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अमेरिका का दबाव: क्या भारत को अब रूस से तेल आयात घटाना पड़ेगा?

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India-US relations and Russian oil trade tension
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अमेरिका के बढ़ते दबाव और डोनाल्ड ट्रंप की चेतावनी के बाद भारत-रूस तेल व्यापार पर नई बहस छिड़ी है। क्या भारत को सस्ता रूसी तेल छोड़ना होगा या वह रणनीतिक संतुलन बनाए रखेगा?

रूस से सस्ता तेल और अमेरिका की नाराज़गी: भारत की रणनीतिक चुनौती

डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयानों ने एक बार फिर भारत-अमेरिका रिश्तों में नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने कहा कि “भारत को अब तय करना होगा कि वह वैश्विक स्थिरता चाहता है या रूस से सस्ते तेल का लालच।” यह बयान ऐसे समय में आया है जब रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत लगातार रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है, जिससे उसे भारी आर्थिक राहत मिली है।

भारत अब दुनिया के उन शीर्ष देशों में है जो रूस से डिस्काउंट पर क्रूड आयात करते हैं — और यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए काफी फायदेमंद साबित हुआ है। लेकिन अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों को इससे असहजता है।


रूस से तेल खरीद की कहानी

फरवरी 2022 में जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ, तब पश्चिमी देशों ने रूस पर भारी आर्थिक प्रतिबंध लगाए। इसके बाद रूसी कच्चे तेल की कीमतें गिर गईं, और भारत ने इस मौके का फायदा उठाते हुए रूस से बड़े पैमाने पर सस्ता तेल खरीदना शुरू किया।

भारत की कुल तेल जरूरतों में से लगभग 25-30% हिस्सा रूस से आने लगा — जो 2021 में सिर्फ 2% था। इसके चलते पेट्रोल-डीज़ल की घरेलू कीमतें नियंत्रित रहीं और महंगाई पर कुछ हद तक लगाम लगी।

लेकिन इस कदम को अमेरिका “वैश्विक प्रतिबंधों के खिलाफ कदम” के रूप में देखता है।


अमेरिका का दृष्टिकोण

अमेरिका का तर्क है कि रूस से तेल खरीदने से उसकी अर्थव्यवस्था को सहारा मिलता है, जिससे वह युद्ध जारी रख पा रहा है। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि “भारत को लोकतांत्रिक देशों के साथ रहना चाहिए, न कि उन देशों के साथ जो अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन कर रहे हैं।”

हाल ही में अमेरिकी विदेश विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा —

“India must align more closely with democratic partners. Buying Russian oil undermines global efforts to isolate Moscow.”

यह बयान भारत में मिली-जुली प्रतिक्रिया के साथ देखा गया।


भारत की रणनीति: संतुलन का खेल

भारत ने हमेशा स्पष्ट किया है कि उसकी नीति “राष्ट्रीय हित पहले” पर आधारित है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी कहा था —

“भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखकर निर्णय लेता है। यूरोप को भी अपने फायदे देखने का अधिकार है, तो भारत को क्यों नहीं?”

भारत का यह रुख दर्शाता है कि वह किसी दबाव में नहीं आएगा।

भारत की विदेश नीति “रणनीतिक स्वायत्तता” पर टिकी है — यानी न तो किसी ब्लॉक के साथ पूरी तरह झुकना और न ही किसी का विरोध करना। यही नीति रूस-यूक्रेन संकट में भी अपनाई गई।


आर्थिक दृष्टिकोण से लाभ

रूस से सस्ता तेल मिलने से भारत को तीन बड़े फायदे हुए —

लाभविवरण
आर्थिक बचतप्रति बैरल $10-15 की छूट से भारत ने अरबों डॉलर की बचत की।
महंगाई नियंत्रणपेट्रोल-डीज़ल की कीमतें अपेक्षाकृत स्थिर रहीं।
ऊर्जा सुरक्षासंकट के समय वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध रहा।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2023-24 में भारत ने रूस से लगभग 50 मिलियन टन क्रूड ऑयल खरीदा।


राजनीतिक प्रभाव

डोनाल्ड ट्रंप के बयान के बाद अमेरिकी राजनीतिक हलकों में भी बहस तेज हो गई है। कुछ रिपब्लिकन नेताओं का मानना है कि भारत “ग्लोबल साउथ का नेतृत्व” कर रहा है और अमेरिका को उसके साथ सहयोग करना चाहिए, जबकि अन्य इसे “रूस के प्रति नरम रवैया” बताते हैं।

भारत-अमेरिका रक्षा और प्रौद्योगिकी साझेदारी को देखते हुए दोनों देशों के लिए रिश्ते बनाए रखना बेहद अहम है। क्वाड (QUAD), इंडो-पैसिफिक रणनीति और अर्धचालक सहयोग जैसे क्षेत्रों में भारत-अमेरिका साथ-साथ काम कर रहे हैं।


रूस का दृष्टिकोण

रूस के लिए भारत एक स्थायी और भरोसेमंद ग्राहक है। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा था —

“हम भारत को ऊर्जा आपूर्ति जारी रखेंगे। हमारा संबंध पारस्परिक सम्मान और विश्वास पर आधारित है।”

इससे साफ है कि रूस भारत को एक “दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदार” के रूप में देखता है।


विशेषज्ञों की राय

दिल्ली-स्थित थिंक टैंक ORF के विशेषज्ञ प्रो. हरिंदर सिंह का कहना है:

“भारत का रूस से तेल खरीदना न तो नैतिक रूप से गलत है, न रणनीतिक रूप से खतरनाक। हर देश अपने नागरिकों के हित में निर्णय लेता है।”

दूसरी ओर, कुछ पश्चिमी विश्लेषकों का मानना है कि यदि ट्रंप फिर से सत्ता में आते हैं, तो भारत पर आर्थिक दबाव बढ़ सकता है।


भारत के सामने अब दो रास्ते हैं —

  1. संतुलन बनाए रखना: रूस से सस्ता तेल लेते हुए अमेरिका के साथ रणनीतिक रिश्ते बनाए रखना।
  2. ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण: मध्य पूर्व, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से नए आयात स्रोत ढूंढना।

सरकार “ग्रीन एनर्जी ट्रांजिशन” की दिशा में भी तेजी से काम कर रही है ताकि भविष्य में आयात पर निर्भरता कम हो।


भारत आज ऊर्जा नीति, रणनीति और कूटनीति — तीनों के बीच संतुलन बना रहा है।
ट्रंप की चेतावनी ने भले ही माहौल गर्माया हो, पर भारत की प्राथमिकता स्पष्ट है —
“राष्ट्रहित सर्वोपरि।”


FAQs

1. क्या भारत पर अमेरिका प्रतिबंध लगा सकता है?
संभावना कम है। भारत अमेरिका का रणनीतिक साझेदार है, और दोनों देशों के रिश्ते कई मोर्चों पर मजबूत हैं।

2. रूस से भारत को तेल कितने प्रतिशत सस्ता मिलता है?
औसतन प्रति बैरल $10–15 सस्ता, जो बड़ी मात्रा में बचत देता है।

3. क्या भारत रूस से तेल के अलावा अन्य ऊर्जा संसाधन भी खरीदता है?
हाँ, भारत रूसी कोयला और उर्वरक भी आयात करता है।

4. क्या भारत अपनी ऊर्जा निर्भरता कम करने की दिशा में काम कर रहा है?
हाँ, सौर और हाइड्रोजन ऊर्जा के क्षेत्र में भारत तेज़ी से प्रगति कर रहा है।

5. क्या यह विवाद भारत-अमेरिका संबंधों को कमजोर करेगा?
अल्पकालिक तनाव संभव है, लेकिन दीर्घकाल में दोनों देशों के हित आपस में जुड़े हुए हैं।

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