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महिलाओं को रोजगार देने में पिछड़ा भारत! किस लिए ?…

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DESK : 19वीं सदी में भारत की पहली महिला स्नातक चंद्रमुखी बसु और कादंबिनी बोस को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के लिए काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। विश्वविद्यालय ने नियमित प्रवेश देने से मना कर दिया था। एक पूर्वग्रही प्रोफेसर ने गलत तरीके से एक महत्त्वपूर्ण विषय में फेल कर दिया और परीक्षा में सफल होने के पुरुषों की तुलना में बावजूद सफल विद्यार्थियों की सूची से बाहर कर दिया तो वही आज के समय में भी भारतीय में महिला को अभी भी उन दो अग्रदूतों की तरह कई कठिनाइयों का सामना करती है जब वह रोजगार की तलाश में तो करीब 10 में से 3 महिला को ही रोजगार मिल पाता है. और वही महिलाओं की तुलना में रोजगार पाने में सफल रहते है पुरुषों.

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बात करे अगर पुरुषों की तो करीब 10 में से 7 है। हाल में यह अंतराल और बढ़ गया है। महिलाओं की कम कार्यबल भागीदारी का शिक्षा के अलावा आय प्रभाव भी एक कारण है। मैरीलैंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ईशा चटर्जी, सोनाल्डे देसाई और रीव वेनमान के 2018 मे किए गए एक अध्ययन के अनुसार, यदि महिला रोकती है। के काम किए बिना ही परिवार की पर्याप्त आर्थिक आय है तो महिला के कार्यबल से बाहर रहने की पूरी संभावना है। अध्ययन में कहा गया है कि यह संस्कृति घर में रहने को बढ़ावा देती है और कई नौकरियों की अलग अलग प्रकृति महिलाओं को शिक्षा के बाद भी काम करने से है।

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महिलाओं को नौकरी ना मिलने का कारण उनमें शैक्षिक स्तर की कमी नहीं है बल्कि जानबूझकर महिलाओं को कार्यबल से बाहर रखा जाता है। जैसा कि महिलाओं की श्रम बल भागीदारी की दर बताती है। राज्य के आंकड़ों के विश्लेषण में बहुत ज्यादा अंतर दिखता है। सिक्किम में कार्यबल जनसंख्या अनुपात पुरुषों के लिए 77.4 फीसदी और महिलाओं के लिए 67.1 फीसदी है। भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश और लक्षद्वीप द्वीप समूह महिला में यह अंतर बहुत ज्यादा है। उत्तर की पूरी प्रदेश में केवल 14.5 फीसदी महिला स्नातक नौकरी करती हैं।

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कोरोनावायरस महामारी के देती कारण पुरुषों की तुलना में अलग महिलाओं को अधिक नौकरी का 1 को नुकसान हुआ। महिलाओं को रने से अधिक रोजगार देने वाले क्षेत्रों में आर्थिक संकट आना भी इसका एक मिलने कारण रहा है। लेकिन शिक्षित और बेरोजगार महिलाओं पर भारत आंकड़े एक प्रवृत्ति को दिखाते। जो महामारी से पहले होती है और सामान्य रूप से महिलाओं रोजगार के निराशाजनक दृष्टिक को उजागर करती है।

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