Nithari कांड के आरोपी सुरिंदर कोली को सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित ठहराया और 19 साल बाद जेल से रिहा करने का आदेश दिया, पुलिस की लापरवाही के कारण सबूत खारिज।
Nithari मामले में दोषी सुरिंदर कोली आजाद, पुलिस की लापरवाही बनी निर्णायक कारण
नई दिल्ली: 2006 के Nithari सीरियल किलिंग मामले के मुख्य आरोपी सुरिंदर कोली, जिन्हें 13 हत्याओं के आरोपों में मौत की सजा दी गई थी और जो दो बार फांसी से बच चुके थे, अब सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले के बाद मुक्त हो जाएंगे। यह फैसला कोर्ट के क्यूरेटिव याचिका के आधार पर किया गया है।
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवै, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की बेंच ने कोली को राहत दी और रिम्पा हलदार हत्या मामले में उनके खिलाफ अंतिम लंबित केस में त्रुटि सुधार की। कोर्ट ने कहा कि इसी सबूत को अन्य 12 मामलों में खारिज किया गया था, जहां कोली को बरी किया गया था।
2011 में सुप्रीम कोर्ट ने हलदार मामले में कोली की सजा को बरकरार रखा था, लेकिन 2023 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 12 मामलों में उनकी बरी की। पुलिस की लापरवाही और सबूतों की वैधता के अभाव ने मामले में बड़ा फर्क डाला।
सुप्रीम कोर्ट ने जोर देते हुए कहा कि सबूत जो कोर्ट ने पहले अस्वीकार कर दिया था, उसी आधार पर सजा बरकरार रखना संविधान के अनुच्छेद 21 और 14 का उल्लंघन है। समान मामलों में समान व्यवहार की अनिवार्यता के तहत, यह असमानता न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
कोली के मामले में पुलिस जांच की कमियों, शंका के आधार पर आरोप लगाने, और विश्वसनीय सबूतों की कमी को कोर्ट ने गंभीरता से लिया। अदालत ने कहा कि अपराध साबित किए बिना किसी व्यक्ति को सजा देना कानून के खिलाफ है, चाहे अपराध कितना भी भयंकर क्यों न हो।
यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में न्याय और निष्पक्षता के लिए एक मील का पत्थर है, जो सिद्ध करता है कि आरोपियों को तब तक निर्दोष माना जाएगा जब तक कि मुकदमों में सबूत साबित न हों।
FAQs:
- सुरिंदर कोली विवादित निथारी कांड में किस तरह से दोषी ठहराए गए थे?
- सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें किन कारणों से राहत प्रदान की?
- पुलिस की लापरवाही ने मामले को कैसे प्रभावित किया?
- क्यूरेटिव पिटिशन क्या होती है और इस मामले में इसका क्या महत्व था?
- यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए क्या संदेश देता है?
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