Gen Z को ‘हकदार’ कहा जाता है, पर वास्तव में वे एक जटिल, तेजी-और-अनिश्चित व्यवहार वाले कार्य-परिस्थिति के बीच थकावट महसूस कर रहे हैं।
Gen Z को ‘हकदार’ कहने से पहले जानिए उनकी जद्दोजहद
हर पीढ़ी अपनी तरह-की बोझ और चुनौतियों के साथ आती है। कई बार ऐसा लगता है कि नई पीढ़ी-जिसे हम Gen Z कहते हैं-उसे सिर्फ ‘हकदार’, ‘अगराही’ या ‘बहुत मांगने वाली’ कहा जा रहा है। लेकिन शायद इन लेबल्स के पीछे सच्चाई कुछ और है। यह पीढ़ी काम, जीवन और अर्थ के नए रूपों से जूझ रही है — और जो हम ‘हकदारी’ समझते हैं, वह उनके लिए थकावट की प्रतिक्रिया हो सकती है।
वो क्यों ‘हकदार’ कहे जाते हैं?
अक्सर देखा गया है कि काम-स्थल में Gen Z जॉब-स्विचिंग तेज करते हैं, वर्क-लाइफ-बैलेंस पर जोर देते हैं, तुरंत परिणाम चाहते हैं। इन व्यवहारों को पुरानी पीढ़ियों ने ‘हकदारी’ या ‘सहनशीलता की कमी’ के रूप में देखा है। लेकिन यह दृष्टिकोण अक्सर इस बात की अनदेखी कर देता है कि काम-शब्द का मायना बदल गया है। नया काम-परिस्थिति, नई उम्मीदें और नई थकावटें सामने हैं।
आर्थिक व कार्य-परिस्थिति की सच्चाई
India में Gen Z को एक ऐसी अर्थव्यवस्था मे कदम रखना है जो कभी इतनी खुली थी, पर उसी समय इतनी अनिश्चित भी।
- शुरुआत-वेतन कई वर्षों से लगभग स्थिर हैं, जबकि महंगाई व खर्च बढ़े हैं।
- कई युवा फॉर्मल नौकरी (स्टेबल जॉब) से गैप के कारण ‘गिग’, ‘फ्रीलांस’, ‘पार्ट-टाइम’ की ओर मुड़ रहे हैं।
- कंपनियाँ अब पारंपरिक मेंटरशिप या लम्बी सीखने-की प्रक्रिया नहीं देती; परिणाम-इमीडिएट होते हैं।
- डिजिटल-प्लेटफॉर्म व एल्गोरिदम-आधारित भर्ती ने काम की प्रक्रिया को तेजी-और-निर्धारित बना दिया है — इसका दबाव महसूस किया जा रहा है।
इन सब कारणों से Gen Z ऐसा महसूस कर रही है कि उन्हें साफ परिस्थिति नहीं मिली है, और इसलिए उनकी प्रतिक्रियाएँ ‘हकदारी’ के रूप में सज़ा पाती हैं।
थकावट की ओर संकेत
- काम सिर्फ ‘डेस्क’ और ‘सैलरी’ तक सिमित नहीं रह गया — स्मार्टफोन, रिमोट-वर्क, लगातार ऑन-लाइन होने की अपेक्षा ने उसे २४×७ बना दिया है।
- सीखने-का-समय कम है, गलती की गुंजाइश कम है — परिणाम तुरंत मांगे जाते हैं।
- काम में लगातार बदलाव, फेयर-चांस की कमी, अस्थिरता जैसी चुनौतियाँ Gen Z को थका देती हैं।
- इस तरह जब वे “मेरी बारी क्यों नहीं?” या “मुझे अभी क्यों नहीं मिल रहा?” जैसे प्रश्न उठाते हैं — पुरानी पीढ़ियाँ उसे ‘अपेक्षा’ कह देती हैं। असल में यह ‘थकावट’, ‘सुरक्षा-की कमी’, ‘असुरक्षा की भावना’ है।
पेशेवर-और-समाज-दृष्टि से क्या करना चाहिए?
- older generations और employers को यह समझना होगा कि Gen Z की संदर्भ-परिस्थितियाँ अलग हैं। पुराने नियम (चाहे “सबर करो”, “लाख मेहनत करो”) अब पूरी तरह मान्य नहीं रहे।
- कार्य-संस्कृति में बदलाव हो रहा है — लचीलापन, ऑन-डिमांड कौशल, फ्रिक्वेंट जॉब स्विचिंग, प्लेटफॉर्म-कार्य आज सामान्य हो चुका है। इनको ‘हकदारी’ के रूप में नहीं बल्कि नई आर्बिटर के रूप में देखना होगा।
- Gen Z को सिर्फ आलोचना न करें कि “उन्हें बैठना नहीं आता”, बल्कि देखें कि उन्हें क्यों बैठना नहीं चाहिये-क्या बदल गया है काम-का उत्थान व पुरस्कार-मानदंड।
- संवाद बढ़ाएं: Gen Z खुद बताना चाहती है कि वे मतलबी नहीं बल्कि मतलबपूर्ण काम चाहती हैं — जहाँ उनकी मेहनत दिखे, उनकी भूमिका मान्य हो।
तो अगली बार जब आप सुनें कि Gen Z को “बहुत मांगने वाली”, “हकदार” कहा जा रहा है — तो एक पल रुकें और सोचें: क्या यह सिर्फ थकावट की आवाज़ है? क्या यह उस पीढ़ी की प्रश्न-की आह है जो पुराने मापदंडों में फिट नहीं बैठ रही? आइए हम उन्हें सिर्फ लेबल से देखकर खारिज न करें, बल्कि सुनें, समझें और बदलें — क्योंकि बदलाव अब सिर्फ इक पीढ़ी का नहीं, पूरे काम-और-जीवन के ‘नए नियमों’ का है।
FAQs
Q1. क्या Gen Z सचमुच काम नहीं करना चाहती?
A1. नहीं — अधिकांश Gen Z चाहते हैं काम करें, लेकिन ऐसा काम जिसमे मान्यता, अर्थ और स्थिरता हो।
Q2. क्या यह सिर्फ भारत-का मामला है?
A2. नहीं — वैश्विक स्तर पर भी Gen Z को “हकदारी” टैग मिला है, लेकिन संदर्भ-अनुभव अलग हैं।
Q3. कैसे पहचानें कि Gen Z कर्मचारी थके हुए हैं?
A3. उदाहरण के लिए: लगातार जॉब बदलना, बॉस-प्रोमिशन-की अपेक्षा तेज करना, खुली संवाद की कमी महसूस करना — ये संकेत हो सकते हैं।
Q4. क्या Gen Z के लिए जाने-छाने करियर पथ खत्म हो गए हैं?
A4. पारंपरिक पथ संभवतः बदल गए हैं — अब जॉब-शीर्षक, पदोन्नति, सैलरी-उछाल जितना नहीं बल्कि कौशल, फ्रीलांस प्लेटफॉर्म, माइक्रो-चैनल्स का समय है।
Q5. काम-संस्थाओं को क्या करना चाहिए?
A5. उन्हें Gen Z की परिस्थितियों को समझना चाहिए — लचीलापन देना, सीखने-का समय देना, मानसिक स्वास्थ्य-पर ध्यान देना और काम-का अर्थ बढ़ाना चाहिए।
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