Right to Disconnect Bill 2025 कर्मचारियों को ऑफिस आवर के बाद कॉल–ईमेल इग्नोर करने का कानूनी अधिकार देना चाहता है। जानिए बर्नआउट, स्ट्रेस और वर्क–लाइफ बैलेंस पर इसका असली असर क्या हो सकता है और किन बदलावों की ज़रूरत होगी।
Right to Disconnect Bill 2025: 24×7 ऑन–कॉल कल्चर के खिलाफ़ पहला बड़ा कदम?
आज की कॉरपोरेट और डिजिटल वर्क कल्चर में “ऑफिस आवर” और “पर्सनल टाइम” के बीच की लाइन बहुत धुंधली हो चुकी है। दिन भर की मीटिंग्स के बाद भी रात 10–11 बजे तक ईमेल, टीम चैट, वॉट्सऐप ग्रुप और अचानक कॉल्स का सिलसिला चलता रहता है, जिससे बहुत से प्रोफेशनल्स क्रॉनिक स्ट्रेस, स्लीप प्रॉब्लम और इमोशनल थकान महसूस करते हैं। इसी बैकड्रॉप में NCP–SP सांसद सुप्रिया सुले ने लोकसभा में Right to Disconnect Bill 2025 पेश किया है, जो कर्मचारियों को ऑफिस टाइम के बाहर काम से जुड़ी कॉल–ईमेल इग्नोर करने का कानूनी अधिकार देना चाहता है।
बिल का मकसद यह है कि कर्मचारी “हर समय उपलब्ध रहो” वाले अनलिखे दबाव से मुक्त हो सकें और उन्हें यह भरोसा हो कि अगर वे वर्क–मैसेज का जवाब अगली सुबह देंगे, तो उनकी इमेज, इन्क्रीमेंट या नौकरी पर आंच नहीं आएगी। फ्रांस और कुछ यूरोपीय देशों में इसी तरह के राइट–टु–डिसकनेक्ट कानून पहले से हैं, और शुरुआती स्टडीज़ बताती हैं कि इससे स्ट्रेस और डिजिटल ओवरवर्क पर पॉज़िटिव असर पड़ सकता है—हालांकि असली फर्क तभी दिखता है जब कंपनी कल्चर भी साथ–साथ बदले।
बिल में क्या है: कर्मचारियों के लिए कौन–कौन से अधिकार प्रस्तावित हैं?
बिल की मुख्य बात यह है कि हर कर्मचारी को यह अधिकार हो कि वह ऑफिस आवर के बाहर काम–संबंधी डिजिटल कम्युनिकेशन (कॉल, SMS, ईमेल, चैट, वीडियो कॉल आदि) का जवाब न दे और इसके लिए उस पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई न हो सके। ड्राफ्ट के अनुसार, कंपनियों और सोसाइटीज़ को अपने यहां Employees’ Welfare Committee या समान बॉडी बनानी होगी, जो मैनेजमेंट के साथ मिलकर “आफ्टर–आवर कम्युनिकेशन” के रूल्स, इमरजेंसी प्रोटोकॉल और ओवरटाइम की शर्तों पर बातचीत करेगी।
अगर कोई संस्था इन प्रावधानों का पालन नहीं करती, तो बिल 1% तक की पेनल्टी (कुल कर्मचारी वेतन बिल के अनुपात में) का प्रावधान सुझाता है, ताकि “अनपेड ओवरटाइम” और डिजिटल ओवरवर्क को रोकने के लिए आर्थिक इंसेंटिव भी बने। बिल यह भी प्रस्ताव रखता है कि अगर कर्मचारी अपनी मरज़ी से ऑफ–ड्यूटी टाइम में काम करता है, तो उसे उसी रेट से ओवरटाइम पे मिलना चाहिए, जिससे 24×7 उपलब्ध रहने वाली “फ्री लेबर” की प्रवृत्ति कम हो।
डिजिटल ओवरवर्क, टेली–प्रेशर और बर्नआउट: साइंस क्या कहती है?
कई सर्वे और ऑर्गनाइज़ेशनल–बिहेवियर रिसर्च दिखाते हैं कि लगभग 70–80% नॉलेज वर्कर ऑफिस टाइम के बाद भी काम–संबंधी ईमेल या मैसेज चेक करते हैं, और यह आदत सीधे हाई स्ट्रेस और बर्नआउट से जुड़ी मिलती है। “टेली–प्रेशर” शब्द का इस्तेमाल उस मनोवैज्ञानिक दबाव के लिए किया जाता है जिसमें कर्मचारी को लगता है कि हर मैसेज का तुरंत जवाब देना उसकी जिम्मेदारी है, नहीं तो वह गैर–प्रोफेशनल या अनरिलायबल दिखेगा।
हाल की एक स्टडी में आफ्टर–आवर वर्क–संबंधी सोशल मीडिया यूज़ (जैसे ग्रुप्स और चैट पर रात में लगातार काम–डिस्कशन) और जॉब बर्नआउट के बीच क्लियर लिंक दिखा—जितना ज्यादा आफ्टर–वर्क डिजिटल एंगेजमेंट, उतना ज्यादा वर्क–स्ट्रेस और इमोशनल एग्जॉशन। एक और रिसर्च ने पाया कि रिमोट और हाइब्रिड वर्कर्स में “ऑलवेज़–ऑन” कल्चर की वजह से लगभग 60% लोगों में डिजिटल कम्युनिकेशन–ओवरलोड और बर्नआउट के लक्षण मिलते हैं। यही कारण है कि WHO और कई मेंटल–हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन अब वर्क–लाइफ बैलेंस और डिजिटल डी–कनेक्शन को मेंटल–हेल्थ प्रोटेक्शन का अहम हिस्सा मान रहे हैं।
दुनिया के दूसरे देश: फ्रांस, इटली, पुर्तगाल और आगे का अनुभव
फ्रांस ने 2017 में “राइट टू डिसकनेक्ट” कानून पास किया, जिसके तहत 50 से अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों को कर्मचारियों के साथ आईटी डिवाइसेज़ और आफ्टर–आवर ई–कम्युनिकेशन पर कलेक्टिव एग्रीमेंट या इंटरनल चार्टर बनाना ज़रूरी हो गया। इस कानून का मकसद भी यही था कि डिजिटल टेक्नोलॉजी के कारण काम और निजी ज़िंदगी की सीमा पूरी तरह मिट न जाए और कर्मचारियों की छुट्टी, नींद और पर्सनल टाइम का सम्मान बना रहे।
इटली, पुर्तगाल, स्पेन और कुछ और देशों ने भी अलग–अलग रूप में राइट–टु–डिसकनेक्ट प्रावधान जोड़े हैं—कहीं कलेक्टिव बार्गेनिंग के जरिए, कहीं लेबर–कोड संशोधन के रूप में। इन देशों पर शुरुआती इवैल्युएशन से संकेत मिलता है कि ज्यादातर कर्मचारी और मैनेजर्स कानून को पॉज़िटिव मानते हैं और इससे स्ट्रेस, अनपेड ओवरटाइम और “इनफिनिट वर्कडे” की फीलिंग में कमी आती है, हालांकि प्रैक्टिकल इम्पैक्ट हर सेक्टर और कंपनी पर अलग–अलग रहता है।
क्या सिर्फ कानून से वर्क–लाइफ बैलेंस गारंटी हो जाएगा?
साइकॉलजी और ऑर्गनाइज़ेशनल–स्टडीज़ का कंसेंसस है कि लीगल राइट्स “फ्लोर” सेट करते हैं, लेकिन असली फर्क कंपनी कल्चर और लीडरशिप की नीयत से आता है। अगर बॉस और मैनेजमेंट खुद देर रात ईमेल भेजते रहें, वीकेंड कॉल्स को हीरोइज़ करें और परफॉर्मेंस रिव्यू में “24×7 अवेलेबिलिटी” को अप्रत्यक्ष रूप से रिवॉर्ड करें, तो सिर्फ बिल की मौजूदगी से भी कर्मचारियों पर मानसिक दबाव कम नहीं होगा।
दूसरी तरफ, जो ऑर्गनाइज़ेशन पहले से क्लियर अवर्स, फेयर वर्कलोड, फोकस्ड मीटिंग्स और “नॉर्मल रिस्पॉन्स टाइम” को नॉर्म बनाते हैं, वहां लीगल राइट्स एक अतिरिक्त सिक्योरिटी नेट की तरह काम कर सकते हैं। इसलिए मनोवैज्ञानिकों की राय में, भारत में अगर यह बिल कानून बन भी जाए, तो असली वर्क–लाइफ बैलेंस तभी दिखेगा जब HR पॉलिसीज़, मैनेजर ट्रेनिंग और रियल–लाइफ प्रैक्टिस भी उसी दिशा में बदले।
कर्मचारियों के लिए प्रैक्टिकल टिप्स: कानून हो या न हो, अपनी सीमाएं कैसे सेट करें
- क्लियर बाउंड्री सेट करें: अपने टीम–लीड और क्लाइंट्स को पहले से बता दें कि आप किस टाइम के बाद आमतौर पर ऑनलाइन नहीं रहेंगे, और सिर्फ असली इमरजेंसी में कॉल पिक करेंगे।
- नोटिफिकेशन हाइजीन: वर्क–ऐप्स के नोटिफिकेशन को ऑफ़िस टाइम के बाहर सीमित या साइलेन्ट मोड पर रखें; जरूरत हो तो “फोकस मोड” या “डू नॉट डिस्टर्ब” शेड्यूल सेट करें।
- शेड्यूल्ड जवाब: हर मैसेज का तुरंत जवाब देने की जगह, मॉर्निंग और नेक्स्ट वर्किंग डे पर बैच–रिस्पॉन्स की आदत डालें, ताकि दिमाग 24×7 “अलर्ट मोड” में न रहे।
- सपोर्ट और लीव: ओवरव्हेल्म महसूस हो तो हेल्प मांगना, टाइम–ऑफ लेना और अगर ज़रूरत हो तो मेंटल–हेल्थ प्रोफेशनल से बात करना बिल्कुल सामान्य बात मानें—क्रॉनिक ओवरवर्क का असर सिर्फ जॉब पर नहीं, हेल्थ पर भी पड़ता है।
FAQs
1. अगर Right to Disconnect Bill कानून बन गया, तो क्या मैं कानूनी रूप से रात के मैसेज इग्नोर कर सकूंगा/सकूंगी?
ड्राफ्ट के मुताबिक, बिल हर कर्मचारी को यह अधिकार देना चाहता है कि वह ऑफिस आवर के बाहर काम–संबंधी कॉल, ईमेल या मैसेज का जवाब न दे और इसके लिए उसे किसी भी तरह की डिसिप्लिनरी एक्शन या पेनल्टी का सामना न करना पड़े। साथ ही कंपनियों को आउट–ऑफ़–आवर्स कम्युनिकेशन और इमरजेंसी के लिए स्पष्ट नियम और कर्मचारी–प्रतिनिधियों के साथ एग्रीमेंट बनाने होंगे।
2. क्या यह बिल पास होने की गारंटी है और कब से लागू होगा?
यह फिलहाल एक प्राइवेट मेंबर बिल है, जिसे सुप्रिया सुले ने 2025 में दोबारा पेश किया है; ऐसे बिलों को कानून बनने के लिए व्यापक संसदीय बहस, सरकार का समर्थन और दोनों सदनों से पास होना जरूरी होता है। अभी के चरण पर यह कहना जल्दी होगा कि यह कब और किस रूप में लागू होगा, लेकिन इस पर हो रही पब्लिक और पॉलिटिकल चर्चा खुद काम–काज की सीमाओं पर बहस को मुख्यधारा में ला रही है।
3. क्या इससे कंपनियों की प्रोडक्टिविटी कम हो जाएगी?
फ्रांस और दूसरे देशों पर हुई शुरुआती स्टडीज़ और इंटरव्यूज़ में कई कर्मचारियों और मैनेजरों ने बताया कि क्लियर बाउंड्री से फोकस और एफिशिएंसी में सुधार हो सकता है, क्योंकि लोग काम के समय में ज़्यादा कंसेंट्रेटेड और ऑफ़–टाइम में ज़्यादा रीस्टेड रहते हैं। कुछ रिसर्च यह भी दिखाती है कि आफ्टर–आवर ओवरकनेक्टिविटी से स्ट्रेस और बर्नआउट बढ़ने पर लॉन्ग–टर्म में प्रोडक्टिविटी और रिटेन्शन दोनों पर नेगेटिव असर पड़ता है, इसलिए सस्टेनेबल आउटपुट के लिए बैलेंस ज़रूरी है।
4. अगर मेरा रोल ग्लोबल–टीम या इमरजेंसी–ऑन–कॉल वाला है, तब यह अधिकार कैसे काम करेगा?
बिल और दूसरे देशों के कानून आमतौर पर कहते हैं कि कंपनि–लेवल पर कलेक्टिव एग्रीमेंट या पॉलिसी बनाई जाए, जिसमें टाइम–ज़ोन, ऑन–कॉल ड्यूटी और क्रिटिकल रोल्स को ध्यान में रखकर क्लियर इमरजेंसी प्रोटोकॉल और मुआवज़ा तय हो। मतलब यह नहीं कि किसी को कभी–भी रात में कॉन्टैक्ट नहीं किया जा सकता, बल्कि यह कि कब, कैसे और किसके लिए ऐसा होगा, और इसके बदले फेयर ओवरटाइम या कम्पेनसेटरी टाइम–ऑफ मिले—ये सब ट्रांसपेरेंट और सहमति–आधारित हो।
5. क्या Right to Disconnect से मेरी मेंटल हेल्थ सच में बेहतर होगी?
रिसर्च से क्लियर है कि लगातार आफ्टर–आवर ईमेल/मैसेज और “हमेशा ऑन” रहने का दबाव वर्क–स्ट्रेस, स्लीप प्रॉब्लम्स और बर्नआउट से जुड़ा हुआ है, और जब संगठन इसे लिमिट करने वाली पॉलिसी बनाते हैं, तो औसतन स्ट्रेस लेवल और इमोशनल एग्जॉशन में कमी देखी जा सकती है। हालांकि, असली फायदा तभी होगा जब आप खुद भी बाउंड्री सेट करने की आदत डालें, “न” कहना सीखें और कंपनी–कल्चर सच में इन नियमों को मानने के लिए तैयार हो—कानून अकेले सब नहीं बदल सकता।
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