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राष्ट्रपति तक पहुंचे केस, फिर भी 16 जजों ने सुनवाई से किया इनकार

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Magsaysay awardee Sanjiv Chaturvedi
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मॅग्सेसे पुरस्कार विजेता आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के भ्रष्टाचार मामलों में देशभर की अदालतों में 16 जजों ने खुद को सुनवाई से अलग कर लिया। उनकी याचिकाओं पर अब उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस खुद सुनवाई करेंगे।

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में अकेले जूझ रहे संजीव चतुर्वेदी — अदालतों में 16 बार जजों ने किया रेक्यूज़

16 जजों ने खुद को अलग किया मॅग्सेसे पुरस्कार विजेता व्हिसलब्लोअर संजीव चतुर्वेदी के मामलों से

भारत की न्यायपालिका में किसी मामले से जजों का खुद को हटाना (recusal) दुर्लभ माना जाता है, लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले व्हिसलब्लोअर और आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के मामलों में यह संख्या 16 तक पहुंच चुकी है। जिला अदालतों से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक, 16 जजों ने उनके मामलों से खुद को अलग कर लिया — ज्यादातर ने कोई कारण भी नहीं बताया।

ईमानदारी की मिसाल

2002 बैच के भारतीय वन सेवा अधिकारी संजीव चतुर्वेदी को उनके सतर्कता (vigilance) कार्य और भ्रष्टाचार के मामलों के सूक्ष्म दस्तावेज़ीकरण के लिए जाना जाता है। उन्होंने हरियाणा में अवैध पेड़ कटाई, रेत खनन और वन्यजीव शिकार जैसे मामलों को उजागर किया था। शासन के भीतर व्याप्त गठजोड़ पर उंगली उठाने के कारण उन्हें पांच वर्षों में 12 बार तबादलों का सामना करना पड़ा और 2007 में निलंबन हुआ, जिसे 2008 में राष्ट्रपति के आदेश से रद्द किया गया।

राष्ट्रपति का समर्थन और राजनीतिक विरोध

उनकी शिकायत पर केंद्र सरकार ने दो सदस्यीय जांच समिति बनाई जिसने तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा और कई वरिष्ठ अधिकारियों को भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया। इस रिपोर्ट को राष्ट्रपति ने 2011 में मंज़ूरी दी, और हरियाणा के राज्यपाल ने आदेश लागू किया। इसके बावजूद, 2014 में उसी सरकार ने रिपोर्ट को अदालत में चुनौती दे दी।

न्यायिक अवरोध

चतुर्वेदी ने अदालतों में अपने मामले स्वयं रखे हैं। कई बार उन्होंने वकीलों की मदद के बिना तथ्यों और कानून के हवाले से अपनी दलील पेश की। उनके वकील सुधर्शन गोयल ने कहा, “इतनी बड़ी संख्या में जजों का रेक्यूज़ होना अभूतपूर्व है। यह न्यायिक जवाबदेही के संकट को दर्शाता है।”

AIIMS में बड़ा भ्रष्टाचार उजागर

AIIMS में मुख्य सतर्कता अधिकारी (CVO) रहते हुए (2012-14), उन्होंने 200 से अधिक भ्रष्टाचार जांचें शुरू कीं। इनमें खरीद घोटाले से लेकर भर्ती प्रक्रिया में अनियमितताएँ शामिल थीं। उनके रिपोर्टों में कई बड़े अधिकारियों और राजनीतिक नामों का उल्लेख था, जिनमें हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव विनीत चौधरी भी शामिल थे।

संघर्ष जारी

चतुर्वेदी ने भ्रष्टाचार के मामलों में जीत के बावजूद कई बार सरकारी प्रतिशोध झेले। 2015 में उन्हें अपने कैडर से स्थानांतरण मिल गया। इसके बाद उत्तराखंड में उन्होंने वनों में अवैध गतिविधियों के खिलाफ कई पहलें कीं — जैसे देश का पहला ‘मॉस गार्डन’, ‘फॉरेस्ट हीलिंग सेंटर’ और ‘पॉलिनेटर पार्क’ बनवाना।

उन्होंने 2024 में पिथौरागढ़ में अवैध पेड़ कटान पर 500 पृष्ठों की रिपोर्ट सौंपी, जिसमें सीबीआई और ईडी जांच की सिफारिश की गई।

अदालती घटनाक्रम

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रमोद चौधरी ने कहा, “रेक्यूज़ न्यायिक निष्पक्षता के लिए ज़रूरी हो सकता है, लेकिन यदि यह प्रवृत्ति बन जाए तो यह न्याय की प्रक्रिया में दीवार बन जाती है।”

संजीव चतुर्वेदी, जिन्हें 2015 में रमोन मॅग्सेसे अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था, आज भी अकेले अदालतों में अपनी लड़ाई जारी रखे हुए हैं। वह प्रत्येक सुनवाई में अपने तर्क ‘सत्यमेव जयते’ की भावना के साथ पेश करते हैं।

FAQs:

  1. संजीव चतुर्वेदी कौन हैं?
    वह 2002 बैच के भारतीय वन सेवा अधिकारी हैं जिन्हें भ्रष्टाचार विरोधी crusade के लिए मॅग्सेसे पुरस्कार मिला है।
  2. कितने जजों ने खुद को उनके मामलों से अलग किया है?
    अब तक 16 जजों ने अलग-अलग अदालतों में खुद को उनके मामलों से रेक्यूज़ किया है।
  3. उन्होंने किन मामलों को उजागर किया है?
    हरियाणा में वन भ्रष्टाचार और AIIMS दिल्ली में खरीद घोटालों जैसे कई संवेदनशील मामलों को।
  4. क्या उन्हें सरकारी समर्थन मिला है?
    राष्ट्रपति और केंद्रीय सतर्कता आयोग ने उनके कई मामलों में दखल दी और उनके पक्ष में आदेश दिए हैं।
  5. वर्तमान में वह किस विभाग में हैं?
    वह वर्तमान में उत्तराखंड में वनों के संरक्षण और पर्यावरण परियोजनाओं का नेतृत्व कर रहे हैं।

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