भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा के दर्शन किए। वह ऐसा करने वाली देश की पहली महिला राष्ट्राध्यक्ष बनीं।
केरल के सबरीमाला मंदिर में राष्ट्रपति मुर्मू की ऐतिहासिक यात्रा, पूर्ण परंपराओं के साथ किया पूजन
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का ऐतिहासिक सबरीमाला दर्शन: आस्था, परंपरा और सम्मान का संगम
नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा के दर्शन किए, और ऐसा करने वाली वह देश की पहली महिला राष्ट्राध्यक्ष बन गईं। वह भारत की दूसरी राष्ट्रपति हैं जिन्होंने इस मंदिर का दौरा किया है—उनसे पहले पूर्व राष्ट्रपति वी.वी. गिरि ने यहां दर्शन किए थे।
परंपरागत रूप में पहुंचीं मुर्मू
काली साड़ी में पारंपरिक परिधान धारण किए राष्ट्रपति मुर्मू सुबह लगभग 11 बजे विशेष काफिले के साथ पंबा पहुँचीं। परंपरा के अनुसार, उन्होंने सबसे पहले पंबा नदी में अपने पैर धोए और फिर समीप स्थित श्री गणपति मंदिर समेत अन्य देवस्थलों में पूजा-अर्चना की।
भगवान अयप्पा के प्रति श्रद्धा से पूर्ण दर्शन
गणपति मंदिर के मुख्य पुजारी विष्णु नंबूथिरी ने राष्ट्रपति का ‘इरुमुडिकेत्तु’ (पवित्र पूँज) तैयार किया, जो भगवान अयप्पा की परंपराओं में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके बाद राष्ट्रपति ने नारियल फोड़ा—जो दंडवत अर्पण का प्रतीक माना जाता है—और पारंपरिक ‘स्वामी अयप्पन मार्ग’ से होकर लगभग 4.5 किमी दूर स्थित ‘सन्निधानम’ पहुँचीं।
पवित्र 18 सीढ़ियों पर चढ़ाई
सन्निधानम पहुँचने पर उन्होंने भगवान अयप्पा के गर्भगृह तक पहुँचने वाली प्रसिद्ध 18 दिव्य सीढ़ियों (पथिनेट्टंपडी) पर चढ़ाई की। वहाँ राज्य के देवस्वम मंत्री वी.एन. वसावन और त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड (टीडीबी) के अध्यक्ष पी.एस. प्रसन्न ने उनका स्वागत किया। मंदिर के तंत्री कंदरारू महेश मोहनारु ने उन्हें पूर्ण कुम्भ से आशीर्वाद दिया।
पूर्ण परंपरा और मर्यादा का अनुपालन
मुर्मू ने सिर पर पवित्र गाठ ‘इरुमुदी’ रखकर भगवान अयप्पा के सम्मुख पूजा की और मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़कर श्रद्धा अर्पित की। उन्होंने मंदिर के निकट स्थित वावरस्वामी और मलिकापुरम देवी मंदिरों में भी प्रार्थना की। यात्रा के अंत में, देवस्वम बोर्ड ने उन्हें भगवान अयप्पा की मूर्ति स्मृति चिह्न के रूप में भेंट की।
महिलाओं की एंट्री विवाद के बाद का प्रतीकात्मक क्षण
राष्ट्रपति मुर्मू का यह दर्शन ऐसे समय में हुआ है जब सबरीमाला मंदिर पिछले कुछ वर्षों से महिलाओं के प्रवेश को लेकर हुए विवादों का केंद्र रहा है। 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी थी, जिससे पारंपरिक प्रतिबंध खत्म हुआ और व्यापक विरोध भी शुरू हुआ।
आस्था और संवेदनशीलता का संतुलन
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की यात्रा को लंबे समय तक याद रखा जाएगा, क्योंकि उन्होंने न केवल परंपराओं का सम्मान किया बल्कि संवैधानिक समानता और श्रद्धा के संतुलन का संदेश भी दिया। उनकी यात्रा में पूरी तरह मंदिर की मर्यादाओं और आयुसीमा के अनुरूप रीति-रिवाजों का पालन हुआ—यानी उन्होंने किसी परंपरा का उल्लंघन नहीं किया।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएँ
भाजपा नेता बंडी संजय कुमार ने उनकी यात्रा को श्रद्धा और मर्यादा का प्रतीक बताते हुए कहा कि “वह 67 वर्ष की हैं। उन्होंने कोई नियम नहीं तोड़ा, किसी आस्था को ठेस नहीं पहुँचाई। उन्होंने उसकी गरिमा बढ़ाई। यह दर्शाता है कि भक्ति को शोर की नहीं, आचरण की आवश्यकता होती है।”
आयप्पा परंपरा का महत्व
भगवान अयप्पा को नैष्ठिक ब्रह्मचारी (सदाचार पालन करने वाले ब्रह्मचारी) के रूप में पूजा जाता है। इस कारण पारंपरिक रूप से 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध था। किंतु सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद यह प्रतिबंध हटा और महिलाओं को भी प्रवेश की धार्मिक स्वतंत्रता मिली।
आध्यात्मिक संदेश
राष्ट्रपति मुर्मू का यह दर्शन धर्म और संविधान के सामंजस्य का सुंदर उदाहरण बन गया है—जहाँ श्रद्धा और समानता दोनों एक साथ चल सकते हैं। उनका यह कृत्य न केवल महिला सशक्तिकरण का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारतीय परंपराएँ परिवर्तन के साथ अपनी आत्मा को जीवंत रख सकती हैं।
FAQs
- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सबरीमाला मंदिर क्यों गई थीं?
भगवान अयप्पा के दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए वह वहाँ पहुँचीं, और सभी पारंपरिक अनुष्ठानों का पालन किया। - क्या पहले कोई महिला राष्ट्राध्यक्ष सबरीमाला गई है?
नहीं, वह पहली महिला हैं जिन्होंने यह पवित्र यात्रा की है। - क्या महिलाओं को सबरीमाला में प्रवेश की अनुमति है?
हाँ, 2018 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद सभी आयु वर्ग की महिलाओं को अनुमति मिली। - सबरीमाला मंदिर की 18 सीढ़ियों का क्या महत्व है?
यह सीढ़ियाँ प्रतीक हैं 18 दिव्य ज्ञानों और जीवन की आध्यात्मिक यात्रा की; इन्हें चढ़ना धार्मिक रूप से शुभ माना जाता है। - क्या राष्ट्रपति के इस दर्शन का विशेष संदेश माना जा रहा है?
हाँ, इसे महिला सशक्तिकरण, आस्था और भारतीय परंपरा के बीच संतुलन के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है।
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