वंदे मातरम विवाद: जमीयत चीफ अरशद मदनी बोले- मुसलमान सिर्फ अल्लाह की इबादत करेंगे, शिर्क नहीं। संसद बहस में मोदी का नेहरू पर तंज।
वंदे मातरम गाने से इनकार: मुसलमानों का तर्क क्या, संविधान कहता क्या?
वंदे मातरम विवाद गरमाया: जमीयत चीफ का बयान- मुसलमान मौत कुबूल करेंगे लेकिन शिर्क कभी नहीं
दोस्तों, संसद में वंदे मातरम के 150वें साल पर बहस ने नया मोड़ ले लिया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के चीफ मौलाना अरशद मदनी ने साफ कहा कि मुसलमान किसी को गाने से रोकेगा नहीं, लेकिन खुद नहीं गाएंगे क्योंकि गीत में मातृभूमि को देवी-दुर्गा बताया गया है। ये इस्लाम के तौहीद (एकेश्वरवाद) के खिलाफ है। उन्होंने कहा- हम मौत स्वीकार करेंगे लेकिन शिर्क (बहुदेववाद) नहीं। दूसरी तरफ पीएम मोदी ने नेहरू पर निशाना साधा कि जिन्ना के दबाव में नेहरू ने गीत को काटा। आइए इस विवाद की जड़ें, इतिहास और संवैधानिक पहलू समझें।
मदनी का पूरा बयान X पर वायरल। बोले- वंदे मातरम का मतलब ‘मां तुझे प्रणाम’ है, लेकिन चार छंदों में वतन को दुर्गा मां कहा। मुसलमान सिर्फ अल्लाह की इबादत करते। अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता देता, अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की। देशभक्ति अलग, पूजा अलग। मुसलमानों को देशभक्ति का सर्टिफिकेट नहीं चाहिए- आजादी की लड़ाई में उनका योगदान इतिहास में दर्ज। संसद में खासी बहस हुई- ट्रेजरी बेंच ने राष्ट्रवाद का मुद्दा उठाया, विपक्ष ने सांप्रदायिकता का।
वंदे मातरम का इतिहास: बंकिम से संसद तक की पूरी कहानी
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1882 में आनंदमठ उपन्यास में लिखा। 1905 बंगाल विभाजन पर स्वतंत्रता गीत बना। 1922 में स्वराज गान घोषित। 1937 कांग्रेस सेशन में जिन्ना ने आपत्ति जताई- देवी पूजा इस्लाम के खिलाफ। नेहरू ने पहले चार छंद काटे, सिर्फ दो रखे। 1950 में संविधान सभा ने राष्ट्रीय गान घोषित लेकिन पूर्ण रूप से नहीं। आज दो छंद गाए जाते- कोई धार्मिक आपत्ति नहीं। लेकिन 2025 के 150वें साल पर बहस फिर भड़की।
5 FAQs
- जमीयत चीफ ने वंदे मातरम क्यों ठुकराया?
शिर्क का डर- गीत में मां को देवी बताया। - कितने छंद विवादित?
तीसरा-चौथा, दुर्गा रूप का वर्णन। - पीएम ने नेहरू पर क्या कहा?
जिन्ना के दबाव में गीत काटा, तुष्टिकरण शुरू। - संविधान क्या कहता?
अनुच्छेद 25: धार्मिक स्वतंत्रता, गान बाध्यकारी नहीं। - मुसलमानों का देशभक्ति योगदान?
आजादी संग्राम में खासी भूमिका, इतिहास गवाह।
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