देहरादून में त्रिपुरा के MBA छात्र अनजेल चाकमा की नस्लीय हत्या के बाद सुप्रीम कोर्ट में PIL। पूर्वोत्तर नागरिकों पर हिंसा रोकने नोडल एजेंसी, स्पेशल पुलिस यूनिट, रेसियल स्लर को हेट क्राइम मानने की मांग। अनुच्छेद 14,21 के उल्लंघन पर न्याय!
पूर्वोत्तर छात्रों पर रेसियल अटैक: सुप्रीम कोर्ट में PIL से नई दिशा, नोडल एजेंसी की मांग
अनजेल चाकमा हत्याकांड: पूर्वोत्तर नागरिकों पर नस्लीय हिंसा रोकने सुप्रीम कोर्ट में PIL दाखिल
28 दिसंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर हुई, जिसमें पूर्वोत्तर राज्यों और सीमावर्ती क्षेत्रों के भारतीय नागरिकों के खिलाफ लगातार हो रही नस्लीय भेदभाव और हिंसा को रोकने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की गई। ये PIL त्रिपुरा के 24 वर्षीय MBA छात्र अनजेल चाकमा की 27 दिसंबर को देहरादून के सेलाकुई इलाके में नस्लीय हमले में मौत के ठीक बाद दाखिल हुई। अनजेल उना कोटी जिले के माचमारा का रहने वाला था, जो आगरा के होली क्रॉस स्कूल से ग्रेजुएशन के बाद MBA करने देहरादून आया था। हमले में उसके छोटे भाई माइकल की मौजूदगी में चाकू से गला और रीढ़ की हड्डी काट दी गई।
परिवार फांसी या उम्रकैद की मांग कर रहा। दिल्ली के वकील अनूप प्रकाश अवस्थी ने केंद्र, सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को पार्टी बनाया। याचिका में अनुच्छेद 32 के तहत मंडामस की मांग की गई, जिसमें अनुच्छेद 14 (समानता), 19(1)(a)&(g) (अभिव्यक्ति, व्यवसाय की स्वतंत्रता) और 21 (जीवन का अधिकार) के उल्लंघन का हवाला दिया। याचिका कहती है, “हम भारतीय हैं, कौन सा प्रमाणपत्र दिखाएं?” – ये अनजेल की आखिरी दर्ज पुकार थी, जो हिंसा में तब्दील हो गई।
अनजेल चाकमा हत्याकांड: घटनाक्रम
अनजेल और माइकल पर हमला नस्लीय टिप्पणियों से शुरू हुआ। दोनों भाइयों पर चाकू से हमला, अनजेल को गंभीर चोटें। 14 दिनों तक ICU में बेहोश रहा, 27 दिसंबर को मौत। इस घटना ने देशभर में आक्रोश फैलाया – देहरादून, आगरा, त्रिपुरा में विरोध प्रदर्शन। मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से याचिका में कहा गया कि हमलावरों ने नस्लीय गालियां दीं, फिर हिंसा की।
PIL की मुख्य मांगें
याचिका में कई ठोस सुझाव दिए:
- ‘रेसियल स्लर’ को हेट क्राइम की अलग श्रेणी मानना और सजा तय करना।
- केंद्र और राज्यों में नोडल एजेंसी/कमीशन/डायरेक्टोरेट बनाना, जहां नस्लीय अपराध रिपोर्ट–निवारण हो।
- हर जिले/महानगर में स्पेशल पुलिस यूनिट गठित करना।
- शिक्षा संस्थानों में वर्कशॉप्स–डिबेट्स आयोजित कर जागरूकता फैलाना।
याचिका का तर्क: भारतीय आपराधिक न्याय व्यवस्था में जांच के शुरुआती चरण में ही नस्लीय पूर्वाग्रह को दर्ज करने का कोई तंत्र नहीं। ऐसे अपराध साधारण माने जाते, जिससे मकसद मिट जाता, संवैधानिक गंभीरता कम हो जाती और अपराधियों को छूट मिलती।
निदो तनिया से अनजेल चाकमा तक: पूर्वोत्तर पर नस्लीय हिंसा का इतिहास
ये पहला केस नहीं। 2014 में दिल्ली में निदो तनिया (अरुणाचल) की पीट–पीटकर हत्या हुई – नस्लीय गालियों से शुरू। संसद में केंद्र ने कई ऐसी घटनाओं को स्वीकारा, लेकिन कोई स्थायी कानून/संस्था नहीं बनी। अन्य मामले:
- मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद में पूर्वोत्तर छात्र–मजदूरों पर हमले।
- “चिंकी”, “नेपाली” जैसे स्लर्स आम।
2025 में भी दर्जनों शिकायतें। याचिका कहती है, ये “लंबे समय से चली आ रही पैटर्न” है।
| वर्ष/घटना | पीड़ित | जगह | विवरण |
|---|---|---|---|
| 2014 | निदो तनिया | दिल्ली | पीट–पीटकर हत्या, नस्लीय स्लर |
| 2017 | कई छात्र | बेंगलुरु | पब हमले, “चिंकी” गालियां |
| 2025 | अनजेल चाकमा | देहरादून | चाकू हमला, “प्रमाणपत्र दिखाओ” |
पूर्वोत्तर नागरिकों की दुविधा: ‘भारतीयता का प्रमाणपत्र’
पूर्वोत्तर के लोग दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, पुणे, हैदराबाद जैसे शहरों में पढ़ाई–काम के लिए जाते। लेकिन चेहरे, बोली, कपड़ों से “विदेशी” समझे जाते। अनजेल ने कहा, “हम भारतीय हैं, प्रमाणपत्र दिखाएं?” – ये लाखों पूर्वोत्तर युवाओं की पीड़ा बयान करता। आंकड़े: 10 लाख+ पूर्वोत्तर प्रवासी महानगरों में। NCRB: हेट क्राइम रिपोर्टिंग कम।
कानूनी खालीपन और PIL का महत्व
भारतीय कानून में SC/ST एक्ट जैसा है, लेकिन नस्लीय अपराध के लिए अलग प्रावधान नहीं। IPC की धारा 153A (समूहों के खिलाफ दुश्मनी) इस्तेमाल होती, लेकिन नस्लीय मकसद दर्ज नहीं। PIL मंडामस चाहती – केंद्र/राज्यों को निर्देश। केंद्र ने संसद में 100+ घटनाएं मानीं, लेकिन एक्शन नहीं।
सरकारी प्रयास और कमी
- 2014 के बाद मंत्रालय ने हेल्पलाइन 14566 शुरू की।
- पूर्वोत्तर हेल्पलाइन ऐप।
लेकिन याचिका कहती: ये पर्याप्त नहीं। नोडल बॉडी, ट्रेनिंग, डेटा बेस, फास्ट–ट्रैक कोर्ट जरूरी। शिक्षा में ‘भारतीय विविधता’ कोर्स अनिवार्य।
देहरादून घटना का प्रभाव
अनजेल की मौत ने त्रिपुरा, मिजोरम, नागालैंड में आक्रोश भड़काया। देहरादून में कर्फ्यू जैसे हालात। CM पुष्कर सिंह धामी ने जांच के आदेश दिए। परिवार: “सभी आरोपी फांसी पाएं।” PIL से पूरे देश में बहस छिड़ी।
भविष्य की राह: क्या बदलेगा?
अगर सुप्रीम कोर्ट PIL पर सुनवाई ले, तो:
- नस्लीय अपराध कानून बनेगा।
- पूर्वोत्तर युवाओं की सुरक्षा मजबूत।
- ‘एक भारत’ की भावना मजबूत।
विशेषज्ञ: अमेरिका का FBI हेट क्राइम ट्रैकिंग, कनाडा का रेसियल वायलेंस एक्ट मॉडल ले सकते।
5 FAQs
- अनजेल चाकमा हत्याकांड क्या था?
त्रिपुरा के MBA छात्र को देहरादून में नस्लीय हमले में चाकू मारा गया। 14 दिन बाद मौत। भाई माइकल भी घायल। - PIL की मुख्य मांगें क्या हैं?
रेसियल स्लर को हेट क्राइम मानना, नोडल एजेंसी, स्पेशल पुलिस यूनिट, वर्कशॉप्स। - पूर्वोत्तर पर नस्लीय हिंसा किन अनुच्छेदों का उल्लंघन करती?
14 (समानता), 19(1)(a)(g) (अभिव्यक्ति, व्यवसाय), 21 (जीवन)। - निदो तनिया केस से तुलना?
दोनों नस्लीय हमले। 2014 दिल्ली, 2025 देहरादून। केंद्र ने माना लेकिन कानून नहीं। - सरकार ने क्या कदम उठाए?
हेल्पलाइन 14566, लेकिन PIL कहती पर्याप्त नहीं। नोडल बॉडी जरूरी।
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