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SC ने वक्फ एक्ट की धारा 4 पर लगाई रोक: अब 5 साल से इस्लाम न मानने वाले भी कर सकेंगे ट्रस्ट में दान?

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Supreme Court Stays Waqf Act Clause : सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ एक्ट 1995 के विवादास्पद प्रावधानों पर आंशिक रोक लगाई है। 5 साल तक इस्लाम का पालन करने की शर्त स्थगित, ट्रस्टी नियुक्ति के नियमों पर भी रोक। कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया।

वक्फ एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट की रोक: 5 साल इस्लाम प्रैक्टिस की शर्त सहित 3 प्रावधान स्थगित

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ एक्ट, 1995 (Waqf Act, 1995) के कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर एक अहम और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इस एक्ट की तीन महत्वपूर्ण धाराओं (Sections) पर आंशिक रोक (Partial Stay) लगा दी है, जिनमें वह शर्त भी शामिल है जो किसी व्यक्ति को वक्फ प्रॉपर्टी के ट्रस्टी (Trustee) बनने के लिए पांच साल तक इस्लाम का पालन करना अनिवार्य बनाती थी। यह फैसला एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान आया है, जिसमें इस कानून की संवैधानिक वैधता (Constitutional Validity) को चुनौती दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने न केवल इन प्रावधानों पर रोक लगाई है, बल्कि केंद्र सरकार को भी नोटिस जारी करके छह हफ्तों के भीतर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता, कानून की समानता और प्रशासनिक स्वायत्तता जैसे गंभीर मुद्दों को छूता है। इस लेख में, हम इस फैसले के हर पहलू को विस्तार से समझेंगे।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सार: किन प्रावधानों पर लगी रोक?

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ, जिसमें जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस सन्दीष मेहता शामिल थे, ने वक्फ एक्ट, 1995 की निम्नलिखित तीन धाराओं के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है:

  1. धारा 4 (Section 4): यह धारा वक्फ बोर्ड के सदस्यों और चेयरमैन की नियुक्ति से जुड़े नियमों को लेकर केंद्र सरकार को अधिकार देती है। कोर्ट ने इस धारा के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है।
  2. धारा 14 (Section 14): यह धारा वक्फ बोर्ड के चेयरमैन को यह अधिकार देती है कि वह किसी भी प्रॉपर्टी को वक्फ प्रॉपर्टी (Waqf Property) घोषित कर सकता है। इस प्रावधान पर भी रोक लग गई है।
  3. धारा 15 (Section 15): यही वह सबसे चर्चित धारा है जिसमें एक शर्त यह थी कि कोई भी व्यक्ति वक्फ प्रॉपर्टी का ट्रस्टी (न्यासी) तभी बन सकता है जब वह पांच साल से इस्लाम का पालन (Practice Islam) कर रहा हो। सुप्रीम कोर्ट ने इस ‘5-वर्षीय इस्लाम प्रैक्टिस’ की शर्त पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है।

विवाद की जड़: आखिर याचिका में क्या दावा किया गया था?

इस मामले की शुरुआत एक जनहित याचिका (PIL) से हुई, जिसे वक्फ एक्ट, 1995 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए दायर किया गया था। याचिकाकर्ताओं का मुख्य तर्क था कि यह कानून भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 15 (धर्म, नस्ल, जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव का निषेध) का उल्लंघन करता है।

याचिका में विशेष रूप से धारा 15 में दी गई ‘5-वर्षीय इस्लाम प्रैक्टिस’ की शर्त पर सवाल उठाया गया। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह शर्त उन लोगों के साथ भेदभावपूर्ण है जो जन्म से मुसलमान हैं लेकिन किसी कारणवश उन्होंने अपने धर्म का पालन करना बंद कर दिया हो, या फिर वे लोग जिन्होंने हाल ही में इस्लाम धर्म अपनाया हो। यह शर्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर भी एक तरह का प्रतिबंध लगाती है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ: कोर्ट ने क्या कहा?

सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने इस ‘5-वर्षीय इस्लाम प्रैक्टिस’ की शर्त पर गहरी चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि यह शर्त बहुत ही “असामान्य” (Unusual) है।

कोर्ट ने सवाल किया, “क्या कोई यह साबित करने के लिए सबूत लेकर आएगा कि वह पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहा है? यह कैसे तय होगा? क्या कोई व्यक्ति यह साबित करने के लिए अदालत में गवाह पेश करेगा?” कोर्ट ने इसे एक गंभीर मुद्दा बताया और कहा कि इस तरह की शर्त संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ जाती है।

इसके अलावा, कोर्ट ने धारा 4 पर भी सवाल उठाया, जो केंद्र सरकार को वक्फ बोर्ड के चेयरमैन की नियुक्ति का अधिकार देती है। कोर्ट ने इसे एक स्वायत्त निकाय (Autonomous Body) के लिए उचित नहीं माना।

आगे की कार्यवाही: अब क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और कानून मंत्रालय को एक नोटिस जारी किया है और उनसे छह हफ्तों के भीतर इस मामले पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। इसका मतलब है कि सरकार को अदालत के सामने यह समझाना होगा कि इन विवादास्पद प्रावधानों को क्यों बनाया गया था और वे संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप कैसे हैं।

अगले छह हफ्तों तक, ऊपर बताए गए तीनों प्रावधान प्रभावी रूप से निलंबित (Suspended) रहेंगे। इसके बाद, कोर्ट में फिर से सुनवाई होगी और दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद ही अगला फैसला सुनाया जाएगा। यह केस भारत में धार्मिक न्यासों (Religious Trusts) के प्रशासन और कानून पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक स्पष्ट संदेश देता है कि कोई भी कानून संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार, का उल्लंघन नहीं कर सकता। यह मामला केवल एक कानूनी दांव-पेच से कहीं आगे की बात है; यह इस बात पर एक गहन बहस छेड़ता है कि एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र में धार्मिक निकायों का प्रशासन कैसे चलना चाहिए। अब नजर केंद्र सरकार के जवाब और अदालत की अगली सुनवाई पर टिकी है, जो इस मामले का अंतिम निर्णय करेगी।


(FAQs)

1. सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ एक्ट पर क्या रोक लगाई है?
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ एक्ट, 1995 की तीन धाराओं – धारा 4, 14 और 15 – के क्रियान्वयन पर आंशिक रोक लगा दी है। इनमें 5 साल तक इस्लाम का पालन करने की अनिवार्य शर्त भी शामिल है।

2. धारा 15 में क्या प्रावधान था जिस पर रोक लगी?
धारा 15 में यह प्रावधान था कि कोई भी व्यक्ति वक्फ प्रॉपर्टी का ट्रस्टी (न्यासी) तभी बन सकता है जब वह पांच साल से लगातार इस्लाम का पालन कर रहा हो। सुप्रीम कोर्ट ने इस विशेष शर्त पर रोक लगा दी है।

3. सुप्रीम कोर्ट ने इस शर्त पर आपत्ति क्यों जताई?
कोर्ट ने इस शर्त को “असामान्य” बताया और कहा कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध) का उल्लंघन करती है। कोर्ट ने सवाल किया कि कोई व्यक्ति यह कैसे साबित करेगा कि वह 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा है।

4. अब ट्रस्टी की नियुक्ति कैसे होगी?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, अगले छह हफ्तों तक या आगे के आदेश तक, ट्रस्टी की नियुक्ति के लिए 5 साल के इस्लाम प्रैक्टिस वाली शर्त लागू नहीं होगी। नियुक्ति प्रक्रिया अन्य मानदंडों के आधार पर हो सकती है।

5. केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है?
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और कानून मंत्रालय को एक नोटिस जारी किया है और उन्हें छह हफ्तों के भीतर इन प्रावधानों के औचित्य पर अपना पक्ष रखने के लिए कहा है।

6. क्या यह रोक स्थायी है?
नहीं, यह रोक अभी आंशिक और अंतरिम (interim) है। यह सुनवाई के अगले चरण तक लागू रहेगी। अंतिम फैसला केंद्र सरकार का जवाब और कोर्ट की संपूर्ण सुनवाई के बाद ही आएगा।

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