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Sambhal Mosque Demolition: HC का बड़ा फैसला, कहा- “प्रशासन ने कानून के मुताबिक कार्रवाई की”

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Sambhal Mosque Demolition
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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने Sambhal Mosque Demolition याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि निर्माण अवैध था और प्रशासन ने कानूनी प्रक्रिया का पालन किया। पढ़ें फैसले की पूरी डिटेल।

इलाहाबाद HC ने Sambhal Mosque Demolition याचिका खारिज की

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने संभल की मस्जिद विध्वंस के खिलाफ याचिका खारिज की, निर्माण को बताया अवैध

उत्तर प्रदेश के संभल जिले में एक मस्जिद के विध्वंस को लेकर चल रहे विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना महत्वपूर्ण फैसला सुना दिया है। हाई कोर्ट ने मस्जिद के विध्वंस के खिलाफ दायर की गई याचिका को खारिज करते हुए स्थानीय प्रशासन की कार्रवाई को बरकरार रखा है। कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि यह निर्माण अवैध था और प्रशासन ने कानून के मुताबिक उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए विध्वंस का आदेश दिया था। यह फैसला जस्टिस के. सी. त्रिपाठी और जस्टिस विक्रम डी. चौहान की खंडपीठ ने सुनाया। यह मामला सार्वजनिक हित और कानून के शासन के बीच के संतुलन पर एक गंभीर सवाल खड़ा करता है।

क्या है पूरा विवाद?

यह मामला संभल जिले के एक गाँव की उस मस्जिद से जुड़ा है, जिसे स्थानीय प्रशासन ने अवैध निर्माण बताते हुए ध्वस्त करने का आदेश जारी किया था। प्रशासन का कहना था कि यह मस्जिद सार्वजनिक जमीन पर बिना किसी कानूनी अनुमति के बनाई गई थी। इस आदेश के बाद, मस्जिद का प्रबंधन करने वाले समुदाय के सदस्यों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और विध्वंस रोकने के लिए याचिका दायर की।

याचिकाकर्ताओं की तरफ से दावा किया गया कि यह मस्जिद दशकों पुरानी है और इबादत का स्थल रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन की कार्रवाई मनमानी और पक्षपातपूर्ण है। वहीं, प्रशासन की ओर से पेश हुए वकीलों ने कोर्ट में सबूत पेश किए कि निर्माण के लिए कोई कानूनी अनुमति नहीं ली गई थी और यह सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण है।

हाई कोर्ट के फैसले की मुख्य बातें

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले में जो महत्वपूर्ण टिप्पणियां और फैसला दिया, वह इस प्रकार है:

कोर्ट ने सबसे पहले यह देखा कि क्या प्रशासन ने विध्वंस का आदेश देने से पहले सही कानूनी प्रक्रिया का पालन किया। कोर्ट को प्रशासन की ओर से यह दिखाया गया कि अवैध निर्माण को लेकर पहले नोटिस जारी किए गए थे और संबंधित पक्षों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया था। कोर्ट ने माना कि प्रशासन ने नियमों के अनुसार कार्यवाही की।

कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि कोई भी निर्माण, चाहे वह धार्मिक हो या आवासीय, कानून का पालन करना होगा। कानून से ऊपर कोई नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी निर्माण को अवैध पाया जाता है, तो उसके धार्मिक होने का आधार पर उसे विशेष छूट नहीं दी जा सकती। न्यायालय ने यह भी noted किया कि याचिकाकर्ता निर्माण की कानूनी वैधता साबित करने में विफल रहे।

हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के उस दावे को भी खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने मस्जिद के पुराने होने का दावा किया था। कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया जो यह साबित कर सके कि यह निर्माण कानूनी था या दशकों से अस्तित्व में है। प्रशासन के रिकॉर्ड में इसे अवैध ही दर्शाया गया था।

कानूनी और सामाजिक संदर्भ

भारत में, किसी भी निर्माण के लिए नगर निगम या स्थानीय प्राधिकरण से अनुमति लेना अनिवार्य है। उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में अवैध निर्माण और अतिक्रमण के खिलाफ एक मुहिम चलाई है, जिसके तहत कई धार्मिक और commercial structures को भी हटाया गया है। सरकार का कहना है कि यह कार्रवाई कानून के शासन को मजबूत करने और सार्वजनिक संपत्ति को मुक्त कराने के लिए है।

हालाँकि, विपक्ष और कुछ सामाजिक संगठन अक्सर इन कार्रवाइयों पर सवाल उठाते हैं और उन्हें लक्षित बताते हैं। ऐसे में, न्यायपालिका का हस्तक्षेप और उसका फैसला कानूनी प्रक्रिया की शुद्धता सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह फैसला एक मिसाल कायम करता है कि कानून सभी के लिए एक जैसा है और धार्मिक भावनाएं कानून का उल्लंघन करने का लाइसेंस नहीं दे सकतीं।

आगे की राह

हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद, अब प्रशासन के पास मस्जिद के विध्वंस का कानूनी रास्ता साफ हो गया है। हालाँकि, याचिकाकर्ता अभी भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं और वहाँ से राहत मांग सकते हैं। अगर वे ऐसा करते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मामले का अंतिम पड़ाव होगा। फिलहाल, यह फैसला कानून के शासन और प्रशासनिक अधिकारों की जीत के रूप में देखा जा रहा है।

(FAQs)

1. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिका क्यों खारिज की?
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिका इसलिए खारिज की क्योंकि उसे प्रशासन की कार्रवाई कानूनी और उचित लगी। कोर्ट ने माना कि मस्जिद का निर्माण बिना अनुमति के सार्वजनिक जमीन पर हुआ था, जो अवैध है।

2. क्या याचिकाकर्ता अब सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं?
हाँ, याचिकाकर्ता हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट उनकी अपील स्वीकार कर सकती है या खारिज कर सकती है।

3. क्या धार्मिक इमारतों को विशेष छूट नहीं मिलती?
कानून के मामले में, धार्मिक इमारतों को भी सभी नियमों का पालन करना होता है। निर्माण के लिए कानूनी अनुमति लेना हर नागरिक और संस्था के लिए अनिवार्य है। कोई विशेष छूट नहीं है।

4. प्रशासन ने विध्वंस से पहले क्या प्रक्रिया अपनाई?
प्रशासन ने अवैध निर्माण का नोटिस जारी किया, याचिकाकर्ताओं को जवाब देने का मौका दिया, और उनके जवाब पर विचार करने के बाद ही विध्वंस का आदेश दिया। कोर्ट ने इस प्रक्रिया को उचित माना।

5. इस फैसले का बड़ा असर क्या होगा?
यह फैसला एक तरह का संदेश देता है कि कानून सभी के लिए समान है। इससे प्रशासन को अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई करने में मदद मिलेगी और लोग कानूनी अनुमति के बिना निर्माण करने से पहले दो बार सोचेंगे।

6. क्या इस तरह के मामले पहले भी सामने आए हैं?
जी हाँ, उत्तर प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों में अवैध धार्मिक निर्माणों को हटाए जाने के कई मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से अधिकतर मामलों में अदालतों ने कानून का पक्ष लिया है, बशर्ते प्रशासन ने सही प्रक्रिया का पालन किया हो।

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