन बनाना एक तरह की धोखाधड़ी है और इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

6. क्या यह फैसला सिर्फ भारत में लागू होता है?
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में इसे “दुनिया भर” में लागू किया है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस आदेश को लागू करवाना व्यावहारिक रूप से जटिल हो सकता है। फिर भी, यह एक बहुत मजबूत कानूनी आधार जरूर प्रदान करता है और अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म्स (जैसे YouTube, Facebook) को ऐसी सामग्री हटाने के लिए बाध्य कर सकता है।

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