Jagaddhatri Puja 2025 की तारीख, शुभ मुहूर्त और पूरी पूजा विधि जानें। मां जगद्धात्री की पौराणिक कथा, उनके स्वरूप का महत्व और कोलकाता-चंदननगर में धूमधाम से मनाए जाने वाले इस उत्सव के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें।
Jagaddhatri Puja 2025: तारीख, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मां के स्वरूप की पौराणिक कथा
दुर्गा पूजा के उल्लास के ठीक एक महीने बाद, बंगाल की धरती एक बार फिर से देवी के एक और शक्तिशाली रूप की आराधना में डूब जाती है। यह उत्सव है मां जगद्धात्री का, जिन्हें “जगत की धारण करने वाली” यानी समस्त ब्रह्मांड को धारण करने वाली माता कहा जाता है। दुर्गा की तरह ही शक्तिशाली, लेकिन उनसे थोड़ा भिन्न स्वरूप लिए, मां जगद्धात्री शांति, संयम और गहन आध्यात्मिक शक्ति की प्रतीक हैं।
यह पूजा विशेष रूप से पश्चिम बंगाल के हुगली जिले, चंदननगर और कोलकाता के कुछ हिस्सों में बेहद धूमधाम से मनाई जाती है। चंदननगर की जगद्धात्री पूजा की भव्यता और कलात्मकता देखते ही बनती है। यह पूजा न सिर्फ आस्था का प्रतीक है, बल्कि बंगाल की सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा भी है।
यह लेख आपको जगद्धात्री पूजा 2025 से जुड़ी सभी जरूरी जानकारियां – जैसे सही तारीख और शुभ मुहूर्त, पूजा की विधि, मां की कथा और उनके स्वरूप के गहन अर्थ – विस्तार से बताएगा।
जगद्धात्री पूजा 2025: तारीख और शुभ मुहूर्त
जगद्धात्री पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। इस बार यह पूजा नवंबर महीने में पड़ रही है।
- नवमी तिथि प्रारंभ: 6 नवंबर 2025, दिन – गुरुवार, सुबह 08:14 बजे से
- नवमी तिथि समाप्त: 7 नवंबर 2025, दिन – शुक्रवार, सुबह 10:32 बजे तक
चूंकि नवमी तिथि 6 नवंबर को सूर्योदय के बाद शुरू हो रही है, इसलिए मुख्य जगद्धात्री पूजा 6 नवंबर 2025, गुरुवार के दिन ही की जाएगी।
- अभिजित मुहूर्त: दोपहर 11:44 बजे से 12:30 बजे तक (पूजा के लिए अत्यंत शुभ समय)
मां Jagaddhatri Puja की पौराणिक कथा और उत्पत्ति
मां जगद्धात्री की उत्पत्ति की कथा बहुत ही रोचक है और यह देवी भागवत पुराण में मिलती है।
कहानी के अनुसार, एक बार देवताओं के राजा इंद्र ने एक शक्तिशाली दानव राजा, करिंद्रासुर को पराजित किया। पराजय के बाद, करिंदासुर ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे एक हज़ार हाथियों का बल प्रदान किया और यह वरदान दिया कि उसे कोई देवता नहीं मार सकेगा।
इस वरदान के मद में चूर होकर करिंदासुर ने स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया और इंद्र सहित सभी देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। देवतागण बचकर भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि चूंकि वरदान में कहा गया था कि उसे कोई ‘देवता’ नहीं मार सकता, इसलिए केवल एक ‘देवी’ ही उसका वध कर सकती हैं।
तब सभी देवताओं की प्रार्थना पर देवी पार्वती ने जगद्धात्री का रूप धारण किया। उनका रूप अत्यंत तेजस्वी और शांत था। उनके चार हाथों में शंख, चक्र, धनुष और बाण थे और वह सिंह पर सवथी थीं। देवी और दानव के बीच भयानक युद्ध हुआ और अंततः मां जगद्धात्री ने करिंदासुर का वध कर देवताओं को स्वर्�लोक वापस दिलाया। इसी विजय की याद में जगद्धात्री पूजा का प्रचलन हुआ।
मां जगद्धात्री के स्वरूप का महत्व और प्रतीकात्मकता
मां जगद्धात्री का स्वरूप बेहद ही मनोहर और गहन अर्थों से भरपूर है।
- तीन नेत्र: उनके तीन नेत्र ब्रह्मांड के तीनों काल – भूत (अतीत), वर्तमान और भविष्य का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- चार भुजाएं: उनकी चार भुजाएं मनुष्य के लिए चार पुरुषार्थ – धर्म (नैतिकता), अर्थ (धन), काम (इच्छाएं) और मोक्ष (मुक्ति) का प्रतीक हैं।
- शस्त्र: उनके हाथों में शंख (दिव्य ध्वनि), सुदर्शन चक्र (बुराइयों का विनाश), धनुष (मन की एकाग्रता) और बाण (ज्ञान) है।
- श्वेत वस्त्र: मां के श्वेत (सफेद) वस्त्र शांति, पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक हैं।
- सिंह: उनका वाहन सिंह शक्ति और निडरता का प्रतीक है, जो दुष्ट शक्तियों पर विजय दिलाता है।
- सर्प और शेर: मां के आसन के नीचे एक सर्प को दबाए हुए सिंह को दिखाया जाता है। यह अज्ञान (सर्प) पर विज्ञान (सिंह) की जीत दर्शाता है।
Jagaddhatri Puja विधि (घर पर पूजन कैसे करें)
घर पर मां जगद्धात्री की पूजा सादगी और श्रद्धा से की जा सकती है।
सामग्री:
गंगाजल, रोली, मोली, फूल, फल, फूलमाला, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), पंचामृत, वस्त्र, सुहाग की वस्तुएं (श्रृंगार सामग्री)।
विधि:
- सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को स्वच्छ करके एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं।
- मां जगद्धात्री की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- सर्वप्रथम गणेश जी और फिर मां जगद्धात्री का आवाहन करें।
- मां को जल, फूल, रोली, चंदन आदि अर्पित करें।
- धूप और दीप दिखाएं।
- मां को फल, मिठाई और नैवेद्य का भोग लगाएं।
- मां जगद्धात्री के मंत्रों का जाप करें। एक सरल मंत्र है:
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं जगद्धात्र्यै नमः”
(Om Aim Hreem Kleem Jagaddhatryai Namah) - मां की आरती करें और प्रसाद को सभी में वितरित करें।
- तीन दिनों तक पूजन के बाद, चौथे दिन विधि-विधान से मां की प्रतिमा का विसर्जन कर दें।
चंदननगर और कोलकाता में जगद्धात्री पूजा का महोत्सव
चंदननगर (हुगली) की जगद्धात्री पूजा अपनी अद्भुत भव्यता और कलात्मकता के लिए दुनिया भर में मशहूर है। यहां के पंडाल और प्रतिमाएं देखने लायक होती हैं। कोलकाता के राजबाड़ी और रानीघाट इलाके में भी इस पूजा की बहुत धूम रहती है। यह उत्सव सांस्कृतिक कार्यक्रमों, भव्य शोभायात्राओं और सामुदायिक उल्लास से भरपूर होता है।
शक्ति और शांति का अद्भुत संगम
जगद्धात्री पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक संदेश है। मां का शांत और गंभीर स्वरूप हमें सिखाता है कि सच्ची शक्ति उद्दंडता में नहीं, बल्कि संयम और आत्मविश्वास में निहित है। वह हमें यह याद दिलाती हैं कि वह इस सारे जगत को धारण करती हैं और हर कठिनाई में अपने भक्तों का संरक्षण करती हैं। इस पावन पर्व पर मां जगद्धात्री के चरणों में श्रद्धा-भक्ति अर्पित करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
FAQs
1. Jagaddhatri Puja और दुर्गा पूजा में क्या अंतर है?
मुख्य अंतर तिथि और स्वरूप का है। दुर्गा पूजा आश्विन मास में होती है, जबकि जगद्धात्री पूजा कार्तिक मास में। मां दुर्गा महिषासुर मर्दिनी के रूप में अधिक उग्र और गतिशील दिखाई देती हैं, जबकि मां जगद्धात्री का स्वरूप अत्यंत शांत, गंभीर और ध्यानमग्न है। दोनों ही देवी के शक्ति स्वरूप हैं।
2. क्या जगद्धात्री पूजा पूरे भारत में मनाई जाती है?
यह पूजा मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल (विशेषकर हुगली जिले और कोलकाता) और ओडिशा के कुछ हिस्सों में बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। बंगाल के बाहर यह उतनी व्यापक रूप से प्रचलित नहीं है।
3. जगद्धात्री पूजा में क्या विशेष भोग चढ़ाया जाता है?
दुर्गा पूजा की तरह ही इसमें भी भोग के रूप में खिचड़ी, लबरा (सब्जी), चटनी, मिष्ठान्न (मिठाई) और फल आदि चढ़ाए जाते हैं। कई स्थानों पर नारियल की मिठाई और पायश (एक प्रकार की खीर) का भोग विशेष रूप से लगाया जाता है।
4. क्या जगद्धात्री, दुर्गा का ही एक रूप हैं?
हां, जगद्धात्री को आदिशक्ति मां दुर्गा का ही एक शांत और मंगलमयी रूप माना जाता है। शास्त्रों में उन्हें दुर्गा का ही अंश बताया गया है।
5. Jagaddhatri Puja कितने दिनों तक चलती है?
दुर्गा पूजा की तरह, जगद्धात्री पूजा भी चार दिनों तक चलने वाला उत्सव है, जो सप्तमी से शुरू होकर दशमी को मां की प्रतिमा के विसर्जन के साथ समाप्त होता है। नवमी तिथि को मुख्य पूजा का दिन माना जाता है।
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