Electroconvulsive Therapy (ECT) गंभीर डिप्रेशन और मानसिक रोगों का एक प्रभावी इलाज है। जानें ECT कैसे काम करती है, इसके उपयोग, साइड इफेक्ट्स और आधुनिक प्रक्रिया कितनी सुरक्षित है। भ्रम दूर करें, सही जानकारी पाएं।
Electroconvulsive Therapy(ECT): मानसिक स्वास्थ्य का वो इलाज जिसे लेकर हैं सबसे ज्यादा भ्रम
क्या आपने कभी फिल्मों में देखा है जहाँ किसी मानसिक रोगी को बेहोश करके बिजली के झटके दिए जाते हैं और वह एक डरावनी प्रक्रिया से गुजरता है? अगर हाँ, तो आप अकेले नहीं हैं। इलेक्ट्रोकॉन्वल्सिव थेरेपी या ECT को लेकर आम जनता और यहाँ तक कि कुछ शिक्षित लोगों के मन में भी गहरी गलतफहमियाँ और डर बैठा हुआ है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज का ECT, उस ECT से बिल्कुल अलग है जो 70-80 साल पहले हुआ करता था? आज, यह मनोचिकित्सा की दुनिया में गंभीर और इलाज-प्रतिरोधी अवसाद (Treatment-Resistant Depression) तथा अन्य मानसिक बीमारियों के लिए एक सुरक्षित, वैज्ञानिक और अत्यधिक प्रभावी इलाज माना जाता है।
इस थेरेपी को लेकर फैली नकारात्मक छवि के पीछे इसके इतिहास और पुराने तरीके हैं। आज का ECT एक नियंत्रित, मानवीय और विज्ञान-आधारित प्रक्रिया है जिसे दुनिया भर की प्रतिष्ठित मनोरोग संस्थाएं, जैसे कि अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन (APA) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), मान्यता देती हैं। इस लेख में, हम ECT के बारे में फैले हर भ्रम को तोड़ेंगे। हम आपको बताएँगे कि आखिर ECT होता क्या है, यह कैसे काम करता है, इसकी आधुनिक प्रक्रिया क्या है, किन मरीजों के लिए यह फायदेमंद है, और इसके वास्तविक साइड इफेक्ट्स क्या हैं। हमारा उद्देश्य है कि आप इस महत्वपूर्ण चिकित्सा उपचार के बारे में तथ्यों पर आधारित सही जानकारी प्राप्त कर सकें।
इलेक्ट्रोकॉन्वल्सिव थेरेपी (ECT) क्या है? एक सिंहावलोकन
इलेक्ट्रोकॉन्वल्सिव थेरेपी, जिसे कभी-कभी ‘शॉक थेरेपी’ के नाम से भी जाना जाता है, एक मेडिकल प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल गंभीर मानसिक बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। इसमें मरीज के मस्तिष्क में एक संक्षिप्त electrical current पास करके एक नियंत्रित दौरा (Seizure) पैदा किया जाता है। यह दौरा सिर्फ कुछ सेकंड्स तक रहता है।
यह सुनने में भले ही डरावना लगे, लेकिन यही दौरा मस्तिष्क में रासायनिक और संरचनात्मक बदलाव लाता है जो मानसिक लक्षणों को ठीक करने में मददगार साबित होता है। ECT का इस्तेमाल तब किया जाता है जब:
- दवाएं (Antidepressants) काम नहीं कर रही हों।
- दवाओं के गंभीर साइड इफेक्ट्स हों।
- मरीज की हालत इतनी गंभीर हो कि तुरंत असर दिखाने वाले इलाज की जरूरत हो (जैसे आत्महत्या का खतरा होने पर)।
- मरीज दवा लेने में असमर्थ हो।
ECT का इतिहास: पुरानी छवि बनाम आधुनिक हकीकत
ECT की नकारात्मक छवि की जड़ें इसके शुरुआती दिनों में हैं। इसे 1930 के दशक में पेश किया गया था। उस समय, यह प्रक्रिया बहुत ही crude थी:
- बिना एनेस्थीसिया के: मरीजों को बिना बेहोश किए ही झटके दिए जाते थे।
- हाई-डोज करंट: बहुत ज्यादा मात्रा में बिजली का करंट दिया जाता था।
- शारीरिक चोट का खतरा: अनियंत्रित दौरे की वजह से मरीजों की हड्डियाँ टूटने का खतरा रहता था।
लेकिन, आधुनिक ECT इन सब चीजों से बिल्कुल अलग है। इसमें मरीज की सुरक्षा और आराम को सबसे ऊपर रखा जाता है। आज की ECT प्रक्रिया में:
- जनरल एनेस्थीसिया: मरीज को पूरी तरह से सुला दिया जाता है, इसलिए उन्हें प्रक्रिया के दौरान किसी तरह का दर्द या तकलीफ महसूस नहीं होती।
- मसल रिलैक्सेंट: मरीज को एक muscle relaxant दवा दी जाती है, जिससे दौरे के दौरान शरीर में ऐंठन नहीं होती और चोट लगने का खतरा खत्म हो जाता है। शरीर सिर्फ हल्का सा हिलता है।
- लो-डोज और प्रीसाइज करंट: बिजली की मात्रा को बहुत कम और नियंत्रित कर दिया गया है। करंट की timing और intensity को मरीज की जरूरत के हिसाब से सेट किया जाता है।
- पूरी मॉनिटरिंग: पूरी प्रक्रिया के दौरान मरीज के दिल की धड़कन, ब्लड प्रेशर, दिमाग की तरंगों (EEG) और ऑक्सीजन लेवल पर नजर रखी जाती है।
ECT कैसे काम करती है? विज्ञान behind the Therapy
ECT मस्तिष्क में कैसे बदलाव लाती है, इसका पूरा mechanism अभी तक पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है, लेकिन माना जाता है कि यह निम्नलिखित तरीकों से काम करती है:
- न्यूरोट्रांसमीटर में बदलाव: ECT मस्तिष्क में मौजूद रासायनिक दूतों (Neurotransmitters) जैसे सेरोटोनिन, डोपामाइन और नॉरएपिनेफ्रिन के स्तर और कामकाज को प्रभावित करती है। ये वही केमिकल्स हैं जो मूड को regulate करते हैं और जिनमें असंतुलन के कारण अवसाद जैसे रोग होते हैं।
- मस्तिष्क की संरचना और कनेक्टिविटी में सुधार: रिसर्च से पता चला है कि गंभीर अवसाद से पीड़ित लोगों के मस्तिष्क के कुछ हिस्सों (जैसे हिप्पोकैम्पस) में सिकुड़न आ जाती है। ECT मस्तिष्क की कोशिकाओं (न्यूरॉन्स) के बीच नए कनेक्शन बनाने और मस्तिष्क के उन हिस्सों के volume को बढ़ाने में मदद कर सकती है। यह neuroplasticity को बढ़ावा देती है।
- न्यूरोएंडोक्राइन सिस्टम पर असर: ECT मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस-पिट्यूटरी-एड्रेनल (HPA) अक्ष को प्रभावित करती है, जो तनाव की प्रतिक्रिया को नियंत्रित करता है। अवसाद में यह अक्ष अति सक्रिय हो जाता है, और ECT इसे सामान्य करने में मदद करती है।
सीधे शब्दों में कहें तो, ECT मस्तिष्क की “रीसेट” बटन की तरह काम करती है, जो मस्तिष्क के रसायनों और सर्किटरी में गड़बड़ी को ठीक करने का काम करती है।
किन मानसिक रोगों में ECT का इस्तेमाल होता है?
ECT एक विशेषज्ञता वाला इलाज है और इसका इस्तेमाल हर मानसिक रोग में नहीं किया जाता। इसके मुख्य उपयोग इस प्रकार हैं:
- गंभीर, इलाज-प्रतिरोधी अवसाद (Major Depressive Disorder): यह ECT का सबसे आम उपयोग है। जब multiple antidepressants काम नहीं करते, या मरीज में आत्महत्या का तीव्र विचार या कोशिश हो, तो ECT बहुत तेजी से और प्रभावी ढंग से काम कर सकती है।
- गंभीर मैनिया (Bipolar Disorder): बाइपोलर डिसऑर्डर के उस चरण में जब मरीज को तीव्र उन्माद (Mania) का दौरा पड़ता है, जिसमें वह बहुत ज्यादा एक्टिव, बातूनी, aggressive या खतरनाक decision लेने लगता है, तो ECT से जल्दी आराम मिल सकता है।
- कैटाटोनिया (Catatonia): यह एक गंभीर स्थिति है जिसमें मरीज बिल्कुल हिलता-डुलता नहीं है, बोलता नहीं है, या फिर बहुत अजीब तरह से हिलता-डुलता है। ECT इस स्थिति में बहुत प्रभावी साबित हुई है।
- सिज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia): खासकर तब जब इसके लक्षणों में मनोविकृति (Psychosis) के साथ-साथ गंभीर अवसाद या कैटाटोनिया शामिल हो।
- मनोविकृति (Psychosis) जो किसी अन्य बीमारी के कारण हुई हो।
ECT की आधुनिक प्रक्रिया: स्टेप बाय स्टेप
आधुनिक ECT एक बहुत ही systematic और safe प्रक्रिया है, जो निम्नलिखित steps में पूरी की जाती है:
- पूर्ण मूल्यांकन (Comprehensive Evaluation): सबसे पहले, मनोचिकित्सक मरीज की पूरी मेडिकल और मानसिक हिस्ट्री लेते हैं। शारीरिक जांच, ब्लड टेस्ट, ECG और कभी-कभी MRI या CT स्कैन भी किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मरीज ECT के लिए fit है।
- सहमति (Informed Consent): मरीज और उसके परिवार को प्रक्रिया के हर पहलू – फायदे, नुकसान, विकल्प और साइड इफेक्ट्स के बारे में पूरी जानकारी दी जाती है। उनकी लिखित सहमति (consent) लेने के बाद ही इलाज शुरू किया जाता है।
- प्रक्रिया से पहले की तैयारी (Pre-Procedure):
- मरीज को प्रक्रिया से 6-8 घंटे पहले कुछ भी खाने-पीने को मना किया जाता है (Fasting)।
- प्रक्रिया से ठीक पहले, मरीज को एक IV line (नस में सूई) के जरिए शॉर्ट-एक्टिंग एनेस्थेटिक दवा दी जाती है, जिससे वह पूरी तरह सो जाता है।
- इसके बाद एक muscle relaxant दवा दी जाती है।
- उपचार (The Treatment):
- मरीज के सो जाने के बाद, डॉक्टर मरीज के सिर पर electrodes लगाते हैं। इन्हें सही जगह लगाने के लिए एक जेल लगाई जाती है।
- डॉक्टर एक प्रीसाइज electrical stimulus देते हैं, जो मस्तिष्क में एक दौरा पैदा करता है। यह दौरा सिर्फ कुछ सेकंड्स (30-60 सेकंड) तक रहता है।
- मरीज के शरीर पर muscle relaxant का असर होने के कारण, दौरे के दौरान सिर्फ हाथ-पैर की उंगलियों या पैरों में हल्का सा हिलना देखा जा सकता है।
- रिकवरी (Recovery):
- प्रक्रिया पूरी होने के बाद मरीज को रिकवरी रूम में ले जाया जाता है, जहाँ वह एनेस्थीसिया के असर से उबरता है। यह प्रक्रिया 15-20 मिनट में पूरी हो जाती है।
- मरीज को एक घंटे के अंदर होश आ जाता है, लेकिन उसे कुछ देर के लिए confusion या भूलने की समस्या हो सकती है, जो कुछ घंटों में ठीक हो जाती है।
ECT के साइड इफेक्ट्स और जोखिम
हर medical procedure की तरह ECT के भी कुछ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। हालाँकि, आधुनिक तकनीक से इन्हें काफी कम किया जा चुका है।
- भौतिक साइड इफेक्ट्स (Physical Side Effects):
- सिरदर्द
- मांसपेशियों में दर्द
- जी मिचलाना
- दिल की धड़कन का irregular होना (बहुत कम मामलों में)
- ये लक्षण आमतौर पर हल्के होते हैं और कुछ घंटों में ठीक हो जाते हैं।
- संज्ञानात्मक साइड इफेक्ट्स (Cognitive Side Effects): ये ECT के सबसे common साइड इफेक्ट्स हैं।
- भ्रम (Confusion): उपचार के तुरंत बाद मरीज को कुछ देर (मिनटों से लेकर घंटों तक) के लिए भ्रम की स्थिति हो सकती है कि वह कहाँ है और क्या हो रहा है।
- याददाश्त में कमी (Memory Loss): यह दो तरह का हो सकता है:
- रेट्रोग्रेड एमनेशिया (Retrograde Amnesia): उपचार से ठीक पहले के हफ्तों या महीनों की घटनाएँ याद न आना। कुछ मरीजों को ECT का कोर्स पूरा करने के बाद भी इलाज से पहले के कुछ महीनों की यादें धुंधली लग सकती हैं।
- एंटरोग्रेड एमनेशिया (Anterograde Amnesia): नई बातें याद रखने में कठिनाई होना। यह समस्या आमतौर पर ECT का कोर्स खत्म होने के कुछ हफ्तों बाद ठीक हो जाती है।
यह समझना जरूरी है कि ज्यादातर मरीजों में ये स्मृति संबंधी समस्याएँ अस्थायी होती हैं और कुछ हफ्तों या महीनों में ठीक हो जाती हैं। ECT से permanent brain damage होने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
ECT एक जीवनरक्षक उपचार है, भय का कारण नहीं
इलेक्ट्रोकॉन्वल्सिव थेरेपी आज मनोचिकित्सा के सबसे शक्तिशाली और प्रभावी उपचारों में से एक है। यह उन लाखों लोगों के लिए आशा की किरण है जो गंभीर मानसिक बीमारियों से जूझ रहे हैं और जिन्हें traditional दवाओं से कोई राहत नहीं मिली है। ECT को लेकर फिल्मों और मीडिया में फैलाई गई डरावनी और गलत छवि ने इसके बारे में जनता के बीच एक unnecessary stigma पैदा कर दिया है।
असली दुनिया में, ECT एक सुरक्षित, विनियमित और दयापूर्ण प्रक्रिया है जो एक trained medical team द्वारा hospital के controlled environment में की जाती है। अगर आप या आपका कोई अपना गंभीर अवसाद या कोई अन्य मानसिक बीमारी से पीड़ित है और सभी दवाएं fail हो चुकी हैं, तो ECT के बारे में किसी qualified मनोचिकित्सक से सलाह लेने में संकोच न करें। यह इलाज नहीं, बल्कि बीमारी है जो पीड़ा देती है। और ECT, उस पीड़ा से मुक्ति दिलाने का एक वैज्ञानिक और प्रमाणित रास्ता है।
FAQs
1. क्या ECT का इलाज दर्दनाक है?
बिल्कुल नहीं। क्योंकि ECT पूरी तरह से जनरल एनेस्थीसिया (बेहोश करने की दवा) के साथ दी जाती है, मरीज को प्रक्रिया के दौरान कोई दर्द महसूस नहीं होता। मरीज सोता है और जागने पर उसे पता भी नहीं चलता कि प्रक्रिया हो चुकी है। होश आने के बाद हल्का सिरदर्द या body ache हो सकता है, जो कि सामान्य है।
2. ECT का कोर्स कितने समय तक चलता है?
ECT का एक कोर्स आमतौर पर 6 से 12 सत्रों का होता है। इन सत्रों को हफ्ते में 2-3 बार दिया जाता है। कुछ मरीजों को कुछ ही सत्रों में ही बहुत फायदा महसूस होने लगता है। long-term maintenance के लिए कभी-कभी कम frequency पर सत्र जारी रखे जा सकते हैं।
3. क्या ECT के बाद मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाता है?
ECT के बाद बहुत से मरीजों के लक्षणों में बहुत हद तक सुधार होता है या वे पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं। हालाँकि, ECT अक्सर बीमारी को ठीक (cure) नहीं करती, बल्कि इसके लक्षणों को control करती है। इसलिए, ECT के बाद मरीजों को relapse (बीमारी के लौटने) से बचाने के लिए दवाएं या काउंसलिंग जारी रखनी पड़ सकती है।
4. ECT की लागत (cost) कितनी है?
ECT की लागत hospital, शहर और सत्रों की संख्या पर निर्भर करती है। भारत में, एक ECT सत्र की कीमत ₹2,500 से ₹10,000 के बीच हो सकती है। कुछ सरकारी अस्पतालों में यह सस्ती भी हो सकती है। इसमें एनेस्थेटिस्ट की फीस, दवाइयाँ और hospital के charges शामिल होते हैं।
5. क्या ECT से दिमाग को स्थायी नुकसान (permanent brain damage) होता है?
नहीं, आधुनिक ECT से दिमाग को स्थायी नुकसान होने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। हाँ, याददाश्त में कुछ समय के लिए दिक्कत हो सकती है, जैसा कि ऊपर बताया गया है, लेकिन यह ज्यादातर मामलों में अस्थायी होती है और समय के साथ ठीक हो जाती है।
6. क्या ECT के बाद मरीज normal life जी सकता है?
बिल्कुल। ECT का मुख्य उद्देश्य ही मरीज को उसकी normal life में वापस लाना है। इलाज पूरा होने और recovery period के बाद, मरीज अपनी routine activities, job और relationships में वापस लौट सकता है। कई मरीज ECT के बाद पहले से भी बेहतर और productive life जीते हैं।
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