रांची । मंगलवार को तिरुलडीह गोलीकांड में शहीद हुए धन्नजय और अजीत महतो को शहादत स्थल पहुंचकर जेएलकेएम केंद्रीय वरीय उपाध्यक्ष देवेंद्र नाथ महतो ने सैकड़ों समर्थकों के साथ माल्यार्पण किया।
मौके पर देवेंद्र नाथ महतो ने कहा कि आज से ठीक 43 साल पहले 21 अक्टूबर 1982 को ज़ब झारखण्ड अलग राज्य आंदोलन और कोल्हान में जंगल बचाओ आंदोलन चरम पर था। तब झारखंड अलग राज्य माँग के अलावा चांडिल, नीमडीह और ईचागढ़ प्रखंड को अकालग्रस्त घोषित करने एवं अन्य मांगों को लेकर इचागढ़ के तिरुलडीह अंचल के समक्ष शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे छात्रों पर बिना चेतावनी के पुलिस द्वारा फायरिंग की गई। जिसमें चांडिल कॉलेज के दो छात्र धनंजय महतो और अजीत महतो आंदोलन स्थल में पुलिस के गोली से शहीद हो गए। छात्र और ग्रामीण पुलिस की अवैध वसूली को बंद करा दिया था। जिसके वजह से पुलिस आतंक फैलाना चाहती थी, आतंक इतना अधिक था कि फायरिंग के बाद भी 41 लोगों को गिरफ्तार कर 36 घंटे तक बिना खाना पीना के हिरासत में रखा था।हंगामा के बाद उन्हें छोड़ा गया।इस घटना के बाद पुलिस का आतंक इतना था कि पोस्टमार्टम के बाद जमशेदपुर से दोनों छात्रों का शव गांव लाने तक कोई तैयार नहीं था। बाद में निर्मल महतो ने ख़ुद ट्रक से लाकर स्वयं मुखाग्नि दिया था ।धनंजय महतो और अजीत महतो की शहादत ने पूरे झारखंड क्षेत्र को उद्वेलित कर दिया था।धनंजय के कुछ ही माह का एक बेटा उपेंद्र था तथा अजीत अविवाहित था। शहादत का लंबा समय बीत चुका, अलग झारखंड राज्य का गठन भी हुआ। तिरुलडीह गोलीकांड पर राजनीति भी खूब हुई।गोलीकांड के बाद कर्पूरी ठाकुर, जॉर्ज फर्नांडिस, रामविलास पासवान, शिबू सोरेन जैसे नेताओं ने तिरूलडीह का दौरा किया था।गोलीकांड के खिलाफ आंदोलन भी हुआ था। घटना के बाद ग्रामीणों में इतना अधिक गुस्सा था कि उन्होंने कोई भी सरकारी सहायता लेने से इनकार कर दिया था। पुण्यतिथि पर प्रत्येक साल कार्यक्रम भी होता है, लेकिन आज तक इन दोनों को आधिकारिक रूप से शहीद का दर्जा नहीं मिला हैं। तिरुलडीह गोलीकांड अलग झारखंड आंदोलन का हिस्सा था।
मौके पर देवेंद्र नाथ महतो ने सरकार से मांग किया कि झारखंड सरकार धनंजय महतो और अजीत महतो को झारखंड आंदोलनकारी का दर्जा दे।
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