Perth Testदो दिन में खत्म होने पर भी चुप्पी देख Gavaskar ने पिच-विवाद में वैश्विक दोहरे मानदंडों को उजागर किया और कहा—भारत पर बेवजह उंगली उठाना बंद करें।
Perth Test:दो दिनों में गेम खत्म-Gavaskar ने उठाए सख्त सवाल
Perth Test टेस्ट क्रिकेट अपनी सहनशक्ति, तकनीक और मानसिक मजबूती के लिए जाना जाता है। पाँच दिनों का खेल कभी भी इतनी जल्दी खत्म नहीं होना चाहिए कि बल्लेबाज़ों को टिकने का मौका ही न मिले और गेंदबाज़ों को असमान गति और उछाल का अत्यधिक फायदा मिल जाए। लेकिन Perth Test में यही हुआ—सिर्फ दो दिनों में मैच समाप्त हो गया और कुल 32 विकेट गिरे।
इस नतीजे ने क्रिकेट जगत को चौका दिया, लेकिन उससे भी बड़ा आश्चर्य यह रहा कि इतनी गंभीर परिस्थिति पर कोई बड़ा विवाद या आलोचना देखने को नहीं मिली।
यही वह बिंदु है जहाँ गवस्कर ने खुलकर कहा—“जब भारत में पिच चुनौतीपूर्ण हो तो कोहराम मच जाता है, लेकिन पर्थ जैसे मैचों पर चुप्पी क्यों?”
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भारत पर पिच को लेकर आलोचना क्यों ज्यादा होती है?
भारत की घरेलू पिचें अक्सर स्पिन-फ्रेंडली होती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि—
• मौसम अनुकूल है
• मिट्टी की प्रकृति अलग है
• घरेलू गेंदबाज़ी ताकत स्पिन है
• खेल की रणनीति ऐसी विकसित हुई है
लेकिन जब भारतीय पिचें मैच तेज़ी से खत्म करती हैं—भले ही तीसरे या चौथे दिन—तो वैश्विक क्रिकेट मीडिया अक्सर कह देता है—
• “Poor pitch”
• “Unfair to batters”
• “Not suitable for Test cricket”
जबकि यही तर्क पर्थ टेस्ट पर दिखाई नहीं दिया।
यही दोहरा रवैया गवस्कर को खल गया।
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गवस्कर का मुख्य बयान—भारत के खिलाफ अनावश्यक कठोरता
गवस्कर के अनुसार—
• भारत को हर बार टेस्ट पिचों पर कठघरे में खड़ा किया जाता है
• ड्राई, स्पिनिंग, टर्निंग या स्लो पिचों पर तुरंत सवाल उठते हैं
• लेकिन तेज़, खतरनाक और असामान्य बाउंस वाली पिचों पर शांति बनी रहती है
• विदेशी पिचों को “क्लासिक”, “चैलेंजिंग” या “स्पोर्टिंग” बताकर बचा लिया जाता है
उनके अनुसार यह मानसिकता भारतीय क्रिकेट के प्रति पुरानी पूर्वाग्रहों का संकेत है।
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क्या पर्थ टेस्ट में गेंदबाज़ों को असामान्य मदद मिली?
हाँ।
इस मैच में—
• नई गेंद असामान्य गति से घूमी
• पिच की सतह में माइक्रो-क्रैक्स से अचानक उछाल
• सीम मूवमेंट पूरे खेल में मौजूद
• बल्लेबाज़ों के लिए तकनीक संभालना मुश्किल
• वन-डे शैली की विकेट-गिरावट
इस प्रकार की परिस्थितियाँ टेस्ट क्रिकेट की पारंपरिक भावना के विपरीत हैं।
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गवस्कर का प्रश्न: “क्या यही मानक है टेस्ट क्रिकेट का?”
गवस्कर ने पूछा—
• क्या हम टेस्ट क्रिकेट को ऐसी पिचों पर खेलना चाहते हैं जहाँ बल्लेबाज़ शुरुआत से ही संघर्ष करें?
• क्या दो दिन में खत्म होने वाले मैच को सामान्य माना जाना चाहिए?
• जब भारत में तीसरे-चौथे दिन मैच खत्म होता है, उसे “substandard pitch” क्यों कहा जाता है?
यह प्रश्न केवल भारत-ऑस्ट्रेलिया की राजनीति नहीं, बल्कि टेस्ट क्रिकेट की विश्वसनीयता से जुड़ा है।
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वैश्विक क्रिकेट में दोहरे मानदंड—एक गहरी समस्या
इस विवाद का सबसे अहम बिंदु यह है कि क्रिकेट में निष्पक्ष मानकों की आवश्यकता है।
कुछ उदाहरण—
1. भारत की पिच = “खराब”
जब मैच ढाई या तीन दिन में खत्म हो जाए।
2. विदेशी पिच = “प्रतिस्पर्धी”
भले ही दो दिन में समाप्त हो जाए।
3. स्पिन = दोष
जबकि
अत्यधिक pace + bounce = चुनौती
इन दोहरे मानदंडों ने क्रिकेट समुदाय में असंतोष पैदा किया है।
भारत जैसे देशों के लिए यह एक मनोवैज्ञानिक दबाव भी बन जाता है—हर बार पिच चर्चा का केंद्र बन जाती है, प्रदर्शन पीछे रह जाता है।
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भारतीय क्रिकेट की मजबूती—पर आलोचना हमेशा अधिक
वर्तमान दौर में भारत—
• टेस्ट क्रिकेट की शीर्ष टीमों में से एक है
• घरेलू और विदेशी दोनों परिस्थितियों में जीत रहा है
• मजबूत गेंदबाज़ी इकाई के कारण मैच जीत रहा है
• स्पिन और तेज दोनों में प्रतिस्पर्धी है
इसके बावजूद पिच आलोचना भारत की छवि को बार-बार निशाना बनाती है।
गवस्कर का मानना है कि यह मानसिकता भारत की सफलता से असहज होकर पैदा होती है।
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पर्थ पिच पर चुप्पी क्यों?
गवस्कर की नजर में तीन कारण हैं—
1. विदेशी आयोजकों को “लाभ-संदेह” नहीं दिया जाता
उन्हें हमेशा “अच्छा इरादा” मानकर बचा लिया जाता है।
2. भारत पर पश्चिमी मीडिया का निष्कर्ष-पूर्व निर्णय
भारत को लेकर एक कथित धारणा बनी हुई है कि पिचें पक्षपाती होती हैं।
3. तेज़ गेंदबाज़ी हमेशा “रोमांच” मानी जाती है
स्पिन कभी भी “glamorous” नहीं माना जाता, जबकि pace को रोमांचक बताया जाता है।
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क्या ICC को पिच-निगरानी और कड़ी करनी चाहिए?
टेस्ट क्रिकेट की प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए यह बहुत जरूरी है।
इसके लिए—
• घरेलू पिचों की सख्त रेटिंग
• विदेशी पिचों पर समान accountability
• टेस्ट मैचों में न्यूनतम खेलने योग्य दिन (कम से कम 4 दिन की क्षमता)
• पिच इंजीनियर्स की अंतरराष्ट्रीय ट्रेनिंग
• पिच रिपोर्ट का वैज्ञानिक मूल्यांकन
इन मानकों से खेल अधिक संतुलित और न्यायसंगत बनेगा।
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भारत पर इसके क्या परिणाम हो सकते हैं?
गवस्कर का उठाया सवाल भारतीय टीम को लाभ पहुंचा सकता है—
• भारत पर बेवजह आरोप कम होंगे
• क्रिकेट जगत संतुलित दृष्टिकोण अपनाएगा
• भारतीय पिचों की विविधता को सम्मान मिलेगा
• घरेलू क्रिकेट पर बने पूर्वाग्रह टूटेंगे
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FAQs
1. गवस्कर ने पर्थ टेस्ट पर नाराज़गी क्यों जताई?
क्योंकि मैच दो दिन में खत्म हुआ, 32 विकेट गिरे, फिर भी किसी ने पिच पर सवाल नहीं उठाया—जबकि भारत में ऐसी स्थिति होने पर आलोचना होती है।
2. क्या भारत की पिचें हमेशा पक्षपाती होती हैं?
नहीं। भारत की पिचें मिट्टी और मौसम के कारण स्पिन-सहायक होती हैं, पर यह गलत नहीं—यह “स्थानीय परिस्थिति” है।
3. क्या विदेशी पिचों पर भी समीक्षा होनी चाहिए?
हाँ। गवस्कर का यही कहना है कि सभी पिचों पर समान मानक लागू हों।
4. क्या दो दिनों में खत्म होने वाला टेस्ट खेल के लिए खतरे का संकेत है?
हाँ, इससे बल्लेबाज़ को मौका नहीं मिलता और टेस्ट की आत्मा प्रभावित होती है।
5. क्या यह विवाद भारत–ऑस्ट्रेलिया तक सीमित है?
नहीं, यह पूरे विश्व में टेस्ट पिचों के आकलन की नीति और पूर्वाग्रह से जुड़ा है।
6. क्या इससे भविष्य में पिच रेटिंग में बदलाव आएगा?
संभव है, क्योंकि यह मुद्दा विश्व क्रिकेट की निष्पक्षता के मूल प्रश्न से जुड़ा है।
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