केरल हाईकोर्ट ने कहा कि एक मुसलिम पुरुष अपनी पहली पत्नी को सूचित किए बिना अपनी दूसरी शादी का पंजीकरण नहीं करा सकता, जब तक कि पहली शादी वैध हो।
मुसलिम पर्सनल लॉ में पहली पत्नी की सहमति के बिना दूसरी शादी का पंजीकरण नहीं, केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने 30 अक्टूबर को फैसला दिया है कि एक मुसलिम पुरुष अपनी पहली पत्नी को सूचित किए बिना दूसरी शादी का पंजीकरण नहीं करा सकता, जब तक कि उसकी पहली शादी वैध हो। यह निर्णय कन्नूर के एक 44 वर्षीय व्यक्ति और उसके दूसरे पत्नी के केस में आया, जहां स्थानीय स्वयंसेवी संस्था के रजिस्ट्रार ने उनके विवाह रजिस्ट्रेशन को अस्वीकार कर दिया था।
पेटीशन में दावा किया गया था कि मुसलिम पर्सनल लॉ के तहत एक पुरुष एक समय में चार महिलाओं से शादी कर सकता है। पर हाईकोर्ट ने कहा कि रजिस्ट्रार को ऐसी दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं देना है यदि पहली पत्नी इस शादी को अवैध मानती है।
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि न तो कुरान और न ही मुसलिम कानून किसी पुरुष को बिना पहली पत्नी की जानकारी और सहमति के दूसरी शादी करने की अनुमति देता है। कोर्ट ने कहा कि मुसलिम पत्नी को इस मामले में खामोश दर्शक नहीं रहना चाहिए।
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि मुसलिम पर्सनल लॉ के तहत एक पुरुष तभी एक से अधिक शादी कर सकता है जब उसके पास सभी पत्नियों को आर्थिक रूप से संभालने के साधन हो।
अदालत ने पहली पत्नी को मामले में पक्षकार न बनाने के कारण यह याचिका खारिज कर दी।
FAQs
- केरल हाईकोर्ट ने मुसलिम पुरुष के लिए क्या नियम बनाए?
अपनी पहली पत्नी को सूचित किए बिना दूसरी शादी का पंजीकरण नहीं कराना। - क्या पुरुष बिना पहली पत्नी की जानकारी के दूसरी शादी कर सकता है?
पर्सनल लॉ के अनुसार नहीं, जब तक पहली शादी वैध हो। - मुस्लिम पत्नी की भूमिका इस मामले में क्या है?
महिला को खामोश दर्शक नहीं रहना चाहिए और उसकी सहमति महत्वपूर्ण है। - अदालत ने मामले में क्या फैसला सुनाया?
याचिका खारिज कर दी गई क्योंकि पहली पत्नी को पक्षकार नहीं बनाया गया था। - क्या एक पुरुष एक से अधिक शादी कर सकता है?
हां, अगर वह आर्थिक रूप से सभी पत्नियों को संभाल सके।
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