Home हेल्थ Salt and Sugar for Babies: बच्चों को नमक और चीनी कब दें? जानिए एक्सपर्ट की राय और इसके गंभीर नुकसान
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Salt and Sugar for Babies: बच्चों को नमक और चीनी कब दें? जानिए एक्सपर्ट की राय और इसके गंभीर नुकसान

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शिशु आहार में नमक और चीनी: विज्ञान और दादी नानी के नुस्खों में क्या है सही?

“बच्चे का खाना फीका है, जरा सा नमक तो डालो!” “एक चुटकी चीनी मिला दो, दूध पी लेगा।” अगर आप एक नए माता-पिता हैं, तो आपने अपने बुजुर्गों से ये बातें जरूर सुनी होंगी। भारतीय परिवारों में दादी-नानी के अनुभव और पारंपरिक ज्ञान को बहुत महत्व दिया जाता है, लेकिन जब बात शिशु के पोषण की आती है तो आधुनिक विज्ञान की सलाह कुछ अलग है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और भारतीय बाल रोग अकादमी (IAP) जैसे प्रतिष्ठित संगठन स्पष्ट रूप से 1 साल तक के शिशु के आहार में नमक और चीनी न डालने की सलाह देते हैं। यह सिफारिश महज एक सुझाव नहीं बल्कि शिशु के दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिए एक आवश्यक दिशानिर्देश है।

नमक और शिशु: छोटी उम्र का बड़ा खतरा

नवजात और छोटे शिशुओं के लिए नमक का सेवन विशेष रूप से हानिकारक हो सकता है। इसके पीछे मुख्य कारण है शिशु की अविकसित गुर्दे प्रणाली। जन्म के समय शिशु के गुर्दे वयस्कों की तरह कुशलतापूर्वक काम नहीं कर पाते। वे सोडियम को प्रभावी ढंग से फिल्टर और उत्सर्जित नहीं कर पाते। अतिरिक्त नमक शिशु के शरीर में जमा हो सकता है, जिससे गुर्दे पर अत्यधिक दबाव पड़ता है।

अनुसंधान बताते हैं कि शैशवावस्था में अत्यधिक नमक का सेवन भविष्य में उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और मोटापे के खतरे को बढ़ा सकता है। एक अध्ययन में पाया गया कि जिन शिशुओं को उच्च सोडियम वाला आहार दिया गया, उनमें किशोरावस्था में उच्च रक्तचाप विकसित होने की संभावना अधिक थी। भारतीय आहार प्राकृतिक रूप से ही कई स्रोतों से सोडियम प्रदान करता है, जैसे स्तनदूध या फॉर्मूला दूध, फल और सब्जियां। इस प्राकृतिक सोडियम की मात्रा ही शिशु की दैनिक आवश्यकता के लिए पर्याप्त होती है।

चीनी की मिठास में छुपा कड़वा सच

चीनी के संबंध में स्थिति और भी गंभीर है। शिशु को मीठा स्वाद परिचित कराना उसके भविष्य के खानपान की आदतों को गहराई से प्रभावित करता है। चीनी पोषण की दृष्टि से खाली कैलोरी प्रदान करती है – इससे ऊर्जा तो मिलती है लेकिन कोई विटामिन, खनिज या अन्य पोषक तत्व नहीं मिलते।

नियमित रूप से चीनी का सेवन शिशु के स्वाद कलिकाओं को प्रभावित करता है, जिससे वे प्राकृतिक रूप से मीठे खाद्य पदार्थों (जैसे फल) के बजाय अत्यधिक मीठे खाद्य पदार्थों को तरजीह देने लगते हैं। इससे भविष्य में अस्वास्थ्यकर खानपान की आदतें विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। चीनी दंत स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है – यह दूध के दांतों में कीड़ा लगने और early childhood caries का कारण बन सकती है। सबसे गंभीर चिंता का विषय यह है कि अत्यधिक चीनी का सेवन मोटापे, टाइप 2 मधुमेह और अन्य चयापचय संबंधी विकारों के जोखिम को बढ़ा सकता है।

पारंपरिक मान्यताएं बनाम वैज्ञानिक तथ्य

कई दादी-नानी का मानना है कि थोड़ी मात्रा में नमक और चीनी शिशु के विकास के लिए आवश्यक है। उनका तर्क होता है कि यह भोजन स्वादिष्ट बनाता है और शिशु को अधिक खाने के लिए प्रोत्साहित करता है। हालांकि, विज्ञान इस दृष्टिकोण का समर्थन नहीं करता। शिशुओं की स्वाद कलिकाएं वयस्कों से कहीं अधिक संवेदनशील होती हैं। वे प्राकृतिक स्वादों को पहचानने और सराहने में सक्षम होते हैं, जिन्हें हम वयस्कों की तरह “फीका” नहीं मानते।

एक सामान्य गलतफहमी यह भी है कि नमक के बिना शिशु को पर्याप्त सोडियम नहीं मिलेगा। वास्तविकता यह है कि स्तनदूध या फॉर्मूला दूध, फलों और सब्जियों जैसे प्राकृतिक रूप से सोडियम युक्त खाद्य पदार्थों के साथ मिलकर शिशु की आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त सोडियम प्रदान करते हैं। सात से बारह महीने के शिशुओं के लिए अनुशंसित दैनिक सोडियम सेवन 370 मिलीग्राम से कम है, जो बिना नमक डाले स्तनदूध/फॉर्मूला और पूरक आहार के माध्यम से आसानी से पूरा हो जाता है।

वैज्ञानिक सिफारिशें क्या कहती हैं?

प्रमुख स्वास्थ्य संगठन इस बात पर एकमत हैं कि शिशुओं के आहार में कम से कम एक साल की उम्र तक अतिरिक्त नमक और चीनी से परहेज करना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पहले छह महीनों के लिए विशेष स्तनपान की सलाह देता है, जिसके बाद बिना अतिरिक्त नमक या चीनी के पूरक आहार शुरू करने की सिफारिश करता है। भारतीय बाल रोग अकादमी (IAP) भी शिशु आहार में नमक या चीनी डालने के खिलाफ सलाह देती है, जोर देकर कहती है कि प्राकृतिक खाद्य पदार्थ सभी आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं।

अनुसंधान से पता चलता है कि नमकीन और मीठे स्वादों का शुरुआती संपर्क दीर्घकालिक खाद्य प्राथमिकताओं को आकार दे सकता है। जर्नल ऑफ एकेडमी ऑफ न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि नमकीन खाद्य पदार्थों के संपर्क में आने वाले शिशुओं ने बाद में बचपन में नमकीन स्वादों को प्राथमिकता दी। इसी तरह, चीनी के शुरुआती संपर्क से मीठे स्वादों के लिए प्राथमिकता पैदा होती है, जिससे बाद में स्वस्थ विकल्पों को पेश करना मुश्किल हो जाता है।

शिशु के लिए स्वस्थ विकल्प

शिशु के भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए नमक या चीनी की आवश्यकता नहीं है। प्राकृतिक खाद्य पदार्थ अपने आप में पर्याप्त स्वाद और पोषण लिए होते हैं। फलों की प्राकृतिक मिठास शिशु के लिए पर्याप्त होती है। केला, सेब, नाशपाती या चिक्कू जैसे फलों को मैश करके शिशु को दिया जा सकता है। सब्जियों में गाजर, शकरकंद, कद्दू और पालक जैसी सब्जियों का अपना प्राकृतिक स्वाद होता है जो शिशु के लिए नया और रोमांचक हो सकता है।

मसालों का प्रयोग सीमित मात्रा में किया जा सकता है। हल्दी, जीरा, धनिया और दालचीनी जैसे मसाले शिशु के भोजन में स्वाद जोड़ सकते हैं बिना नमक की आवश्यकता के। स्तनदूध या फॉर्मूला दूध में प्राकृतिक मिठास होती है जो शिशु की आवश्यकता के लिए पर्याप्त है। यदि शिशु पानी पीना पसंद नहीं करता, तो उसे सादा पानी देना जारी रखें, मीठे पेय न दें।

पारिवारिक समझौता कैसे करें?

पारंपरिक मान्यताओं और वैज्ञानिक सलाह के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। बुजुर्गों के अनुभव और ज्ञान का सम्मान करते हुए भी शिशु के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है। परिवार के सदस्यों को वैज्ञानिक तथ्यों से अवगत कराएं। डॉक्टर की सलाह का हवाला दें, क्योंकि कई बुजुर्ग डॉक्टर की बात को अधिक गंभीरता से लेते हैं।

उन्हें प्राकृतिक विकल्पों के बारे में बताएं। दिखाएं कि बिना नमक या चीनी के भी भोजन स्वादिष्ट बनाया जा सकता है। शिशु के भोजन को अलग से बनाने की आदत डालें। परिवार के खाने में से कुछ हिस्सा शिशु के लिए निकालकर अलग से तैयार करें बिना नमक डाले। धैर्य रखें – नए स्वादों की आदत डालने में समय लग सकता है। एक बार में हार न मानें, बार-बार कोशिश करें।

निष्कर्ष

शिशु का पोषण उसके भविष्य के स्वास्थ्य की नींव रखता है। दादी-नानी के प्यार और देखभाल का अपना महत्व है, लेकिन शिशु के आहार संबंधी निर्णय वैज्ञानिक तथ्यों और आधुनिक चिकित्सकीय दिशानिर्देशों पर आधारित होने चाहिए। नमक और चीनी से परहेज करना महज एक सुझाव नहीं बल्कि शिशु के दीर्घकालिक स्वास्थ्य की दृष्टि से एक आवश्यक सावधानी है। प्राकृतिक खाद्य पदार्थों के माध्यम से संतुलित पोषण देना और स्वस्थ खानपान की आदतों की नींव रखना हर माता-पिता की प्राथमिकता होनी चाहिए। सही जानकारी और धैर्यपूर्ण प्रयास से हम अपने शिशुओं को एक स्वस्थ भविष्य दे सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

बच्चे को नमक कब देना शुरू कर सकते हैं?
एक साल की उम्र के बाद परिवार के सामान्य भोजन में मौजूद नमक पर्याप्त होता है। अलग से नमक डालने की आवश्यकता नहीं होती।

क्या शिशु के लिए सेंधा नमक या काला नमक सुरक्षित है?
नहीं, किसी भी प्रकार का नमक एक साल से पहले शिशु के लिए अनुशंसित नहीं है। सोडियम की मात्रा लगभग सभी प्रकार के नमक में समान होती है।

बच्चा खाना नहीं खा रहा है, क्या थोड़ी चीनी मिला दें?
नहीं, इसकी बजाय भोजन के स्वाद और बनावट में विविधता लाएं। अलग-अलग तरीकों से पकाकर देखें।

क्या शहद या गुड़ भी नहीं देना चाहिए?
एक साल से पहले शहद बिल्कुल नहीं देना चाहिए क्योंकि इसमें बोटुलिज़्म बैक्टीरिया होने का खतरा होता है। गुड़ भी एक प्रकार की चीनी ही है और इसे भी टालना चाहिए।

क्या बाजार में मिलने वाले बेबी फूड में नमक या चीनी होती है?
कई प्रोसेस्ड बेबी फूड्स में added salt, sugar, or preservatives होते हैं। हमेशा लेबल पढ़ें और घर का बना ताजा भोजन ही सर्वोत्तम विकल्प है।

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