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James Webb Telescope’s को मिली नई रोशनी

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comparison showing the improvement in James Webb Space
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Australian Scientists ने एक लाख किमी दूर स्थित James Webb Telescope की दृष्टि सुधारने में कामयाबी हासिल की। जानें इस अद्भुत तकनीक के पीछे का विज्ञान और इसके महत्व को।

‘धुंधली’ तस्वीरों का राज-James Webb Telescope

10 लाख किलोमीटर दूर से कैसे सुधारी गई जेम्स वेब टेलीस्कोप की ‘नजर’? ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों की ऐतिहासिक उपलब्धि की पूरी कहानी

James Webb Telescope (JWST) ने ब्रह्मांड की जो अद्भुत और रहस्यमय तस्वीरें हमें दिखाई हैं, वो दुनिया को हैरान कर देने वाली हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस टेलीस्कोप की शानदार ‘नजर’ को और भी ज्यादा तेज और साफ करने में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के वैज्ञानिकों का योगदान रहा है? इनमें एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों की रही है। है ना आश्चर्य की बात? भला पृथ्वी से लगभग 10 लाख किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में मौजूद एक दूरबीन की दृष्टि को धरती पर बैठकर कैसे सुधारा जा सकता है?

यह कोई साधारण काम नहीं, बल्कि विज्ञान और तकनीक का एक अद्भुत नमूना है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे ऑस्ट्रेलिया की कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (CSIRO) के वैज्ञानिकों ने एक शानदार तकनीक का इस्तेमाल करके JWST के मिरर सिस्टम की कैलिब्रेशन में सुधार किया, जिससे इसकी तस्वीरों की क्वालिटी और भी बेहतर हो गई। चलिए, इस पूरी प्रक्रिया को step-by-step समझते हैं।

James Webb Telescope: ब्रह्मांड की खिड़की

सबसे पहले JWST के बारे में थोड़ा जान लेते हैं। यह दुनिया का सबसे शक्तिशाली और जटिल अंतरिक्ष टेलीस्कोप है, जिसे NASA, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी (CSA) ने मिलकर बनाया है। यह हबल टेलीस्कोप का उत्तराधिकारी है और इसका मुख्य काम ब्रह्मांड के सबसे पुराने तारों और आकाशगंगाओं का पता लगाना, तारों के जन्म की प्रक्रिया को समझना, और दूसरे ग्रहों के वातावरण का अध्ययन करना है।

JWST पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर, ‘सन-अर्थ लैग्रेंज पॉइंट 2’ (L2) नामक एक विशेष स्थान पर स्थित है। इसकी सबसे खास बात है इसका 6.5 मीटर व्यास वाला सोने से लेपित विशाल मुख्य दर्पण, जो 18 छोटे-छोटे षट्कोणीय दर्पणों से मिलकर बना है। ये दर्पण इतने संवेदनशील हैं कि इन्हें ब्रह्मांड से आने वाली बेहद मंद Infrared किरणों (गर्मी के संकेतों) को पकड़ने के लिए डिजाइन किया गया है।

समस्या क्या थी? दूरबीन की ‘धुंधली नजर’ का सवाल

अब सवाल उठता है कि आखिर इस शानदार टेलीस्कोप की दृष्टि सुधारने की जरूरत क्यों पड़ी? दरअसल, JWST का प्राथमिक मिरर यानी मुख्य दर्पण बेहद जटिल है। हालांकि इसे लॉन्च से पहले पूरी तरह से कैलिब्रेट और एलाइन किया गया था, लेकिन अंतरिक्ष के कठोर माहौल (जैसे तापमान में उतार-चढ़ाव और माइक्रो-मीटरोइड impacts) में लंबे समय तक काम करने के बाद, दर्पणों की स्थिति में बहुत ही सूक्ष्म बदलाव आ सकते हैं। मान लीजिए कि एक दर्पण अपनी जगह से मानव बाल के व्यास के दस हजारवें हिस्से जितना भी खिसक जाए, तो इसका सीधा असर टेलीस्कोप द्वारा ली गई तस्वीरों की स्पष्टता पर पड़ता है। यह वैसा ही है जैसे कैमरे का लेंस थोड़ा सा भी ऑफ-फोकस हो जाए, तो तस्वीर धुंधली हो जाती है।

इसी ‘फोकस’ को बारीकी से समायोजित करने और दर्पणों की सही स्थिति सुनिश्चित करने की प्रक्रिया को ‘फाइन-फेज एलाइनमेंट’ कहा जाता है। और यहीं पर ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने अपनी भूमिका निभाई।

ऑस्ट्रेलियाई समाधान: धरती से छूटी लेजर, अंतरिक्ष में सुधरी नजर

CSIRO के वैज्ञानिकों ने JWST के मिररों के फोकस को जांचने और सही करने के लिए एक अनोखी ‘लीड-स्टार’ तकनीक का इस्तेमाल किया। इस पूरी प्रक्रिया को हम आसान steps में समझ सकते हैं:

  1. लेजर गाइड स्टार का सिद्धांत: बड़े-बड़े ग्राउंड-बेस्ड टेलीस्कोप पृथ्वी के वायुमंडल की अशांति (टर्ब्युलेंस) की वजह से होने वाली तस्वीरों की धुंधलकाहट को दूर करने के लिए ‘लेजर गाइड स्टार’ तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। इसमें एक शक्तिशाली लेजर बीम को आकाश में छोड़ा जाता है, जो वायुमंडल की ऊपरी परतों में परमाणुओं से टकराकर एक कृत्रिम “तारा” बना देता है। टेलीस्कोप इस कृत्रिम तारे की ‘फिजूलबत्ती’ जैसी छवि को देखकर वायुमंडल के विरूपण को मापता है और अपने दर्पणों का आकार बदलकर (एडाप्टिव ऑप्टिक्स की मदद से) इसके प्रभाव को ठीक कर लेता है।
  2. तकनीक का JWST पर अनुकूलन: ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने इसी सिद्धांत को JWST के लिए एडजस्ट किया, लेकिन एक अलग तरीके से। उन्होंने JWST के कैलिब्रेशन को चेक करने के लिए एक जाना-पहचाना, चमकीला और स्थिर खगोलीय स्रोत (जैसे कोई विशिष्ट तारा) इस्तेमाल किया। हालांकि, यहाँ ‘गाइड स्टार’ प्राकृतिक था।
  3. डीप स्पेस नेटवर्क की भूमिका: CSIRO ऑस्ट्रेलिया में ‘कैनबरा डीप स्पेस कम्युनिकेशन कॉम्प्लेक्स’ को संचालित करता है, जो NASA की डीप स्पेस नेटवर्क (DSN) का एक अहम हिस्सा है। यही वह जमीनी ठिकाना है जो JWST के साथ सीधा संपर्क बनाए रखता है – डेटा भेजता और प्राप्त करता है।
  4. प्रक्रिया का संचालन: वैज्ञानिकों ने JWST को निर्देश दिए कि वह चुने हुए उज्ज्वल तारे की बहुत ही सटीक तस्वीरें ले। JWST ने यह डेटा रेडियो सिग्नल के रूप में पृथ्वी पर CSIRO के विशाल डिश एंटीना पर भेजा। इसके बाद, वैज्ञानिकों ने इस डेटा का गहन विश्लेषण किया। उन्होंने जांचा कि तारे की छवि कितनी साफ और केंद्रित है। अगर छवि में थोड़ी सी भी धुंधलकाहट या विकृति दिखाई दी, तो इसका मतलब था कि टेलीस्कोप के दर्पण पूरी तरह से संरेखित नहीं हैं।
  5. सुधारात्मक कार्रवाई: इस विश्लेषण के आधार पर, वैज्ञानिकों ने गणना की कि दर्पणों को किस दिशा में और कितना समायोजित करने की जरूरत है। फिर, इन नए कैलिब्रेशन निर्देशों को CSIRO के डिश के जरिए वापस JWST पर भेज दिया गया। JWST के इंजीनियरों ने इन निर्देशों का इस्तेमाल करके दर्पणों के एक्ट्यूएटर्स (सूक्ष्म मोटर) को सक्रिय किया, जिससे दर्पणों की स्थिति में सूक्ष्म समायोजन हुआ और टेलीस्कोप का फोकस दोबारा परफेक्ट हो गया।

इस सफलता का क्या महत्व है?

यह उपलब्धि कई कारणों से बेहद महत्वपूर्ण है:

  • दूर से समस्या निवारण: इसने यह साबित कर दिया कि पृथ्वी से लाखों किलोमीटर दूर स्थित एक अत्यंत संवेदनशील उपकरण में आई मामूली खराबी को भी दूर से ठीक किया जा सकता है। यह भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए एक बड़ी सीख है।
  • वैज्ञानिक डेटा की गुणवत्ता में सुधार: इस समायोजन के बाद JWST द्वारा ली गई तस्वीरें और प्राप्त स्पेक्ट्रोस्कोपिक डेटा और भी ज्यादा सटीक और विश्वसनीय हो गए। इससे ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने में और मदद मिलेगी।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की मिसाल: यह पूरी परियोजना दुनिया भर के वैज्ञानिकों के बीच सहयोग का एक शानदार उदाहरण है, जहां ऑस्ट्रेलिया जैसे देश ने अपनी तकनीकी क्षमता से एक वैश्विक मिशन में अहम योगदान दिया।

FAQs

1. क्या Australian Scientist ने JWST के दर्पणों को फिजिकली ठीक किया?
नहीं, बिल्कुल नहीं। उन्होंने पृथ्वी पर बैठकर डेटा का विश्लेषण किया और James Webb Telescope को ऐसे निर्देश भेजे, जिनके आधार पर टेलीस्कोप के अपने इंजीनियरिंग सिस्टम ने खुद ही दर्पणों का सूक्ष्म समायोजन किया।

2. JWST पृथ्वी से कितनी दूर है और संपर्क में कैसे रहता है?
JWST पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर सन-अर्थ L2 पॉइंट पर स्थित है। यह NASA की डीप स्पेस नेटवर्क (DSN) के विशाल रेडियो एंटीना के जरिए पृथ्वी के साथ लगातार संपर्क बनाए रखता है, जिनमें से एक ऑस्ट्रेलिया के कैनबरा में है।

3. क्या यह तकनीक भविष्य के अन्य टेलीस्कोप के लिए उपयोगी होगी?
हां, बिल्कुल। इस सफलता से भविष्य के अंतरिक्ष टेलीस्कोप, विशेष रूप से वे जिनके दर्पण और भी बड़े और जटिल होंगे, के रिमोट कैलिब्रेशन और मेंटेनेंस के लिए एक महत्वपूर्ण blueprint मिल गया है।

4. क्या JWST की तस्वीरें पहले धुंधली थीं?
नहीं, ऐसा नहीं है। JWST ने शुरू से ही शानदार तस्वीरें लीं। लेकिन किसी भी जटिल ऑप्टिकल सिस्टम में समय के साथ सूक्ष्म समायोजन की आवश्यकता होती है। ऑस्ट्रेलियाई टीम ने इन सूक्ष्म समायोजनों में मदद की, जिससे तस्वीरों की गुणवत्ता और भी बेहतर हुई।

5. इस पूरी प्रक्रिया में सबसे बड़ी चुनौती क्या थी?
सबसे बड़ी चुनौती लाखों किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक उपकरण के ऑप्टिकल सिस्टम में माइक्रोन-लेवल की गलतियों का सटीक पता लगाना और फिर उन्हें ठीक करने के लिए बिल्कुल सही निर्देश भेजना था। इसमें अत्याधुनिक कम्प्यूटेशनल मॉडल और सटीक डेटा विश्लेषण की जरूरत पड़ी।

6. क्या भारत के वैज्ञानिकों ने भी JWST प्रोजेक्ट में कोई भूमिका निभाई है?
हालांकि भारत ने सीधे तौर पर JWST के निर्माण या लॉन्च में भागीदारी नहीं की, लेकिन दुनिया भर के कई भारतीय मूल के वैज्ञानिक और इंजीनियर इस प्रोजेक्ट से जुड़े रहे हैं। साथ ही, JWST के डेटा का उपयोग करने वाली अंतर्राष्ट्रीय शोध टीमों में भारतीय खगोलविज्ञानी भी शामिल हैं।

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