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‘झुग्गी नहीं, घर चाहिए’: शालीमार बाग और शाहदरा में झुग्गियों पर बुलडोजर नोटिस पर AAP का BJP पर हमला

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दिल्ली में फिर सियासी तूफान: झुग्गी तोड़ने को लेकर हंगामा

दिल्ली की राजनीति में एक बार फिर भूचाल आया है। आम आदमी पार्टी (AAP) ने आरोप लगाया है कि बीजेपी (BJP) के नेतृत्व वाली नगर निगम (MCD) ने शालीमार बाग और शाहदरा इलाके की कई झुग्गी बस्तियों को तोड़ने के लिए नोटिस जारी किए हैं। AAP का कहना है कि इन नोटिसों के बाद हजारों गरीब परिवारों पर बेघर होने का खतरा मंडरा रहा है, वो भी बिना किसी वैकल्पिक घर या पुनर्वास योजना के।

जहां AAP इसे गरीब विरोधी कदम बता रही है, वहीं बीजेपी ने इन आरोपों को खारिज कर दिया है और इसे ‘अवैध कब्जों को हटाने की रूटीन प्रक्रिया’ करार दिया है। यह मुद्दा अब शहरी गरीबों के अधिकार, हाउसिंग पॉलिसी और दिल्ली के विकास बनाम मानवता की बहस बन चुका है।


दिल्ली की पुरानी समस्या: झुग्गियों और घरों की किल्लत

दिल्ली में दो करोड़ से ज्यादा की आबादी है, जिनमें से बड़ी संख्या प्रवासी मजदूरों, दिहाड़ी कामगारों और अनौपचारिक क्षेत्र के काम करने वालों की है। इनमें से बहुत से लोग झुग्गियों, अनधिकृत कॉलोनियों या पुनर्वास कॉलोनियों में रहते हैं।

दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) के मुताबिक, शहर में करीब 675 झुग्गी क्लस्टर्स हैं। इनकी हालत खराब है—टिन की छतें, प्लास्टिक की दीवारें और मिट्टी के फर्श। कई झुग्गियां दशकों से खड़ी हैं, और इनके निवासी वोटर कार्ड, आधार कार्ड और राशन कार्ड से लिंक भी हैं।


मामला क्या है? झुग्गियों को मिला तोड़फोड़ का नोटिस

जुलाई 2025 के आखिरी हफ्ते में शालीमार बाग (उत्तर-पश्चिम दिल्ली) और शाहदरा (पूर्वी दिल्ली) की झुग्गियों में रहने वाले लोगों को नोटिस मिले। MCD ने कहा कि ये झुग्गियां सरकारी ज़मीन पर बनी हैं और जल्द ही इन्हें तोड़ा जाएगा।

नोटिस में बताया गया कि ज़मीन पर सरकारी प्रोजेक्ट बनने हैं, सड़कों को चौड़ा करना है या अतिक्रमण हटाना है। लेकिन लोगों को यह नहीं बताया गया कि उन्हें बदले में कोई घर मिलेगा या नहीं।

प्रभावित इलाके:

  • शालीमार बाग: रेलवे लाइन, स्कूल और पार्कों के पास बनी झुग्गियां
  • शाहदरा: नालों के पास, छोटे कारखानों और सरकारी जमीन पर बसी बस्तियां

लोगों का कहना है कि वो यहां 20-30 साल से रह रहे हैं, उनके पास सभी जरूरी दस्तावेज हैं।


AAP का आरोप: “बीजेपी गरीबों पर बुलडोजर चला रही है”

AAP ने इस पूरी कार्रवाई की कड़ी निंदा की है और इसे गरीबों पर हमला बताया है।

AAP विधायक दुर्गेश पाठक ने कहा:
बीजेपी गरीबों के खिलाफ बुलडोजर चला रही है। इतनी गर्मी में, त्योहारों के वक्त, बिना किसी पूर्व सूचना और सहारे, आप लोगों को बेघर कर रहे हैं। क्या यही शासन है?”

AAP का कहना है कि ये कार्रवाई दिल्ली की झुग्गी पुनर्वास नीति और प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के नियमों के खिलाफ है, जिनमें कहा गया है कि किसी को हटाने से पहले उसका पुनर्वास जरूरी है।

गोपाल राय, आतिशी और सौरभ भारद्वाज जैसे वरिष्ठ AAP नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके झुग्गी निवासियों के वीडियो दिखाए, जहां लोग रोते हुए अधिकारियों से रहम की भीख मांग रहे हैं।

उनके सवाल:

  • अब ये नोटिस क्यों दिए गए?
  • लोग जाएंगे कहां?
  • “जहां झुग्गी, वहां मकान” का वादा कहां गया?

बीजेपी का जवाब: “कानून सबके लिए बराबर”

बीजेपी ने AAP के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे राजनीति करार दिया।

बीजेपी प्रवक्ता प्रवीण शंकर कपूर ने कहा:
“AAP इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रही है। यह नियमित कार्रवाई है। सरकारी जमीन पर अतिक्रमण हटाना जरूरी है। सब कुछ कानून के तहत हो रहा है।”

बीजेपी ने कहा कि कुछ मामलों में कोर्ट के आदेश पर यह कदम उठाया जा रहा है। उन्होंने AAP पर पलटवार करते हुए कहा:

  • बहुत सी झुग्गियों में अवैध रूप से दुकानें और गोदाम चल रहे हैं
  • पिछले 10 सालों में AAP ने झुग्गीवासियों के लिए क्या किया?
  • दिल्ली सरकार ने PMAY और DUSIB के फंड का सही इस्तेमाल नहीं किया

ज़मीन पर सच्चाई: डर, बेबसी और ग़ुस्सा

झुग्गी निवासियों ने बताया कि कैसे नोटिस मिलने के बाद उनकी ज़िंदगी में तनाव और डर भर गया है।

रेखा देवी, 45 वर्षीय घरेलू कामगार, शालीमार बाग:
हम तीन बच्चों के साथ कहां जाएंगे? 22 साल से यहीं रह रहे हैं। इसी पते से वोट डाले हैं। क्या हम नागरिक नहीं हैं?”

मोहम्मद सलीम, 52 वर्षीय कबाड़ी, शाहदरा:
हम चोर-उचक्के नहीं हैं। रोज़ मेहनत करते हैं। अगर सरकार को कुछ बनाना है, तो हमें कहीं और रहने की जगह तो दे। यह अमानवीय है।”

स्थानीय लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया, AAP कार्यकर्ता उनके साथ खड़े दिखे। पोस्टरों पर लिखा था—झुग्गी नहीं, घर चाहिए


कानून क्या कहता है? नियमों और अधिकारों की बात

दिल्ली झुग्गी पुनर्वास नीति, 2015:

  • 1 जनवरी 2015 से पहले जो लोग झुग्गियों में रह रहे हैं, उन्हें पुनर्वास योजना के तहत मकान देने का प्रावधान है

सुप्रीम कोर्ट के फैसले:

  • बिना पुनर्वास के तोड़फोड़ करना जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन है

DUSIB की गाइडलाइंस:

  • पहले सर्वे किया जाना चाहिए
  • फिर पुनर्वास की योजना बनाई जाती है (जैसे EWS फ्लैट्स)
  • उसके बाद ही हटाने की प्रक्रिया शुरू होती है

अब सवाल उठता है:

  • क्या DUSIB को इस बारे में बताया गया?
  • क्या सर्वे हुआ?
  • पुनर्वास की कोई योजना बनी?

चुनावी सियासत: असली खेल क्या है?

यह सब ऐसे समय पर हो रहा है जब दिल्ली में निकाय उपचुनाव और 2026 के राज्य विधानसभा चुनाव पास आ रहे हैं।

राजनीतिक जानकारों का कहना है:

  • AAP खुद को गरीबों की हितैषी पार्टी दिखाना चाहती है
  • बीजेपी शहरी इलाकों में साफ-सुथरे विकास का संदेश देना चाहती है

लेकिन असली असर उन गरीब लोगों पर हो रहा है, जिनके सिर से छत ही हट सकती है।


विकास बनाम इंसानियत: क्या रास्ता है?

यह बहस एक बड़ी बात को उजागर करती है—क्या किसी शहर को विकसित करने के नाम पर सबसे कमजोर वर्ग को ही हटा दिया जाए?

शहरी योजनाकार प्रो. रंजना मिश्रा (JNU) कहती हैं:
विकास जरूरी है, लेकिन अगर आप मजदूरों, कामवालियों और वेंडरों को हटाएंगे तो शहर को चलाएगा कौन?”

उनका कहना है कि पुनर्वास के बिना तोड़फोड़ सामाजिक तनाव और बेघरपन को बढ़ावा देती है।


आगे क्या होगा?

AAP ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने का फैसला लिया है ताकि तोड़फोड़ रोकी जा सके। उधर, सैकड़ों परिवार डर में जी रहे हैं, हर रोज़ बुलडोजर को गुजरते देख रहे हैं।

मानवाधिकार संगठनों जैसे HRLN और मज़दूर अधिकार संगठन ने कानूनी सहायता देने का ऐलान किया है।


दिल्ली के विकास में इंसानियत भी जरूरी

शालीमार बाग और शाहदरा की यह घटना बताती है कि भारत की राजधानी में गरीबों की स्थिति कितनी नाजुक है। झुग्गियां सिर्फ टिन और टारपोलिन नहीं होतीं, वो सपनों, संघर्षों और मेहनत से बनी होती हैं।

अगर शहरों को आगे बढ़ना है, तो उन्हें चलाने वाले लोगों—झुग्गीवासियों—को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता।

यह लड़ाई सिर्फ ज़मीन की नहीं है, यह लड़ाई है इंसानियत, सम्मान और नागरिक अधिकारों की।

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