Vitamin B12 लाल रक्त कोशिकाओं, दिमाग और नसों के लिए ज़रूरी है। इसकी कमी से थकान, सुन्नपन, भूलने की बीमारी और एनीमिया हो सकता है। जानिए कारण, लक्षण, सोर्स और इलाज।
Vitamin B12 क्या है और शरीर में क्यों इतना ज़रूरी है?
Vitamin B12 (कोबालामिन) एक वॉटर–सॉल्युबल विटामिन है जो आपके खून, दिमाग और नसों—तीनों की हेल्थ के लिए बेसिक ईंट की तरह काम करता है। यह विटामिन डीएनए बनाने, लाल रक्त कोशिकाएं तैयार करने, नर्व सेल्स की सुरक्षा और खाने को ऊर्जा में बदलने जैसे कई ज़रूरी कामों में शामिल होता है, इसलिए इसकी कमी कई सिस्टम को एक साथ डिस्टर्ब कर सकती है।
शरीर खुद विटामिन B12 नहीं बना सकता, इसलिए इसे डाइट या सप्लीमेंट से लेना पड़ता है। अधिकतर नेचुरल सोर्स जानवर–आधारित होते हैं, जैसे मांस, मछली, अंडे और डेयरी, जिसकी वजह से वेजिटेरियन और खासकर वेगन लोगों में B12 की कमी का रिस्क खासा बढ़ जाता है।
Vitamin B12 शरीर में कौन–कौन से काम करता है?
पहला बड़ा रोल है लाल रक्त कोशिकाओं (रेड ब्लड सेल्स) की सही बनावट और संख्या बनाए रखना। B12 और फोलेट मिलकर ऐसी कोशिकाएं बनाने में मदद करते हैं जो पर्याप्त ऑक्सीजन ले जा सकें; कमी होने पर सेल्स बड़ी और कमज़ोर हो जाती हैं, जिसे मेगालोब्लास्टिक एनीमिया कहा जाता है।
दूसरा अहम काम है नर्व सिस्टम की सुरक्षा। B12 मायलिन नाम की फैटी परत बनाने में मदद करता है, जो नसों के ऊपर इंसुलेशन की तरह चढ़ी रहती है; इस परत को नुकसान हो तो झुनझुनी, सुन्नपन, बैलेंस बिगड़ना और लंबे समय में स्थायी नर्व डैमेज हो सकता है। तीसरा, B12 दिमाग के लिए ज़रूरी न्यूरोट्रांसमीटर बनाने में पार्टिसिपेट करता है, जिससे मूड, मेमोरी और फोकस पर डायरेक्ट असर पड़ता है।
B12 की कमी से कौन–कौन से लक्षण दिख सकते हैं?
NIH और दूसरी हेल्थ एजेंसियों के अनुसार, शुरुआती दौर में B12 की कमी बहुत साइलेंट हो सकती है, लेकिन धीरे–धीरे कई तरह के लक्षण उभरने लगते हैं।
कमज़ोरी, जल्दी थक जाना, चक्कर, हांफना, धड़कन तेज़ लगना, पीलापन या फीकी त्वचा—ये सब एनीमिया से जुड़े कॉमन सिग्नल हैं। जीभ पर जलन या चिकनी, लाल जीभ (ग्लोसाइटिस), मुंह के कोनों पर कट या बार–बार मुंह के छाले भी B12 की कमी में दिख सकते हैं।
नर्व और दिमाग से जुड़े लक्षणों में हाथ–पैरों में झुनझुनी या सुन्नपन, बिजली–सी सनसनाहट, बैलेंस खराब होना, चलने में डगमगाहट, चीजें गिरा देना, याददाश्त कम होना, ध्यान न लग पाना, चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन या मूड स्विंग शामिल हैं। लम्बे समय तक अनदेखा करने पर यह नर्व डैमेज हमेशा के लिए भी हो सकता है, इसलिए सिर्फ “विटामिन कमी होगी, बाद में भर लेंगे” सोचकर इसे हल्के में लेना सही नहीं है।
किसको B12 की कमी का रिस्क ज़्यादा रहता है?
इंटरनेशनल गाइडलाइंस कई हाई–रिस्क ग्रुप्स को चिन्हित करती हैं, जिनमें रेगुलर स्क्रीनिंग या प्रिवेंशन की सलाह दी जाती है।
- वेगन और स्ट्रिक्ट वेजिटेरियन, जो कोई भी आनिमल–सोर्स फूड नहीं लेते या बहुत कम लेते।
- उम्र 50–60 साल से ऊपर के लोग, जिनमें पेट का एसिड और इंट्रिंसिक फैक्टर कम बनने से एब्ज़ॉर्प्शन घट जाता है।
- वे लोग जिनकी पेट या आंत की सर्जरी (जैसे गैस्ट्रिक बाइपास, इलियम रिमूवल) हुई है या जिन्हें क्रॉनिक गैस्ट्राइटिस, सेलियक डिज़ीज़, क्रोहन, पैनक्रियाटिक प्रॉब्लम, आदि हैं।
- जो लोग लंबे समय से मेटफॉर्मिन (डायबिटीज़ दवा) या 12 महीने से ज्यादा प्रोटॉन पंप इनहिबिटर (PPI) / H2 ब्लॉकर जैसे एंटासिड ले रहे हैं, उनमें B12 एब्ज़ॉर्प्शन कम होने के ठोस सबूत हैं।
इंडियन डेटा दिखाता है कि नॉर्थ इंडिया जैसे क्षेत्रों में करीब आधी आबादी में B12 डेफिशियेंसी पाई गई, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा प्योर वेजिटेरियन और महिलाएं थीं। यह पैटर्न साफ इशारा करता है कि भारतीय संदर्भ में B12 को “रूटीन हेल्थ–चेक आइटम” की तरह देखना चाहिए, खासकर शहरी–वेजिटेरियन और प्रेग्नेंट महिलाओं में।
इंडिया में B12 की कमी इतनी कॉमन क्यों है?
कई कारण एक साथ काम करते हैं। पहला, बड़ी आबादी वेजिटेरियन या एग–लेस वेजिटेरियन डाइट पर है, जो B12 के नेचुरल सोर्स से लगभग खाली होती है। दूसरा, दूध–दही भी कई बार इतनी मात्रा में नहीं लिया जाता कि रोज़ की ज़रूरत पूरी हो सके, खासकर जब डाइट पहले से ही कैलोरी–डिफिशियेंट हो।
तीसरा, मेटफॉर्मिन और PPI जैसी दवाओं का लॉन्ग–टर्म यूज़ डायबिटीज़ और गैस्ट्रिक प्रॉब्लम के साथ तेजी से बढ़ रहा है, जो B12 एब्ज़ॉर्प्शन पर नेगेटिव असर डाल सकते हैं। चौथा, हेल्थ सिस्टम में B12 टेस्ट को अक्सर तब तक नहीं देखा जाता जब तक एनीमिया या बहुत तीव्र न्यूरोलॉजिकल लक्षण न आ जाएं, जबकि माइल्ड डेफिशियेंसी भी थकान और कॉग्निटिव फंक्शन पर असर डाल सकती है।
विटामिन B12 की रोज़ाना कितनी ज़रूरत होती है?
NIH के अनुसार, अधिकांश वयस्कों के लिए विटामिन B12 की अनुशंसित रोज़ाना मात्रा लगभग 2.4 माइक्रोग्राम है। प्रेग्नेंट और ब्रेस्टफीडिंग महिलाओं के लिए यह ज़रूरत थोड़ी बढ़कर लगभग 2.6–2.8 माइक्रोग्राम तक मानी जाती है, क्योंकि उन्हें खुद के साथ–साथ भ्रूण या शिशु की ज़रूरत भी पूरी करनी होती है।
ध्यान देने की बात है कि यह मात्रा बहुत बड़ी नहीं दिखती, लेकिन ज़्यादातर वेजिटेरियन भोजन में B12 लगभग न के बराबर होता है, इसलिए “थोड़ा–बहुत मिल ही जाएगा” वाली धारणा खतरनाक हो सकती है। इसी वजह से 50 साल से ऊपर के लोगों और स्ट्रिक्ट वेगन/वेजिटेरियन के लिए फोर्टिफाइड फूड या सप्लीमेंट की स्पष्ट सिफारिश की जाती है।
विटामिन B12 के बेस्ट नॉन–वेजिटेरियन सोर्सेस
जानवर–आधारित फूड्स में B12 नेचुरल रूप से पाया जाता है और यह आम तौर पर अच्छी तरह एब्ज़ॉर्ब हो जाता है।
- मछली (सैल्मन, सार्डीन, टूना, मैकरेल आदि)
- मीट (बीफ, मटन, लीवर जैसे ऑर्गन मीट; जो इंडिया में हर किसी के लिए प्रैक्टिकल नहीं)
- चिकन और अन्य पोल्ट्री
- अंडे, खासकर पीला हिस्सा
- डेयरी: दूध, दही, चीज़, दही–आधारित ड्रिंक्स
कई न्यूट्रिशन फैक्ट शीट्स में दिखाया गया है कि 1 ग्लास दूध + 1–2 अंडे + थोड़ी–सी दही/पनीर रोज़ लेने से नॉन–वेज या ओवो–वेज लोगों का B12 इनटेक आसानी से अनुशंसित लेवल तक पहुंच सकता है। लेकिन इसे पेट और दवाओं की हालत, और बाकी डाइट के साथ बैलेंस करके देखना ज़रूरी है, खासकर अगर कोलेस्ट्रॉल या दूसरी बीमारियां साथ हों।
वेगन/वेजिटेरियन के लिए विटामिन B12 कहां से आएगा?
क्योंकि अधिकांश प्लांट–फूड्स नेचुरली B12 से लगभग खाली हैं, इसलिए वेज, खासकर वेगन लोगों के लिए दो ही भरोसेमंद रास्ते बचते हैं—फोर्टिफाइड फूड और सप्लीमेंट।
फोर्टिफाइड सोर्सेज में शामिल हो सकते हैं:
- B12–फोर्टिफाइड ब्रेकफास्ट सीरियल
- प्लांट–बेस्ड मिल्क (सोया, ओट, आलमंड) जिन पर “B12 fortified” लिखा हो
- न्यूट्रिशनल यीस्ट, जिस पर B12 फोर्टिफिकेशन का क्लियर लेबल हो
- कुछ इम्पोर्टेड/पैकेज्ड वेगन मीट या डेयरी अल्टरनेटिव्स
कुछ स्टडीज़ ने सूखे नोरी (पर्पल लेवर) जैसे सीवीड में नेचुरल B12 दिखाया है, लेकिन इसकी क्वालिटी और रोज़मर्रा में कनसिस्टेंट इंटेक प्रैक्टिकल नहीं होता, इसलिए बड़ी एजेंसियां अभी भी वेगन के लिए मुख्य भरोसा फोर्टिफाइड फूड और रेगुलर सप्लीमेंट पर ही मानती हैं।
सप्लीमेंट कब ज़रूरी होते हैं और कौन–सा फॉर्म बेहतर है?
अमेरिकन फैमिली फिज़िशियन और NIH फैक्ट शीट्स के मुताबिक, कई हाई–रिस्क ग्रुप्स में B12 सप्लीमेंट प्रिवेंटिव तौर पर भी सलाह दिए जाते हैं। इसमें स्ट्रिक्ट वेगन, 50–55 साल से ऊपर के वयस्क, मेटफॉर्मिन या PPI/H2 ब्लॉकर का लॉन्ग–टर्म यूज़ करने वाले, पेट/आंत की सर्जरी वाले और B12–डेफिशियेंसी एनीमिया वाले मरीज शामिल हैं।
- ओरल टेबलेट/कैप्सूल: हाई–डोज़ (1–2 mg रोज़ाना) ओरल B12 बहुत से मरीजों में इंजेक्शन जितना ही एफेक्टिव पाया गया है, खासकर जब एब्ज़ॉर्प्शन आंशिक रूप से बचा हो।
- सबलिंगुअल (जीभ के नीचे) ड्रॉप/टैबलेट: पॉपुलर हैं, लेकिन रिसर्च कहती है कि एब्ज़ॉर्प्शन में बहुत बड़ा फ़र्क नहीं, डोज़ और रेगुलैरिटी ज्यादा मायने रखते हैं।
- इंजेक्शन (इंट्रामस्क्युलर): बहुत कम लेवल, सीवियर एनीमिया या गंभीर नर्व/न्यूरोलॉजिकल लक्षण होने पर शुरुआती हफ्तों में तेज़ी से लेवल बढ़ाने के लिए दिए जा सकते हैं।
कौन–सा फॉर्म, कितने समय के लिए और किस डोज़ में लेना है, यह आपकी रिपोर्ट, लक्षण और रिस्क फैक्टर देखकर डॉक्टर ही तय करे तो बेहतर है; खुद से हाई–डोज़ इंजेक्शन लेना या रुक–रुक कर सप्लीमेंट लेना समझदारी नहीं।
B12 की कमी कैसे डायग्नोज़ की जाती है?
आमतौर पर शुरुआती जांच में कम्प्लीट ब्लड काउंट (CBC) और सीरम B12 लेवल देखा जाता है। अगर B12 बॉर्डरलाइन हो और लक्षण या रिस्क फैक्टर मौजूद हों, तो सीरम मेथाइलमैलोनिक एसिड (MMA) या होमोसिस्टीन टेस्ट से कन्फर्म किया जा सकता है, क्योंकि ये मेटाबॉलाइट्स B12 कमी में बढ़ने लगते हैं।
कभी–कभी B12 नॉर्मल दिखने के बावजूद लक्षण बने रहते हैं, खासकर अगर लेवल लम्बे समय से निचली सीमा पर रहा हो या पहले बहुत कम रहा हो; ऐसे केस में क्लिनिकल जजमेंट और रिस्पॉन्स–टू–ट्रीटमेंट भी मायने रखता है। परनीशियस एनीमिया (ऑटोइम्यून कंडीशन जिसमें इंट्रिंसिक फैक्टर बनना कम हो जाता है) का शक हो तो स्पेशल एंटी–बॉडी टेस्ट भी कराए जाते हैं।
क्या सिर्फ B12 लेना हार्ट या ब्रेन डिज़ीज़ से बचाता है?
लंबे समय तक यह उम्मीद की गई थी कि B12, फोलेट और B6 सप्लीमेंट से होमोसिस्टीन कम करके दिल के दौरे, स्ट्रोक या डिमेंशिया का रिस्क घटाया जा सकेगा, लेकिन बड़े ट्रायल्स ने यह फायदा साफ तौर पर नहीं दिखाया। गाइडलाइंस अब साफ कहती हैं कि B12 सप्लीमेंट सिर्फ इसलिए न लें कि इससे हार्ट अटैक या स्ट्रोक से बचाव होगा; इसका मुख्य उद्देश्य B12 कमी से होने वाले एनीमिया, नर्व और कॉग्निटिव लक्षणों को रोकना है।
हाँ, अगर किसी में कमी कन्फर्म्ड है और उसे ठीक किया जाए, तो थकान, ध्यान की कमी, हल्के मूड इश्यू और नर्व लक्षणों में सुधार देखा जा सकता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से लाइफ क्वालिटी को काफी बेहतर बनाता है। इसलिए B12 को एक “बेसिक ज़रूरत” के रूप में देखना सही है, न कि “मैजिक हेल्थ बूस्टर” या एंटी–एजिंग टॉनिक की तरह।
डाइट प्लानिंग: इंडियन कॉन्टेक्स्ट में B12 कैसे पूरा करें?
नॉन–वेज/ओवो–वेज के लिए:
- दिन में 1–2 उबले या हल्के ऑयल वाले अंडे
- 1–2 ग्लास दूध या 1 कटोरी दही/छाछ + थोड़ी चीज़/पनीर
- हफ्ते में 2–3 बार फिश या चिकन (जो लोग खाते हों)
इस तरह कुल मिलाकर B12 की रोज़ाना ज़रूरत आराम से पूरी हो सकती है, बशर्ते कि बाकी डाइट बैलेंस्ड हो।
स्ट्रिक्ट वेज/वेगन के लिए:
- हफ्ते के ज़्यादातर दिन B12–फोर्टिफाइड ब्रेकफास्ट सीरियल या ओट्स
- B12–फोर्टिफाइड प्लांट मिल्क (सोया/ओट/आलमंड) 1–2 सर्विंग
- ज़रूरत और लेवल के हिसाब से रेगुलर B12 सप्लीमेंट (डॉक्टर/डाइटिशियन से फिक्स करवा कर)
रिसर्च और गाइडलाइंस साफ कहती हैं कि बिना फोर्टिफाइड फूड और सप्लीमेंट के केवल नेचुरल प्लांट–फूड पर रहकर B12 डेफिशियेंसी से बचना लगभग नामुमकिन है।
(FAQs)
1. क्या B12 की कमी सिर्फ वेगन/वेजिटेरियन को ही होती है?
नहीं, हालांकि वेज/वेगन में रिस्क बहुत ज्यादा है, लेकिन नॉन–वेज भी सेफ नहीं, खासकर अगर उन्हें पेट/आंत की बीमारी, सर्जरी, लंबे समय से मेटफॉर्मिन या एंटासिड यूज़ या उम्र 60+ जैसे फैक्टर हों जो एब्ज़ॉर्प्शन घटाते हैं। कई इंडियन स्टडीज़ में देखा गया है कि नॉन–वेज ग्रुप में भी B12 कमी की अच्छी–खासी प्रतिशत मौजूद है, बस वेज की तुलना में कुछ कम।
2. क्या फार्मेसी से खुद B12 इंजेक्शन लेकर लेना सेफ है?
सीवियर कमी या न्यूरोलॉजिकल लक्षण में इंजेक्शन जरूरी हो सकता है, लेकिन इसकी फ्रीक्वेंसी, डोज़ और ड्यूरेशन का फैसला डॉक्टर को आपकी रिपोर्ट देखकर करना चाहिए। खुद से हाई–डोज़ इंजेक्शन लेना या बीच–बीच में बिना मॉनिटरिंग के लेना सही नहीं, क्योंकि इससे असली वजह छिप सकती है और फॉलो–अप डिफिकल्ट हो जाता है।
3. थकान और ब्रेन फॉग है, क्या सिर्फ B12 लेने से ठीक हो जाएगा?
थकान और “ब्रेन फॉग” के बहुत से कारण हो सकते हैं—थायरॉयड, आयरन की कमी, नींद की कमी, डिप्रेशन आदि, इसलिए सिर्फ B12 सप्लीमेंट से हर केस में फायदा नहीं होगा। बेहतर है कि डॉक्टर से मिलकर CBC, B12, फोलेट और ज़रूरत के हिसाब से बाकी टेस्ट करा कर टार्गेटेड ट्रीटमेंट लिया जाए।
4. B12 ज्यादा लेने से कोई साइड इफेक्ट होता है?
विटामिन B12 पानी में घुलनशील है और अतिरिक्त मात्रा आमतौर पर यूरिन से निकल जाती है, इसलिए सामान्य डोज़ (जैसे 1–2 mg रोज़ाना) ज़्यादातर लोगों में सेफ मानी जाती है। बहुत रेयर केसों में हाई–डोज़ सप्लीमेंट से एक्ने जैसी स्किन प्रॉब्लम या कुछ दूसरी इश्यूज़ रिपोर्ट हुए हैं, इसलिए लॉन्ग–टर्म हाई–डोज़ लेने से पहले डॉक्टर की गाइडेंस बेहतर रहती है।
5. मुझे अभी कोई लक्षण नहीं हैं, फिर भी क्या B12 टेस्ट कराना चाहिए?
औसत रिस्क वाले लोगों के लिए रूटीन स्क्रीनिंग की ज़रूरत नहीं मानी जाती, लेकिन अगर आप हाई–रिस्क ग्रुप में हैं—जैसे स्ट्रिक्ट वेगन, 50–60+ उम्र, मेटफॉर्मिन/PPI का लम्बे समय से उपयोग, पेट/आंत की सर्जरी, या प्रेग्नेंसी—तो बेसलाइन B12 लेवल चेक कराना फायदेमंद हो सकता है। भारत जैसी पॉपुलेशन में, जहां B12 डेफिशियेंसी काफी कॉमन है, डॉक्टर अक्सर हल्के लक्षण या रिस्क फैक्टर दिखने पर जल्दी टेस्ट की सलाह देते हैं ताकि डैमेज होने से पहले कमी पकड़ी जा सके।
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