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Japan’s Akatsuki Spacecraft ने तोड़ा दम,Venus पर शोध रुका

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Akatsuki spacecraft
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जापानी अंतरिक्ष एजेंसी JAXA ने Venus ऑर्बिटर Akatsuki को मृत घोषित किया। जानें कैसे इस यान ने 2010 में विफलता के बाद भी 9 साल तक शुक्र ग्रह के रहस्यों को उजागर किया।

Akatsuki का विदाई:शुक्र ग्रह का एक विश्वस्तर अब खामोश हो गया

हमारे सौर मंडल का एक और गहरा रहस्य अब अनसुलझा रह गया है। जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) ने आधिकारिक तौर पर अपने ऐतिहासिक वीनस क्लाइमेट ऑर्बिटर, ‘Akatsuki’ (जिसका अर्थ है ‘भोर’) को मृत घोषित कर दिया है। यह वह अंतरिक्ष यान था जिसने अपने जीवनकाल में न केवल शुक्र ग्रह के बारे में हमारी समझ को गहरा किया, बल्कि इंसानी हौसले और तकनीकी सूझबूझ की एक ऐसी मिसाल कायम की जो सदियों तक याद रखी जाएगी। अकात्सुकी की कहानी सिर्फ एक अंतरिक्ष मिशन की नहीं, बल्कि एक ‘फीनिक्स’ के उठ खड़े होने की कहानी है, जो असफलता की राख से भी जीवन पाकर अपने लक्ष्य तक पहुँच गया।

शुक्र ग्रह, जो पृथ्वी का ‘जुड़वाँ’ कहलाता है, आज भी वैज्ञानिकों के लिए एक पेचीदा पहेली बना हुआ है। उसका घना, जहरीला वातावरण, बादल जो सल्फ्यूरिक एसिड के बने हैं, और भयंकर ग्रीनहाउस प्रभाव ने हमेशा से ही उसे एक रहस्यमयी दुनिया बनाए रखा है। अकात्सुकी हमारी उस जिज्ञासा की आवाज थी, जो शुक्र के उन बादलों के पार झाँककर यह जानना चाहती थी कि आखिर पृथ्वी से इतना मिलता-जुलता होने के बावजूद यह ग्रह एक नर्क कैसे बन गया। इस लेख में, हम अकात्सुकी की इसी शानदार यात्रा को विस्तार से जानेंगे – उसकी शुरुआत, बड़ी विफलता, अद्भुत वापसी, और वे महत्वपूर्ण खोजें जो इसने हमें दीं।

अकात्सुकी मिशन: शुक्र के रहस्यों को सुलझाने का सपना

अकात्सुकी को 20 मई, 2010 को जापान के तनेगाशिमा स्पेस सेंटर से H-IIA रॉकेट के जरिए लॉन्च किया गया था। इसका मुख्य लक्ष्य शुक्र ग्रह के वातावरण का व्यापक अध्ययन करना था। वैज्ञानिक यह समझना चाहते थे कि शुक्र का वातावरण इतना चरम और हिंसक क्यों है। इसके मुख्य उद्देश्य थे:

  • शुक्र के वातावरण की स्तरित संरचना (stratification) का पता लगाना।
  • उसकी सतह और वातावरण के बीच ऊर्जा के आदान-प्रदान को समझना।
  • ‘सुपर रोटेशन’ की घटना को डीकोड करना – यह वह अविश्वसनीय घटना है जहाँ शुक्र का वातावरण ग्रह本身的 की तुलना में 60 गुना तेजी से चक्कर लगाता है।
  • शुक्र के बादलों और उनमें मौजूद सल्फ्यूरिक एसिड के रसायन विज्ञान का अध्ययन करना।
  • ग्रह की सतह पर सक्रिय ज्वालामुखियों के any संकेत की तलाश करना।

वह ऐतिहासिक विफलता: जब बर्बाद होता दिखा सब कुछ

अकात्सुकी की कहानी में सबसे नाटकीय मोड़ तब आया जब यह 7 दिसंबर, 2015 को शुक्र की कक्षा में प्रवेश करने वाला था। यह पूरी तैयारी के साथ हुआ। यान ने अपना मुख्य इंजन (Orbital Maneuvering Engine) जलाया ताकि वह शुक्र के गुरुत्वाकर्षण में धीमा होकर capture हो सके। लेकिन तभी एक बड़ी तकनीकी खराबी हो गई।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, इंजन के नोजल में एक वाल्व खराब हो गया या बंद हो गया, जिसके कारण ज़हरीला ऑक्सीडाइज़र (oxidizer) का प्रवाह बाधित हुआ। इससे इंजन में भारी दबाव बना और वह फट गया। इंजन ने काम करना बंद कर दिया। अकात्सुकी शुक्र के पास से गुजर गया और अंतरिक्ष की गहराई में खो गया। ऐसा लगा कि मिशन पूरी तरह से विफल हो गया है और करोड़ों डॉलर और सालों की मेहनत पर पानी फिर गया है।

JAXA की सूझबूझ और अकात्सुकी की अद्भुत वापसी

लेकिन JAXA के इंजीनियरों ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक अभूतपूर्व ‘rescue mission’ की योजना बनाई। अकात्सुकी में मुख्य इंजन के अलावा छोटे अटिट्यूड कंट्रोल थ्रस्टर्स (RCS thrusters) भी लगे हुए थे, जिनका इस्तेमाल मुख्य रूप से यान की दिशा बदलने के लिए किया जाता था।

इंजीनियरों ने फैसला किया कि वे इन्हीं छोटे और कम शक्तिशाली थ्रस्टर्स का इस्तेमाल करके अकात्सुकी को वापस शुक्र की ओर ले जाएंगे। यह एक बेहद जोखिम भरा और मुश्किल काम था, क्योंकि इन थ्रस्टर्स को लंबे समय तक लगातार जलाना पड़ता। उन्होंने अगले पांच साल तक अकात्सुकी को सूर्य की कक्षा में घुमाया, धीरे-धीरे उसकी राह बदली, और आखिरकार 7 दिसंबर, 2015 को – पहली कोशिश के ठीक पांच साल बाद – अकात्सुकी ने अपने RCS थ्रस्टर्स की मदद से सफलतापूर्वक शुक्र की कक्षा में प्रवेश कर लिया। यह अंतरिक्ष इतिहास में एक अविस्मरणीय क्षण था।

Akatsuki की मुख्य खोजें और वैज्ञानिक योगदान

हालाँकि अकात्सुकी अपनी planned कक्षा में नहीं था, लेकिन उसने शुक्र के बारे में कई महत्वपूर्ण खोजें कीं:

  • वायुमंडलीय सुपर रोटेशन का विश्लेषण: अकात्सुकी ने शुक्र के वातावरण की विशाल तरंगों और अशांत हवाओं की detailed images लीं, जिससे वैज्ञानिकों को सुपर रोटेशन की शक्ति के स्रोत को समझने में मदद मिली।
  • स्थायी ध्रुवीय भंवर (Polar Vortex) की पुष्टि: यान ने शुक्र के दक्षिणी ध्रुव पर एक विशाल, स्थायी और डबल-आई (double-eyed) वाली भंवर (vortex) की खोज की और उसका अध्ययन किया। यह भंवर ग्रह के वायुमंडलीय dynamics की समझ के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
  • रहस्यमयी गुरुत्वाकर्षण तरंगें (Gravity Waves): अकात्सुकी ने शुक्र के वातावरण में गुरुत्वाकर्षण तरंगों के सबूत खोजे। ये तरंगें सतह की स्थलाकृति (topography) द्वारा वातावरण में बनती हैं और हमें सतह और वातावरण के बीच की बातचीत के बारे में बताती हैं।
  • बादलों की संरचना और गतिशीलता: इसके कैमरों ने शुक्र के घने बादलों की multiple layers और उनमें होने वाली तेज गतिविधियों को कैद किया।
  • संभावित सक्रिय ज्वालामुखी: कुछ आँकड़ों ने यह संकेत दिया कि शुक्र की सतह पर अभी भी ज्वालामुखी सक्रिय हो सकते हैं, हालाँकि इसकी पुष्टि अभी बाकी है।

मिशन का अंत: आखिर क्यों खत्म हुआ Akatsuki?

कोई भी मशीन अनंत काल तक नहीं चल सकती, खासकर शुक्र जैसे कठोर वातावरण के पास। पिछले कुछ महीनों से, JAXA के इंजीनियरों ने अकात्सुकी से संपर्क खोना शुरू कर दिया था। यान का attitude control खराब हो गया था, जिसके कारण उसका एंटीना पृथ्वी की ओर नहीं रह गया था और बैटरी को रिचार्ज करने के लिए जरूरी सोलर पैनल्स भी सूरज की ओर नहीं थे।

आखिरकार, JAXA ने घोषणा की कि उसने यान के साथ सभी संचार खो दिए हैं और अब उसे पुनर्जीवित करना असंभव है। ऐसा माना जा रहा है कि यान की बैटरी ने अंततः पूरी तरह से अपनी शक्ति खो दी, जिससे यह हमेशा के लिए खामोश हो गया। अब यह शुक्र की कक्षा में एक मूक परिक्रमक के रूप में लाखों सालों तक चक्कर लगाता रहेगा।

एक विरासत जो हमेशा जिंदा रहेगी

अकात्सुकी का अंत एक उदासी भरा क्षण है, लेकिन इसकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी। इस मिशन ने हमें सिखाया कि असफलता अंत नहीं होती। इंसानी दृढ़ संकल्प और इंजीनियरिंग की बदौलत, एक मरता हुआ मिशन भी नया जीवन पा सकता है और अपने लक्ष्यों से कहीं आगे तक जा सकता है।

अकात्सुकी ने न केवल शुक्र के बारे में हमारा दृष्टिकोण बदल दिया, बल्कि इसने भविष्य के वीनस मिशनों, जैसे कि NASA के DAVINCI और VERITAS, और ESA के EnVision मिशनों के लिए एक मजबूत आधार भी तैयार किया है। यह एक ऐसा torchbearer था जिसने अंधेरे में रोशनी की और हमें बताया कि हमारा ‘जुड़वाँ’ भाई कितना जटिल और दिलचस्प है। अकात्सुकी की यह खामोशी हमें हमेशा याद दिलाती रहेगी कि खोज की भावना कभी मरती नहीं है, और एक यान की आवाज़ बंद होने का मतलब विज्ञान की यात्रा का रुकना नहीं है।


FAQs

1. Akatsuki यान का पूरा नाम क्या था?
अकात्सुकी का पूरा नाम ‘वीनस क्लाइमेट ऑर्बिटर’ (Venus Climate Orbiter) था। ‘अकात्सुकी’ एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ ‘भोर’ (Dawn) होता है।

2. क्या अकात्सुकी शुक्र ग्रह की सतह पर उतरा था?
नहीं, अकात्सुकी एक ऑर्बिटर (परिक्रमा करने वाला यान) था। इसका उद्देश्य शुक्र ग्रह की सतह पर नहीं, बल्कि उसके वातावरण और जलवायु का अध्ययन करना था। यह शुक्र के चारों ओर चक्कर लगाता रहा।

3. क्या अकात्सुकी का मिशन पूरी तरह विफल था?
बिल्कुल नहीं! इसके विपरीत, इसे एक शानदार सफलता माना जाता है। हालाँकि इसने अपनी मूल योजना के अनुसार शुक्र की कक्षा में प्रवेश नहीं किया, लेकिन इंजीनियरों ने इसे बचाया और इसने 2015 से 2024 तक लगभग 9 साल तक शुक्र का अध्ययन किया और बहुमूल्य डेटा भेजा।

4. अकात्सुकी के बाद अब शुक्र के लिए और कौन से मिशन planned हैं?
हाँ, भविष्य में शुक्र के लिए कई रोमांचक मिशन planned हैं। NASA के दो मिशन हैं – DAVINCI+ (वायुमंडलीय अध्ययन) और VERITAS (सतह का मानचित्रण)। European Space Agency (ESA) का एक मिशन है – EnVision, जो ग्रह की सतह और वातावरण का व्यापक अध्ययन करेगा।

5. क्या अकात्सुकी शुक्र ग्रह से टकराएगा?
अब जबकि यान नियंत्रण से बाहर है, यह संभव है कि भविष्य में यह धीरे-धीरे अपनी कक्षा से हटकर शुक्र के वातावरण में प्रवेश कर जाए और जलकर नष्ट हो जाए। लेकिन ऐसा होने में अभी कई साल, यहाँ तक कि दशक भी लग सकते हैं।

6. अकात्सुकी की सबसे बड़ी चुनौती क्या थी?
इसकी सबसे बड़ी चुनौती 2010 में मुख्य इंजन की विफलता थी। उस घटना ने पूरे मिशन को खतरे में डाल दिया था। उसके बाद की सबसे बड़ी चुनौती थी सीमित ईंधन वाले छोटे थ्रस्टर्स का इस्तेमाल करके यान को वापस शुक्र तक पहुँचाना, जो एक अद्भुत तकनीकी उपलब्धि थी।

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