Home लाइफस्टाइल Holiday Seasons में Dating Apps क्यों धड़ाधड़ चलने लगते हैं?सिंगल्स की असली वजहें
लाइफस्टाइल

Holiday Seasons में Dating Apps क्यों धड़ाधड़ चलने लगते हैं?सिंगल्स की असली वजहें

Share
holiday season
Share

त्योहारों और Holiday Seasons में Dating Apps की यूज़ेज़ अचानक क्यों बढ़ जाती है? अकेलेपन, FOMO, फेस्टिव प्रेशर और “कफ़िंग सीज़न” की मनोवैज्ञानिक वजहें जानिए और बैलेंस्ड तरीके से ऐप्स इस्तेमाल करने के टिप्स सीखिए।

Holiday Seasons में सिंगल लोग Dating Apps पर क्यों टूट पड़ते हैं? अकेलापन,FOMO और नई शुरुआत की कहानी

हर साल जैसे ही नवंबर‑दिसंबर आता है, चारों तरफ रोशनी, छुट्टियां, फैमिली डिनर और कपल‑फोटो का सीज़न शुरू हो जाता है। बाहर से सब कुछ बहुत वॉर्म और सेलिब्रेशन‑फुल दिखता है, लेकिन बहुत से सिंगल लोगों के लिए यही समय फोन पर डेटिंग ऐप्स दोबारा डाउनलोड करने, पुराने प्रोफाइल एक्टिव करने या ज़्यादा स्वाइप करने का होता है। कई रिपोर्ट्स दिखाती हैं कि बड़े‑बड़े डेटिंग ऐप्स पर Thanksgiving से न्यू ईयर तक यूज़ेज़ में सबसे बड़ा वार्षिक उछाल देखा जाता है, और 26 दिसंबर से लेकर जनवरी की शुरुआत तक साइन‑अप्स में दर्जनों प्रतिशत की छलांग लगती है।

इंडिया में भी Diwali, Navratri जैसे त्योहारों के दौरान ऐप यूज़ और बातचीत में बढ़ोतरी देखी गई है; कुछ सर्वे बताते हैं कि कई यूज़र्स इन फेस्टिव मौकों को नए लोगों से बात शुरू करने या “कंम्पैटिबिलिटी टेस्ट” की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं। सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? चलिए, इस हॉलीडे डेटिंग फेनॉमेनन को थोड़ा गहराई से समझते हैं।

छुट्टियों में डेटिंग ऐप्स की यूज़ेज़ सच में बढ़ती है?

सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है कि यह सिर्फ फीलिंग नहीं, बल्कि डेटा से जुड़ी हुई ट्रेंड है। कई मार्केट और ऐप‑यूज़ेज़ एनालिसिस दिखाते हैं कि Thanksgiving से लेकर क्रिसमस और न्यू ईयर तक Tinder, Bumble, Hinge और दूसरे ऐप्स पर एक्टिविटी में साफ उछाल आता है। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, कुछ खास दिनों पर जैसे Christmas या साल के आखिर में कुछ ऐप्स पर साइन‑अप्स 40–70% तक बढ़ गए, साथ ही मौजूदा यूज़र्स का रोज़ाना ऑनलाइन समय और मैसेजिंग भी बढ़ गई।

इसी तरह, डेटिंग इंडस्ट्री और मीडिया रिपोर्ट्स यह भी बताती हैं कि “डेटिंग संडे” – यानी जनवरी के पहले या दूसरे रविवार – को कई ऐप्स पर साल का सबसे व्यस्त दिन माना जाता है, जहां नए प्रोफाइल, मैच और मैसेजेस की संख्या पीक पर होती है।

भारतीय संदर्भ में भी फेस्टिव सीज़न का असर साफ दिखता है; स्टडीज़ और सर्वे बताते हैं कि Diwali के आसपास Tinder जैसे ऐप्स पर स्वाइप टाइम और एक्टिविटी में 25–45% तक की बढ़ोतरी देखी गई, और लोकल डेटिंग ऐप्स के सर्वे में त्योहारों के दौरान चैटिंग और नए कनेक्शंस बढ़ने की बात सामने आई।

हॉलीडे सीज़न और ‘कफ़िंग सीज़न’: मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि

पश्चिमी पॉप‑कल्चर में एक शब्द बहुत सुनने को मिलता है – “cuffing season”। इसका मतलब loosely यह है कि जैसे ही ठंड और त्योहारों का सीज़न आता है, लोग अचानक कैज़ुअल फ्लिंग की बजाय किसी स्टेबल, कडल‑फ्रेंडली, साथ रहने वाले पार्टनर की तलाश में ज़्यादा दिलचस्पी दिखाने लगते हैं। कई डेटा सेट्स और सर्वे ये दिखाते हैं कि सर्दियों और हॉलीडे महीनों में डेटिंग ऐप्स पर न सिर्फ एक्टिव यूज़र्स बढ़ते हैं, बल्कि “सीरियस रिलेशनशिप” या “लॉन्ग‑टर्म” इंटेंट वाले फिल्टर्स और प्रोफाइल टेक्स्ट भी ज़्यादा दिखने लगते हैं।

भारत में भी एक तरह से “कफ़िंग सीज़न” का देसी वर्ज़न दिखाई देता है – Diwali और शादी‑वाला सीज़न, जहां सोशल मीडिया पर कपल फोटो, हल्दी‑मेहंदी, फेरे, रिसेप्शन की भरमार होती है और बहुत से सिंगल्स के लिए ये महीना भावनात्मक रूप से थोड़ा और ट्रिगरिंग हो सकता है।

त्योहार, फैमिली प्रेशर और “हर तरफ कपल्स ही कपल्स” फीलिंग

फेस्टिव या हॉलीडे सीज़न का एक बड़ा हिस्सा फैमिली और कपल्स के इर्द‑गिर्द घूमता है – फैमिली डिनर, घूमने‑फिरने की प्लानिंग, गिफ्ट एक्सचेंज, कपल‑फोटो, रोमांटिक मूवीज़ और सोशल मीडिया पोस्ट्स, सब मिलकर यह मैसेज देते रहते हैं कि “सबके पास कोई है, तुम अकेले हो।”

कुछ सर्वे बताते हैं कि holiday समय में बहुत से लोग खुद को ज़्यादा अकेला महसूस करते हैं और सोशल मीडिया पर लगातार कपल‑फोकस्ड कंटेंट देखने से FOMO – यानी Fear Of Missing Out – और बढ़ जाता है। ऐसे में डेटिंग ऐप्स एक आसान और तुरंत उपलब्ध रास्ता लगते हैं – घर बैठे‑बैठे, बिना बहुत effort के, कम से कम भावनात्मक “company” या conversation पाने के लिए।

इंडियन कॉन्टेक्स्ट में इसमें शादी का प्रेशर भी जुड़ जाता है – रिश्तेदारों के सवाल, “अगली बारी तुम्हारी है”, “कोई मिला क्या?” – जो कई सिंगल्स को या तो नई डेटिंग शुरू करने या पुरानी बातों को फिर से खोलने की तरफ धकेल सकता है।

खाली समय और काम का स्ट्रेस कम होना

एक और व्यावहारिक वजह भी है – टाइम। हॉलीडे सीज़न में अक्सर लोगों की वर्क‑लाइफ थोड़ी धीमी हो जाती है; वीकेंड्स बढ़ जाते हैं, ऑफिस में प्रेशर थोड़ा कम रहता है, कई लोग छुट्टियां लेकर घर या अपने शहर लौटते हैं। कई रिपोर्ट्स में यह सामने आया कि छुट्टियों में लोगों के पास अपने फोन पर बैठकर प्रोफाइल बनाने, मैच से चैट करने और बातचीत को आगे बढ़ाने का समय ज्यादा होता है, जिससे ऐप्स की एक्टिविटी अपने आप बढ़ती दिखाई देती है।

कुछ डेटा यह भी दिखाते हैं कि साल की शुरुआत – 1 जनवरी से Valentine’s Day तक – को कई ऐप्स “पीक डेटिंग सीज़न” मानते हैं, जहां रोज़ाना मैसेजेस, लाइक्स और bio अपडेट्स की संख्या औसत से काफी ऊपर होती है।

न्यू ईयर रेज़ोल्यूशन: “अबकी बार प्यार, सच वाला”

नए साल के मौके पर लोग अक्सर अपनी लाइफ को रिव्यू करते हैं – काम, हेल्थ, पैसा, रिश्ते। कई सर्वे बताते हैं कि एक बड़ा प्रतिशत सिंगल्स नए साल में “ज़्यादा डेटिंग करना”, “टॉक्सिक रिश्तों से बाहर निकलना” या “सीरियस पार्टनर ढूंढना” जैसी रेज़ोल्यूशन बनाते हैं।

ऐप मार्केटिंग रिपोर्ट्स के अनुसार, 1 जनवरी और उसके बाद के हफ्तों में साइन‑अप्स और एक्टिविटी इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि लोग खुद से वादा करते हैं कि “इस साल पर्सनल लाइफ पर फोकस करेंगे” और डेटिंग ऐप्स को उस बदलाव का पहला कदम मान लेते हैं।

त्योहार और रिश्तों का “कल्चर टेस्ट” – इंडियन रियलिटी

इंडिया में त्योहार सिर्फ छुट्टी नहीं होते, बल्कि कल्चरल वैल्यूज़, फैमिली स्टाइल, रीति‑रिवाज़ और लाइफस्टाइल का भी बड़ा मापक बन जाते हैं। कुछ हालिया सर्वे बताते हैं कि भारतीय डेटिंग ऐप यूज़र्स में से लगभग दो में से एक सिंगल अब Navratri, Durga Puja या Diwali जैसे त्योहारों के दौरान यह देखता है कि सामने वाला इन मौकों को कैसे सेलिब्रेट करता है और इसे कल्चरल कंपैटिबिलिटी चेक की तरह यूज़ करता है।

इसका मतलब यह भी है कि हॉलीडे सीज़न में न सिर्फ ऐप यूज़ बढ़ता है, बल्कि बातचीत का टोन भी बदल जाता है – लोग त्योहारी प्लान, फैमिली वैल्यूज़, पूजा‑पार्टी, ट्रिप्स और शादी‑वाले इवेंट्स की बात ज्यादा करते हैं, जिससे “क्या हम लाइफस्टाइल के मामले में मैच करते हैं?” वाले सवाल के जवाब मिल पाते हैं।

ऑनलाइन डेटिंग, अकेलापन और मेंटल हेल्थ की रियलिटी

जहां एक तरफ हॉलीडे सीज़न डेटिंग ऐप्स पर एक्टिविटी बढ़ा देता है, वहीं मनोविज्ञान से जुड़ी रिसर्च ये भी दिखाती है कि ऐप्स का ज़्यादा या बेहद इमोशनल इस्तेमाल कभी‑कभी अकेलेपन और लो सेल्फ‑एस्टीम के सर्कल को और मजबूत कर सकता है। कुछ स्टडीज़ में पाया गया कि जो युवा डेटिंग ऐप्स पर बहुत अधिक समय बिताते हैं, वे नॉन‑यूज़र्स की तुलना में औसत तौर पर थोड़ी कम आत्म‑सम्मान और ज्यादा loneliness रिपोर्ट करते हैं, हालांकि यह असर कई और फैक्टर्स पर भी निर्भर होता है।

अन्य रिसर्च यह बताती है कि लगातार स्वाइपिंग, दूसरों से तुलना, मैच न मिलना या घोस्टिंग जैसे अनुभव चिंता, थकान और “डेटिंग ऐप बर्नआउट” की फीलिंग बढ़ा सकते हैं; कुछ सर्वे में यूज़र्स के बड़े हिस्से ने खुद कहा कि वे ऐप्स से थकान और भावनात्मक ओवरलोड महसूस करते हैं। इसलिए, हॉलीडे सीज़न में ऐप्स का बढ़ा हुआ इस्तेमाल जहां कनेक्शन का मौका देता है, वहीं अगर इसे mindful तरीके से न किया जाए तो यह मेंटल हेल्थ पर दबाव भी डाल सकता है।

हॉलीडे सीज़न में डेटिंग ऐप्स को हेल्दी तरीके से कैसे यूज़ करें?

  1. इरादे साफ रखें
    – खुद से पहले यह क्लियर करें कि आप क्या ढूंढ रहे हैं – बस चैट, कैज़ुअल डेटिंग, या सीरियस रिश्ता। रिसर्च बताती है कि क्लैरिटी होने से बाद में गिल्ट और कन्फ्यूज़न कम होता है।
  2. टाइम लिमिट सेट करें
    – लगातार स्क्रॉल और स्वाइप के बजाय रोज़ या हफ्ते का एक फिक्स टाइम रखिए; इससे आपकी day‑to‑day लाइफ और नींद पर कम असर पड़ेगा, और आप छुट्टियों का बाकी समय फैमिली, दोस्तों और खुद के साथ भी बिता पाएंगे।
  3. एक्स या पुराने घोस्टेड कनेक्शन को सिर्फ अकेलेपन से driven होकर मैसेज करने से बचें
    – फेस्टिव सीज़न में “पुराने चैट” फिर से खोलने की आदत आम है, लेकिन लेखों और सर्वे में यह पाया गया कि कई बार इससे और ज्यादा इमोशनल कन्फ्यूज़न, मिश्रित सिग्नल और दुख होता है।
  4. ऑनलाइन के साथ‑साथ ऑफलाइन कनेक्शन भी ज़रूरी हैं
    – स्टडीज़ कहती हैं कि जो लोग सिर्फ ऐप्स पर वैलिडेशन ढूंढते हैं, वे कभी‑कभी वास्तविक ऑफलाइन सोशल सपोर्ट से दूरी बना लेते हैं, जिससे loneliness बढ़ सकती है। इसलिए कोशिश करें कि हॉलीडे के दौरान दोस्तों से मिलें, शौक और हॉबीज़ पर समय दें और फैमिली के साथ भी क्वालिटी टाइम रखें।
  5. सेफ्टी को इमोशन से ऊपर रखें
    – जल्दी में मिलने की प्लानिंग, पर्सनल डिटेल शेयर करना, या लोंग ड्राइव/प्राइवेट जगह पर पहली मीटिंग में जाना – यह सब रिस्क बढ़ा सकता है। रिलेशनशिप विशेषज्ञ और सेफ्टी गाइडलाइंस सलाह देते हैं कि पहली कुछ मुलाकातें पब्लिक प्लेस पर रखें, किसी भरोसेमंद दोस्त/परिजन को अपनी लोकेशन और प्लान बता दें, और gut feeling को ignore न करें।

अगर आप खुद सिंगल हैं और महसूस करते हैं कि हॉलीडे सीज़न में अकेलापन ज्यादा ट्रिगर हो रहा है, तो यह जानना मददगार हो सकता है कि यह अनुभव बहुत common है; डेटा और सर्वे दोनों दिखाते हैं कि हजारों लोग हर साल इसी समय ऐप्स की तरफ़ बढ़ते हैं – कभी companionship के लिए, कभी validation के लिए, और कभी नई शुरुआत के लिए।

FAQs

प्रश्न 1: क्या वाकई छुट्टियों में डेटिंग ऐप्स की यूज़ेज़ बढ़ जाती है या यह सिर्फ एक मिथ है?

जवाब: कई डेटा‑बेस्ड रिपोर्ट्स और मार्केट एनालिसिस दिखाते हैं कि Thanksgiving से न्यू ईयर और जनवरी‑फरवरी तक बड़े डेटिंग ऐप्स पर यूज़र्स, साइन‑अप्स और मैसेजिंग में साफ उछाल आता है; कुछ ऐप्स ने Boxing Day और 1 जनवरी जैसे दिनों पर 40–70% तक साइन‑अप वृद्धि रिपोर्ट की है। भारतीय संदर्भ में भी Diwali के समय स्वाइप टाइम और फेस्टिव चैटिंग में बढ़ोतरी देखी गई है।

प्रश्न 2: हॉलीडे सीज़न में मुझे डेटिंग ऐप्स पर वापस जाना चाहिए या नहीं?

जवाब: इसका जवाब आपके इरादे और मेंटल स्टेट पर निर्भर है। अगर आप emotionally स्टेबल महसूस कर रहे हैं और साफ जानते हैं कि आप क्या ढूंढ रहे हैं, तो हॉलीडे समय कनेक्शन बनाने के लिए अच्छा मौका हो सकता है। लेकिन अगर आप बहुत अकेला, anxious या टूटे हुए महसूस कर रहे हैं, तो रिसर्च सुझाव देती है कि सिर्फ validation के लिए ज़्यादा स्वाइपिंग कभी‑कभी loneliness और self‑esteem पर नकारात्मक असर डाल सकती है, इसलिए थोड़ा mindful होकर फैसला लेना बेहतर रहता है।

प्रश्न 3: क्या डेटिंग ऐप्स हॉलीडे के अकेलेपन को सच में कम कर सकते हैं?

जवाब: कुछ लोगों के लिए नई बातचीत, चैट और मैचेस से अस्थायी रूप से loneliness और boredom कम हो सकता है, और कई कपल्स ऐसे भी हैं जो ऐप्स पर मिलकर meaningful रिश्ते में आए हैं। लेकिन स्टडीज़ यह भी दिखाती हैं कि अगर ध्यान सिर्फ स्वाइप, लाइक और comparison पर रहे तो अकेलेपन की फीलिंग लंबे समय में कम होने की बजाय बढ़ भी सकती है। इसलिए ऐप्स को एक टूल की तरह देखें, पूरी इमोशनल सपोर्ट सिस्टम की जगह नहीं।

प्रश्न 4: क्या भारत में भी त्योहारों के दौरान डेटिंग ऐप यूज़ बढ़ने के सबूत हैं?

जवाब: हां, कुछ सर्वे और रिपोर्ट्स ने दिखाया कि Diwali और बाकी फेस्टिव सीज़न के आसपास ऐप्स पर एक्टिविटी, चैटिंग और स्वाइप टाइम बढ़ जाता है, और कई यूज़र्स त्योहारों को “कंम्पैटिबिलिटी चेक” या नए लोगों से मिलने के दिलचस्प मौके के रूप में देखते हैं।

प्रश्न 5: हॉलीडे सीज़न में डेटिंग ऐप बर्नआउट से कैसे बचें?

जवाब: रिसर्च और सर्वे सुझाते हैं कि टाइम लिमिट सेट करना, एक‑दो ऐप्स तक खुद को सीमित रखना, दिन भर में लगातार चेक करने की बजाय फिक्स स्लॉट चुनना, और बीच‑बीच में ऐप‑फ्री दिन रखना बर्नआउट को कम कर सकता है। साथ ही, ऑफलाइन सोशल कनेक्शन, हॉबीज़ और सेल्फ‑केयर पर भी ध्यान देना ज़रूरी है, ताकि आपका पूरा मूड सिर्फ मैच और मैसेज पर निर्भर न रहे।

Share

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

हर बार पौधा मर जाता है? ये Long-Lived Houseplants नए गार्डनर्स के लिए बेस्ट हैं

बार‑बार पौधे सूख जाते हैं? जानिए 9 ऐसे Long-Lived Houseplants के बारे...

Shaadi के बाद किसे पहले रखें–मां,पत्नी या बच्चा? रिश्तों का असली संतुलन कैसे बनाएं

भारतीय मर्द के लिए मां, पत्नी और बच्चे में “किसे पहले रखें”...