भारत यात्रा के बाद व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि 1.5 अरब की आबादी वाला भारत भाषाओं और संस्कृतियों से भरा देश है, जहां सिर्फ 500–600 मिलियन ही हिंदी बोलते हैं लेकिन ‘यूनिटी इन डाइवर्सिटी’ उसकी सबसे बड़ी ताकत है।
‘सब हिंदी नहीं बोलते, फिर भी एकजुट हैं’: भारत की संस्कृतियों से क्यों प्रभावित हैं पुतिन
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी हालिया भारत यात्रा के बाद एक बार फिर भारत की सभ्यता, संस्कृति और विविधता की खुलकर तारीफ की है। उन्होंने कहा कि भारत जैसा विशाल और बहुस्तरीय देश दुनिया में बहुत कम है, जहां लगभग 1.5 अरब लोग रहते हैं और फिर भी एकजुट रहना संभव हुआ है। उनके मुताबिक भारत की असली ताकत ही उसकी “यूनिटी इन डाइवर्सिटी” है, जिसे हर हाल में बचाए रखना जरूरी है।
पुतिन ने खास तौर पर भारत की भाषाई विविधता का ज़िक्र किया। उन्होंने टिप्पणी की कि भारत में सभी लोग हिंदी नहीं बोलते, बल्कि लगभग 500–600 मिलियन लोग ही हिंदी बोलते होंगे, बाकी लोग अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि कई बार तो लोग एक-दूसरे को समझ भी नहीं पाते, फिर भी देश के स्तर पर एकता बनी रहती है। यह बात उन्हें हर बार भारत आने पर हैरान और प्रभावित करती है।
उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय आई जब वे नई दिल्ली की अपनी हाई-प्रोफाइल यात्रा के अनुभव साझा कर रहे थे। इस दौरे के दौरान पुतिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लंबी बातचीत की, जिसमें रक्षा सहयोग, ऊर्जा, व्यापार, वैश्विक राजनीति और सांस्कृतिक रिश्तों जैसे मुद्दे शामिल रहे। दोनों नेताओं के बीच हुई 23वीं वार्षिक भारत–रूस शिखर वार्ता में कई समझौते और संयुक्त बयान भी जारी किए गए, जो साझेदारी को “टाइम-टेस्टेड” और “ट्रस्ट पर आधारित” बताते हैं।
पुतिन ने अपने संबोधन में कहा कि भारत और रूस जैसे बड़े और विविध देशों के लिए यह बेहद अहम है कि वे अपनी सांस्कृतिक और सभ्यतागत पहचान को सुरक्षित रखें। उनकी नजर में भारत की विशेषता यह है कि यहां सैकड़ों समुदाय, अनेक धर्म, भाषाएं और परंपराएं होने के बावजूद लोकतांत्रिक ढांचा काम कर रहा है और लोग खुद को एक बड़े भारतीय परिवार का हिस्सा मानते हैं।
उन्होंने भाषा के संदर्भ में जो बात कही, वह भारत की जटिल संरचना की एक झलक भी देती है। आज भी हिंदी सबसे बड़ी भाषा समूह मानी जाती है, लेकिन भारत संवैधानिक रूप से दर्जनों भाषाओं को मान्यता देता है और सैकड़ों बोलियां अलग-अलग क्षेत्रों में बोली जाती हैं। कई राज्यों में स्थानीय भाषा ही प्रशासन और शिक्षा की मुख्य भाषा है, जबकि हिंदी या अंग्रेज़ी संपर्क भाषा की तरह इस्तेमाल होती है। पुतिन ने इसी पहलू को रेखांकित करते हुए कहा कि इतनी विविधता के बावजूद भारत का एक रहना “क्रिटिकली इंपॉर्टेंट” है और यह अपने आप में एक उपलब्धि है।
भारत-रूस संबंधों के संदर्भ में भी यह सांस्कृतिक सम्मान महत्वपूर्ण संकेत देता है। सोवियत दौर से ही रूसी समाज में भारतीय फिल्मों, संगीत और आध्यात्मिक परंपराओं के प्रति लगाव रहा है। पुतिन पहले भी कई बार सार्वजनिक मंचों पर भारतीय संस्कृति की तारीफ कर चुके हैं और इसे “रंगों से भरी सुंदर कहानी” जैसा बताया है। इस बार भी उन्होंने भारत की संस्कृति और भाषाई विविधता का ज़िक्र कर यह संदेश दिया कि मॉस्को नई दिल्ली को सिर्फ एक रणनीतिक साझेदार नहीं, बल्कि एक विशिष्ट सभ्यतागत दोस्त के रूप में देखता है।
राजनीतिक दृष्टि से देखें तो यह बयान ऐसे समय पर आया है जब भारत और रूस दोनों ही बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वकालत कर रहे हैं। दोनों देश अपने-अपने यहां सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता की मौजूदगी को एक ताकत की तरह पेश करते हैं, न कि कमजोरी की तरह। पुतिन का “नॉट ऑल स्पीक हिंदी” वाला बयान भाषा की बहुलता को समस्या के रूप में नहीं, बल्कि एक वास्तविकता और साथ ही साथ एक ऐसे तत्व के रूप में सामने रखता है, जिसे संतुलित तरीके से संभालकर ही मजबूत राष्ट्रीय एकता संभव है।
सोशल मीडिया पर पुतिन की यह टिप्पणी तेजी से वायरल हुई। कई भारतीय यूज़र्स ने लिखा कि एक विदेशी नेता द्वारा भारत की भाषाई सच्चाई और विविधता को इतने साफ शब्दों में स्वीकार करना सकारात्मक है। कुछ लोगों ने यह भी याद दिलाया कि भाषा और पहचान के सवाल पर भारत में अक्सर राजनीतिक बहसें चलती रहती हैं, ऐसे में बाहर से आने वाली यह नज़र हमारी अपनी बहसों को ज्यादा संतुलित बना सकती है।
कुल मिलाकर, पुतिन के इस बयान ने दो बातें साफ की हैं। पहली, भारत की पहचान सिर्फ किसी एक भाषा या एक सांस्कृतिक धारा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अनेक धागों से बुना हुआ एक व्यापक ताना-बाना है। दूसरी, रूस जैसे पुराने रणनीतिक साझेदार के लिए भी यह बात उतनी ही महत्वपूर्ण है कि भारत अपनी इस विविधता और एकता के अनोखे संतुलन को बनाए रखे। भू-राजनीतिक समीकरणों के बीच यह सांस्कृतिक सम्मान दोनों देशों के रिश्तों को और गहरा करता है।
FAQs (Hindi)
- व्लादिमीर पुतिन ने हिंदी भाषा को लेकर क्या कहा?
पुतिन ने कहा कि भारत में लगभग 1.5 अरब लोग रहते हैं और उनमें से सिर्फ करीब 500–600 मिलियन ही हिंदी बोलते होंगे, बाकी लोग अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं और कई बार एक-दूसरे को समझ भी नहीं पाते। - उन्होंने “यूनिटी इन डाइवर्सिटी” की बात किस संदर्भ में कही?
उन्होंने भारत की भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता का उदाहरण देते हुए कहा कि इतनी भिन्नताओं के बावजूद भारत का एकजुट रहना बेहद महत्वपूर्ण है और यही उसकी असली ताकत है। - यह बयान किस कार्यक्रम या मौके पर आया?
यह टिप्पणी उन्होंने अपनी भारत यात्रा के बाद दिए गए संबोधन और बातचीत के दौरान की, जहां वे नई दिल्ली में हुई बैठकों और अनुभवों पर चर्चा कर रहे थे। - क्या पुतिन पहले भी भारत की संस्कृति की तारीफ कर चुके हैं?
हां, वे पहले भी इंटरव्यू और भाषणों में भारतीय संस्कृति को “सुंदर, रंग-बिरंगी कहानी” जैसा बता चुके हैं और रूसी समाज में भारतीय फिल्मों व संगीत की लोकप्रियता का ज़िक्र करते रहे हैं। - भारत-रूस रिश्तों के लिए इस बयान का क्या महत्व है?
यह बयान दिखाता है कि रूस भारत को सिर्फ रणनीतिक या सैन्य साझेदार नहीं, बल्कि एक गहरी सांस्कृतिक और सभ्यतागत महत्व वाले देश के रूप में देखता है, जिससे आपसी भरोसा और नरम ताकत (सॉफ्ट पावर) दोनों मजबूत होते हैं।
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