Home राष्ट्रीय न्यूज नालंदा विश्वविद्यालय का गौरवशाली इतिहास, जानिये इस खास रिपोर्ट में ?
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नालंदा विश्वविद्यालय का गौरवशाली इतिहास, जानिये इस खास रिपोर्ट में ?

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नालंदा युनिवर्सिटी की स्थापना 5 वी सदी में हुई थी इसका निर्माण राजा कुमारगुप्त ने किया इसमें हालाँकि और भी राजाओ का सहयोग रहा लेकिन रिपोर्ट्स के मुताविक कुमारगुप्त को नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय दिया जाता है क्युकी जब रिसर्च की गयी तो वहा गुप्त शासकों में सर्वाधिक अभिलेख कुमारगुप्त के मिले थे इसके सिक्कों पर मोर की आकृति मिली थी जिसके बाद इस बात को पूर्ण से मान लिया गया की इसकी स्थापना कुमारगुप्त ने ही की थी.

अब आपको ये बताते है की नालंदा यूनिवर्सिटी का क्या महत्त्व था और क्या इसका प्राचीन इतिहास रहा है

क्या आप को ये पता है की एशिया महाद्वीप में सबसे बड़ा विश्वविद्याल कौन सा है तो हम आपको बात दे की नालन्दा यूनिवर्सिटी एशिया की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी है और ये भारत का पहला विश्विविधालय भी है इसका इतिहास 16000 हजार साल पुराना रहा है ये नालंदा विश्विविधालय बिहार के राजगीर में स्थित है इस विश्वविद्यालय  में करीब 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिनके लिए 2000 अध्यापक हुआ करते थे इसका अस्तित्व 800 सालों तक रहा. इसमें 9 मंजिला पुस्तकालय था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यहां एक समय में 3 लाख से भी ज्यादा पुस्तकें हुआ करती थीं.

यहां पढ़ने वाले छात्र ज्यादातर एशियाई देशों जैसे चीन, कोरिया और जापान से आने वाले बौद्ध भिक्षु होते थे. इतिहासकारों के मुताबिक, चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने भी सातवीं सदी में नालंदा में शिक्षा ग्रहण की थी. उन्होंने अपनी किताबों में नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता का जिक्र किया है. यह बौद्ध के दो सबसे अहम केंद्रों में से एक था. यह ज्ञान और बुद्धिमत्ता के प्रसार की दिशा में प्राचीन भारत के योगदान का गवाह है

आइये अब इसके खौफनाक इतिहास के बारे में भी जान लेते है

भारत का पहला और दुनिया का दूसरा सबसे प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है. इसने सैकड़ों वर्षों में जिस शोहरत की जिन बुलंदियों को छुआ, उसी तरह खुद को राख होते हुए भी देखा. मोहम्मद बख्तियार खिलजी ने 1199 में नालंदा विश्वविद्यालय को न केवल ध्वस्त कर दिया था, बल्कि उसमें आग भी लगा दी थी. इसकी लाइब्रेरी में रखी लाखों किताबें महीनों तक उस आग में धधकती रहीं.

अब ये भी जान लीजिये की इस विश्विधालय को  पुर्नजीवित कैसे किया गया

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम 28 मार्च, 2006 को अपने बिहार दौरे पर अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल राजगीर आए हुए थे। उसी दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को पुर्नजीवित करने की सलाह दी थी। इसके बाद मुख्यमंत्री ने उनकी सलाह पर तत्काल विधानमंडल के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए इसे पुनर्जीवित करने की घोषणा की थी।

UNESCO ने 15 जुलाई 2016 को नालंदा विश्वविद्यालय के पुरातात्विक अवशेष को वर्ल्ड हेरिटेज साइट यानी वैश्विक धरोहर स्थल का दर्जा दिया था जिसको बनाने और सुधारने की जिम्मेदारी UNESCO को सौंपी गयी

बता दें कि साल 2016 में नालंदा के खंडहरों को संयुक्त राष्ट्र विरासत स्थल घोषित किया गया था, इसके बाद विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य 2017 में शुरू किया गया.विश्वविद्यालय का नया कैंपस नालंदा के प्राचीन खंडहरों के पास बनाया गया है. इस नए कैंपस की स्थापना नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के माध्यम से की गई है. इस अधिनियम में स्थापना के लिए 2007 में फिलीपींस में आयोजित दूसरे पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में लिए गए निर्णय को लागू करने का प्रावधान किया गया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून को बिहार के राजगीर में ऐतिहासिक नालंदा यूनिवर्सिटी के नए कैंपस का उद्घाटन किया. सुबह के समय नालंदा यूनिवर्सिटी पहुंचे पीएम मोदी ने पहले विश्वविद्यालय की पुरानी धरोहर को करीब से देखा. इसके बाद वह यहां से नए कैंपस में पहुंचे, जहां उन्होंने बौधि वृक्ष लगाया और फिर नए कैंपस का उद्घायन किया

नालंदा यूनिवर्सिटी में दो अकेडमिक ब्लॉक हैं, जिनमें 40 क्लासरूम हैं. यहां पर कुल 1900 बच्चों के बैठने की व्यवस्था है. यूनिवर्सिटी में दो ऑडिटोरयम भी हैं जिसमें 300 सीटे हैं. इसके अलावा इंटरनेशनल सेंटर और एम्फीथिएटर भी बनाया गया है, जहां 2 हजार लोगों के बैठने की क्षमता है. यही नहीं, छात्रों के लिए फैकल्टी क्लब और स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स सहित कई अन्य सुविधाए भी हैं. तो ये हैं विश्वविख्यात नालंदा यूनिवर्सिटी का इतिहास औऱ उसका आज.

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