कर्नाटक सरकार ने सरकारी स्कूल-कॉलेज परिसरों में RSS की गतिविधियों पर नए नियम लागू किए हैं। यह कदम राजनीतिक तथा सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण विवाद का केंद्र बन गया है।
कर्नाटक सरकार का फैसला: सरकारी स्कूल-कॉलेजों में RSS कार्यक्रमों पर नियंत्रण, विरोध तेज
दक्षिण भारत के राज्य Karnataka में, समाज और राजनीति के बीच एक नया मोड़ आ गया है। शिक्षा विभाग, सरकारी स्कूल-कालेज परिसरों में Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) की गतिविधियों को लेकर राज्य सरकार ने नए नियम लागू किए हैं, जो सीधे सामाजिक-आन्दोलन तथा राजनीतिक समीकरण को छू रहे हैं। यह मामला सिर्फ एक संगठन की गतिविधियों का नहीं, बल्कि शिक्षा, सार्वजनिक संसाधन, विचारधारा और सत्ता के रिश्ते का पाठ है।
क्या है नया आदेश?
कर्नाटक कैबिनेट ने हाल ही में निर्णय किया है कि सरकारी स्कूल और कॉलेज परिसरों में निजी संगठनों—विशेष रूप से RSS—की गतिविधियों को रोकने या नियंत्रित करने के लिए नियम बनाए जाएंगे। साथ ही, राज्य के ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज मंत्री Priyank Kharge ने 13 अक्टूबर को मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर यह मांग की थी कि सरकारी कर्मचारियों को RSS-संबंधित कार्यक्रमों में भाग लेने से रोका जाए।
मंत्रियों और सरकार की ओर से स्पष्ट कहा गया है कि यह कदम “सभी संगठनों पर समान रूप से लागू” है, न कि केवल RSS को टारगेट करने वाला।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
RSS और भाजपा का जवाब
RSS और उसके समर्थक दलों ने इस निर्णय को “वैचारिक उत्पीड़न” के रूप में देखा है। भाजपा ने इसे हिंदू-राष्ट्रीयवादी विचारधारा पर सीधी चोट माना है। एक रिपोर्ट के अनुसार, RSS की ओर से कॉलेज परिसर में एक मार्च की अनुमति को उच्च न्यायालय द्वारा दी गई थी—जिसे भाजपा ने सरकार के विरुद्ध जीत के रूप में प्रस्तुत किया।
कांग्रेस सरकार की ट्रैक
कांग्रेस की ओर से कहा गया है कि यह प्रक्रिया “सामान्य प्रशासनिक” है—सरकारी परिसरों के उपयोग और सार्वजनिक गतिविधियों के नियमन की। मुख्यमंत्री Siddaramaiah ने बयान दिया कि BJP ने जब इस नियम को बनाया था तब उन्होंने कुछ नहीं कहा था, अब सवाल कर रहे हैं।
शिक्षा, सार्वजनिक संसाधन और विचारधारा
शिक्षा-संस्थाएँ हमेशा विचार-प्रभाव के केंद्र रही हैं। सरकारी स्कूल-कॉलेज का परिसर केवल शिक्षा का स्थल नहीं, बल्कि विचार का आदान-प्रदान, सामाजिक मूल्य निर्माण और नागरिक चेतना का हिस्सा भी है। इस संदर्भ में, यदि कोई संगठन नियमित रूप से कार्यक्रम करता है, तो यह सवाल उठता है कि क्या यह “सर्व-संगठन” गतिविधियाँ हैं या एक विचारधारात्मक समूह की गतिविधियाँ?
राज्य सरकार का तर्क है कि सरकारी परिसरों का प्रयोग सभी विचारों के लिए खुला होना चाहिए लेकिन किसी एक गुट विशेष-रूप से लाभ न उठाए। RSS-समर्थक तर्क देते हैं कि वे भी एक वैकल्पिक सामाजिक संगठन हैं जिनका सार्वजनिक स्थानों में कार्यक्रम करना उनका संवैधानिक अधिकार है।
सामाजिक तथा कानून-व्यवस्था पक्ष
इस प्रकार का नियमन कई कानूनी और संवैधानिक पहलुओं को छूता है—जैसे कि सभा-स्वतंत्रता (Article 19) , सरकारी कर्मचारियों का राजनीति में भाग न लेना, और सार्वजनिक परिसरों का निष्पक्ष उपयोग।
उदाहरण के लिए, मिनिस्टर Priyank Kharge ने सरकारी कर्मचारियों को RSS कार्यक्रम से हटाने का अनुरोध किया है, यह कहकर कि नियमों का उल्लंघन हो रहा है।
क्या यह सियासी रणनीति है?
विश्लेषकों का मानना है कि इस कदम के पीछे सिर्फ़ प्रशासनिक आवश्यकताएं नहीं है, बल्कि आगामी चुनावों का सियासी पूर्व-प्रसंग भी है। 2026-27 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं, और BJP-RSS ब्रांड को दक्षिण भारत में मज़बूत बनाने की रणनीति पर है। कांग्रेस सरकार इस विचार-प्रभाव को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है।
सम्भावित प्रभाव
- RSS-संबंधित गतिविधियों पर नियंत्रण से राज्य में विचारधारात्मक वापसी हो सकती है।
- भाजपा-RSS को यह मौका मिला है कि वे “अधिकारों की रक्षा” का मोर्चा खोलें।
- यदि नियम कठोर रूप से लागू होंगे, तो अन्य संगठनों—विशेषकर धर्म-राजनीति से जुड़े समूहों—के लिए भी नया प्रीसेडेंट बनेगा।
कर्नाटक में यह विवाद केवल एक संगठन-विरोधी मामला नहीं है, बल्कि यह शिक्षा, सार्वजनिक संसाधन, विचार-स्वातंत्र्य तथा राजनीति के जटिल जाल का बिंदु है।
सरकार को यह संतुलन बनाना है कि सार्वजनिक परिसरों का प्रयोग निष्पक्ष रहे, लेकिन विचार-स्वातंत्र्य एवं संघ-संस्था गतिविधियों को बीच में रोका न जाए।
FAQs
- क्या नया नियम सिर्फ RSS पर लागू हुआ है?
→ सरकार का दावा है कि यह “सभी संगठनों पर समान रूप से” लागू है। - सरकारी कर्मचारियों को RSS कार्यक्रम में भाग लेने से क्यों रोका गया?
→ कारण है कि सेवा-नियमों के अंतर्गत कर्मचारियों को राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहने का निर्देश है। - यह कदम भाजपा-RSS को कमजोर करेगा क्या?
→ संभवतः नहीं तुरंत, लेकिन राज्य में उनकी गतिविधियों को सार्वजनिक तौर पर चुनौती मिल सकती है। - इस विवाद का शिक्षा-क्षेत्र पर क्या असर होगा?
→ यदि सरकारी परिसरों में नियम सख्ती से लागू होंगे, तो शैक्षणिक-स्थलों की गतिविधियों में बदलाव आ सकता है। - क्या यह विवाद राष्ट्रीय राजनीतिक विमर्श को प्रभावित करेगा?
→ हाँ, क्योंकि यह विचार-स्वातंत्र्य, सार्वजनिक संसाधन उपयोग तथा राजनीतिक संगठन-क्रिया के मायने पर है।
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